सीतामढ़ी ​से ग्राउंड रिपोर्ट: दंगाई एक-एक मुस्लिम को काट डालने के लिए ललकार रहे थे

बिहार के सीतामढ़ी में बीते 20 अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन के दौरान निकले जुलूस में शामिल कुछ लोगों ने एक बुज़ुर्ग ज़ैनुल अंसारी की पीट-पीट कर हत्या करने के बाद उन्हें जला दिया था.

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मोहम्मद ज़ैनुल अंसारी. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

बिहार के सीतामढ़ी में बीते 20 अक्टूबर को मूर्ति विसर्जन के दौरान निकले जुलूस में शामिल कुछ लोगों ने एक बुज़ुर्ग ज़ैनुल अंसारी की पीट-पीट कर हत्या करने के बाद उन्हें जला दिया था.

मोहम्मद ज़ैनुल अंसारी. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)
मोहम्मद ज़ैनुल अंसारी. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

सीतामढ़ी/बिहार: 84 वर्षीय मोहम्मद ज़ैनुल अंसारी बीते 20 अक्टूबर की दोपहर करीब 12 बजे बिहार में सीतामढ़ी ज़िले के राजोपट्टी में अपनी बहन की ससुराल से साइकिल से लौट रहे थे. वह नीले रंग की धारीदार लुंगी और सफदे कुर्ता पहने हुए थे. दाढ़ी लंबी रखते थे.

उनकी यही पहचान शायद उनकी मौत का बायस बन गया. उस रोज़ वह सीतामढ़ी के गौशाला चौक पर सैकड़ों की संख्या में मौजूद उपद्रवियों के बीच घिर गए. लोगों ने पहले उनकी बेरहमी से पिटाई की और फिर उनके शरीर पर लकड़ियां डालकर चौक पर ही जला दिया.

मोहम्मद ज़ैनुल अंसारी के पोते सबील अहमद कहते हैं, ‘वह लुंगी और कुर्ता पहनते थे और उनकी मुसलमानों जैसी दाढ़ी थी, इसलिए उन्हें मार डाला गया.’

ज़ैनुल अंसारी का घर ज़िले के भोरहा गांव में था. वह सुबह 7 बजे राजोपट्टी गए थे. राजोपट्टी से भोरहा की दूरी महज़ सात किलोमीटर है. दोपहर 12 बजे राजोपट्टी से चले ज़ैनुल घर नहीं पहुंचे तो घरवालों ने उनके मोबाइल पर कॉल लगाया. फोन तो बजा लेकिन कोई जवाब नहीं आया.

इसी बीच, गौशाला चौक में उपद्रव की ख़बर उन तक पहुंच गई, जिससे उनके ज़ेहन में एक अनजाना ख़ौफ़ भर गया.

सबील अहमद कहते हैं, ‘20 अक्टूबर को ही दिन के तीन बजे मेरे पास गौशाला चौक से एक फोन आया. फोन करने वाले ने बताया कि मेरे दादा जी मारकर जला दिया गया है.’

इस सूचना के बावजूद ज़ैनुल अंसारी के परिजनों को यकीन नहीं हुआ और उन्होंने 20 अक्टूबर को ही सीतामढ़ी टाउन में उनकी गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई.

इधर, उपद्रव के बाद इलाके में इंटरनेट सेवा बंद कर धारा 144 लगा दी गई. 21 अक्टूबर की शाम करीब सात बजे इंटरनेट सेवा बहाल हुई और वह भी महज़ आधे घंटे के लिए.

इस आधे घंटे के दौरान सबील अहमद के वॉट्सअप पर कुछ तस्वीरें आईं और जैसे पूरे परिवार ही वज्रपात हो गया. सबील को पहचानते देर नहीं लगी कि वे तस्वीरें उनके दादाजी की ही हैं.

तस्वीरें बेहद परेशान करने वाली थीं. वे तस्वीरें लिए ज़ैनुल के परिजनों ने उसी शाम ज़िले के डीएम से मुलाकात की. इस मुलाकात में डीएम ने भी तस्दीक की कि गौशाला चौक से एक जली हुई लाश मिली है जिसे मुज़फ़्फ़रपुर के श्रीकृष्ण मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसकेएमसीएच) में भेजा दिया गया है.

सबील अहमद ने कहा, ‘डीएम से मिलने के बाद हम लोग मुज़फ़्फ़रपुर के उस अस्पताल में गए जहां उनका शव रखा गया था. हमने देखा कि उनका शव बुरी तरह जल गया था और शिनाख़्त नहीं हो पा रही थी. हम लोग उसी दिन वापस लौट आए.’

इसके बाद ज़ैनुल के परिजनों ने 22 अक्टूबर को दोबारा डीएम रंजीत कुमार सिंह और एसपी विकास बर्मन से भी मुलाकात की. उन्हें तस्वीरें व हत्या की वायरल हुई वीडियो दिखाए.

23 अक्टूबर वे लोग दोबारा मुज़फ़्फ़रपुर गए. वहां पोस्टमॉर्टम के बाद शव उन्हें सौंप दिया गया. सबील के मुताबिक, ‘पुलिस ने शव को वहीं मिट्टी डाल देने को कहा क्योंकि सीतामढ़ी ले जाने पर माहौल और तनावपूर्ण हो जाता, इसलिए हमने लाश वहीं दफ़ना दी.’

ज़ैनुल की हत्या के बाद उनके परिजनों को पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया गया है. प्रशासन ने भरोसा दिलाया है कि उनके साथ न्याय किया जाएगा. सबील कहते हैं, ‘हम प्रशासन पर भरोसा रखे हुए हैं. हमें न्याय चाहिए.’

सीतामढ़ी सदर के एसडीपीओ सत्येंद्र कुमार ने कहा, ‘हालात करीब-करीब समान्य हो गए हैं. हत्या के आरोपितों की शिनाख़्त कर ली गई है और उनकी गिरफ़्तारी के लिए छापेमारी की जा रही है.’

इस घटना के बाद भी हिंदू व मुस्लिम की मिश्रित आबादी वाले ज़ैनुल के भोरहा गांव में सामाजिक ताना-बाना टूटा नहीं है. दोनों समुदाय के लोग एक-दूसरे से मिल-जुलकर रहे हैं.

सबील भोरहा चौक पर दवाई की एक छोटी-सी दुकान चलाते हैं. उन्होंने कहा, ‘हमारे गांव के हिंदू पहले की तरह ही हमारी दुकान पर आकर बैठते हैं. वे भी कहते हैं जिन लोगों ने भी ये सब किया, गलत किया.’

सीतामढ़ी का गौशाला चौक जहां उपद्रवियों ने उत्पात मचाया था और ज़ैनुल अंसारी को मारा डाला था. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)
सीतामढ़ी का गौशाला चौक जहां दंगाइयों ने ज़ैनुल अंसारी की पीट-पीट कर हत्या करने के बाद उन्हें जला दिया था. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

क्या हुआ था 20 अक्टूबर को

गौशाला चौक सीतामढ़ी बस स्टैंड से बमुश्किल 5-6 किलोमीटर दूर है. गौशाला चौक से एक सड़क मुरलिया चक होते हुए मधुबन गांव तक जाती है. वहीं दूसरी सड़क भोरहा निकल जाती है. तीसरी सड़क अंबेडकर चौक से होते हुए जानकी धाम जाती है. जानकी धाम से कुछ आगे मिरचाई पट्टी है, जहां मसाले व कपड़ों की काफी दुकानें हैं.

जिस जुलूस में मौजूद उपद्रवियों ने ज़ैनुल अंसारी को निशाना बनाया था, वह मिरचाई गली से निकला था.

मिरचाई गली में हर साल काली पूजा होती है. इस साल भी हुई थी. यहां लगने वाली मूर्ति का विसर्जन हाज़ीपुर में गंगा में किया जाता है. स्थानीय लोगों ने बताया कि काली जी की मूर्ति को लेकर जो जुलूस निकलता है, वह कभी भी मुस्लिम मुहल्ला मुरलिया चक से होकर नहीं जाता है, लेकिन इस बार पूजा कमेटी वालों ने मुरलिया चक से होकर मूर्ति ले जाने का फैसला किया.

दोपहर करीब 12:30 बजे काली जी की प्रतिमा के साथ करीब 1500 लोगों का हुजूम गौशाला चौक पहुंच गया. उनके हाथों में भाला, फरसा जैसे हथियार थे. वे लोग नारेबाज़ी करते हुए मुरलिया चक की तरफ बढ़ने लगे. उस वक़्त गौशाला चौक पर स्थिति को संभालने के लिए कुल जमा एक दर्जन लाठीधारी पुलिस व कुछ प्रशासनिक पदाधिकारी मौजूद थे.

सुरक्षा में लगे अफ़सरों व पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की और जुलूस के रूट को लेकर लाइसेंस दिखाने को कहा.

उन लोगों ने लाइसेंस नहीं दिखाया और जबरन मुरलिया चक में दाख़िल होने लगे. इसी बीच एक उड़ती हुई अफवाह गौशाला तक पहुंच गई कि मुरलिया चक में हिंदू-मुस्लिमों के बीच पत्थरबाज़ी शुरू हो गई है. इस अफवाह के बाद हालात बेकाबू हो गए. भीड़ बढ़ने लगी, तो तत्काल घटना की जानकारी वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी दी गई.

घटना के दिन गौशाला चौक पर सुरक्षा ड्यूटी में तैनात रहे सीतामढ़ी के डुमरा प्रखंड के कार्यक्रम पदाधिकारी रमेंद्र कुमार अपने बयान (बयान और उसके आधार पर दर्ज एफआईआर की प्रति द वायर के पास मौजूद है) में लिखते हैं, ‘भारी संख्या में महिला और पुरुष पुनौरा, दीना रोड और जानकी धाम की तरफ से लाठी, भाला, फरसा, तलवार लेकर चिल्लाते हुए कहने लगे कि एक घंटे का समय दीजिए, मुसलमानों को ख़त्म कर देंगे तथा पाकिस्तान मुर्दाबाद और सांप्रदायिक नारा लगाते हुए पुरनिया (असली नाम पुनरिया) चक की तरफ बढ़ने लगे.’

डुमरा प्रखंड के कार्यक्रम अधिकारी रमेंद्र कुमार का बयान जिसके आधार पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया है.
डुमरा प्रखंड के कार्यक्रम अधिकारी रमेंद्र कुमार का बयान जिसके आधार पर पुलिस ने एफआईआर दर्ज किया है.

वह आगे लिखते हैं, ‘बढ़ते समय के साथ जुलूस के सदस्य आक्रामक होते गए और गौशाला चौक पर स्थित एक ठेले को आग के हवाले कर दिया. इसके अतिरिक्त बिजली के उपकरण की एक दुकान का शटर तोड़कर उसका सामान निकाल ले गए.’

उपद्रवियों ने पुलिस पर भी पथराव किया. काफी देर तक यह सब चलता रहा. पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोल बरसाए और कई राउंड हवाई फायरिंग भी की.

रमेंद्र कुमार ने अपने बयान में आगे लिखा है, ‘इस बीच जानकी स्थान की तरफ गौशाला स्थित मुख्य द्वार पर किसी के जलने का एहसास हुआ. स्थानीय थाने के पदाधिकारियों द्वारा निरीक्षण किया गया तो पाया कि किसी व्यक्ति का अधजला शव पड़ा हुआ है.’

रमेंद्र कुमार ने बयान में लिखा है कि यह घृणित कार्य उपद्रवी तत्वों ने किया है.

इस मामले में पुलिस ने कई लोगों को गिरफ़्तार किया है, जिनमें से कई लोगों ने अफवाह उड़ाने और दंगे में संलिप्तता स्वीकार की है.

20 अक्टूबर को गौशाला चौक पर जो हुआ, उससे साफ है कि पुलिस व खुफिया तंत्र को इसका अंदाज़ा नहीं था कि भीड़ इतनी बड़ी संख्या में व धारदार हथियारों से लैस होकर वहां पहुंचेगी तथा सांप्रदायिक ज़हर फैलाएगी.

यही वजह रही कि गौशाला चौक पर एक दर्जन लाठीधारी पुलिस कर्मचारियों के साथ दो प्रशासनिक पदाधिकारियों को तैनात किया गया था, जो 1500 लोगों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए अपर्याप्त थे.

हालांकि, 20 अक्टूबर से एक दिन पहले यानी 19 अक्टूबर को जो कुछ हुआ था, उससे संकेत तो मिल ही गया था कि कुछ असामान्य घटनाक्रम होने वाला है.

इस संबंध में बातचीत करने के लिए डीएम रंजीत कुमार सिंह व एसपी विकास बर्मन को फोन किया गया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. डीएम को सवालों की फेहरिस्त मेल किया गया है. जवाब आने पर स्टोरी अपडेट कर दी जाएगी.

19 अक्टूबर की घटना से नहीं लिया सबक

20 अक्टूबर को काली पूजा कमेटी के जुलूस ने जिस मुरलिया चक मुहल्ले में जबरन घुसने का प्रयास किया था, उससे पहले 19 अक्टूबर की शाम उसी मुहल्ले से होकर हनुमान जी की मूर्ति के साथ सैकड़ों की संख्या में लोग जुलूस लेकर निकले थे.

मुरलिया चक मुस्लिम मुहल्ला है. यहां 400 से 500 मुस्लिम परिवार रहते हैं. यहां रहने वाले लोगों की कमाई का मुख्य ज़रिया मज़दूरी है. कुछ घरों में लहठी बनाई जाती है. मुस्लिमों के घरों से 100-200 फीट दूर हिंदुओं के घर हैं.

गौशाला चौक से मुरलिया चक से होते हुए जो सड़क गुज़रती है, वह करीब तीन किलोमीटर आगे जाकर हनुमान चौक पहुंचती है. हनुमान चौक के बाद मधुबन गांव शुरू होता है.

मधुबन गांव के लोग हनुमान चौक पर हर साल दुर्गा पूजा के वक़्त हनुमान जी की मूर्ति स्थापित कर पूजा करते हैं और दशमी को मूर्ति का विसर्जन होता है.

मधुबन गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि 1972 से ही यहां दुर्गा पूजा के मौके पर हनुमान जी की पूजा की जाती है. मधुबन गांव के लोगों से बातचीत में पता चला कि पहले साल यहां दुर्गा जी की मूर्ति स्थापित की गई थी.

मौलवी शाह ने बताया कि उनके घर पर हमला किया गया और उनकी तीन बकरियां उपद्रवी अपने साथ ले गए. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)
मौलवी शाह ने बताया कि उनके घर पर हमला किया गया और उनकी तीन बकरियां दंगाई अपने साथ ले गए. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

दुर्गा पूजा का आयोजन करने वालों से में किसी एक परिवार के सदस्य का निधन हो गया, तो लोगों ने दुर्गा पूजा को अपशगुन मान लिया और इसके बाद से दुर्गा पूजा के मौके पर हनुमान पूजा करने लगे.

मधुबन गांव में हिंदू-मुस्लिम आबादी का अनुपात देखें, तो मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं. यहां 1200 से 1300 घर हिंदुओं के हैं जबकि मुसलमानों के घरों की संख्या 200 से 250 के क़रीब है. यहां मूल रूप से कानू, राम, पासवान, ततमा जातियों की बहुलता है. मधुबन गांव में रहने वाले लोगों की रोज-रोटी का ज़रिया भी मज़दूरी ही है.

19 अक्टूबर की शाम सात बजे के करीब हनुमान चौक से बजरंग पूजा समिति की प्रतिमाओं को ट्रैक्टर में भरकर विसर्जन के लिए ले जाया जाने लगा. प्रतिमा भरे ट्रैक्टर के आगे क़रीब 1000 लोगों का हुजूम था. उनके हाथ में लाठी, डंडे, तलवार आदि थे.

जुलूस पहले महारानी स्थान की ओर गया. महारानी स्थान से कुछ दूर आगे मुस्लिमों का मुहल्ला शुरू हो जाता है.

पुलिस सूत्रों ने बताया कि जुलूस में शामिल कुछ लोग प्रतिमा को मुस्लिम मोहल्ले तक ले जाना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया और जुलूस को मुरलिया चक की तरफ रवाना कर दिया गया.

इस दौरान जुलूस के साथ करीब एक दर्जन पुलिस कर्मचारी मौजूद थे.

जुलूस जब मुरलिया चक मुहल्ले में पहुंचा तो जुलूस में शामिल लोगों ने दूसरे संप्रदाय के ख़िलाफ़ नारेबाज़ी शुरू कर दी.

जुलूस जब मुरलिया चक ईदगाह के पास पहुंचा, तब अजान का वक़्त हो चुका था. अजान के मद्देनज़र लोगों को समझा-बुझाकर कुछ पल ईदगाह के पास जुलूस को रोका गया. नमाज़ ख़त्म हुई तो जुलूस फिर आगे बढ़ने लगा.

जुलूस कुछ आगे बढ़ा होगा, तभी किसी ने अफवाह उड़ा दी कि हनुमान जी की मूर्ति पर पत्थर फेंका गया, जिससे मूर्ति के दोनों दाहिने हाथ क्षतिग्रस्त हो गए हैं.

हालांकि, हाथ टूटने की बात अफवाह ही साबित हुई. अलबत्ता, पत्थर फेंके जाने की बात सही थी.

19 अक्टूबर को जुलूस में सुरक्षा व्यवस्था की देखरेख का ज़िम्मा संभाल रहे सीतामढ़ी के डुमरा प्रखंड के प्रखंड विकास पदाधिकारी मुकेश कुमार अपने बयान (बयान की प्रति द वायर के पास उपलब्ध) में लिखते हैं, ‘मेरे और थानाध्यक्ष (सीतामढ़ी) द्वारा हनुमानजी का मूर्ति का निरीक्षण किया गया. पंचमुखी हनुमान जी की प्रतिमा के दोनों दाहिने हाथों पर गरदा (धूल) जैसा निशान बना हुआ था, जबकि दोनों बाएं हाथ सुरक्षित थे.

अपने बयान में मुकेश कुमार आगे लिखते हैं, ‘उसके बाद भीड़ से एक आदमी माइक लेकर चिल्लाने लगा कि ऐ हिंदू के बच्चों, तुम मउगा हो गए हो. प्रतिमा का हाथ टूट गया है और तुम लोग चुपचाप हो, इसका बदला लो. एक-एक मियां को काट दो, मस्जिद को तोड़ दो. भीड़ को अनियंत्रित देख मेरे और थानाध्यक्ष द्वारा वरीय पदाधिकारियों को सूचित किया गया और भीड़ को नियंत्रित करने की भरपूर कोशिश की गई.’

सीतामढ़ी के डुमरा के प्रखंड विकास अधिकारी मुकेश कुमार का बयान.
सीतामढ़ी के डुमरा के प्रखंड विकास अधिकारी मुकेश कुमार का बयान.

स्थानीय लोगों ने बताया कि कुछ मुस्लिमों के घरों में तोड़फोड़ करने की कोशिश की गई.

प्रखंड विकास पदाधिकारी मुकेश कुमार ने अपने बयान में पत्थर फेंकने का ज़िक्र करते हुए लिखा है, ‘स्थानीय लोगों और उपलब्ध अन्य स्रोतों से पता चला कि जिस मकान से ईंट फेंकी गई थी, वह मोहम्मद अहमद का था और उसने ही ईंट फेंका था.’

बहरहाल, घंटों की मशक्कत के बाद किसी तरह पुलिस कर्मचारियों ने जुलूस को नियंत्रित किया और भोर में पांच बजे के क़रीब मूर्ति को लखनदेई नदी में विसर्जित कराया.

मुकेश कुमार के बयान पर मोहम्मद अहमद समेत 50 नामज़द व क़रीब 200 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज कराई गई है.

मुरलिया चक के मदरसे के मौलाना तैयब आलम कहते हैं, ‘मधुबन से यह जुलूस हर साल निकलता है और हर साल शांति से गुज़र जाता है. बल्कि कई मुसलमान भी इस जुलूस में शामिल हो जाते थे. लेकिन, इस साल का माहौल कुछ अलग ही था.’

वह आगे कहते हैं, ‘रहना तो यहां हमें ही है. आज जो अधिकारी यहां है कल कहीं और चला जाएगा. हम ख़ुद अगर नहीं संभलेंगे, तो प्रशासन क्या करेगा.’

कई दिनों से सुलग रही थी नफ़रत की आग

स्थानीय लोगों की मानें, तो 19 और 20 अक्टूबर की घटना से पहले ही मधुबन में तनाव का माहौल बनना शुरू हो गया था और दूर्गा पूजा शुरू होने से पहले दो बार शांति समिति की बैठक हुई थी.

दरअसल, मधुबन के हनुमान चौक में होने वाला पूजा का जुलूस शुरू से ही मुस्लिम मुहल्ले से नहीं जाता था, लेकिन इस साल बजरंग पूजा समिति के लोग हर हाल में मुस्लिम मुहल्ले से जुलूस निकालना चाहते थे. मुस्लिम समुदाय तक जब यह बात पहुंची, तो उन्होंने पुलिस को इसकी सूचना दी.

इस सूचना पर अक्टूबर के पहले हफ़्ते में शांति समिति की बैठक हुई. बैठक में तय हुआ कि पहले जहां तक जुलूस जाया करता था, इस बार भी वहीं तक जाएगा. बैठक में बजरंग पूजा समिति के लोग मान गए, लेकिन बाद में फिर यह अफ़वाह ज़ोर पकड़ने लगी कि वे लोग प्रशासन के आदेश की अनदेखी कर मुस्लिम मुहल्ले से जुलूस निकालेंगे.

इसके बाद 16 अक्टूबर को दोबारा शांति समिति की बैठक हुई. बैठक में दोनों समुदायों के वरिष्ठ लोगों के साथ ही बीडीओ, एसडीओ आदि शामिल हुए. इस बैठक में भी पहले की बैठक के निर्णय को ही लागू करने पर सहमति बन गई.

मधुबन के मुस्लिम मुहल्ले के एक अधेड़ ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘पुलिस ने हिदायत दी कि विसर्जन के दिन हम लोग अपने घरों से बाहर न निकलें. हमने ऐसा ही किया. लेकिन, जब जुलूस निकला तो मुस्लिम मुहल्ले में प्रवेश को लेकर पुलिस के साथ उनकी काफी देर तक रस्साकशी हुई और बाद में उन्हें लौट जाना पड़ा.’

मधुबन गांव के बुजुर्ग शिवजी दास कहते हैं, ‘एकदम शुरू के तीन साल तक जुलूस मुस्लिम मुहल्ले से गया था, इसके बाद बंद हो गया. इस साल लड़के लोग उधर जुलूस ले जाना चाहते थे, लेकिन पुलिस ने मना किया, तो सब मान गए.’

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मधुबन गांव के निवासी शिवजी दास. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

20 अक्टूबर की दोपहर गौशाला चौक पर उपद्रव शुरू होने से पहले मधुबन गांव के तीन मुस्लिम परिवारों के घरों पर हमले हुए थे.

रकीमा ख़ातून की दो कमरों की झोपड़ी थी, जिसे उपद्रवियों ने आग के हवाले कर दिया. वह उस वक़्त घर से थोड़ा आगे कुछ काम कर रही थीं.

उन्होंने कहा, ‘दस-सवा दस बजे का वक़्त होगा. अचानक देखा कि धारदार हथियार लेकर लोग हमारी तरफ़ आ रहे थे. मैं डर गई. अपने पति शफ़ीक़ अंसारी को वहीं से आवाज़ लगाई कि वह घर से भाग जाएं. इतना कहकर चिल्लाते हुए मैं बस्ती की तरफ भागी.’

82 वर्षीय मौलवी शाह अपनी बेटी के साथ अपने घर पर थे, जब हमला हुआ. वे और उनकी बेटी किसी तरह जान बचा कर भागे. मौलवी शाह ने कहा कि उनके पास तीन बकरियां थीं, जिन्हें उपद्रवी खोलकर ले गए.

मौलवी शाह उन लड़कों को पहचानते हैं, जिन्होंने हमला किया था. आरोपियों के नाम पूछने पर वह झट जेब से काग़ज़ एक टुकड़ा निकाल कर एक दर्जन नाम गिना देते हैं.

उन्होंने कहा, ‘वे लोग खुला घूम रहे हैं, पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की और न ही अब तक राज्य सरकार ने हमें मदद दी है.’

मधुबन गांव के निवासी बुज़ुर्ग शिवजी दास हालांकि इस हमले में अपने टोले के लोगों की संलिप्तता से इनकार करते हैं.

मधुबन में पिछले साल मुहर्रम और होली के समय भी तनाव हो गया था. पुलिस ने मौके पर पहुंच कर स्थिति को काबू में किया था.

हनुमान पूजा समिति से जुड़े मोहन राम ने कहा, मधुबन के महारानी मंदिर के आसपास पिछले मुहर्रम में पेट्रोल उड़ेला गया था. उन्हें हालांकि यह नहीं पता कि किसने पेट्रोल उड़ेला था, मगर उनका शक मुसलमानों की तरफ जाता है.

उन्होंने कहा कि यहां हनुमान पूजा ग्रामीणों (हिंदू व मुसलमान दोनों शामिल) के चंदे से ही होती है. कोई राजनीतिक पार्टी इसमें हिस्सा नहीं लेती है और न ही कोई चंदा देती है.

घटनाक्रम के राजनीतिक मायने

सीतामढ़ी संसदीय सीट के पहले सांसद कांग्रेस के अध्यक्ष और महात्मा गांधी के साथ आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाले जेबी कृपलानी थे. उन्होंने कांग्रेस से अलग होकर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी बनाई थी और सीतामढ़ी से जीत दर्ज की थी.

उनके बाद यहां से कांग्रेस, जनता पार्टी, जनता दल, राजद और जदयू उम्मीदवार बारी-बारी से जीतते रहे हैं. फिलवक्त रालोसपा के राम कुमार शर्मा यहां से सांसद हैं.

19 और 20 अक्टूबर की घटना जहां हुई, वह सीतामढ़ी विधानसभा क्षेत्र में आता है. यहां से फिलहाल राजद नेता सुनील कुमार विधायक हैं.

वर्ष 2010 के चुनाव में भाजपा और जदयू ने एक साथ चुनाव लड़ा था तो भाजपा उम्मीदवार सुनील कुमार उर्फ पिंटू ने जीत दर्ज की थी. 2015 में राजद और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था और राजद ने इस सीट पर क़ब्ज़ा जमा लिया था.

2010 से पहले वर्ष 1995 में भी भाजपा ने इस सीट पर जीत दर्ज की थी.

मधुबन की घटना के बाद मुस्लिम समुदाय से मिलने तमाम राजनीतिक पार्टियों के नेता पहुंचे, लेकिन भाजपा की तरफ से कोई नेता उनसे नहीं मिला.

गौशाला चौक पर उपद्रवियों के हाथों मारे गए ज़ैनुल अंसारी के परिजनों से भी राजद, कांग्रेस समेत कई नेताओं ने मुलाकात कर संवेदना प्रकट की, लेकिन न तो जदयू और न ही भाजपा का कोई नेता उनसे मिलने गया..

मधुबन और गौशाला चौक की घटना के पीड़ितों से भाजपा व जदयू की दूरी से कई सवाल उठ रहे हैं.

सीतामढ़ी के राजद विधायक सुनील कुमार ने कहा, ‘पिछले दो-तीन सालों से जानकी स्थान, मुरलिया चक, मधुबन व आसपास का इलाका उपद्रवियों का अड्डा बना हुआ है. 2019 सामने है. भाजपा वोटों का ध्रुवीकरण कर राजनीतिक फायदा लेना चाहती है.’

रकीमा ख़ातून की झोपड़ी को उपद्रवियों ने आग के हवाले कर दिया. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)
रकीमा ख़ातून की झोपड़ी को दंगाइयों ने आग के हवाले कर दिया था. (फोटो: उमेश कुमार राय/द वायर)

उन्होंने कहा कि मुरलिया चक और गौशाला चौक की घटनाओं के बाद सीतामढ़ी के अलग-अलग इलाकों में जाकर अफवाहें फैलाई गईं.

भाजपा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया है. भाजपा नेता व पूर्व विधायक सुनील कुमार उर्फ पिंटू ने कहा कि पुलिस की एफआईआर में दर्ज है कि एक समुदाय (मुस्लिम) के सदस्य की तरफ से पत्थरबाज़ी हुई, जिसके बाद असामाजिक तत्वों ने उपद्रव शुरू कर दिया.

उन्होंने मधुबन में पीड़ित मुस्लिम परिवारों व मृत ज़ैनुल अंसारी के परिजनों से मुलाकात नहीं करने की बात स्वीकार की, लेकिन यह भी कहा कि गौशाला चौक और मुरलिया चक में लोगों से मुलाकात कर सांप्रदायिक सौहार्द बनाने की अपील की है.

सामाजिक ताने-बाने में पड़ती गिरह

19 व और 20 अक्टूबर की घटना के बाद मधुबन, गौशाला चौक और मुरलिया चक में बिहार पुलिस व एसएसबी के जवानों को तैनात किया गया है.

बीच-बीच में एसपी समेत अन्य आला अधिकारी भी प्रभावित इलाकों का चक्कर लगा जाते हैं.

बातचीत में मधुबन गांव के लोग बताते हैं कि यहां हिंदू-मुस्लिम के बीच इतनी खटास कभी नहीं रही. वे एक-दूसरे के पर्व-त्योहार में गर्मजोशी से शिरकत करते थे. हनुमान पूजा के लिए तो मुस्लिम परिवार चंदा भी दिया करते थे. लेकिन, पिछले तीन-चार वर्षों में हालात तेज़ी से बदले हैं.

मधुबन के मुस्लिम मुहल्ले के मौलाना नसीम मद्धिम आवाज़ में कहते हैं, ‘क्या बताए, जिन लोगों के साथ मैंने बचपन में गिल्ली-डंडा और क्रिकेट खेला था, वे भी अब ऐसे मिलते हैं कि लगता है, कभी जानते ही नहीं थे.’

मौलाना नसीम ने कहा, ‘छठ पूजा में घाट पर हम लोग भी जाते थे, लेकिन अब तो यह सोचकर ही डर लगता है कि कहीं यह कहकर हमें फंसा न दिया जाए कि उनके त्योहार में खलल डालने आए हैं. हम लोग तो हनुमान जी की पूजा में भी शिरकत करते थे, लेकिन तीन-चार सालों से माहौल ही कुछ अलग हो चला है.’

जिस दिन मैं मधुबन गांव पहुंचा था, उस दिन छठ का खरना था. बांस के खंभों पर बेतरतीबी से लटके चोंगों में छठ के गीत बज रहे थे, लेकिन गांव में छठ की जो रौनक होनी चाहिए, वह नहीं थी.

मधुबन गांव के शिवजी दास इस पर्व पर भी गांव में फैली उदासी पर अफसोस जताते हुए कहते हैं, ‘जो भी हुआ ठीक नहीं हुआ. हमारा गांव कितना उदास हो गया है. छठ में पूरा बाज़ार लगा रहता था यहां. देखिए, कैसा ख़ाली-ख़ाली लग रहा है.’

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

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