‘मुखिया ने मुझसे कहा, पहले माथे का सिंदूर मिटाकर आओ तब पेंशन मिलेगी’

भारत सरकार राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत वृद्धों को पेंशन देती है. इसमें केंद्र सरकार का योगदान केवल 200 रुपये प्रति माह है. पेंशन मिलने में आ रही दिक्कतों और पेंशन की राशि बढ़ाने की मांग को लेकर विभिन्न राज्यों से आए ​बुज़ुर्गों ने नई दिल्ली में प्रदर्शन किया.

New Delhi: Senior citizens during a protest demanding entitlement of universal old age pension, at Jantar Mantar in New Delhi, Sunday, Sept. 30, 2018. (PTI Photo/Arun Sharma)(PTI9_30_2018_000097B)
New Delhi: Senior citizens during a protest demanding entitlement of universal old age pension, at Jantar Mantar in New Delhi, Sunday, Sept. 30, 2018. (PTI Photo/Arun Sharma)(PTI9_30_2018_000097B)

भारत सरकार राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम के तहत वृद्धों को पेंशन देती है. इसमें केंद्र सरकार का योगदान केवल 200 रुपये प्रति माह है. पेंशन मिलने में आ रही दिक्कतों और पेंशन की राशि बढ़ाने की मांग को लेकर विभिन्न राज्यों से आए बुज़ुर्गों ने नई दिल्ली में प्रदर्शन किया.

New Delhi: Senior citizens during a protest demanding entitlement of universal old age pension, at Jantar Mantar in New Delhi, Sunday, Sept. 30, 2018. (PTI Photo/Arun Sharma)(PTI9_30_2018_000097B)
पेंशन मिलने में आ रही दिक्कतों और पेंशन की राशि बढ़ाने की मांग को लेकर दिल्ली के संसद मार्ग पर विभिन्न राज्यों से आए वृद्धों ने बीते दिनों प्रदर्शन किया. उनकी मांग है कि उन्हें न्यूनतम तीन हज़ार रुपये की पेंशन मिलनी चाहिए. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: ‘जब मैं गांव के मुखिया से अपने पेंशन के बारे में पूछने गई तो उन्होंने कहा कि पहले अपनी मांग का सिंदूर मिटा कर आओ तभी पेंशन मिलेगा.’ बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के महंत मनियारी गांव की रहने वाली उर्मिला देवी ने ये बात रोते हुए कही. वह पेंशन की मांग को लेकर 29 सितंबर और एक अक्टूबर को दिल्ली के संसद मार्ग पर हुए प्रदर्शन में शामिल थीं.

उर्मिला देवी ने बताया कि उनके तीन बेटे हैं लेकिन तीनों अलग-अलग रहते हैं. पति का हाथ टूट गया है, वो चल-फिर नहीं पाते हैं. उर्मिला अपने पति के साथ खर-पतवार के बने घर में रहती हैं. इस स्थिति में रहने के बाद भी आज तक उन्हें सरकार से कोई पेंशन नहीं मिला. उनका कहना है कि जब भी वो गांव के मुखिया बब्बन राय के पास सरकार की ओर से दिए जा रहे वृद्धावस्था पेंशन के लिए जाती हैं तो वे उन्हें डांट कर भगा देते हैं.

ये सिर्फ उर्मिला की ही कहानी नहीं है. दयानंद, गंगा देवी, शिवदयाल, उरुलिया देवी, अंबिका देवी, सीता देवी, सुरजी देवी जैसे कई लोगों की यही स्थिति है.

दिल्ली के संसद मार्ग पर देश के विभिन्न राज्यों से आए इन लोगों की शिकायत ये है कि उन्हें पेंशन ही नहीं मिलती है, कुछ का कहना है कि पेंशन के लिए सरकारी कर्मचारी उन्हें बार-बार दौड़ाते हैं और तो और रिश्वत लेकर भी काम नहीं करते हैं.

वहीं अगर किसी को पेंशन मिलती भी है तो केंद्र सरकार सिर्फ़ 200 रुपये की पेंशन देती है. यानी कि प्रति दिन के हिसाब से एक व्यक्ति को तक़रीबन सात रुपये की ही पेंशन मिलती है.

Old Age Pension 2
बिहार में अररिया ज़िले के कोशकापुर, शिवदेव टोला के रहने वाले विंदुल यादव की उम्र 86 साल और उनकी पत्नी सावित्रि देवी की उम्र 80 साल है, लेकिन दोनों में से किसी को भी पेंशन नहीं मिलती है. (फोटो: धीरज मिश्रा/द वायर)

पेंशन परिषद नाम के गैर-सरकारी संगठन द्वारा 30 सितंबर से लेकर एक अक्टूबर तक आयोजित इस विरोध प्रदर्शन में मांग रखी गई थी कि जिस तरह सरकारी कर्मचारियों को अपने आख़िरी वेतन का आधा हिस्सा पेंशन के तौर पर दिया जाता है, उसी तरह असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की पेंशन राशि को 3,000 रुपये किया जाए.

परिषद ने ये भी मांग रखी कि 55 साल से ऊपर की आयु के सभी नागरिकों को विभिन्न पेंशन योजनाओं का लाभ दिया जाए और गरीबी रेखा से ऊपर (एपीएल), गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) के भेद को समाप्त किया जाए. मौजूदा समय में 200 रुपये की पेंशन सिर्फ़ उन्हीं लोगों को मिलती है जो बीपीएल श्रेणी में आते हैं.

पेंशन की मांग को लेकर विभिन्न राज्यों से दिल्ली आए इन वृद्ध लोगों की तकलीफ का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब हमने इन लोगों से इनका बयान लेना चाहा और कुछ लोगों का नाम लिखने के लिए डायरी निकाली तो चारों तरफ से लोगों ने घेर लिया और बहुत आशान्वित होकर कहने लगे, ‘भइया मेरा भी नाम लिख लिजिए, अब पेंशन तो आ जाएगा न.’ शायद उन्हें लग रहा था कि डायरी में उनका नाम लिख लेने भर से उन्हें पेंशन मिलने लगेगी.

बिहार से आईं पासो देवी की उम्र लगभग 65 साल थी, उन्होंने दिल्ली से जाते-जाते नम आंखों से कहा, ‘बेटा बहुत तकलीफ में हूं. खेत भी नहीं है. अब हिम्मत भी नहीं रही कि कहीं काम कर सकूं. पेंशन दिलवा दोगे न.’

बीते 30 सितंबर और एक अक्टूबर को विभिन्न राज्यों से आए बुजुर्गों ने उचित पेंशन की मांग को लेकर नई दिल्ली में प्रदर्शन किया. (फोटो साभार: पेंशन परिषद)
बीते 30 सितंबर और एक अक्टूबर को विभिन्न राज्यों से आए बुजुर्गों ने उचित पेंशन की मांग को लेकर नई दिल्ली में प्रदर्शन किया. (फोटो साभार: पेंशन परिषद)

बता दें कि अभी भारत सरकार की ओर से राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम (एनएसएपी) के तहत अलग-अलग योजनाओं के जरिए कई तरीके की पेंशन जैसे कि वृद्धावस्था पेंशन, विधवा पेंशन, विकलांगता पेंशन इत्यादि दी जाती है. इसमें केंद्र सरकार का योगदान केवल 200 रुपये प्रति माह होता है. इस हिसाब से एक व्यक्ति को तकरीबन सात रुपये रोज़ाना की दर से पेंशन मिलती है.

कुछ राज्यों की अपनी अलग से पेंशन स्कीम है. जैसे कि राजस्थान में एकल नारी सम्मान पेंशन योजना के तहत 18 साल से अधिक आयु वर्ग की सभी महिलाएं जो विधवा/तलाकशुदा या पति द्वारा छोड़ी गई हैं, उन्हें पेंशन दी जाती है.

एनएसएपी में शामिल इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना के तहत 60-80 साल के उम्र वाले बीपीएल श्रेणी के व्यक्ति को केंद्र सरकार की तरफ से 200 रुपये प्रति माह के हिसाब से पेंशन दी जाती है. जिनकी उम्र 80 या इससे ऊपर है, उन्हें 500 रुपये हर महीने पेंशन देने का प्रावधान है.

इसी तरह इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना के तहत 40-64 साल तक की बीपीएल श्रेणी की विधवा महिलाओं को 200 रुपये प्रति माह पेंशन देने का प्रावधान है. वहीं इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन योजना के तहत 18-64 साल के उम्र वाले बीपीएल श्रेणी के शख्स को 200 रुपये प्रति महीने पेंशन देने की योजना है.

बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के मजीहा गांव की रहने वाली गीता देवी बताती हैं कि वो पिछले आठ-नौ साल से अपने सास और ससुर को पेंशन दिलाने की कोशिश कर रही हैं लेकिन आज तक एक रुपये का भी पेंशन नहीं मिल सका.

उन्होंने कहा, ‘गांव के मुखिया संजय मंडल ने मेरे परिवार से 1500 रुपये की रिश्वत भी ले ली उसके बावजूद आज तक एक पैसा नहीं आया. हम गरीब हैं, कहां जाएं, किससे लड़ें.’

गीता देवी के बेटे राजेश 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से मज़दूरी करके पूरे घर का गुज़ारा करते हैं. राजेश ने कहा, ‘अगर कभी दस रुपये की भी दवा लेनी होती है तो हमारे पास पैसे नहीं होते हैं. बीमार व्यक्ति बिस्तर पर ऐसे ही तड़पता रहता है. ये सरकार हम गरीबों के प्रति इतनी निर्दयी क्यों है?’

राजेश ने आगे बताया कि जब वे मुखिया से पेंशन दिलवाने की बात करते हैं तो वे कहते हैं कि पेंशन तब मिलता है जब दाढ़ी-बाल सफेद हो जाते हैं. जो काम नहीं कर पाता है, उसे पेंशन मिलता है.

पेंशन परिषद के मुताबिक भारत में इस समय 10 करोड़ से भी ज़्यादा बुज़ुर्ग हैं जो कुल मतदाताओं की संख्या का 12.5 प्रतिशत हिस्सा हैं, यानी इतने लोग वोट देते हैं. हालांकि पेंशन योजना का लाभ 2.2 करोड़ लोगों को ही मिलता है. अधिकतर लोग इसमें छूट जाते हैं और इसमें महिलाओं की संख्या सबसे ज़्यादा है.

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(स्रोत: पेंशन परिषद)

नई दिल्ली के संसद मार्ग पर जुटे लोगों ने बताया कि पेंशन आने में देरी, वितरण की दिक्कतें, भ्रष्टाचार और आधार के चलते उन्हें काफी ज़्यादा परेशानियां झेलनी पड़ती हैं.

राजस्थान में डूंगरपुर ज़िले के भोजाता का ओड़ा गांव के रहने वाले हीराभगत अहारी कहते हैं कि आधार की वजह से पेंशन लेने वालों को तमाम दिक्कतों का सामना करना पड़ा रहा है.

उन्होंने कहा, ‘आधार में उम्र बढ़ा-घटा कर लिखी गई है. जब हम अपने वोटर कार्ड में देखते हैं तो वहां पर उम्र ज़्यादा लिखी होती है और जब हम आधार में देखते हैं तो वहां पर उम्र कम लिखी गई है. इसकी वजह से पात्र व्यक्ति होते हुए भी हमें पेंशन नहीं मिल रही है.’

राजस्थान के फलोज भागेला गांव की रहने वालीं कमला अर्जी कहती हैं कि प्रधान मुझे बार-बार ये कहकर पेंशन देने से मना कर देता है कि मेरी अभी उम्र नहीं हुई है, जबकि मेरे सारे कागजात पूरे हैं और मैं इसकी हक़दार हूं.

उन्होंने कहा, ‘सरकार, नेताओं और अधिकारियों को तो हज़ारों-लाखों का पेंशन दे रही है. हमारी एक बाल बराबर छोटी सी मांग है कि हमें सिर्फ़ 3,000 रुपये का पेंशन दिया जाए. क्या इस देश का गरीब आदमी इतने का भी हक़दार नहीं है.’

बिहार में मुजफ्फरपुर ज़िला के मैथी गांव के रहने वाले अशर्फी राम की उम्र 71 साल और उनकी पत्नी जानकी देवी की उम्र 68 साल है. लेकिन दोनों को ही पेंशन नहीं मिलती है.
बिहार में मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के मैथी गांव के रहने वाले अशर्फी राम की उम्र 71 साल और उनकी पत्नी जानकी देवी की उम्र 68 साल है, लेकिन दोनों को ही वृद्धावस्था पेंशन नहीं मिलती है. (फोटो: धीरज मिश्रा/द वायर)

नियम के मुताबिक पेंशन केंद्र और राज्य सरकार की बराबर ज़िम्मेदारी है. केंद्र की तरफ से सिर्फ़ 200 रुपये ही दिए जाते हैं, हालांकि राज्य सरकारें अपनी तरफ से अलग-अलग राशि देती हैं. दिल्ली, केरल, अंडमान व निकोबार और पुदुचेरी में सबसे ज़्यादा 2,000 रुपये की पेंशन मिलती है. बाकी राज्य इससे कम ही पेंशन देते हैं.

सबसे कम पेंशन मणिपुर, मिज़ोरम, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार जैसे राज्यों में दिया जाता है.

प्रदर्शन में मौजूद अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक ने कहा कि सरकार कॉरपोरेट सेक्टर को लाखों करोड़ रुपये की छूट देती है. अगर ये छूट थोड़ा सा कम कर दी जाए तो आसानी से पूरे भारत के बुज़ुर्गों को 3,000 रुपये की पेंशन दी जा सकती है.

उन्होंने कहा, ‘सरकार को लगता है कि वो गरीबों को पेंशन दान के रूप में दे रही हैं लेकिन ये दान नहीं है. यह भारत की जनता का हक़ है. ये संवैधानिक अधिकार है. जीडीपी का दो प्रतिशत हिस्सा आसानी से पेंशन के लिए ख़र्च किया जा सकता है.’

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पेंशन की मांग को लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रम करते लोग (फोटो: धीरज मिश्रा/द वायर)

जानी-मानी सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय कहती हैं कि पेंशन की मंज़ूरी और उसके वितरण की प्रक्रिया में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व बहुत ही कम है.

उन्होंने कहा, ‘हालत ये है कि पेंशन के नाम पर लंबे-चौड़े मानदंडों को फॉलो करना पड़ता है और बुज़ुर्गों को अपर्याप्त पेंशन प्राप्त करने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं. कई दफा उन्हें अपमान भी सहना पड़ता है. पेंशन में भयानक स्तर पर बहिष्कार, भ्रष्टाचार, प्रक्रियात्मक चूक और देरी होती है. ये जल्द से जल्द ख़त्म होनी चाहिए. लोगों को सम्मानजनक पेंशन मिलनी चाहिए.’

पेंशन परिषद के मुताबिक भारत पेंशन पर नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों से भी कम ख़र्च करता है. भारत के मुक़ाबले श्रीलंका में लगभग 866 रुपये और नेपाल में 1,333 रुपये पेंशन दी जाती है. भारत में ये राशि सिर्फ़ 200 रुपये है. सबसे ज़्यादा पेंशन ब्राज़ील, स्वीडन, नॉर्वे और फिनलैंड में दिया जाता है.

भारत अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सिर्फ़ 0.83 फीसदी हिस्सा पेंशन पर ख़र्च करता है. वहीं नॉर्वे अपनी जीडीपी का लगभग पांच फीसदी हिस्सा पेंशन के मद में ख़र्च करता है.

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