क्या आप ग्रेगर मेंडल और उनके मटर के पौधों की कहानी जानते हैं?

विशेष: मेंडल ने हमें बताया है कि एक नवजात में कोई भी विशेषता इससे निर्धारित होती है कि उसे अपने मां-बाप से कौन से गुण मिले हैं. हालांकि उनकी इस महत्वपूर्ण खोज का अर्थ लोग 35 साल बाद समझ सके.

/
ग्रेगर जॉन मेंडल. (फोटो साभार: www.tes.com)

विशेष: मेंडल ने हमें बताया है कि एक नवजात में कोई भी विशेषता इससे निर्धारित होती है कि उसे अपने मां-बाप से कौन से गुण मिले हैं. हालांकि उनकी इस महत्वपूर्ण खोज का अर्थ लोग 35 साल बाद समझ सके.

ग्रेगर जॉन मेंडल. (फोटो साभार: www.tes.com)
ग्रेगर जॉन मेंडल. (फोटो साभार: www.tes.com)

19वीं सदी के दूसरे भाग में यूरोप के एक पादरी ने एक अद्भुत खोज कर डाली. यह खोज अपने समय से इतनी आगे थी कि प्रकाशित होने के लगभग 35 साल बाद तक, जिसने भी इसे पढ़ा, किसी को भी इसके महत्व का एहसास ही नहीं हुआ.

अंतत: वर्ष 1900 में दुनिया इस खोज के लिए तैयार हो चुकी थी और तीन वैज्ञानिकों ने स्वतंत्र रूप से इस खोज का पता लगाया. तो चलिए देखते हैं कि इस पादरी ने ऐसा क्या ख़ास खोज डाला था.

वैज्ञानिक ग्रेगर जॉन मेंडल का जन्म 1822 में (डार्विन के जन्म के 13 साल बाद) आॅस्ट्रियन साम्राज्य के सिलेसियन हिस्से में हुआ था, जो अब चेक गणराज्य में पड़ता है. उनके मां-बाप ने उसका नाम योहान रखा. अपने शहर में बड़े होते मेंडल जानते थे कि उनके जीवन में खेती नहीं लिखी थी.

मेंडल एक गरीब परिवार से थे और जब युवा मेंडल की काबिलियत उनके अध्यापकों ने देखी तो 1833 में घर से कुछ 20 किलोमीटर की दूरी पर एक बड़े स्कूल भेजा गया.

हालांकि मेंडल के परिवार की आर्थिक हालत काफी ख़राब थी और खगोल-विज्ञान में रुचि दिखाने के बावजूद, मेंडल के पिता ने उन्हें परिवार के खेतों का ज़िम्मा उठाने को कहा पर मेंडल नहीं माने और 1841 में दो साल के एक कोर्स में दाख़िला ले लिया.

यहां, मेंडल को भौतिक विज्ञान और गणित के महत्व का एहसास हुआ; साथ-साथ उनमें पौधों के बारे में पढ़ने का शौक भी पैदा हुआ. उनके जीवन के सर्वश्रेष्ठ काम में उन्होंने गणित और पौधों का एक ऐसा मिलान किया जिससे उनका नाम हमेशा अमर रहेगा.

7 सितंबर 1843 को मेंडल चर्च में दाख़िला लेते हैं. कहते हैं कि उस समय का रिवाज़ था कि चर्च में दाख़िले के बाद आप एक नया नाम अपनाते थे- यहां मेंडल ने ‘ग्रेगर’ नाम अपनाया.

शुरुआती दौर मे मेंडल की ज़िम्मेदारी नज़दीकी अस्पताल जाकर बीमारों को चर्च का ज्ञान देना था. मगर वह एक नर्म दिल के आदमी थे, बीमारों को देख वो ख़ुद बीमार हो जाते थे! नतीजा यह हुआ की चर्च के पादरी ने उन्हें अस्पताल जाने से राहत दे दी और प्रकृति का अध्ययन करने की सलाह दी.

विज्ञान की दुनिया में एक ठोस क़दम उठाने का मौका मेंडल के पास तब आया जब एक नज़दीकी स्कूल ने विज्ञान और गणित पढ़ाने के लिए चर्च में एक दरख़्वास्त की. इस किरदार की तैयारी के लिए मेंडल को 1851 में दो साल के लिए विएना भेजा गया.

यह साल मेंडल के एक वैज्ञानिक बनने में बुनियादी थे. ऑस्ट्रिया में मेंडल एक गणितज्ञ से मिले जिनका ये मानना था की दुनिया की हर एक चीज़, चाहे वो मनुष्य द्वारा बनाई गई हो या प्रकृति द्वारा, उसे गणित के एक फॉर्मूले से समझा जा सकता है. जैसा कि हम देखेंगे, ऐसी सोच मेंडल के काम के लिए अनिवार्य थी.

1853 में मेंडल वापस ब्रनो स्थित अपने चर्च लौटते हैं और वहां एक दशक से भी अधिक समय तक वो जीवन विज्ञान में उस समय की सबसे महत्वपूर्ण और जटिल समस्या हल करने में लग जाते हैं. वो प्रश्न था, ‘किसी भी जीव-जंतु में, मां-बाप से बच्चे तक यानी एक पीढ़ी से दूसरी तक शारीरिक लक्षण कैसे दिए जाते हैं?’

इस प्रश्न का जवाब मेंडल चूहों पर परिक्षण कर खोजने लगे. बहरहाल, चर्च को ये काम पसंद नहीं आया- उनकी नज़रों में चर्च ईश्वर की महिमा का अध्ययन करने की जगह थी, न कि एक धर्म-निरपेक्ष विश्वविद्यालय. इस कारण से पादरी को मेंडल का चूहों पर काम करना पसंद नहीं आया. परिणामस्वरूप, मेंडल ने चूहों को छोड़, मटर के पौधों पर अपना ध्यान केंद्रित किया.

उन्होंने देखा की मटर के पौधे की एक ख़ास विशेषता है- उसका फूल या तो सफ़ेद होता है या जामुनी. अब जानने वाली बात ये थी कि ऐसा क्यों है- और एक पौधे में क्या निर्धारित करता है कि उसका फूल सफ़ेद होगा या जामुनी. इस सवाल के हल के लिए मेंडल ने कुछ ऐसा किया.

मेंडल का काम समझने से पहले हमें ये जानना होगा कि पौधों के फूलों में नर और मादा दो भाग होते हैं. जब नर और मादा का मिलन होता है तो नए पौधे के बीज तैयार होते हैं. नया पौधा बनने के लिए नर और मादा एक पौधे से भी हो सकते हैं या अलग-अलग पौधों से भी हो सकते हैं.

काम की शुरुआत करने के लिए, मेंडल ने दो ऐसे पौधे लिए, जिनमें से एक पर हमेशा सफ़ेद फूल खिलते थे और दूसरे पर हमेशा जामुनी. जब उन्होंने सफ़ेद फूल वाले पौधे का संगमन (मिलन) सफ़ेद फूल वाले पौधे से कराया तो देखा कि जो नया पौधा होता उसमें हमेशा सफ़ेद फूल खिलते.

इसी तरह, जब जामुनी फूल वाले पौधे को जामुनी फूल के पौधे से संगमन कराया तो नए पौधे पर हमेशा जामुनी फूल लगते. इसमें शायद कोई हैरान होने वाली बात भी नहीं थी. जब जन्म देने वाले दोनों पौधे सफ़ेद रंग के थे तो नए पौधे के फूल भी सफ़ेद ही आए (और ऐसा ही जामुनी फूल वाले पौधों के साथ हुआ). इन शुरुआती पौधों को मेंडल ने पीढ़ी नंबर- 1 कहा.

पर मज़ेदार बात यह रही कि जब उन्होंने सफ़ेद फूलों वाले एक पौधे का संगमन जामुनी फूल वाले पौधे के साथ कराया को पाया कि नए पौधे के फूल जामुनी होते हैं.

इससे भी बढ़कर ये बात थी कि यह प्रयोग आप जितनी भी बार कर लीजिए नए पौधे के फूल हमेशा जामुनी ही रहेंगे. मेंडल इससे हैरान थे कि सफ़ेद फूल बनाने की युक्ति कहां गुम हो गई, जिससे पीढ़ी नंबर- 2 के सारे पौधे जामुनी फूल वाले थे.

अब उन्होंने ऐसा किया जिससे ये कहानी और दिलचस्प हो जाती है. अब मेंडल ने दूसरी पीढ़ी के दो पौधे लिए और उनके संगमन से एक नया पौधा बनाया (यह पौधा उन्होंने पीढ़ी नंबर- 3 कहा).

मज़ेदार बात यह हुई कि इस तीसरी पीढ़ी में कभी नए पौधे के फूलों का रंग सफ़ेद होता तो कभी जामुनी. और निश्चित रूप से कहें हो उन्होंने देखा कि अगर यह प्रयोग सैकड़ों बार दोहराया जाए (जैसा कि मेंडल ने किया) तो यह पाया जाएगा कि तीसरी पीढ़ी के जो पौधे हैं, उनमे से 75 प्रतिशत जामुनी फूल वाले हैं और बाकी 25 प्रतिशत सफ़ेद फूल वाले हैं.

इस अवलोकन से मेंडल के मन मे दो सवाल उठे…

पहला, ऐसा क्या हो गया जिससे सफ़ेद रंग पीढ़ी नंबर- 2 में लुप्त हो गया था और फिर पीढ़ी नंबर- 3 में वापस आ गया?

और दूसरा इन पौधों मे ऐसा क्या चल रहा था जिससे कि यह 75:25 प्रतिशत के आंकड़े का पालन कर रहे थे?

मेंडल की खोज की महानता यही है कि वह सिर्फ़ इन नतीजों पर ही नहीं रुके, उन्होंने इसका राज़ खोला. हमें आज यह पता है कि मेंडल एकदम सही दिशा में सोच रहे थे पर आज 21वीं सदी में उनके काम के बारे में बात करते हुए हमें यह ध्यान मे रखना चाहिए कि में ‘डीएनए’ जैसी किसी चीज़ का कोई ज्ञान नहीं था.

खैर, मेंडल ने फूलों के रहस्य को कुछ इस तरह समझाया. मेंडल ने कहा कि एक नवजात पौधे के फूलों का रंग इस बात से निर्धारित होता है कि उसके जन्म के लिए जिन दो पौधों का संगमन हुआ, उनके फूलों का क्या रंग था. वो दोनों युवा पौधे के फूलों का रंग निर्धारित करने के लिए एक तत्व युवा पौधे में छोड़ेंगे और उसके परिणामस्वरूप पौधे के फूलों का रंग निर्धारित होगा.

उन्होंने कहा कि उनके प्रयोगों से ऐसा लगता है जैसे फूलों का रंग सफ़ेद भी हो सकता है और जामुनी भी. जो सफ़ेद फूल वाले पौधे थे (पीढ़ी नंबर 1 में), उनमें कुछ ऐसा तत्व था जो वो अपने शिशु पौधों को देते थे, जिससे उसके फूलों का रंग सफ़ेद हो. इस कारण, दो सफ़ेद फूलों वाले पौधों के संगमन से बनने वाले पीढ़ी नंबर 1 के पौधे हमेशा सफ़ेद फूल ही देंगे- क्योंकि ऐसे पौधे को सिर्फ सफ़ेद रंग देने वाला तत्व ही मिल रहा है.

पर, जब एक सफ़ेद और एक जामुनी रंग के फूल वाले पौधे के संगमन से नया पौधा मिलता है तो इस पौधे को सफ़ेद रंग देने वाला और जामुनी रंग देने वाला, दोनों तत्व मिलते हैं.

ऐसे में, मेंडल ने कहा, कि ऐसा प्रतीत होता है जैसे जामुनी तत्व, सफ़ेद तत्व पर भारी पड़ जाता है. परिणामस्वरूप, पीढ़ी नंबर 2 में सारे पौधे जामुनी रंग के फूल देते हैं.

अब पीढ़ी नंबर 2 में सब पौधे जामुनी फूल वाले तो हैं, पर हर पौधे के पास एक सफ़ेद तत्व भी है और एक जामुनी तत्व भी है. अब जब ऐसे दो पौधों का संगमन होगा, तब दोनों पौधे, निरुद्देश्य तरीके से अपना कोई एक तत्व शिशु पौधे को देंगे.

मेंडल ने समझाया कि ऐसी स्थिति में पीढ़ी नंबर 3 में 25 प्रतिशत पौधे होंगे जिन्हें दोनों पौधों से सफ़ेद तत्व मिलेगा (यानी सफ़ेद फूल); 50 प्रतिशत होंगे जिन्हें एक सफ़ेद तत्व और एक जामुनी तत्व मिलेगा (यानी जामुनी फूल); और 25 प्रतिशत ऐसे होंगे जिनमें दोनों जामुनी तत्व मिलेंगे (यानी जमुनी फूल). यह एकदम वही आंकड़ा है जो मेंडल ने तीसरी पीढ़ी में देखा.

तो, मेंडल के नतीजों ने हमें बताया कि एक नवजात में कोई भी विशेषता इससे निर्धारित होती है कि उसे अपने मां-बाप से कौन से तत्व मिले हैं. वो तत्व अलग भी हो सकते हैं, या एक जैसे भी. नवजात की विशेषता दोनों तत्वों के गणित से निकलेगी. अक्सर एक तत्व, दूसरे पर भारी पड़ जाता है (जैसे जामुनी रंग सफ़ेद रंग वाले तत्व पर).

एक नवजात शिशु के पैदा होने पर हम अकसर ऐसा बोलते हैं, ‘इसकी आंखें मां पर गई हैं.’, ‘नाक बाप जैसा है’ इत्यादि. पर ऐसा कैसे होता है? जो मेंडल ने हमें मटर के पौधे के माध्यम से समझाया, ठीक वही हमारे और सभी जानवरों के साथ भी होता है.

जन्म के दौरान मां और पिता दोनों, अपनी-अपनी ओर से तत्व (डीएनए) नवजात को देते हैं. इन दोनों तत्वों में मेंडल के गणित के तहत निर्धारित होता है कि नवजात शिशु कैसा दिखेगा. क्योंकि मेंडल का गणित और उनकी खोज सिर्फ मटर ही नहीं, बल्कि प्रकृति के हर एक जानवर पर लागू होती है- इसलिए अनुसंधान के इस क्षेत्र को मेंडलियन आनुवंशिकी कहा जाता है.

जब 1865 में मेंडल को अपने नतीजे पढ़ने के लिए एक वैज्ञानिक सम्मेलन में बुलाया गया, तो इतना गणित होने के कारण किसी को उनका काम समझ नहीं आया. परिणामस्वरूप, मेंडल ने हार मानकर अपने ख़र्चे पर अपनी खोज को लिखकर उसकी 40 कॉपियां बनवाईं और उस समय के सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों और संस्थानों को भेजीं (कहा जाता है कि उनमें से एक कॉपी उन्होंने डार्विन को भी भेजी थी).

पर मेंडल के काम को समझने की क्षमता उस समय के जाने-माने वैज्ञानिक भी नहीं रखते थे और अगले 35 साल तक मेंडल वैज्ञानिक इतिहास के पन्नों से लुप्त हो गए.

मटर के पौधों पर काम करने के बाद मेंडल ने जीवन के आख़िरी चरण में मधुमखियों पर काम किया. मटर में दिखाई गई 75-25 के आंकड़े को वह मधुमखियों में भी दिखाना चाहते थे. उस समय तक वह चर्च के मठाधीश (हेड पादरी) चुने जा चुके थे.

एक बार की बात है, मठाधीश मेंडल एक युवक पादरी को मधुमखियों के नज़दीक लेकर गए. ठंड का मौसम अभी पूरी तरह से ख़त्म नहीं हुआ था, तो ज़मीन अभी भी बर्फ से सफ़ेद थी.

नज़दीक पहुंच मेंडल ने पादरी को अपनी टोपी उतार ज़मीन पर रखने को कहा. पादरी अभी 30 साल का भी नहीं था और मठाधीश को मना करने का साहस नहीं रखता था.

काले रंग की टोपी सफ़ेद बर्फ पर देख सैंकड़ों मधुमक्खियां टोपी की ओर आईं और उस पर अपना मैला फेंक कर टोपी को पीला कर दिया! दरअसल मेंडल जानते थे की सर्दी भर मधुमक्खियां मैला अपने अंदर ही रखती हैं और उसे बाहर फेंकने के लिए वह बर्फ पिघलने का इंतज़ार करती हैं. ज़मीन पर काली टोपी उन्हें बर्फ पिघलने के बाद की ज़मीन सी नज़र आएगी जिस पर वह अपना मैला फेंकेगी- मेंडल ऐसा जानते थे और बेचारे पादरी को इस मज़ाक का निशाना बनाया.

हांलाकि, मेंडल ने यह सब सोच तो लिया था पर वो इस सबसे पूरी तरह बेख़बर थे कि यह तत्व क्या हो सकता है. जैसा कि मैंने पहले कहा, मेंडल अपने समय से बहुत आगे थे.

दरअसल उन्होंने 20वीं सदी का सवाल 19वीं सदी में ही हल कर दिया था! शायद इसलिए, अगले 35 साल तक उनके काम का महत्व कोई नहीं समझ पाया. पर यह सब 1900 में बदल गया. पर रास्ते खोलने के बजाय, मेंडल के काम का महत्व समझने के बाद वैज्ञानिकों में एक युद्ध छिड़ गया.

डार्विन और वालेस द्वारा प्रस्तावित प्राकृतिक चयन के सिद्धांत को समझने के लिए दो खेमों मे बंट गए. अगले 20 साल, दुनियाभर के वैज्ञानिक इस समस्या को हल करने में जुट गए- पर उस कहानी हम किसी और दिन विचार करेंगे.

(लेखक आईआईटी बॉम्बे में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.)

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25