तीन बच्चे होने के कारण नौकरी से निकाली गई आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बॉम्बे हाईकोर्ट पहुंची

नियम के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार विभिन्न विभागों में पदस्त कर्मचारियों के दो से ज़्यादा बच्चे नहीं होने चाहिए. महिला की दलील है कि यह प्रस्ताव 2014 में आया था और उस समय वो आठ महीने की गर्भवती थीं.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नियम के मुताबिक महाराष्ट्र सरकार विभिन्न विभागों में पदस्त कर्मचारियों के दो से ज़्यादा बच्चे नहीं होने चाहिए. महिला की दलील है कि यह प्रस्ताव 2014 में आया था और उस समय वो आठ महीने की गर्भवती थीं.

बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)
बॉम्बे हाईकोर्ट (फोटो: पीटीआई)

मुंबई: महाराष्ट्र में एक आंगनवाड़ी कर्मचारी को दो से ज्यादा बच्चे होने और ‘छोटे परिवार’ के नियमों का पालन नहीं करने पर उसे नौकरी से निकाल दिया गया था. अब महिला नो राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

याचिकाकर्ता तन्वी सोदाये ने 2002 में आईसीडीएस योजना के लिए काम करना शुरू किया था. उन्हें 2012 में आंगनवाड़ी सेविका के पद पर पदोन्नत किया गया था.

इस साल मार्च में उन्हें राज्य सरकार की ओर से लिखित सूचना मिली कि चूंकि उनके तीन बच्चे हैं, इसलिए उन्हें नौकरी से निकाला जा रहा है.

पत्र में सूचित किया गया कि 2014 के सरकारी प्रस्ताव के अनुसार आईसीडीएस योजना समेत विभिन्न विभागों में राज्य के सरकारी कर्मचारियों के दो से ज्यादा बच्चे नहीं होने चाहिए.

याचिकाकर्ता ने दलील दी कि दो से ज्यादा बच्चे होने के आधार पर नौकरी से निकालना गैरकानूनी है क्योंकि जब अगस्त 2014 का यह सरकारी प्रस्ताव लागू हुआ था तब वह अपने तीसरे बच्चे के साथ आठ माह की गर्भवती थी.

सुनवाई के दौरान वकील अजिंक्या एम उदने ने जस्टिस आरएम सावंत और जस्टिस एमएस कर्णिक की बेंच को बताया कि याचिकाकर्ता को आंगनवाड़ी सेविका के पद पर नियुक्ति पत्र में कही भी नहीं लिखा है कि बच्चों की सीमा पार करने पर नौकरी से निकाल दिया जाएगा.

बहरहाल, सरकार ने अदालत को बताया कि अगस्त 2014 का सरकारी आदेश खासतौर से महिला एवं बाल विकास विभाग लेकर आया था.

इसमें आईसीडीएस के तहत आंगनवाड़ी सेविकाओं और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति के नियम एवं शर्तों को परिभाषित किया गया था जबकि सरकार 2005 से ही ‘छोटे परिवार’ के नियमों का प्रचार कर रही है.

राज्य की ओर से पेश हुए एडवोकेट जनरल आशुतोष कुंभाकोनी ने खंडपीठ को बताया कि 2005 के नियमों के तहत, ‘छोटे परिवार’ का अर्थ है ‘पति और पत्नी का परिवार जिसके दो या दो से कम बच्चे हों.

कई सरकारी विभागों में ऐसे उम्मीदवार, जो इस परिभाषा में फिट नहीं थे, या तो उन्हें भविष्य में रोजगार की संभावनाओं से अयोग्यता का सामना करना पड़ा या उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया गया.

उन्होंने कहा कि साल 2005 से, इस नियम को लागू कराने के लिए राज्य द्वारा विभिन्न सरकारी विभागों के लिए कई संकल्प पत्र और अधिसूचनाएं जारी की गईं. इसलिए रोजगार में तीसरा बच्चा होने पर अयोग्यता का नियम इस मामले में भी लागू होना चाहिए.

अदालत ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह तीन अक्टूबर को मामले की अगली सुनवाई पर इस विषय पर अभी तक जारी किए गए सभी पत्रों और प्रस्तावों को पेश करें.

सोदाये ने इस साल अप्रैल में ही हाईकोर्ट में याचिका लगाई थी लेकिन पिछले हफ्ते कोर्ट ने सुनवाई के लिए इस मामले को स्वीकार किया.

आईसीडीएस एक सरकारी कार्यक्रम है जो 6 साल से कम उम्र के बच्चों और उनकी माताओं को भोजन, प्री-स्कूल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करता है. इस योजना के तहत स्थापित बाल देखभाल केंद्रों का प्रबंधन आंगनवाड़ी श्रमिकों द्वारा किया जाता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)