राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ होगी जांच, हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करने की याचिका ख़ारिज की

सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना पर आरोप है कि उन्होंने हैदराबाद के एक कारोबारी सना सतीश से पांच करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में 10 हफ़्ते में जांच पूरी करने का निर्देश दिया है.

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**FILE** New Delhi: In this file photo dated July 07, 2017, CBI Additional Director Rakesh Asthana addresses the media after CBI raid, in New Delhi. Central Bureau of Investigation special director Rakesh Asthana on Tuesday moved the Delhi high court against the lodging of an FIR against him in a bribery case. (PTI Photo)(PTI10_23_2018_000054B)
राकेश अस्थाना (फोटो: पीटीआई)

सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना पर आरोप है कि उन्होंने हैदराबाद के एक कारोबारी सना सतीश से पांच करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी थी. दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में 10 हफ़्ते में जांच पूरी करने का निर्देश दिया है.

**FILE** New Delhi: In this file photo dated July 07, 2017, CBI Additional Director Rakesh Asthana addresses the media after CBI raid, in New Delhi. Central Bureau of Investigation special director Rakesh Asthana on Tuesday moved the Delhi high court against the lodging of an FIR against him in a bribery case. (PTI Photo)(PTI10_23_2018_000054B)
राकेश अस्थाना. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की रिश्वत मामले में एफआईआर खारिज करने की याचिका को दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया है. अस्थाना पर तत्कालीन सीबीआई प्रमुख अलोक वर्मा ने रिश्वत मामले में एफआईआर दर्ज किया था. अब अस्थाना को रिश्वत मामले में जांच का सामना करना पड़ेगा.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जस्टिस नाजमी वजीरी ने अस्थाना के खिलाफ कार्यवाही पर यथास्थिति बनाए रखने के 23 अक्टूबर, 2018 के अंतरिम आदेश को भी रद्द कर दिया. हालांकि अदालत ने सीबीआई को कहा है कि अस्थाना की गिरफ्तारी को लेकर दो हफ्तों तक यथास्थिति बनाई रखी जाए.

अदालत ने 10 हफ्तों के भीतर राकेश अस्थाना, देवेंद्र कुमार और अन्य तीन के खिलाफ जांच पूरी करने का आदेश दिया है.

अदालत ने स्पष्ट किया कि अस्थाना और देवेंद्र कुमार के खिलाफ जांच करने के लिए किसी भी अनुमति की जरूरत नहीं थी.

अदालत ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि एक लोक सेवक (पब्लिक सर्वेंट) के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया जाना चिंता और तनाव का कारण होगा. एफआईआर में जिस तरह के आरोप हैं उसकी जांच जरूरी है. जब तक कोई शख्स दोषी साबित नहीं हो जाता तब तक कानून की नजर में वह निर्दोष है.

अदालत ने सीबीआई, राकेश अस्थाना, एजेंसी के तत्कालीन निदेशक आलोक वर्मा, डीएसपी देवेंद्र कुमार और संयुक्त निदेशक एके शर्मा के वकीलों की दलीलों की सुनवाई के बाद विभिन्न याचिकाओं पर 20 दिसंबर, 2018 को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

अस्थाना, देवेंद्र कुमार और एक बिचौलिया मनोज प्रसाद ने खुद के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी.

हैदराबाद के व्यवसायी सतीश बाबू साना ने दावा किया कि उसने मांस निर्यातक मोइन कुरैशी से जुड़े एक मामले में राहत पाने के लिए रिश्वत दी थी और अस्थाना के खिलाफ भ्रष्टाचार और जबरन वसूली के आरोप लगाए थे.

सीबीआई ने 15 अक्टूबर 2018 को अस्थाना के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया था. उनके खिलाफ कारोबारी सतीश बाबू सना की शिकायत के आधार पर भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोप हैं.

अस्थाना पर आरोप है कि उन्होंने मोईन क़ुरैशी मामले में सना सतीश से दो बिचौलियों के ज़रिये पांच करोड़ रुपये की रिश्वत मांगी थी.

मोईन कुरैशी मामले की जांच कर रहे अधिकारी देवेंद्र कुमार को रिश्वतखोरी के आरोप में 22 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था, जिन्हें एक हफ्ते बाद ज़मानत मिल गई थी. मनोज प्रसाद को 17 अक्टूबर को गिरफ्तार किया था और 18 दिसंबर को जमानत पर रिहा कर दिया गया.

इस मामले के अलावा राकेश अस्थाना पर 4,000 करोड़ के मनी लॉन्ड्रिग मामले में शामिल होने का आरोप है, जिसकी जांच खुद सीबीआई कर रही है.

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