सुप्रीम कोर्ट का पिछले फ़ैसले में सुधार, दहेज प्रताड़ना में गिरफ़्तारी पर निर्णय पुलिस लेगी

चीफ़ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फ़ैसले में संशोधन करते हुए कहा है कि शिकायतों के निपटारे के लिए परिवार कल्याण कमेटी की ज़रूरत नहीं है.

फोटो: पीटीआई)

चीफ़ जस्टिस की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फ़ैसले में संशोधन करते हुए कहा है कि शिकायतों के निपटारे के लिए परिवार कल्याण कमेटी की ज़रूरत नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने दहेज की खातिर प्रताड़ना दिए जाने से संबंधित अपने जुलाई 2017 के फैसले में शुक्रवार को सुधार किया है.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने अपने पुराने फैसले में संशोधन करते हुए कहा है कि शिकायतों के निपटारे के लिए परिवार कल्याण कमेटी की जरूरत नहीं है. पुलिस को आवश्यक लगे तो वह आरोपी को तुरंत गिरफ्तार कर सकती है.

मामले में आरोपियों की तुरंत गिरफ्तारी पर लगी रोक हटाते हुए कोर्ट ने कहा कि पीड़ित की सुरक्षा के लिए ऐसा करना जरूरी है. कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपी के पास अग्रिम जमानत का विकल्प खुला है.

चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली पीठ ने दो सदस्यीय पीठ के फैसले में सुधार करते हुए अपने निर्णय में कहा कि अदालतों के लिए दंड विधि में व्याप्त किसी कमी को दूर करने की सांविधानिक तरीके से कोई गुंजाइश नहीं है.

बता दें कि इसी साल अप्रैल माह में सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.

तीन सदस्यीय पीठ ने इस याचिका पर 23 अप्रैल को सुनवाई पूरी करते हुये कहा था, ‘महिलाओं के लिए लैंगिक न्याय होना चाहिए क्योंकि जहां एक ओर दहेज का विवाह पर बुरा असर पड़ता है वहीं दूसरी ओर व्यक्ति के जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार भी है.’

गौरतलब है सुप्रीम कोर्ट के दो न्यायाधीशों की पीठ ने 27 जुलाई, 2017 को अपने फैसले में कहा था कि दहेज प्रताड़ना की शिकायत पर विचार के लिए समिति गठित की जाए. इस पीठ ने धारा 498-ए के बढ़ते दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए अनेक निर्देश दिए थे.

इनमें यह भी शामिल था कि आरोपों की पुष्टि के बगैर सामान्यतया कोई गिरफ्तारी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि निर्दोष व्यक्तियों के मानवाधिकारों के उल्लंघन को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.

पीठ ने टिप्पणी की थी कि ऐसी अनेक शिकायतें सही नहीं थीं और अनावश्यक गिरफ्तारियां दाम्पत्य जीवन में समझौते की गुंजाइश खत्म कर सकती हैं.

न्यायालय की इस व्यवस्था के खिलाफ अहमदनगर की महिला वकीलों के गैर सरकारी संगठन ‘न्यायाधार’ ने याचिका दायर की थी. इसमें दो न्यायाधीशों की पीठ के फैसले पर फिर से विचार करने का अनुरोध करते हुए कहा गया था कि इस न्यायिक व्यवस्था ने ससुराल में विवाहित महिला से क्रूरता के अपराध से निबटने संबंधी दहेज निरोधक कानून की सख्ती को काफी कम कर दिया है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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