छत्तीसगढ़: पुलिस हिरासत में मां-बेटी को निर्वस्त्र करने के मामले में डीजीपी को नोटिस

मामला बिलासपुर के एक पुलिस थाने का है. आरोप है कि पुलिस हिरासत में एक महिला पुलिसकर्मी ने अपने पुरुष सहयोगियों के सामने एक वृद्ध महिला और उनकी बेटी न सिर्फ निर्वस्त्र किया बल्कि बुरी तरह से उनकी पिटाई भी की.

बिलासपुर (फोटो: गूगल मैप)

मामला बिलासपुर के एक पुलिस थाने का है. आरोप है कि पुलिस हिरासत में एक महिला पुलिसकर्मी ने अपने पुरुष सहयोगियों के सामने एक वृद्ध महिला और उनकी बेटी न सिर्फ निर्वस्त्र किया बल्कि बुरी तरह से उनकी पिटाई भी की.

बिलासपुर (फोटो: गूगल मैप)
बिलासपुर (फोटो: गूगल मैप)

नई दिल्ली: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने छत्तीसगढ़ के पुलिस प्रमुख (डीजीपी) को नोटिस जारी किया है. मामला बिलासपुर के एक पुलिस थाने का है. आरोप है कि पुलिस हिरासत में एक महिला पुलिसकर्मी ने अपने पुरुष सहयोगियों के सामने एक वृद्ध महिला और उनकी बेटी न सिर्फ निर्वस्त्र किया बल्कि बुरी तरह से उनकी पिटाई भी की.

आयोग ने बीते 22 अक्टूबर को जारी एक बयान में इसे एक अमानवीय और बर्बर कृत्य करार दिया. आयोग ने कहा कि उसने इस मामले में मीडिया में आई ख़बरों पर स्वत: संज्ञान लिया है.

आयोग ने कहा कि ख़बर के अनुसार, चोरी के आरोप में गिरफ्तार 60 वर्षीय महिला और उनकी 27 वर्ष की बेटी को एक महिला पुलिसकर्मी ने शहर कोतवाली पुलिस थाने में बीते 14 अक्टूबर को पुरुष पुलिस अधिकारियों के सामने निर्वस्त्र किया और बुरी तरह से पिटाई की.

आयोग ने कहा, ‘कथित रूप से उच्च रक्तचाप की मरीज़ होने के चलते मां ने इलाज का अनुरोध किया लेकिन उनकी बात नहीं सुनी गई. यहां तक कि उनके शरीर के महत्वपूर्ण अंगों पर भी चोटें आई.’

आयोग ने छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को एक नोटिस जारी किया है और उनसे चार सप्ताह के भीतर एक रिपोर्ट मांगी है जिसमें दोषी पुलिसकर्मियों के ख़िलाफ़ की गई कार्रवाई की जानकारी हो.

आयोग ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि मीडिया में आई ख़बर की सामग्री यदि सही है तो इससे पीड़ितों के मानवाधिकार उल्लंघन का गंभीर मुद्दा उत्पन्न होता है.

आयोग ने कहा, ‘जब किसी व्यक्ति को हिरासत में लिया जाता है, यह पुलिस प्राधिकारियों का दायित्व है कि वे उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करें लेकिन इस मामले में ऐसा लगता है कि पुलिसकर्मियों ने स्वयं क्रूर और अमानवीय व्यवहार किया और पीड़ितों को शारीरिक प्रताड़ना दी जो कि अमानवीय और बबर्र है.’

मीडिया की 17 अक्टूबर की ख़बर में कहा गया है कि मामला तब प्रकाश में आया जब दोनों पीड़ितों को अदालत के समक्ष पेश किया गया जहां उन्होंने ‘पुलिस बर्बरता की कहानी बयां की.’

अदालत ने कथित रूप से मामले की एक राजपत्रित अधिकारी द्वारा जांच का आदेश दिया और रिपोर्ट 26 अक्टूबर तक मांगी है. अदालत ने पीड़ितों की चोट के साथ ही यह भी उल्लेख किया है कि वे चल भी नहीं पा रही थीं.

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