आलोक वर्मा मामले में घिरे सीवीसी केवी चौधरी पर पहले भी कई गंभीर सवाल उठ चुके हैं

केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी पर सहारा-बिड़ला डायरी, नीरा राडिया केस, शराब व्यापारी पोंटी चड्ढा को टैक्स फायदा पहुंचाने, मोईन कुरैशी रिश्वत मामला, पोंजी स्कीम जैसे कई बड़े मामलों में सवाल उठ चुके हैं.

केवी चौधरी. (फोटो साभार: यूट्यूब/राज्यसभा टीवी)

केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी पर सहारा-बिड़ला डायरी, नीरा राडिया केस, शराब व्यापारी पोंटी चड्ढा को टैक्स फायदा पहुंचाने, मोईन कुरैशी रिश्वत मामला, पोंजी स्कीम जैसे कई बड़े मामलों में सवाल उठ चुके हैं.

केवी चौधरी. (फोटो साभार: यूट्यूब/राज्यसभा टीवी)
केवी चौधरी. (फोटो साभार: यूट्यूब/राज्यसभा टीवी)

नई दिल्ली: आलोक वर्मा मामले के कारण केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (सीवीसी) केवी चौधरी अपनी भूमिका को लेकर एक बार फिर से सुर्खियों में हैं. वर्मा ने केवी चौधरी पर उनकी जांच को लेकर सवाल खड़े किए थे जिसके आधार पर उन्हें सीबीआई निदेशक के पद से हटा दिया गया.

वर्मा को हटाने का आदेश देने वाली उच्चस्तरीय चयन समिति ने सीवीसी जांच के निष्कर्षों का हवाला दिया था. हालांकि आलोक वर्मा ने आरोप लगाया था कि केवी चौधरी ने उनसे सीबीआई के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना की वार्षिक प्रदर्शन मूल्यांकन रिपोर्ट (एपीएआर) में रिकॉर्ड की गई प्रतिकूल टिप्पणियों को वापस लेने के लिए कहा था.

उन्होंने आरोप लगाया था कि चौधरी ने कहा था कि अगर वे उनकी ये मांग मान लेंगे तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. हालांकि आलोक वर्मा ने उनकी बातें मानने से मना कर दिया था.

मालूम हो कि राकेश अस्थाना ने आलोक वर्मा पर कई आरोप लगाए थे और सीवीसी ने इन्हीं आरोपों पर अपनी जांच रिपोर्ट तैयार की थी. हालांकि वर्मा का आरोप है कि सीवीसी ने सुप्रीम कोर्ट में सौंपी गई अपनी रिपोर्ट में उनकी बातों को शामिल नहीं किया था.

वहीं आलोक वर्मा मामले में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) के जांच की निगरानी करने वाले सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस एके पटनायक ने कहा था कि वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई सबूत नहीं था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली समिति ने उन्हें हटाने के लिए बहुत जल्दबाजी में फैसला लिया.

1978 बैच के पूर्व आईआरएस अधिकारी केवी चौधरी को 2015 में सीवीसी के पद पर नियुक्त किया गया था. विवादों को लेकर चौधरी नया नाम नहीं है.

2014 में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के अध्यक्ष के रूप में चौधरी के कार्यकाल के दौरान आयकर विभाग ने बिड़ला और सहारा कंपनियों के कार्यालयों पर छापे के दौरान जब्त की गई कुछ डायरियों की जांच की थी, जिसमें कथित तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी सहित विभिन्न राजनेताओं को भुगतान करने की बात सामने आई थी.

एनजीओ कॉमन कॉज ने अदालत में मामले को दबाने का आरोप लगाया था, जबकि विपक्ष ने कहा था कि सहारा को अभियोजन पक्ष से अवैध भुगतान के लाभार्थियों को बचाने की छूट मिली है.

इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया था कि किस तरह आयकर विभाग ने सहारा इंडिया को अभियोजन और जुर्माने से छूट दी.

हालांकि जनवरी 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और इनकम टैक्स द्वारा प्राप्त किए गए कागजात की आपराधिक जांच के लिए कॉमन कॉज की याचिका को खारिज कर दिया था और कहा कि अगर इन दस्तावेजों के आधार पर संवैधानिक पदाधिकारियों के खिलाफ जांच का आदेश दिया गया तो लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं होगा.

सीवीसी में चौधरी की नियुक्ति के समय वकील प्रशांत भूषण ने यह मुद्दा उठाया था कि जिस समय पोंजी स्कीम और मोईन कुरैशी मामले में चौधरी की कथित भूमिका के लिए एजेंसी द्वारा जांच की जा रही थी, उस समय चौधरी का नाम तत्कालीन सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा के घर पर आगंतुकों के रजिस्टर में पाया गया था.

भूषण ने यह आरोप भी लगाया था कि नीरा राडिया टेप मामले में सबूतों पर केवी चौधरी ने कार्रवाई नहीं की और शराब व्यापारी पोंटी चड्ढा को 200 करोड़ रुपये का टैक्स फायदा पहुंचाया था.

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने चौधरी की नियुक्ति इस आधार पर बरकरार रखी कि उन्हें सीबीआई द्वारा क्लीन चिट दिया गया था. खास बात ये है कि यूपीए सरकार के दौरान पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त पीजे थॉमस को इसी तरह के एक मामले में इस्तीफा देना पड़ा था. थॉमस का नाम एक 20 साल पुराने मामले में सामने आया था हालांकि उन्हें सीबीआई और खुफिया ब्यूरो (आईबी) द्वारा क्लीन चिट दे दिया गया था.

जब वे 2013 में आयकर विभाग में सदस्य (जांच) थे, तब चौधरी ने नितिन गडकरी के पूर्ति समूह की कंपनियों के खिलाफ छापेमारी की थी, जिसके कारण उन्हें भाजपा अध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा था.

केंद्रीय सतर्कता आयुक्त के रूप में चौधरी की नियुक्ति आश्चर्यजनक थी, क्योंकि वह इस पद के लिए चुने गए पहले गैर-आईएएस अधिकारी थे. माना जाता है कि पीएमओ और मंत्रिमंडल सचिवालय के नौकरशाह, ज्यादातर आईएएस ने इस आधार पर नियुक्ति का विरोध किया था.

माना जाता है कि चौधरी ने वित्त मंत्री अरुण जेटली को मोइन कुरैशी मामले में अपनी विस्तृत जानकारी से प्रभावित किया था. चुनावों के दौरान नरेंद्र मोदी द्वारा कई भाषणों में कुरैशी के नाम का उल्लेख किया गया था.

चौधरी के बारे में कहा जाता है कि उनके पास, विशेष रूप से उनके द्वारा संभाले गए मामले याद रहते हैं. कहा जाता है कि एचएसबीसी जिनेवा मामले के विवरणों को याद करने की उनकी क्षमता ने जेटली को प्रभावित किया गया था, जिसमें विदेशों में नकदी जमा करने वाले भारतीयों की सूची का खुलासा हुआ था.

2011 में शुरू हुआ एचएसबीसी जांच में चौधरी पहले आईटी (जांच) के महानिदेशक, दिल्ली के रुप में और फिर अगस्त 2012 के बाद सदस्य (जांच) के रूप में शामिल थे.

चौधरी को मृदुभाषी व्यक्ति कहा जाता है. वे हमेशा अपने माथे पर लाल तिलक लगाते हैं. सतर्कता भवन में उनके कार्यालय के अंदर उनकी मेज पर भगवान और देवी-देवताओं की तस्वीरें लगी हुई हैं. वहां हमेशा धीमी आवाज में मंत्र बजता रहता है. वह इस साल अक्टूबर तक पद पर रहेंगे, जब वह 65 वर्ष के हो जाएंगे.

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