चमचमाती सुर्ख़ियों के पीछे की अयोध्या सहानुभूति की पात्र है

धार्मिक पर्यटन बढ़ाने के नाम पर दिव्य दीपावली समेत कई सरकारी आयोजनों में भावनाओं के दोहन के लिए भारी-भरकम योजनाओं के बड़े-बड़े ऐलानों द्वारा लगातार ऐसा प्रचारित किया जा रहा है जैसे अयोध्या में स्वर्ग उतारकर हर किसी के लिए लाल गलीचे बिछा दिए गए हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसके एकदम उलट है.

/

धार्मिक पर्यटन बढ़ाने के नाम पर दिव्य दीपावली समेत कई सरकारी आयोजनों में भावनाओं के दोहन के लिए भारी-भरकम योजनाओं के बड़े-बड़े ऐलानों द्वारा लगातार ऐसा प्रचारित किया जा रहा है जैसे अयोध्या में स्वर्ग उतारकर हर किसी के लिए लाल गलीचे बिछा दिए गए हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई इसके एकदम उलट है.

Ayodhya Diwali 2017 Reuters
2017 के दीपावली समारोह में अयोध्या का सरयू तट (फोटो: रॉयटर्स)

इधर अयोध्या एक बार फिर बुरे कारणों से सुर्खियों में है. सिर्फ इसलिए नहीं कि योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश सरकार ने उसकी ‘प्रतिष्ठा’ बढ़ाने के लिए फैजाबाद जिले और मंडल की जगह उसका नाम चस्पां कर दिया है या कि भाजपा के शुभचिंतक संगठनों ने लोकसभा चुनाव नजदीक देख एक बार फिर ‘मंदिर-मंदिर’ का जाप शुरू कर दिया है.

इसलिए भी कि धार्मिक पर्यटन बढ़ाने के नाम पर ‘दिव्य दीपावली’ समेत कई सरकारी आयोजनों में, यकीनन, भावनाओं के दोहन के लिए, भारी-भरकम योजनाओं के बड़े-बड़े ऐलानों की मार्फत लगातार ऐसा प्रचारित किया जा रहा है कि जैसे अयोध्या में स्वर्ग उतारकर हर किसी के लिए लाल गलीचे बिछा दिये गए हैं.

इससे देश की दूसरी धर्मनगरियों में स्वाभाविक ही अयोध्या के ‘सौभाग्य’ को लेकर एक अजब तरह की ईर्ष्या पनप रही है, जिसे खत्म करने के लिए इस सच्चाई का बताया जाना जरूरी हो चला है कि जमीनी सच्चाई इसके एकदम उलट है और अयोध्या व अयोध्यावासियों की ज़िंदगी की दुश्वारियां और छलों की शिकार बनाती रहने वाली नियति ज्यों की त्यों बनी हुई हैं.

विडंबना यह कि न प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार इस नियति को बदलने की चिंता करती दिखाई देती है और न केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार.

यही कारण है कि गत 14 नवंबर को राजधानी दिल्ली के सफदरजंग रेलवे स्टेशन पर रेल मंत्री पीयूष गोयल द्वारा हरी झंडी दिखाने के बाद चली ‘श्री रामायण एक्सप्रेस’ नाम की विशेष पर्यटक ट्रेन के कोई आठ सौ यात्री अगले दिन उसके पहले ठहराव पर अयोध्या पहुंचने से पहले ही बेहद बुरे अनुभव के शिकार हो गए.

अयोध्या की जमीनी हकीकत से सामना हुआ तो उसमें उनके सपनों की अयोध्या को कोई ठौर ही नहीं मिला.

अयोध्या रेलवे स्टेशन पर ठहराव की सम्यक व्यवस्था न होने के कारण पहले तो उनकी ट्रेन को फैजाबाद जंक्शन पर ही रोक दिया गया, फिर इंडियन रेलवेज केटरिंग एंड टूरिज्म कॉर्पोरेशन के सोलह दिनों की यात्रा के पैकेज की शर्तों के विपरीत उन्हें रहने व खाने की कौन कहे, शौच की भी उपयुक्त सुविधा मयस्सर नहीं कराई गई.

बाद में भाजपा के स्थानीय सांसद लल्लू सिंह ट्रेन को हरी झंडी दिखाने रेलवे स्टेशन पहुंचे तो यात्रियों ने उनसे इसकी शिकायत भी की. लेकिन सांसद के पास भी उनकी समस्याओं का कोई समाधान नहीं था. सो उन्होंने यह कहकर बात को टाल देने में ही भलाई समझी कि आगे वे ऐसी अव्यवस्थाओं को लेकर सतर्क रहेंगे.

दिल्ली के सफदरगंज स्टेशन पर श्री रामायण एक्सप्रेस (फोटो: पीटीआई)
दिल्ली के सफदरगंज स्टेशन पर श्री रामायण एक्सप्रेस (फोटो: पीटीआई)

यात्रियों की मानें तो उनकी मुसीबतों की शुरुआत ट्रेन में ही हो गई थी. ट्रेन के शौचालयों के दरवाजे न तो ढंग से खुलते थे न ही बंद होते थे.

तिस पर रामायण से संबंधित पौराणिक स्थलों व मंदिरों के दर्शन के लिए उनके अयोध्या प्रवास का अनुभव भी अच्छा नहीं रहा. बुजुर्ग यात्रियों को चौथी मंजिल पर ठहराया और भोजन के लिए लंबी-लंबी लाइनों से गुजरना पड़ा. दूसरे यात्रियों को जिस बड़े हॉल में ठहराया गया, उसमें पचास यात्रियों पर एक शौचालय का औसत था.

मंदिरों में दर्शन-पूजन का क्रम खत्म हुआ तो आगे की यात्रा के लिए उन्हें अयोध्या रेलवे स्टेशन पहुंचाने की भी कोई व्यवस्था नहीं की गई. सो, उन्हें पैदल ही जाना पड़ा. यह तब था, जब उनके टूर पैकेज में सभी समय के भोजन, आवास व कपड़े धोने वगैरह के अलावा साइट-सीइंग व्यवस्था भी शामिल है और इसके लिए उनसे प्रति यात्री 15,120 रुपये लिए गए. टूर की दूसरी कड़ी में वे वायुमार्ग से श्रीलंका जाना चाहें, तो 36,970 रुपये और भुगतान करने होंगे.

जिस अयोध्या रेलवे स्टेशन को 107 करोड़ रुपये की लागत से उच्चीकृत कर विश्वस्तरीय बनाने का प्रचार किया जा रहा है और जिसके लिए गत 14 नवंबर को भूमिपूजन भी किया गया, उसकी वर्तमान हालत फिलहाल यह है कि वहां एक भी ऐसा शौचालय नहीं है, जिसमें रेलयात्री भुगतान करके भी सुविधापूर्वक शौच से निवृत्त हो सकें.

इससे कई बार महिला तीर्थयात्रियों व पर्यटकों को बेहद असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है. लेकिन न रेलवे को इसकी चिंता करने की फुर्सत है और न सत्ताधीशों को. उन्हें चिंता है तो बस इसकी कि अयोध्या रेलवे स्टेशन मंदिर के माॅडल पर बन जाये.

Yogi Adityanath Ayodhya Diwali 2018 FB
2018 में अयोध्या में हुए दीवाली समारोह में योगी आदित्यनाथ (फोटो साभार: फेसबुक/योगी आदित्यनाथ)

दूसरी ओर रेलवे ने इस बार अयोध्या की चौदहकोसी व पंचकोसी परिक्रमाओं में आने वाले श्रद्धालुओं को वे सुविधाएं भी नहीं दी, जो परंपरागत रूप से चली आ रही थीं. पहले इन परिक्रमाओं के अवसरों पर फैजाबाद से संचालित होने वाली इलाहाबाद रूट की पैसेंजर ट्रेनों को अयोध्या तक बढ़ा दिया जाता था और वाराणसी व लखनऊ रूट की पैसेंजर व एक्सप्रेस ट्रेनों में अतिरिक्त कोच जोड़ दिये जाते थे.

श्रद्धालुओं के उतरने और चढ़ने में सुविधा के लिए अयोध्या रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों के रुकने की अवधि भी बढ़ा दी जाती थी, लेकिन इस बार श्रद्धालुओं को यह चेतावनी देकर उनके हाल पर छोड़ दिया गया कि उन्होंने ट्रेनों की छतों पर चढ़कर, कोच के पायदानों पर खड़े होकर या बैठकर यात्रा की तो उनकी खैर नहीं होगी.

प्रसंगवश, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पिछले साल यानी 2017 में भव्य देव दीपावली मनाने आये तो अयोध्या (फैजाबाद को समाहित कर बना नगर निगम नहीं, सरयू तट पर बसी मूल धर्मनगरी) में अस्पतालों की संख्या पांच थी, जो अभी भी पांच ही है और नगरी में स्वर्ग उतार देने के बड़बोले दावों की खिल्ली उड़ाती रहती है.

अयोध्या नगर निगम द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार तब अयोध्या के ढाई लाख से ज्यादा निवासियों के लिए सिर्फ 59 शौचालय, 780 स्टैंड पोस्ट और 1156 इंडिया मार्क सेकेंड हैंडपम्प थे, जिनमें अभी भी कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई है. फिर भी जिले को कागजों में ओडीएफ यानी खुले में शौच से मुक्त घोषित कर दिया गया है.

अयोध्या में तीर्थयात्रियों व पर्यटकों के ठहरने के लिए स्थायी व्यवस्थाओं का तो पूरी तरह अकाल है. पूरे साल उनका आना-जाना लगे रहने के बावजूद उनके लिए अस्थायी व्यवस्थाएं ही की जाती हैं क्योंकि व्यवस्था करने वालों को इसी में ‘फायदा’ दिखता है.

6 महीने पहले 11 मई को भारत व नेपाल के प्रधानमंत्रियों क्रमशः नरेंद्र मोदी और केपी ओली ने बड़े मीडिया हाइप के बीच जनकपुर व अयोध्या के बीच के संबंधों को प्रगाढ़ करने के लिए जिस मैत्री बस सेवा को हरी झंडी दिखाई थी, उसके फेरे अभी भी शुरू नहीं हो सके हैं.

The Prime Minister, Shri Narendra Modi and the Prime Minister of Nepal, Shri K.P. Sharma Oli flags off the bus service from Nepal’s Janakpur to Uttar Pradesh’s Ayodhya, at Janakpur, Nepal on May 11, 2018.
नेपाल के जनकपुर में नेपाल भारत मैत्री बस सेवा को हरी झंडी दिखाते भारत और नेपाल के प्रधानमंत्री (फोटो साभार: पीआईबी)

जिस बस को इन प्रधानमंत्रियों ने जनकपुर में हरी झंडी दिखाई, वह अयोध्या पहुंची तो उसके यात्रियों के स्वागत के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो उपस्थित थे लेकिन बस के खड़े होने की उपयुक्त जगह नहीं थी. दरअसल अयोध्या का पुराना बस स्टेशन तोड़ दिया गया है और नया अभी बना नहीं है.

तब से कई जमीनी कठिनाइयों के कारण, जिनमें से एक यह भी है कि भारत व नेपाल में हुई सहमति की राह में परमिट आदि के कई रोड़े आ गए हैं, इस बस का दूसरा फेरा नहीं लग पाया है.

अब इज्जत बचाने के नाम पर पहले से लखनऊ से जनकपुर के बीच चल रही एक बस का रूट बदलकर उसे अयोध्या के रास्ते चलाया जा रहा है, जिसका अयोध्यावासियों के लिहाज से कोई खास मतलब नहीं है.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे लेकर लोगों की नाराजगी दूर करने के लिए गत दिव्य दीपावली महोत्सव में ऐलान कर दिया कि राम जानकी विवाह के आगामी समारोह में हिस्सा लेने के लिए वे संतों के साथ खुद जनकपुर जायेंगे. लेकिन लोग उनकी इस यात्रा को लेकर बहुत उत्साहित नहीं हो पा रहे क्योंकि देख चुके हैं कि दिव्य दीपावली की सरकार जगर मगर के बीच भी अयोध्या के कई हिस्से रोशनी से अछूते रह गए.

बहरहाल, इतने विवरणों के बाद आप यह तो समझ ही गए होंगे कि आपको अयोध्या से ईर्ष्या करने की नहीं सहानुभूति रखने की जरूरत है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)