दिल्ली में डिप्थीरिया से मरने वालों की संख्या 24 हुई

दिल्ली के महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में 23 बच्चों की मौत हुई है जबकि एक मौत एलएनजेपी अस्पताल में हुई. एंटीटॉक्सिन की ख़रीद में देरी मौत की मुख्य वजह बताई जा रही है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

दिल्ली के महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में 23 बच्चों की मौत हुई है जबकि एक मौत एलएनजेपी अस्पताल में हुई. एंटीटॉक्सिन की ख़रीद में देरी मौत की मुख्य वजह बताई जा रही है.

(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)
(प्रतीकात्मक फोटो: रॉयटर्स)

नई दिल्ली: उत्तर दिल्ली के एक अस्पताल में डिप्थीरिया से दो और लोगों के मरने की खबर मिली है. इसके साथ ही इस बीमारी से मरने वालों की संख्या बढ़कर 24 हो गई है. अधिकारियों ने शुक्रवार को बताया कि मरने वालों में पांच लोग दिल्ली के हैं जबकि शेष अन्य राज्यों के हैं.

इस बीमारी से मरने के नए मामले किंग्सवे कैंप स्थित महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग (एमवीआईडी) अस्पताल से सामने आए हैं.

एमवीआईडी अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘छह सितंबर से नगर निगम के इस अस्पताल में 183 मरीजों को भर्ती किया गया जिसमें से 23 की मौत हो गई है.’ एक और मरीज की मृत्यु दिल्ली सरकार द्वारा संचालित लोकनायक जयप्रकाश नारायण (एलएनजेपी) अस्पताल में हुई.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक डिप्थीरिया से संबंधित जटिलताओं के इलाज के लिए एंटीटॉक्सिन की खरीद में देरी की वजह से बच्चों की मौत हुई है. कसौली इंस्टीट्यूट एंटीटॉक्सिन बनाता है.

बता दें कि डिप्थीरिया एक गंभीर जीवाणु संक्रमण (बैक्टीरियल इन्फेक्शन) है जो कि नाक और गले को प्रभावित करता है. उत्तरी दिल्ली के मेयर आदेश गुप्ता ने बीते मंगलवार को महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को मौतों में हुई कथित चूक की वजह से बर्खास्त कर दिया था.

गुप्ता ने कुछ दिन पहले इस मामले में जांच के लिए एक समिति गठित की है और उनसे रिपोर्ट मांगी है. उन्होंने कहा, ‘ऐसा लगता है कि कुछ जगहों पर चूक हुई है. इसलिए हमने कार्रवाई की है. रिपोर्ट में जो भी बात सामने आती है उस हिसाब से अगली कार्रवाई की जाएगी.’

एमवीआईडी अस्पताल नई दिल्ली नगर निगम द्वारा संचालित किया जाता है.

मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में पेडियाट्रिक्स के प्रोफेसर और डीन सिद्धार्थ रामजी ने द हिंदू से कहा, ‘यूनिवर्सल टीकाकरण कार्यक्रम के तहत, एक वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों को डिप्थीरिया-टिटनेस-पर्टुसिस (डीटीपी) टीका की तीन खुराक दिया जाना चाहिए. इसके बाद 1-2 साल और 5-6 साल के बीच दो बूस्टर खुराक दी जानी चाहिए. लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं हो रहा है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘ज्यादातर उन बच्चों की मौत हुई है जिनका टीकाकरण नहीं किया गया है. दूसरा इसका मुख्य कारण यह है कि इन बच्चों को काफी देर में अस्पताल लाया जाता है, जिसकी वजह से डिप्थीरिया बैक्टीरिया पहले ही उन बच्चों के दिल और तंत्रिकाओं को प्रभावित कर चुका होता है. इसके बाद एंटी-डिप्थीरिया सीरम काम नहीं करता है.’

डॉक्टर ने कहा कि इसमें बड़ी चुनौती ये है कि सभी बच्चों का डिप्थीरिया टीकाकरण किया जाए और परिवारवाले इतने शिक्षित हों कि अगर कभी इस बिमारी के लक्षण दिखें तो बच्चों को तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया जाए.

भारत में 1980 के दशक से डिप्थीरिया टीकाकरण कार्यक्रम चल रहा है. लेकिन देश भर में तीन प्राथमिक खुराक का कवरेज अपर्याप्त है. डॉक्टर ने कहा, ‘यह सही कवरेज नहीं है, जिसकी वजह से मुख्य रूप से 6 से 9 वर्ष की उम्र वाले बच्चों की मौत हुई है.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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