चारधाम विकास योजना के तहत चल रही परियोजनाओं के निर्माण को सुप्रीम कोर्ट की मंज़ूरी

चारधाम योजना के तहत उत्तराखंड के चार पर्वतीय धामों- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए सड़कों का चौड़ीकरण किया जाना है. पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इन इलाकों में पेड़ों और पहाड़ों को काटने क्षति पहुंचाने के आरोप लग रहे हैं.

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सुप्रीम कोर्ट. (फोटो: पीटीआई)

चारधाम योजना के तहत उत्तराखंड के चार पर्वतीय धामों- यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को सड़क मार्ग से जोड़ने के लिए सड़कों का चौड़ीकरण किया जाना है. पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इन इलाकों में पेड़ों और पहाड़ों को काटने क्षति पहुंचाने के आरोप लग रहे हैं.

सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)
सुप्रीम कोर्ट (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के चार शहरों को सभी मौसम में जोड़ने वाली सड़कों के निर्माण के लिए सरकार की महत्वाकांक्षी चारधाम विकास योजना के तहत चल रही विभिन्न परियोजनाओं को शुक्रवार को अपनी मंजूरी दे दी.

शीर्ष अदालत ने साथ ही स्पष्ट किया कि इस योजना के तहत रोकी गई परियोजनाओं के निर्माण का काम अगले आदेश तक रुका रहेगा.

जस्टिस आरएफ नरीमन और जस्टिस विनीत शरण की पीठ ने केंद्र से कहा कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के आदेश पर रोक लगाने की याचिका में अपना हलफनामा दाखिल करें. अधिकरण ने अपने आदेश में इन परियोजनाओं को मंजूरी देने के साथ ही इनकी निगरानी के लिए एक समिति गठित की थी.

चारधाम परियोजना का मकसद उत्तराखंड के चार पर्वतीय शहरों – यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को सभी मौसम के अनुकूल सड़कों से जोड़ना है. पर्यावरण की दृष्टि से संवेदनशील इलाकों में पेड़ों और पहाड़ों को काटने के तरीकों को लेकर इस योजना पर सवाल उठ रहे हैं.

शीर्ष अदालत ने हरित प्राधिकरण के आदेश पर रोक लाने के लिए एक गैरसरकारी संगठन द्वारा दायर याचिका पर 26 नवंबर को केंद्र से जवाब मांगा था.

याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन ‘सिटीजंस फॉर ग्रीन दून’ की ओर से अधिवक्ता संजय पारेख ने कहा था कि यदि इस परियोजना को जारी रखने की अनुमति दी गई तो इससे पारिस्थितिकी को अपूर्णीय नुकसान होगा, जो 10 ताप बिजली परियोजनाओं द्वारा किए गए नुकसान के बराबर होगा.

उन्होंने यह भी कहा था कि उत्तराखंड के पहाड़ बहुत नाजुक हैं और यदि पर्यावरण के प्रति सरोकार का ध्यान नहीं रखा गया तो 2013 की केदारनाथ त्रासदी जैसी घटना की पुनरावृत्ति हो सकती है.

एनजीटी ने 26 सितंबर 2018 को इस महत्वाकांक्षी सड़क परियोजना की निगरानी के लिए उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यूसी ध्यानी की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी.

याचिकाकर्ता संठगन का कहना था कि इस परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी आवश्यक है और इस समय वहां चल रहा काम पूरी तरह से गैरकानूनी है. संगठन का आरोप था कि केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री को जोड़ने के लिए सड़कें चौड़ी करने का काम पर्यावरण नियमों का उल्लंघन करके किया जा रहा है.

पर्यावरण मंत्रालय ने भी अधिकरण को सूचित किया था कि उसे इस परियोजना के लिए कोई पर्यावरण मंजूरी का प्रस्ताव नहीं मिला था और इसलिए ऐसी परियोजना के लिए पर्यावरण प्रभाव आकलन का अध्ययन कराने का सवाल ही नहीं था.

अमर उजाला के मुताबिक इस योजना को चारधाम मार्ग का पुनरुद्धार भी कहा जा रहा है. केंद्र की इस महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत चीन सीमा और चारधामों तक पहुंचने वाली सड़कों को विश्व स्तर का बनाया जाना है.

इसके तहत करीब 12 हजार करोड़ रुपये की लागत से 880 किलोमीटर से ज्यादा सड़क चौड़ीकरण का काम होना है. परियोजना को अगले साल मार्च तक पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था.

गौरतलब है कि 27 दिसंबर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12,000 करोड़ रुपये की चारधाम विकास योजना का शिलान्यास किया था. इस योजना के तहत 900 किलोमीटर लंबी सड़कों का लगभग 10 मीटर चौड़ीकरण किया जाना है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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