यदि साक्ष्य गढ़े गए तो विशेष जांच का आदेश दिया जा सकता है: कार्यकर्ता गिरफ़्तारी मामले पर सुप्रीम कोर्ट

भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस की नज़रबंदी की अवधि 19 सितंबर तक बढ़ी.

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माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर नज़रबंद किए गए कवि वरावरा राव, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अरुण फरेरा, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वर्णन गोंसाल्विस. (बाएं से दाएं)

भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस की नज़रबंदी की अवधि 19 सितंबर तक बढ़ी.

माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर नज़रबंद किए गए कवि वरावरा राव, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अरुण फरेरा, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वर्णन गोंसाल्विस. (बाएं से दाएं)
माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर नज़रबंद किए गए कवि वरावरा राव, सामाजिक कार्यकर्ता और वकील अरुण फरेरा, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वर्णन गोंसाल्विस. (बाएं से दाएं)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि यदि उसने यह पाया कि भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के लिए साक्ष्यों को गढ़ा गया है और ऐसी सामग्री की जांच की आवश्यकता है तो वह विशेष जांच दल से जांच का आदेश दे सकता है.

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस धनंजय वाई चंद्रचूड़ की पीठ ने इन पांच कार्यकर्ताओं की नज़रबंदी की अवधि 19 सितंबर तक के लिए बढ़ा दी. पीठ ने कहा कि वह दो दिन बाद इतिहासकार रोमिला थापर और चार अन्य की याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई करेगी.

न्यायालय भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में दर्ज प्राथमिकी की जांच के दौरान पांच कार्यकर्ताओं वरवरा राव, अरुण फरेरा, वर्णन गोंसाल्विस, सुधा भारद्वाज और गौतम नवलखा की 28 अगस्त को गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा था.

पीठ ने कहा, ‘प्रत्येक आपराधिक जांच आरोपों पर आधारित होती है और हमें देखना है कि क्या इनमें कोई साक्ष्य हैं. सबसे पहले तो हमें सामग्री पर गौर करना होगा. यदि हमने पाया कि सामग्री गढ़ी गई है तो हम विशेष जांच दल गठित करेंगे. हम उन्हें (महाराष्ट्र पुलिस) सुने बगैर और सामग्री पर गौर किए बगैर उनके ख़िलाफ़ निर्णय कैसे कर सकते हैं. हम जांच एजेंसी के तथ्य देंखेंगे.’

इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल मनिंदर सिंह और तुषार मेहता ने रोमिला थापर और अन्य की याचिका का विरोध किया.

उनका कहना था कि ऐसी कौन सी सामग्री थी जिसने यह एहसास पैदा किया कि निचली न्यायिक अदालतें आरोपियों को नहीं सुनेंगी.

इस पर पीठ ने कहा कि उसने उनकी स्वतंत्रता को ध्यान में रखते हुए ही उन्हें संरक्षण प्रदान किया है और यह निचली अदालतों में उनकी याचिकाओं का निपटारा होने तक जारी रहेगी.

पीठ ने कहा, ‘हम स्वतंत्रता के आधार पर मामले पर विचार करते हैं. स्वतंत्र जांच जैसे मुद्दे बाद के चरण में आते है. आरोपियों को नीचे से राहत प्राप्त करने दें. इस बीच, हमारा अंतरिम आदेश जारी रह सकता है.

सिंह ने कहा, ‘जहां तक नक्सलवाद की समस्या का संबंध है तो यह अधिक बड़ी समस्या हो रही है और यह पूरे देश में फैल रही है. इसी वजह से हम इसमें हस्तक्षेप कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा कि यह एक ख़तरनाक परंपरा स्थापित करेगी और ऐसा मामला, जिस पर निचली अदालतों ने विचार नहीं किया है और ऐसा कौन सा पहलू है जिसने उनके दिमाग में यह संदेह पैदा किया कि निचले न्यायिक मंच उन्हें नहीं सुनेंगे.

तुषार मेहता ने कहा कि गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के बारे में याचिकाकर्ताओं की अपनी सोच से इतर उनके ख़िलाफ़ पर्याप्त सामग्री है.

उन्होंने कहा कि यह असहमति नहीं है. यह गंभीर अपराध है. आप अभी शायद संतुष्ट नहीं हों परंतु लैपटाप, कम्प्यूटर, हार्ड डिस्क से मिले साक्ष्य से पता चलता है कि वे संलिप्त थे.

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने केंद्र और महाराष्ट्र की आपत्तियों को ‘किताबी’ क़रार देते हुए कहा कि शीर्ष अदालत द्वारा इसका संज्ञान लिए जाने के बाद से निचली अदालत में कुछ नहीं हुआ है.

उन्होंने कहा कि उन्हें अपना मामला सामने रखने दिया जाये क्योंकि यह न्यायालय के अंत:करण को भी झकझोर देगा.

पिछले साल 31 दिसंबर को आयोजित एलगार परिषद की बैठक के बाद पुणे के भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा की घटना की जांच के सिलसिले में बीते 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था.

इतिहासकार रोमिला थापर समेत प्रभात पटनायक, माजा दारुवाला, सतीश देशपांडे और देवकी जैन जैसे सामाजिक कार्यकर्ता इन गिरफ़्तारियों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. उनका कहना था कि सरकार से असहमति के चलते ये गिरफ्तारियां हुई हैं.

शीर्ष अदालत ने 29 अगस्त को इन कार्यकर्ताओं को छह सितंबर तक अपने घरों में ही नज़रबंद करने का आदेश देते हुए कहा था, ‘लोकतंत्र में असहमति सेफ्टी वॉल्व है.

इससे पहले पुलिस ने पिछले साल पुणे में आयोजित एलगार परिषद की ओर से आयोजित कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को इसी साल जून महीने में गिरफ्तार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)