अब तिरंगे से सुकून नहीं, जुनून पैदा किया जा रहा है

तिरंगा लेकर आप कांवर यात्रा में चल सकते हैं. गणेश विसर्जन में भी उसे लहरा सकते हैं. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में विशाल डंडों में बांधकर मोटरसाइकिल पर दौड़ा सकते हैं. तिरंगे से आप मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा करने वालों के शव ढंक सकते हैं, लेकिन उससे आप अपनी बेपर्दगी ढंक नहीं सकते!

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तिरंगा लेकर आप कांवर यात्रा में चल सकते हैं. गणेश विसर्जन में भी उसे लहरा सकते हैं. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में विशाल डंडों में बांधकर मोटरसाइकिल पर दौड़ा सकते हैं. तिरंगे से आप मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा करने वालों के शव ढंक सकते हैं, लेकिन उससे आप अपनी बेपर्दगी ढंक नहीं सकते!

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(फोटो साभार: Meena Kadri/Flickr CC BY-NC-ND 2.0)

तिरंगा क्या किसी को धूप से बचाने का काम कर सकता है? क्या वह सुकून का साया बन सकता है? जिन लोगों ने तिरंगे की कल्पना की थी, उन्होंने इसे इसी तरह देखा था शायद. तिरंगे को देखते हुए इत्मीनान का एहसास: कोई साया सिर पर है.

शाहरुख़ ने तिरंगे को इसी तरह देखा. वह काम से लौट रहा था. हिंदुस्तान का एक कामगार. 15 अगस्त का दिन गुजर चुका था. यौमे आज़ादी. जश्न मनाया जा चुका था, लेकिन शाहरुख़ उस वक्त भी काम पर था.

बोझा ढोते हुए. बेलदारी का काम रेलवे स्टेशन पर. काम से लौटते हुए रात हो चुकी थी. फिर भी उसकी नज़र को सड़क पर एक रंग-बिरंगे कपड़े ने खींच ही लिया, जितना रंग ने नहीं उतना शायद उसके साइज़ ने.

उसने उसे सड़क से उठाया, फैलाया और उसकी आंखें चमक गई होंगी तब. यह साइज़ ठीक उसके घर के दरवाज़े का साइज़ था. दरवाजा, जो नहीं था. आस्तान तो था, दरवाज़ा नहीं.

घर का मतलब पर्दादारी भी है. वरना वह सड़क का हिस्सा है. लेकिन बहुत सारे घर हैं जिन्हें लकड़ी या लोहे का द्वार नसीब नहीं. वे भी घर ही हैं जो अपनी निजता प्लास्टिक के परदे से ढंकते हैं. जब हवा उन्हें उड़ाती है  ईंटों से उन्हें दबाकर स्थिरता देते हैं. ये हमारी नज़र में ‘लगभग घर’ हैं, ‘लगभग दरवाज़े’ वाले घर.

शाहरुख़ को उस कपड़े को देखकर अपने बेदरवाजेवाले घर की याद हो आई. वह फिट आता लगता है दरवाज़े पर.

कपड़ा मामूली न था. तिरंगा था. राष्ट्रध्वज, लेकिन स्वाधीनता दिवस के ढलते ही जिसके हाथ रहा होगा, उसकी पकड़ ढीली हो गई और यह फिसल पड़ा. कौन होगा जो इस विशालता को अपनी पकड़ से सरकते भी बेखबर रहा होगा?

या जानबूझकर उसे उसने अब बेकार जानकर फेंक दिया होगा?आखिर स्वाधीनता दिवस का अवसान हो चुका था. फिर रोजमर्रा के लिए तिरंगा किस काम का? वह त्यक्त ध्वज अब एक कपड़े का टुकड़ा भर था.

सड़क पर पड़ा रहा. उसके बाद कई पैर गुजरे होंगे उस राह. शायद उसे कुचलते हुए भी. लेकिन उसके करीब सिर्फ शाहरुख़ के पैर ही ठिठके. क्या उसके पैर में आंखें थीं? किनके पैरों में आंखें होती हैं?

हम-आप सड़क पर निगाह नहीं डालते, सड़क पर गिरे किसी सिक्के की उम्मीद की याद बचपन से अब दस्तक देने नहीं आती. लेकिन हमारे आपके अलावा ढेर सारे लोग हैं जो फेंक दी गई चीज़ों से अपना संसार सजाते हैं.

एक प्लास्टिक की बोतल, एक घिस गई चप्पल, एक टूटा हुआ खिलौना! इनसे भी घर बनता है.

शाहरुख़ ने सोचा कि यह बड़ा तिरंगा उसके घर को धूप और धूल से बचाएगा. उसने घर के मुंह पर उसे टांगा. जैसा अंदाज किया था उसने वैसे ही तिरंगे ने पूरे दरवाज़े को ढंक लिया. उस घर की सबसे बड़ी कमी पूरी हुई. तिरंगे की छांव ने उसे घर का दर्जा दिया.

शाहरुख़ को लेकिन मालूम न था कि अब तिरंगे से सुकून नहीं, जुनून पैदा किया जाता है. और यह कितना अजीब है!

जो तिरंगा एक परिवार को, एक निरक्षर गरीब, उसकी बीवी, दो बच्चों और बूढ़े मां-बाप को अपने साये के आगोश में लिए था, उसी तिरंगे के हिलने से शाहरुख़ के पड़ोसियों के मन में घृणा की लहर उठ रही थी. वह तिरंगा क्या जिसके नीचे डंडा न हो! जो रुआब और खौफ न पैदा करे!

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फोटो: पीटीआई

तिरंगा लेकर आप कांवर यात्रा में चल सकते हैं. गणेश विसर्जन में भी उसे लहरा सकते हैं. भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में विशाल डंडों में बांधकर मोटरसाइकिल पर दौड़ा सकते हैं. तिरंगे से आप मुसलमानों के खिलाफ हिंसा करनेवालों के मृत शरीर को ढंक सकते हैं! लेकिन उससे आप अपनी बेपर्दगी ढंक नहीं सकते!

खासकर अगर आपका नाम शाहरुख़ है! शाहरुख़ को यह भी अंदाज न था, (हालांकि वह मुज़फ्फरनगर का रहनेवाला है) कि तिरंगे की छाया अब भारत में शाहरुख़ नाम जैसे वालों के लिए अब नहीं.

वे उसे झुककर सलाम भर कर सकते हैं, चूम नहीं सकते. वे उसे कोर्निश बजा सकते हैं. इससे उनकी वफादारी जाहिर होती है और मुसलमानों से वफादारी भर चाहिए. उससे आगे बढ़कर अगर वह अपनापन जाहिर करने लगे तो क़ानून अपना काम करने लगता है.

शाहरुख़ के पड़ोसियों ने उसके घर के सामने प्रदर्शन किया. सोचिए, एक गरीब, एक कमरेवाले परिवार के दरवाजे के बाहर एक भीड़ नारे लगाती हुई- ‘तिरंगे का अपमान, नहीं सहेगा हिंदुस्तान! देशद्रोही लोगों को जूते मारो सालों को!’

यह राष्ट्रवादी भाषा है! और फिर आई पुलिस. शिवसेना के बहादुरों ने एक ‘देशद्रोही’ को घेर लिया था. पुलिस ने उसे धर दबोचा! और अदालत ने तिरंगे के गलत इस्तेमाल के अपराध की गंभीरता को देखते हुए उसे हिरासत में भेज दिया.

शाहरुख़ आज़ाद हिंदुस्तान की जेल में रहकर जमानत पर बाहर निकला है. तिरंगा पुलिस स्टेशन में पुलिस की हिफाजत में अपनी खोई इज्जत हासिल करता हुआ! हर चीज़ अपनी जगह पर.

यह कौन मुल्क है और ये कौन लोग हैं? और हम कौन हैं? और शाहरुख़ का इस मुल्क से क्या रिश्ता है?

(लेखक दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हैं.)

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