आईआईटी-मद्रास की मेस में लगे शाकाहारी-मांसाहारी छात्रों के लिए अलग दरवाज़े और बेसिन के पोस्टर

छात्रों का आरोप है कि पिछले साल शुरू हुई शुद्ध शाकाहारी मेस की मांग अब पूरी तरह छुआछूत में बदल गई है.

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छात्रों का आरोप है कि पिछले साल शुरू हुई शुद्ध शाकाहारी मेस की मांग अब पूरी तरह छुआछूत में बदल गई है.

IIT Madras Mess Posters FB
आईआईटी मद्रास के मेस में लगे पोस्टर्स (फोटो साभार: फेसबुक)

चेन्नई: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के भोजनालय (मेस) में शाकाहारी और मांसाहारी छात्रों के लिए अलग-अलग प्रवेश और निकास द्वार तथा अलग-अलग वॉश बेसिन संबंधी पोस्टर चिपकाए जाने के बाद विवाद खड़ा हो गया है और कुछ विद्यार्थियों ने भेदभाव का आरोप लगाया है.

सोशल मीडिया पर कुछ छात्रों द्वारा साझा की जा रही तस्वीरों में भोजनालय के दरवाजे के पास चिपकाए गए इन पोस्टरों में एक स्थानीय केटरर का नाम भी है.

संस्थान के एक अधिकारी ने इस संबंध में अनभिज्ञता प्रकट की और कहा कि अगर सचमुच में ऐसे पर्चे मिलते हैं तो उन्हें हटा दिया जाएगा.

एक विद्यार्थी ने कहा कि हिमालया मेस परिसर के दूसरे तल पर उत्तर भारतीय मेस के दो प्रवेश द्वारों के समीप ये पोस्टर चिपकाए गए हैं. उनमें शाकाहारी और मांसाहारी छात्रों के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार और वॉश बेसिन इंगित किए गए हैं.

सोशल मीडिया पर साझा की गई तस्वीर में एक पोस्टर में लिखा है, ‘शाकाहारी छात्र हैंड वॉश’, दूसरे पोस्टर में ‘शीतकालीन मेस – भोजन प्रबंधन. मांसाहारी विद्यार्थियों के लिए प्रवेश/निकास.’

इस संबंध में संपर्क करने पर आईआईटी-एम की मेस निगरानी एवं नियंत्रण समिति के एक अधिकारी ने बताया कि उन्हें पोस्टरों की जानकारी नहीं है.

उन्होंने कहा कि जैन भोजन (बिना लहसुन-प्याज के) तैयार करने की व्यवस्था की गई है, लेकिन वह शाकाहारी और मांसाहारी के आधार पर भेदभाव संबंधी इंतजाम से अनभिज्ञ हैं.

एक शोध छात्र ने आरोप लगाया कि पिछले वर्ष शुद्ध शाकाहारी के लिए शुरू हुई मेस की मांग अब  पूरी तरह छुआछूत बन गयी है.

कुछ विद्यार्थियों के अनुसार पिछले साल मई में ‘बीफ फेस्टिवल’ के आयोजन के बाद से कुछ विद्यार्थियों की ओर से पृथक शाकाहारी मेस की मांग उठने लगी थी.

खबरों के मुताबिक इस मामले को जातिगत भेदभाव से जोड़ते हुए अंबेडकर पेरियार स्टडी सेंटर (एपीएससी) ने कहा कि तथाकथित ऊंची जाति के लोगों के घरों में अछूतों एवं ऊंची जाति के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार का इंतजाम होता है. अब यह व्यवस्था आईआईटी मद्रास की मेस में लागू हो गई है.

छात्र निकाय के सदस्यों ने हिमालया मेस की कुछ तस्वीरें साझा की. उन्होंने कहा कि विश्वस्तरीय संस्थान बनने का प्रयास करने वाला आईआईटी मद्रास सांस्कृतिक स्तर पर अभी भी काफी पीछे है.

इसकी प्रतिक्रिया में आईआईटी मद्रास के अधिकारियों ने कहा कि आईआईटी के विद्यार्थियों को शाकाहार अथवा मांसाहार में से कोई भी विकल्प चुनने की स्वतंत्रता है. इसमें आईआईटी मद्रास की कोई भूमिका नहीं है.

उन्होंने कहा कि आईआईटी मद्रास पर जातिगत भेदभाव का आरोप लगाना निराधार है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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