क्या वसुंधरा राजे और अमित शाह में एक बार फिर ठन गई है?

अमित शाह आधे से ज़्यादा विधायकों का टिकट काटना चाहते हैं जबकि वसुंधरा राजे 80 फीसदी से ज़्यादा विधायकों को फिर से टिकट देने के पक्ष में हैं. इस रस्साकशी में शाह के साथ पूरी टीम है जबकि राजे अकेली जद्दोजहद कर रही हैं.

Rajasamand: BJP President Amit Shah with Rajasthan Chief Minister Vasundhara Raje during a public meeting to start 'Suraj Gaurav Yatra' at Rajasamand on Saturday, Aug 4, 2018. (PTI Photo) (PTI8_4_2018_000127B)
Rajasamand: BJP President Amit Shah with Rajasthan Chief Minister Vasundhara Raje during a public meeting to start 'Suraj Gaurav Yatra' at Rajasamand on Saturday, Aug 4, 2018. (PTI Photo) (PTI8_4_2018_000127B)

अमित शाह आधे से ज़्यादा विधायकों का टिकट काटना चाहते हैं जबकि वसुंधरा राजे 80 फीसदी से ज़्यादा विधायकों को फिर से टिकट देने के पक्ष में हैं. इस रस्साकशी में शाह के साथ पूरी टीम है जबकि राजे अकेली जद्दोजहद कर रही हैं.

Rajasamand: BJP President Amit Shah with Rajasthan Chief Minister Vasundhara Raje during a public meeting to start 'Suraj Gaurav Yatra' at Rajasamand on Saturday, Aug 4, 2018. (PTI Photo) (PTI8_4_2018_000127B)
भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. (फोटो: पीटीआई)

राजस्थान का प्रदेश अध्यक्ष होने के मामले में वसुंधरा राजे के हठ के सामने सरेंडर कर चुके भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह टिकट वितरण के मुद्दे पर उनसे दो-दो हाथ करने के मूड में हैं.

शाह ने अपने स्तर पर करवाए सर्वे और संघ व विस्तारकों की ग्राउंड रिपोर्ट के आधार पर आधे से ज़्यादा विधायकों के टिकट पर तलवार लटका दी है, लेकिन वसुंधरा 20 फीसदी से ज़्यादा विधायकों का टिकट काटने को तैयार नहीं हैं.

गौरतलब है कि राजे बीते 31 अक्टूबर को विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवारों के नाम तय करने के लिए अमित शाह से मिली थीं. इस दौरान पूर्व प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी और पंचायतीराज मंत्री राजेंद्र राठौड़ भी उनके साथ थे. सूत्रों के अनुसार वे जो सूची अपने साथ ले गई थीं उसमें 90 नाम थे.

इस सूची को राजे ने जयपुर और रणकपुर में हुई रायशुमारी के बाद अंतिम रूप दिया था.

गौरतलब है कि प्रदेश भाजपा की ओर से 12 हज़ार कार्यकर्ताओं और जनप्रतिनिधियों से पार्टी प्रत्याशी के बारे में राय पूछी गई थी. बताया जा रहा है कि इसके आधार पर 90 सीटों पर सिंगल नाम का पैनल तैयार किया गया. वसुंधरा को उम्मीद थी कि शाह जाते ही इस सूची पर मुहर लगा देंगे, लेकिन हुआ इसका उल्टा.

दरअसल, सबसे पहले श्रीगंगानगर ज़िले की सीटों पर चर्चा शुरू हुई. यहां की एक सीट पर वसुंधरा मौजूदा उम्रदराज़ विधायक की जगह उनके बेटे का नाम तय कर ले गई थीं.

जानकारी के मुताबिक इसे देखते ही अमित शाह की त्योरियां चढ़ गईं. उन्होंने कहा कि जब विधायक जीतने की स्थिति में नहीं है तो उनका बेटा कैसे जीत दर्ज करेगा.

भाजपा से जुड़े सूत्रों के अनुसार, अमित शाह ने अपनी ओर से कराए गए सर्वे और संघ एवं विस्तारकों की ग्राउंड रिपोर्ट का हवाला देते हुए कड़े लहज़े में कहा कि पार्टी उसे ही टिकट देगी जो जीतने की स्थिति में होगा. सिर्फ इस आधार पर किसी को टिकट नहीं दिया जाएगा कि वो मंत्री, विधायक, बड़ा नेता या किसी का चहेता है. चुनाव राजस्थान में फिर से सरकार बनाने के लिए लड़ा जा रहा है न कि किसी पर मेहरबानी करने के लिए.

शाह के तल्ख़ तेवर से सन्न वसुंधरा ने तर्क दिया कि जो लोग पार्टी और उनसे लंबे समय से जुड़े हुए हैं उनकी अनदेखी करना ठीक नहीं होगा. इन लोगों को साथ लेकर नहीं चलेंगे तो चुनाव में नुकसान होगा, लेकिन राजे की इस दलील से अमित शाह सहमत नहीं हुए.

Barmer: Rajasthan Chief Minister Vasundhara Raje interacts with women in a public rally during her 'Rajasthan Gaurav Yatra' at Gudamalani, near Barmer on Saturday, Sept 1, 2018. (PTI Photo) (PTI9_1_2018_000109B)
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. (फोटो: पीटीआई)

सूत्रों के अनुसार, अमित शाह ने प्रदेश नेतृत्व को सभी सीटों पर कम से कम तीन दावेदारों का पैनल बनाकर लाने के लिए कहा है. साथ ही हर सीट के जातिगत आंकड़े, पांच साल में हुए विकास कार्य, 2013 के विधानसभा चुनाव का वोटिंग पैटर्न, वर्तमान राजनीतिक, सामाजिक और जातिगत स्थिति का विस्तृत ब्योरा तैयार करने के लिए कहा है.

भाजपा अध्यक्ष ने रिपोर्ट में टिकट के दावेदारों की सूची के साथ मौजूदा विधायक का टिकट काटने की स्थिति में बागी होने से रोकने की योजना को भी शामिल करने के लिए कहा है. उनके इस निर्देश का पालन करने के लिए आननफानन प्रदेश भाजपा के 15 नेताओं फीडबैक लेने ज़िला मुख्यालयों पर भेजा गया.

गुलाब चंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़, अविनाश राय खन्ना, वी. सतीश, चंद्रशेखर, ओमप्रकाश माथुर, अर्जुनराम मेघवाल, गजेंद्र सिंह शेखावत, नारायण पंचारिया, ओम बिड़ला, राजेंद्र गहलोत, हरिओम सिंह, सीपी जोशी, किरण माहेश्वरी व भजन लाल ने स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं का मन टटोल जो नाम तय किए हैं उन्हें देखकर भी वसुंधरा की पेशानी पर पसीना आ गया है.

सूत्रों के मुताबिक छह मंत्रियों सहित कुल 60 विधायकों की रिपोर्ट वसुंधरा की पसंद से उल्टी आई है. अभी तो इस सूची को अमित शाह की पास मौजूद रिपोर्ट से मिलान होना बाकी है. बताया जा रहा है कि यदि राजस्थान में टिकट वितरण का ‘शाह फॉर्मूला’ लागू हुआ तो आधे से ज़्यादा विधायकों के टिकट कटना तय है.


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प्रदेश भाजपा में चल रही चर्चा के मुताबिक अमित शाह, संघ और विस्तारकों के सर्वे में आधे से ज़्यादा विधायकों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट आई है. इनमें कई ऐसे बड़े नाम भी शामिल हैं. इनमें सरकार के मंत्री और वसुंधरा के चहेते बड़े नेता भी हैं. राजे किसी भी सूरत में अपनों के टिकट पर कैंची नहीं चलने देंगी.

इस स्थिति में वसुंधरा राजे और अमित शाह के बीच तनातनी होना निश्चित है. यदि ऐसा होता है तो यह दूसरा मौका होगा जब इन दोनों के बीच सियासी भिड़ंत होगी. इससे पहले प्रदेशाध्यक्ष के मामले में वसुंधरा के शाह आमने-सामने हुए थे. तब राजे के हठ के सामने भाजपा अध्यक्ष को सरेंडर करना पड़ा था.

गौरतलब है कि इसी साल फरवरी में दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा की क़रारी हार के बाद केंद्रीय नेतृत्व ने वसुंधरा के ‘यस मैन’ माने जाने वाले अशोक परनामी से 16 अप्रैल को इस्तीफ़ा लिया था. अमित शाह इस ओहदे पर केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को बिठाना चाहते थे.

नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी शेखावत को प्रदेशाध्यक्ष बनाना चाहते थे, लेकिन वुसंधरा राजे ने इस पर सहमति व्यक्त नहीं की. पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने राजे को राज़ी करने के लिए सभी जतन किए, लेकिन मुख्यमंत्री टस से मस नहीं हुईं.

आख़िरकार मोदी-शाह की पसंद पर वसुंधरा का वीटो भारी पड़ा और मदन लाल सैनी प्रदेशाध्यक्ष बने.

Chittorgarh: Rajasthan Chief Minister Vasundhara Raje addresses the 'Rajasthan Gaurav Yatra' in Sanwaliyaji near Chittorgarh on Friday, Aug 10, 2018. (PTI Photo) (PTI8_10_2018_000188B)
राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे. (फोटो: पीटीआई)

नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और अमित शाह के भाजपा अध्यक्ष बनने के बाद यह पहला मौका था जब इन दोनों को पार्टी के किसी क्षेत्रीय क्षत्रप ने न केवल सीधी चुनौती दी, बल्कि घुटने टेकने पर भी मजबूर कर दिया. जबकि माना यह जाता है कि मोदी-शाह की मर्ज़ी के बिना भाजपा में पत्ता भी नहीं हिलता.

अमित शाह को क़रीब से जानने वाले यह अक्सर कहते हैं कि वे सीधी चुनौती देने वालों को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं करते. उनके एक क़रीबी नेता कहते हैं, ‘अमित शाह माफ करने वाले शख्स नहीं हैं. वे वसुंधरा से गजेंद्र सिंह शेखावत को अध्यक्ष नहीं बनने देने का बदला जरूर लेंगे. टिकट उनकी मर्जी से बंटेंगे न कि मुख्यमंत्री के कहने से.’

राजस्थान के चुनावों में अहम भूमिका निभा रहे ये नेता आगे कहते हैं, ‘इस बार के चुनाव में वसुंधरा राजे पार्टी का चेहरा जरूर हैं, लेकिन उनके अकेले के हाथ में कुछ भी नहीं है. अमित शाह ने अविनाश राय खन्ना, वी. सतीश, चंद्रशेखर, मदन लाल सैनी, प्रकाश जावड़ेकर और गजेंद्र सिंह शेखावत के जरिये ऐसा चक्रव्यूह बनाया है कि वसुंधरा को हाथ खड़े करने ही पड़ेंगे.’

उल्लेखनीय है कि अविनाश राय खन्ना प्रदेश प्रभारी, वी. सतीश सह प्रभारी, चंद्रशेखर संगठन महामंत्री और मदन लाल सैनी प्रदेशाध्यक्ष की हैसियत से पहले से ही राजस्थान में सक्रिय हैं जबकि प्रकाश जावड़ेकर को चुनाव प्रभारी और गजेंद्र सिंह शेखावत को चुनाव प्रबंध समिति का संयोजक बनाया गया है.


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भाजपा के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक पार्टी उपाध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर इन सबकी धुरी हैं. यह पूरी टीम जत्था सीधे अमित शाह को रिपोर्ट करता है. राजस्थान भाजपा में माथुर की धमक का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वसुंधरा 90 नामों की जिस सूची को अमित शाह के पास लेकर गई थीं, उसे दिखाने उन्हें माथुर के घर जाना पड़ा.

ऐसे में वसुंधरा के लिए टिकट वितरण में अपनी मर्जी चलाना आसान नहीं होगा. इस तनातनी में वसुंधरा के सामने बड़ी समस्या अकेले पड़ना है. टिकट वितरण में अमित शाह के सुर में सुर मिलाने के लिए नेताओं की लंबी फेहरिस्त है, वहीं राजे के कहे का समर्थन करने वाला कोई भी नहीं है.

हालांकि राजे खेमे के नेताओं को अभी भी भरोसा है कि टिकटों का बंटवारा मुख्यमंत्री की मर्जी से ही होगा. उनके एक करीबी नेता आॅफ द रिकॉर्ड बातचीत में कहते हैं, ‘मैडम ने न कभी किसी के सामने सरेंडर किया है और न अब करेंगी. कोई चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन टिकट वितरण में आख़िरकार चलेगी उनकी ही.’

वे आगे कहते हैं, ‘मैडम को यह अंदेशा पहले से था कि इस बार उनके क़रीबी लोगों का टिकट काटने की कोशिश होगी. उन्हें इसकी भनक तभी लग गई थी जब अमित शाह ने मुख्यमंत्री की ग़ैरमौजूदगी में कार्यक्रम किए. कोई कितना भी ज़ोर लगा ले मगर टिकट उसे ही मिलेगा जिसे मैडम चाहेंगी. जब वे ज़िद पर अड़ जाती हैं तो किसी की नहीं सुनती.’

यानी टिकट वितरण में अमित शाह और वसुंधरा राजे के बीच तनातनी होना तय है. यह देखना दिलचस्प होगा कि यह सियासी लड़ाई कितनी लंबी चलेगी और इसमें विजेता कौन रहेगा. पिछली बार की तहर वसुंधरा ही भारी पड़ेंगी या इस बार अमित शाह बाज़ी मार लेंगे.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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