भीमा-कोरेगांव: सामाजिक कार्यकर्ताओं की रिहाई वाली रोमिला थापर की पुनर्विचार याचिका ख़ारिज

इतिहासकार रोमिला ठाकुर ने पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को रिहा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाख़िल की थी.

इतिहासकार रोमिला थापर. (फोटो: द वायर)

इतिहासकार रोमिला ठाकुर ने पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को रिहा करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाख़िल की थी.

इतिहासकार रोमिला थापर. (फोटो: द वायर)
इतिहासकार रोमिला थापर. (फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने इतिहासकार रोमिला थापर की उस याचिका को ख़ारिज कर दिया जिसमें उन्होंने भीमा-कोरेगांव हिंसा के सिलसिले में गिरफ़्तार किए गए पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को तत्काल रिहा करने से इनकार वाले फैसले पर पुनर्विचार करने की मांग की थी.

उच्चतम न्यायालय ने 28 सितंबर को बहुमत से कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग ख़ारिज कर दी थी.

गौरतलब है कि प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की एक पीठ ने शुक्रवार को याचिका ख़ारिज कर दी थी.

आदेश शनिवार को बेवसाइट पर डाला गया.

पीठ ने कहा, ‘हमने समीक्षा याचिका और साथ ही इसके समर्थन के बिंदुओं का अवलोकन किया. हमारे विचार में, 28 सितंबर 2018 को सुनाए गए फैसले पर समीक्षा का कोई मामला नहीं है. इस हिसाब से समीक्षा याचिका ख़ारिज की जाती है.’

28 सितंबर को अदालत ने 28 अगस्त को महाराष्ट्र पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को तत्काल रिहा करने की याचिका को ख़ारिज कर दी थी.

उन्हें 29 अगस्त को नजरबंद किया गया था.

अदालत ने 28 सितंबर को कहा था कि आरोपी को चार और सप्ताह तक नज़रबंद रखा जाएगा. न्यायालय ने 2-1 के बहुमत से फैसला सुनाते हुए उनकी गिरफ्तारी की जांच के लिए एसआईटी नियुक्त करने से भी इनकार कर दिया था.

मालूम हो कि पुणे की एक अदालत ने बीते शुक्रवार को सुधा भारद्वाज के अलावा वर्णन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा की जमानत याचिका ख़ारिज कर दी, जिसके बाद देर शाम वर्णन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा को गिरफ्तार कर लिया गया है.

शुक्रवार देर रात अधिवक्ता सुधा भारद्वाज को भी पुणे पुलिस ने हिरासत में ले लिया. इसके अलावा वर्णन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा को छह नवंबर तक पुलिस हिरासत में भेज दिया है.

मालूम हो कि बीते 28 अगस्त को महाराष्ट्र की पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पांच कार्यकर्ताओं- कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ़्तार किया था.

महाराष्ट्र पुलिस ने आरोप लगाया है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं. जिला और सत्र न्यायाधीश (विशेष न्यायाधीश) केडी वडाणे ने भारद्वाज, गोंसाल्विस और फरेरा की जमानत याचिका ख़ारिज कर दी.

महाराष्ट्र पुलिस के इस क़दम पर इतिहासकार रोमिला थापर, अर्थशास्त्री प्रभात पटनायक और देवकी जैन, समाजशास्त्र के प्रो. सतीश पांडे और मानवाधिकार कार्यकर्ता माजा दारूवाला ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर इन मानवाधिकार एवं नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई तथा उनकी गिरफ्तारी की स्वतंत्र जांच कराने का अनुरोध किया था.

इसके बाद 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ताओं की हुई गिरफ्तारी को लेकर विशेष जांच दल (एसआईटी) की मांग को ख़ारिज कर दिया था और कहा कि इस मामले में लोगों की गिरफ्तारी उनकी प्रतिरोध की वजह से नहीं हुई है. जो भी आरोपी हैं वो कानून में मौजूद प्रावधानों के तहत राहत पा सकते हैं.

इससे पहले महाराष्ट्र पुलिस ने पिछले साल पुणे में आयोजित एलगार परिषद की ओर से आयोजित कार्यक्रम से माओवादियों के कथित संबंधों की जांच करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सुधीर धावले, रोना विल्सन, सुरेंद्र गाडलिंग, शोमा सेन और महेश राउत को जून में गिरफ्तार किया था.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)