एनपीए पर रघुराम राजन की रिपोर्ट रसूख़दारों पर सरकारी मेहरबानी का दस्तावेज़ है

अब यह देखा जाना बाक़ी है कि क्या मोदी सरकार इन बड़े कॉरपोरेट घरानों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में सफल हो पाती है, जो आने वाले आम चुनावों में अज्ञात चुनावी बॉन्डों के सबसे बड़े ख़रीदार हो सकते हैं.

//

अब यह देखा जाना बाक़ी है कि क्या मोदी सरकार इन बड़े कॉरपोरेट घरानों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने में सफल हो पाती है, जो आने वाले आम चुनावों में अज्ञात चुनावी बॉन्डों के सबसे बड़े ख़रीदार हो सकते हैं.

rajan-modi-reuters-800x400
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन द्वारा मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की प्राक्कलन समिति को सौंपे गए नोट को भाजपा और कांग्रेस दोनों ही निष्पक्ष करार दे रही है.

भाजपा इस बात को लेकर खासी रोमांचित है कि इस रिपोर्ट में यह कहा गया है कि नहीं चुकाए गए खराब कर्जों का एक बड़ा हिस्सा यूपीए सरकार के दौरान दिया गया था. दूसरी तरफ कांग्रेस भी रिपोर्ट के कुछ हिस्सों को लेकर काफी उत्साहित है, जिसमें यह कहा गया है कि आरबीआई के गवर्नर के तौर पर राजन ने प्रधानमंत्री कार्यालय को एक चिट्ठी लिखकर प्रमुख प्रमोटरों द्वारा चलाई जा रही ऐसी परियोजनाओं की सूची सौंपी थी, जिनकी समन्वित तरीके से जांच दिए जाने की दरकार थी, क्योंकि इन पर धोखाधड़ी करने का शक था.

इस बात की संभावना ज्यादा लगती है कि यह सूची वर्तमान एनडीए-2 सरकार के दौरान सौंपी गई थी और इसमें ताकतकवर लोगों के नाम लिए गए हैं, जिनमें भारत से भाग कर कैरिबाई देश की नागरिकता लेने वाला एक हीरा कारोबारी भी शामिल है.

राजन ने ‘बेईमान/अनैतिक प्रमोटरों’ पर खासतौर से जोर दिया है, जो आदतन आयात की ओवर-इनवॉयसिंग (बिल को बढ़ाकर दिखाना) करते हैं और बैंकों से ऋण के तौर पर मिले पैसे को गैरकानूनी तरीके से देश से बाहर लेकर जाते हैं. केंद्रीय बैंक के पूर्व गवर्नर का कहना है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि उन्होंने पीएमओ से जिस समन्वित जांच की मांग की थी, उस दिशा में कितनी प्रगति हुई है. राजन का तर्क था कि अगर सरकार कुछ बेईमान प्रमोटरों पर कार्रवाई करके एक नजीर पेश नहीं करेगी, तो आने वाले कई सालों तक बैंकिंग प्रणाली इस समस्या से जूझती रहेगी.

इसलिए, अगर ये कर्जे यूपीए-1 या यूपीए-2 के समय में भी दिए गए थे, तो भी विपक्ष प्रधानमंत्री से यह सवाल पूछ रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन बेईमान प्रमोटरों के खिलाफ क्या कार्रवाई की, जो आज भी शान से आजाद घूम रहे हैं और वर्तमान में उच्च न्यायपालिका का इस्तेमाल करके दिवाला और दिवालिया संहिता (इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी कोड) के क्रियान्वयन की राह में रोड़ा अटका रहे हैं.

यहां यह दर्ज करना दिलचस्प होगा कि अभी तक इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (आईबीसी), जिसे एनडीए-2 द्वारा सबसे बड़े सुधार के तौर पर पेश किया जा रहा है, कुछ अपेक्षाकृत छोटी कंपनियों के मामले को निपटाने में ही मददगार साबित हुआ है.

मिसाल के लिए राजनीतिक रूप से ताकतवर कारोबारी घरानों द्वारा प्रायोजित बड़ी बिजली परियोजनाएं, जिनके पास तीन लाख करोड़ का डूबा हुआ कर्ज है, किसी भी कीमत पर दिवालिया न्यायालयों में जाने से बचना चाहते हैं.

यहां तक कि इन प्रमोटरों ने सरकार को इस बात के लिए भी मना लिया था कि बिजली क्षेत्र की गैर-निष्पादन परिसंपत्तियों (एनपीए) से निपटने के लिए एक अलग असेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) या बैड बैंक का गठन किया जाना चाहिए. बिजली मंत्रालय के आला अधिकारियों ने तो इन कंपनियों को 12 फरवरी के सर्कुलर से छूट देने तक की सलाह दी थी, जो 1 अक्टूबर के बाद इन कंपनियों को दिवालिया कार्यवाहियों के भीतर लाने को अनिवार्य बनाता है.

वास्तव में, एएमसी का गठन करने में अनुचित जल्दबाजी दिखाई गई- एक समिति ने महज दो सप्ताह के भीतर इसकी शिफारिश कर दी. यह जाहिर तौर पर बिजली की बड़ी परियोजनाओं को, जिनमें से कुछ की जांच वित्त मंत्रालय द्वारा 50,000 करोड़ रुपये के करीब के आयात की गैरकानूनी ओवर-इनवॉयसिंग के लिए की जा रही है, दिवालिया अदालतों का सामना करने से बचाने के मकसद से किया गया. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो बिजली क्षेत्र के कई बदनुमा सच्चाई दुनिया के सामने आ जाती. चिंता की असली वजह यही है.

रघुराम राजन ने मुरली मनोहर जोशी को भेजे गए अपने नोट में बेहद स्पष्ट तरीके से इस बात को लेकर आगाह किया है कि बड़े प्रमोटर अतीत में सफलतापूर्वक न्याय-प्रणाली को चकमा देने में कामयाब रहे हैं.

रिजर्व बैंक के पूर्व गर्वनर का कहना है कि उन्होंने ऋण वसूली ट्रिब्यूनलों और सिक्यूरिटाइजेशन एंड रीकंस्ट्रक्शन ऑफ फाइनेंशियल असेट्स एंड इनफोर्समेंट और सिक्यूरिटीज इंटरेस्ट एक्ट (2002) (प्रतिभूतिकरण एवं वित्तीय संपत्तियों के पुनर्गठन एवं प्रतिभूति हित प्रवर्तन अधिनियम 2002)- सरफेसी एक्ट को चकमा दिया.

उन्होंने यह आगाह किया है कि शुरू में सरफेसी एक्ट और ऋण वसूली ट्रिब्यूनलों को भी कामयाबी की कहानियों के तौर पर पेश किया गया, लेकिन बाद में यह पाया किया गया कि इनके पास भेजे गए 2,50,000 करोड़ रुपये मूल्य के डूबे हुए कर्जे में से सिर्फ 13 फीसदी की ही वसूली की जा सकी.

राजन ने इस तरफ इशारा किया है कि यह मानने का कारण है कि आईबीसी का हश्र भी ऐसा ही हो सकता है और संभव है कि ताकवतर प्रमोटर इसे भी उसी तरह से चकमा देने में कामयाब न हो जाएं, जैसा वे अब तक करते रहे हैं.

वास्तव में मोदी सरकार को इस बात का जवाब देना होगा कि आखिर आयातों की ओवर-इनवॉयसिंग करने वाले और बड़े पैमाने पर देश से बाहर पैसा ले जाने वालों के खिलाफ विभिन्न एजेंसियों की समन्वित जांच क्यों नहीं की गई है.

एक बाद एक आई सरकारों के दौरान यह देखा गया है कि राजनीतिक रूप से शक्तिशाली प्रमोटर व्यवस्था को चकमा देते रहे हैं. आज बैंकिंग सिस्टम के 10 लाख करोड़ के एनपीए में करीब एक तिहाई हिस्सेदारी इनकी है.

मेरी दृष्टि से राजन की प्रस्तुति का सबसे बड़ा सबक यही है. न सिर्फ राजन, बल्कि भारत के पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने भी मुरली मनोहर जोशी को यह कहा कि जिस तरह से बड़े प्रमोटरों की परियोजनाओं में बैंक के पैसों का इस्तेमाल किया गया है, उसमें अपराधिकता की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.

उन्होंने यह भी कहा कि बैड बैंक का विचार, जो कि दूसरे देशों में सफल रहा है, भारत के लिए मुफीद नहीं है, जहां बहुत ज्यादा कलंकित/दागदार पूंजी है. एक तरह से दागदार पूंजी किसी खराब वायरस की तरह सभी संस्थाओं में फैल जाने की प्रवृत्ति रखती है.

इस बात की संभावना है कि प्राक्कलन समिति व्यवस्था में सांठ-गांठ वाले भ्रष्टाचार से लड़ने के तरीकों पर अपना ध्यान केंद्रित करेगी, जिसके सामने बैंकिंग क्षेत्र के सभी अच्छी नीयत वाले सुधार भी अपर्याप्त साबित होते हैं.

हाल के महीनों में रिजर्व बैंक ने मजबूती दिखाई है और 1 फरवरी के अपने उस सर्कुलर पर कोई कोई समझौता नहीं किया है, जिसने सभी बकायादार कंपनियों, जिनमें से राजनीतिक रूप से रसूखदार कंपनियां भी हैं, को दिवालिया कार्यवाहियों में शामिल होने पर मजबूर कर दिया है.

यह अच्छा होता अगर जोशी मामलों की बड़ी संख्या से निपटने के लिए दिवालिया अदालतों के बुनियादी ढांचे(अदालतों की संख्या और मानव संसाधन की गुणवत्ता, दोनों ही दृष्टियों से)को मजबूत करने की सिफारिश करते. पर्याप्त न्यायिक अवसंरचना मुहैया नहीं कराना भी भ्रष्ट पूंजीपतियों के साथ सांठ-गांठ करने एक तरीका है जो कि अनैतिक प्रमोटरों को बच निकलने की स्थिति तैयार करता है.

अध्यक्ष के तौर पर जोशी को संसदीय समिति को भी यह सिफारिश करने के लिए तैयार करना चाहिए कि वित्त मंत्रालय की जांच शाखा द्वारा पहले से ही बिजली के क्षेत्र में आयातों की बड़े पैमाने की ओवर- इनवॉयसिंग (बढ़ा-चढ़ाकर बिल बनाने) की चलाई जा रही जांच को सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बहु-एजेंसीय ढांचे के तहत लाया जाए, क्योंकि कुल एनपीए के एक तिहाई का कोई न कोई संबंध प्रमोटरों के धोखाधड़ी वाले आचरण से हो सकता है.

बड़े कर्जों को चुकाने में नाकाम रहे अनैतिक प्रमोटरों द्वारा आयातों की ओवर-इनवॉयसिंग की समन्वित तरीके से जांच को लेकर सबकी निगाहें प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ भी होंगी. हाल ही में वित्त मंत्रालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय को यह भरोसा दिलाया था कि इसकी जांच शाखा ने संयुक्त अरब अमीरात और सिंगापुर जैसे देशों को चिट्ठियां भेजी हैं, जहां से बिजली परियोजनाओं की 200 प्रतिशत तक ओवर-इनवॉयसिंग की गई.

यह देखा जाना बाकी है कि क्या मोदी सरकार इन बड़े कॉरपोरेट घरानों के खिलाफ कार्रवाई करने में सफल हो पाती है, जो आने वाले आम चुनावों में अज्ञात चुनावी बॉन्डों के सबसे बड़े खरीदार हो सकते हैं.

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25