गुजरात दंगे में नरेंद्र मोदी को मिली ‘क्लीन चिट’ के ख़िलाफ़ याचिका सुनेगा सुप्रीम कोर्ट

गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया जाफरी ने एसआईटी द्वारा नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं और नौकरशाहों को क्लीन चिट देने के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी. 19 नवंबर को होगी सुनवाई

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ज़किया जाफरी और नरेंद्र मोदी (फोटो: पीटीआई)

गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया जाफरी ने एसआईटी द्वारा नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं और नौकरशाहों को क्लीन चिट देने के फैसले को शीर्ष अदालत में चुनौती दी थी. 19 नवंबर को होगी सुनवाई.

ज़किया जाफरी और नरेंद्र मोदी (फोटो: पीटीआई)
ज़किया जाफरी और नरेंद्र मोदी (फोटो: पीटीआई)

साल 2002 में हुए गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को एसआईटी द्वारा मिली क्लीन चिट के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट 19 नवंबर को सुनवाई करेगा.

यह याचिका कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी ज़किया जाफरी द्वारा दायर की गयी है. एहसान जाफरी 2002 में हुए दंगो के दौरान गुलबर्ग सोसाइटी नरसंहार के दौरान मारे गए थे.

जकिया जाफरी ने नरेंद्र मोदी समेत कई नेताओं और वरिष्ठ अधिकारियों को एसआईटी द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के फैसले को चुनौती दी है.

मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट की ओर गठित 2012 में सौंपी गई एसआईटी की क्लोज़र रिपोर्ट के ख़िलाफ़ ज़किया ने साल 2014 में गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया था.

ज़किया ने अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि साल 2002 के दंगे एक बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है जिसमें नरेंद्र मोदी और दूसरे लोग भी शामिल थे.

इससे पहले एसआईटी ने ट्रायल कोर्ट को सौंपी क्लोज़र रिपोर्ट में कहा गया था कि जांच एजेंसी को आरोपी लोगों के ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं मिला इसलिए वह नरेंद्र मोदी और दूसरे लोगों को ख़िलाफ़ कोई केस नहीं चला सकती.

2012 में मेट्रोपोलिटन कोर्ट ने गोधरा दंगों के 58 आरोपियों को बरी किया था. अदालत ने एसआईटी की रिपोर्ट का हवाला देते हुए द्वारा कहा था कि ज़किया की शिकायत में बताए गए 58 आरोपियों में से किसी के खिलाफ भी कोई अपराध तय नहीं किया जा सका.

इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने गुजरात उच्च न्यायालय का रुख किया, जिसने पिछले अक्टूबर में एसआईटी की क्लोज़र रिपोर्ट की वैधता को बरक़रार रखते हुए ज़किया के आरोपों को ख़ारिज कर दिया.

हालांकि गुजरात उच्च न्यायालय ने ज़किया के आरोपों को लेकर किसी अन्य अदालत में मामले की नए सिरे से जांच कराने की अनुमति दी थी और ट्रायल कोर्ट के इस फैसले को पलट दिया जिसमें मामले की नए सिरे से जांच की संभावना को यह मानते हुए ख़ारिज कर दिया कि एसआईटी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच कर रही थी.

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