मध्य प्रदेश में भाजपा ने घोषणा पत्र में नर्मदा के विस्थापितों को शामिल ही नहीं किया: मेधा पाटकर

नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटकर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस द्वारा जारी घोषणा पत्रों का विश्लेषण कर रही हैं.

Bhopal: Social activist Medha Patkar addresses a press conference to draw attention towards conservation of river Narmada and farmers’ issue during a Jan Adalat, in Bhopal on Monday, June 04, 2018. (PTI Photo) (PTI6_4_2018_000060B)
Bhopal: Social activist Medha Patkar addresses a press conference to draw attention towards conservation of river Narmada and farmers’ issue during a Jan Adalat, in Bhopal on Monday, June 04, 2018. (PTI Photo) (PTI6_4_2018_000060B)

नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटकर मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस द्वारा जारी घोषणा पत्रों का विश्लेषण कर रही हैं.

Bhopal: Social activist Medha Patkar addresses a press conference to draw attention towards conservation of river Narmada and farmers’ issue during a Jan Adalat, in Bhopal on Monday, June 04, 2018. (PTI Photo) (PTI6_4_2018_000060B)
सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर. (फोटो: पीटीआई)

चुनाव नज़दीक आते ही जनता से जितना हो सके हटकर चलने वाले नेतागण अचानक ‘अंत्योदयी’ बनकर गांव क्या, मुहल्ले तक पहुंचाना और सबको गले लगाकर अपने नए रूप के दर्शन देना शुरू कर देते हैं.

उनके घमासान दौरे, किसानों के फेरे लगाने की करामात, लहराते झंडे और प्रदूषण की परवाह भूलकर दिन-रात दौड़ते चुनावी वाहन विभिन्न शहरों, कस्बों और गांवों तक में नज़र आने लगते हैं.

घमासान चुनाव प्रचार के दौरान घोषणा पत्र जारी किए जाते हैं. हालांकि चुनाव पूर्व और चुनाव बाद इन घोषणा पत्रों को कितना महत्व दिया जाता है, यह सब जानते हैं.

यह इस बात का कारण और नतीजा दोनों है कि चुनाव ही नहीं बल्कि चुनावी राजनीति ही एक इवेंट मैनेजमेंट बनकर रह गया है. इसमें बदलाव लाना है तो जनता, प्रत्याशी तथा दल-पदाधिकारी के बीच सवाल-जवाब होना चाहिए, बा यही एक मंच और मार्ग बचा है.

नर्मदा घाटी में पिछले एक दशक के अनुभव से विधानसभा और लोकसभा चुनाव के पूर्व ‘लोकमंच’ के आयोजन का कार्य हुआ और इस बार भी तीन जगह सफल आयोजन के पश्चात मध्य प्रदेश की राजनीति को घोषणा पत्रों के आधार पर परखना ज़रूरी है.

मध्य प्रदेश में दो प्रमुख दल- कांग्रेस और भाजपा ने अपने घोषणा पत्र ज़ाहिर करते हुए कहा है कि वे मध्य प्रदेश की तस्वीर बदल देंगे.

कांग्रेस ने इसे वचन-पत्र तो भाजपा ने दृष्टि-पत्र कहा है. आम आदमी पार्टी ने अपने नेता के नाम से स्टाम्प पेपर पर घोषणा पत्र छपवाकर उसे शपथ पत्र का अनोखा रूप दिया है.

उनका शपथ पत्र इसीलिए छोटा, सरल बनाया है लेकिन अन्य पार्टियों ने अनुक्रम से 85 और 72 पन्नों के फोटो सहित सुशोभित ‘पत्र’ में विषयवार विस्तृत बातें रखी हैं.

मध्य प्रदेश को समृद्ध बनाने का सपना, किसानों को आश्वस्त करके उनका दिल जीतने की आशा भाजपा और कांग्रेस दोनों के घोषणा पत्रों में प्रतिबिंबित होता है. लेकिन प्रदेश सरकार किसान को गले लगाते मुख्यमंत्री की फोटो के साथ दिखाई दिए चेक मात्र एक हज़ार चार सौ रुपये का है, तो अंदाजा लग ही जाता है.

न्यूनतम समर्थन मूल्य के बारे में इस बार भाजपा ने ‘स्वामीनाथन आयोग’ और लागत का डेढ़ गुना दाम’ का उल्लेख ही नहीं हैं. ‘भावांतर योजना के ही द्वारा उचित मूल्य दिया गया’ यह तो पूर्णतः भ्रमित करने वाली बात है, यह किसान क्या, व्यापारी और मंडी पदाधिकारी भी जानते हैं. भावांतर योजना में फंसाए गए किसान इस हिम्मत से फैलाए भ्रम को जवाब देंगे ज़रूर.

कांग्रेस ने इसके विपरीत स्पष्ट रूप से स्वामीनाथन आयोग का ज़िक्र ही नहीं, उचित मूल्य देने के कृषि उत्पादन के नाम भी ज़ाहिर किए हैं. सवाल है तो यह कि फल, सब्जियां भादी या तिली जैसे उत्पादों को इसमें क्यों नहीं शामिल किया गया?

धान खरीदी का आश्वासन के साथ कांग्रेस ने दो लाख रुपये तक क़र्ज़मुक्ति का आश्वासन दिया है लेकिन भाजपा ने बिलकुल नहीं. हालांकि क़र्ज़मुक्ति का आश्वासन कितना कारगर साबित होगा, यह सवाल है.

किसान संगठन बड़ी तादाद में नई दिल्ली के संसद मार्ग पर 29 और 30 नवंबर को रहेंगे ही और दो चुनावों के बीच ही सही निर्णय, क़ानून, नीतियां जनसंघर्ष के चलते बनती है, यह परिचय भी निश्चित ही देंगे.

किसानों से सबसे बड़ी लूट फसल बीमा का पत्रकार और किसान कार्यकर्ता पी. साईनाथ पक्का हिसाब बता चुका है. उन्होंने बताया था कि महाराष्ट्र के एक ही ज़िले में फसल बीमा के द्वारा कंपनियों को 77 करोड़ रुपये का नकद मुनाफा मिला है.

कांग्रेस ने जबरन फसल बीमा के बदले स्वैच्छिक, खेतवार व कम मात्रा में फसल बीमा जारी रखने की बात की है, लेकिन भाजपा इस पर चुप है. प्रदेश भर के किसान जान रहे हैं कि उनके परिवार से हज़ारों और गांव से लाखों रुपये की बीमा की राशि वसूलने के बाद भी आपदाग्रस्त होने या बीज की गुणवत्ता कमी होने पर कंपनी से कुछ हज़ार रुपये भी गांव में वापस नहीं दिलाए जाते.

‘लोकमंच’ कार्यक्रम में किसानों ने किसी को 34 तो किसी को 200 रुपये मिलने से जुड़े अपने अनुभव साझा किए हैं.

इस स्थिति में ‘जोखिम प्रबंधन’ के नाम पर सत्ताधारी दल भाजपा के दृष्टिपत्र में क्या कहा है, देखिए…

1. अधिसूचित फसलों के तहत आने वाली भूमि को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत लाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जाएगा, जिसमें कि किसी भी तरह अप्रत्याशित नुकसान की आशंका को कम किया जाएगा.

2. किसानों को संरक्षण के लिए बीमा कंपनियों से मुआवज़े का बिना देर किए भुगतान करने हेतु बीमा प्रीमियम में राज्य सरकार के अंशदान के नियमित भुगतान के लिए स्थायी फंड का सृजन होगा.

3. बीमारियों और कीटों के प्रकोप की तुरंत पहचान, नियंत्रण और रोकथाम के लिए ‘फसल रोग और कीट निगरानी एजेंसी’ की स्थापना होगी.

उपरोक्त बातों से स्पष्ट है कि इस मुद्दे पर भी समस्या, सुलझाव और बीमा योजना में किसानी पक्ष बदलाव के बदले भ्रमित करने की, कंपनियों की समस्या सुलझाने की और उनका मुनाफा सुनिश्चित करने की पहल होगी.

कांग्रेस ने पहले ही पृष्ठ पर स्पष्ट रूप से मुद्दों को छेड़ा और समस्याओं पर सुलझाव दिया है. फसल बीमा स्वैच्छिक होगा, क़र्ज़ न लेने वाले किसान को भी बीमा की सुरक्षा उपलब्ध होगी, ‘खेत’ इकाई मानकर बीमा से लाभ दिया जाएगा और ग्रामसभा की अनुशंसा आधार होगी.

भाजपा के घोषणा पत्र में संसाधन, संस्था, सुरक्षा, सुलभता, तकनीक अनुसंधान, यांत्रिकीकरण और क़र्ज़ की उपलब्धता है, किसानों की अपनी फसल का दाम बढ़ाने की या आपदा में नुकसान भरपाई की कोई नई और ठोस बात नहीं है, यह साफ़ नज़र आती है .

सिंचाई का क्षेत्र बढ़ाने का दावा और योजना दोनों दलों के घोषणा पत्रों में है. दोनों की सिंचाई योजनाओं में आज की समस्याओं के निराकरण को कोई उपाय नहीं है. जैसे- नहरों में जल नियोजन या जलाशय के साथ-साथ नहरे न बनायीं जाना, सूक्ष्म नहरों का जाल न बनाना, नहरों के निर्माण में भ्रष्टाचार आदि.

भाजपा के घोषणा पत्र से ‘विस्थापित’ गायब

मध्य प्रदेश में पिछले 15 साल से सत्ता में रही भाजपा सरकार के घोषणा पत्र में ‘विस्थापन’ या ‘विस्थापित’ की कोई बात ही नहीं की गई है.

विस्थापित नर्मदा घाटी भर से ही नहीं, हर परियोजना से, जैसे स्मार्ट सिटी (इंदौर या भोपाल) और हाईवे, रास्तों के निर्माण और औद्योगिक क्षेत्रों के लिए खेती की ज़मीन छीनने से भी हो रहे हैं. उनके संबंध में एक भी बात नहीं कहने के पीछे सत्ताधारी दल की की मंशा क्या है. इसका अंदाज़ा घोषणा पत्र से लगा सकते हैं. लगता है कि भाजपा की नज़र में यह समस्या ही नहीं है.

इसके विपरीत नर्मदा के विस्थापितों के पुनर्वास से जुड़े भ्रष्टाचार की उच्चस्तरीय जांच से लेकर पुनर्वास के अधूरे कार्य, पुनर्वास स्थलों के कार्य में रोज़गार तथा मछुआरों को स्थानीय जलाशय पर अधिकार जैसी छोटी-छोटी बातें कांग्रेस ने अपने वचन-पत्र में शामिल किया है.

इस बीच पिछले सालभर में करोड़ों रुपये ख़र्च करके निकली शिवराज सिंह चौहान की नर्मदा सेवा यात्रा और भूतपूर्व मुख्मंत्री दिग्विजय सिंह की पदयात्रा से नर्मदा का राजनीतिकरण ज़रूर हुआ.

इस घाटी में 66 विधानसभा क्षेत्र हैं और लाखों मतदाता. आज नर्मदा सूखा और बाढ़, अवैध रेत खनन, जंगल कटाई आदि समस्याओं से जूझ रही हैं.

इन तमाम मुद्दों को भूलकर भाजपा के दृष्टिपत्र में फिर से वृक्षारोपण, तटीय क्षेत्र में नशामुक्ति, नर्मदा के निकट क्षेत्रों में प्रदूषण पर विशेष ध्यान जैसी बिलकुल ही बे भरोसे की बात की है. ‘मां नर्मदा’ के शीर्षक तले रखे गए मुद्दों को कोई परखे तो उनकी मंशा साफ़ नज़र आ जाती है.

नर्मदा को मालवा तक ले जाने की बात भाजपा के दृष्टिपत्र में है लेकिन छह बड़ी नदियों (क्षिप्रा, गंभीर, मही, पार्वती, कालीसिंध, चंबल) और अन्य कई नदियों को नर्मदा के पानी से भरकर वहां के औद्योगिक क्षेत्रों और शहरों तक पहुंचाने की करोड़ों रुपये की योजनाओं के विस्तृत उल्लेख के बदले सिर्फ नर्मदा का पानी मालवा तक पहुंचाएंगे की बात की है.

नर्मदा के अविरल बहते रखने की बात कांग्रेस ने की है और किसी ने नहीं. लेकिन अविरल गंगा के लिए शहादत देने वाले प्रो. जीडी अग्रवाल जी पर भी कुछ नहीं हुआ तो नर्मदा के कुछ हो पाए, ऐसी उम्मीद कम नज़र आती है.

सरदार पटेल का नाम भुनाने वाली भाजपा ने मध्य प्रदेश में अपने घोषणा पत्र में उनका नाम शामिल नहीं किया है. दूसरी ओर कांग्रेस ने सरदार पटेल के नाम कृषि स्वावलंबन योजना शुरू करने की बात कही है.

विस्थापितों के आंदोलन से निकले नेतृत्व के कारण आम आदमी पार्टी ने भी विस्थापितों और ‘नर्मदा मैया की संतानों को न्याय’ के मुद्दों पर विशेष पत्र निकालकर बांटा है. उनके शपथपत्र में विस्थापन के मुद्दे को आख़िरी क्रमांक पर रखा है लेकिन ‘प्रभावितों की सहमति के बिना कोई विस्थापन नहीं’ यह आश्वासन दिया हैं.

भू-अधिग्रहण पर अगर कोई चुप है तो वह भाजपा है. कांग्रेस शासन के दौरान 2013 के नए क़ानून का अमल मध्य प्रदेश में ही नहीं, भाजपा के गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे किसी भी राज्य में नहीं हुआ है तो भाजपा के दृष्टिपत्र से उसका पूर्ण रूप से गायब होना स्वाभाविक ही है. कांग्रेस ने भू-अधिग्रहण कानून-2013 को अक्षरशः लागू कराने का भरोसा दिया है .

आदिवासियों को 66वें पन्ने पर मिला है स्थान

जिस राज्य में 23 प्रतिशत जनसंख्या आदिवासियों की है, उन्हें अनुसूचित जनजाति के रूप में कई अधिकार सीधे संविधान से ही प्राप्त होने के बावजूद भाजपा के दृष्टिपत्र में 66वें पन्ने उनका ज़िक्र आता है. अनुसूचित जनजाति के अधिकारों के बारे में ‘पेसा’ क़ानून के पालन की घोषणा पहले मुद्दे के रूप में ज़रूर है लेकिन आज तक ग्रामसभाओं की अवमानना, 15 सालों में झेलने वाले आदिवासियों के ठोस हकों पर टिप्पणी या आश्वासन नहीं के बराबर है.

कांग्रेस ने 44वें पन्ने पर कई नए मुद्दे लाए हैं, जैसे अनुसूचित जाति/जनजाति के सदस्यों को ‘ऋणग्रस्तता से मुक्ति’ के अधिनियम, 1967 को लागू करने की बात. वन अधिकार कानून का अमल.

उद्योगों को 99 सालों की लीज पर भी भूमि देने की बात है, पर भूमिहीनों का ज़मीन देने की इच्छाशक्ति की कमी हैं. यही नतीजा दोनों दलों के घोषणा पत्रों से निकलता है.

महिलाओं से जुड़े मुद्दों की बात करें तो भाजपा के घोषणापत्र में कहीं-कहीं मातृ-बाल स्वास्थ्य जैसे मुद्दे बिखरे हुए मिल भी जाएं पर बड़ी मुश्किल से. महिलाओं के लिए स्वतंत्र संभाग दृष्टि पत्र में नहीं है. कांग्रेस ने महिलाओं की सुरक्षा का मुद्दे का ज़िक्र कर दिया है.

भाजपा के दृष्टि पत्र में स्वास्थ्य और शिक्षा पर ज़ोर है लेकिन इन दोनों क्षेत्रों में निजीकरण से हो रहे भ्रष्टाचार पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है. कांग्रेस ने भ्रष्टाचार मुक्त मध्य प्रदेश बनाने के साथ-साथ भाजपा के कार्यकाल के तकरीबन 15 घोटालों की जांच का भरोसा दिया हैं.

बहरहाल मध्य प्रदेश में समाजवादी, बसपा, भाकपा, माकपा, आम आदमी पार्टी भी मैदान में हैं. फिर भी अधिकांश सीटों पर मुख्य मुक़ाबला भाजपा और कांग्रेस में दिखाई दे रहा है.