सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला, विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में होगा विभागवार आरक्षण

2017 में विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि आरक्षण विभागवार आधार पर दिया जाए न कि कुल सीटों के आधार पर. केंद्र द्वारा इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

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New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
(फोटो: पीटीआई)

2017 में विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि आरक्षण विभागवार आधार पर दिया जाए न कि कुल सीटों के आधार पर. केंद्र द्वारा इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी.

New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
(सुप्रीम कोर्ट: पीटीआई)

केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों की नियुक्ति में आरक्षण अब विभाग के आधार पर दिया जाएगा न कि विश्वविद्यालय की कुल सीटों के आधार पर. सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस निर्णय को सही ठहराया जहां उसने कहा था कि आरक्षण के लिए विश्वविद्यालय नहीं बल्कि विभाग को इकाई माना जाना चाहिए.

इस फैसले को केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जहां मंगलवार को जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस इंदिरा बनर्जी ने इसे ख़ारिज कर दिया.

मालूम हो कि साल 2006 से विश्वविद्यालयों में आरक्षण का रोस्टर लागू किया गया है, जिसके अनुसार विश्वविद्यालय को इकाई मानकर एससी-एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण लागू किया जाता है. इसके अनुसार होने वाली नियुक्तियों में 15% आरक्षण एससी, 7.5% एसटी और 27% आरक्षण ओबीसी के लिए तय है.

इस नियम को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गयी थी, जहां अदालत ने कहा कि नियुक्तियां विभागवार आरक्षण के आधार पर होनी चाहिए. केंद्र सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी.

मार्च 2017 में यूजीसी द्वारा इस आदेश का अनुपालन करते हुए सभी विश्वविद्यालयों को इसी आधार पर शिक्षकों की नियुक्ति के लिए कहा गया. इसके बाद आरक्षित वर्ग को नौकरियां न मिलने की बात सामने आई और मामला संसद में उठा.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार इस बारे में केंद्र सरकार का तर्क था कि रिक्तियों की गणना विभाग के आधार पर किए जाने से आरक्षित वर्ग की सीटों की संख्या घट जाएगी, जो आरक्षण लागू करने के उद्देश्य के ही उलट होगा.

हालांकि यूजीसी का आदेश का आने के बाद केंद्र ने इसे रद्द नहीं किया बल्कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने तक विश्वविद्यालयों में नियुक्तियां रोकने का आदेश दिया.

इस बीच केंद्र द्वारा यूजीसी के इस आदेश को पलटने के लिए एक विधेयक तैयार कर इसे मंजूरी के लिए मानव संसाधन और विकास मंत्रालय के पास भेजा गया था. यह अभी तक लंबित है.

मंगलवार को केंद्र की याचिका ख़ारिज करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला सही और तार्किक है.

कोर्ट का कहना था कि कैसे एक विभाग के शिक्षक की तुलना दूसरे विभाग के शिक्षक से की जा सकती है. अलग-अलग विभाग के प्रोफेसर की अदला-बदली नहीं की जा सकती, इसी कारण आरक्षण के लिए विभाग आधार होना चाहिए न कि विश्वविद्यालय की कुल सीटें.

केंद्र की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल का कहना था कि विभाग को एक इकाई मानने से विषमताएं आ जाएंगी. ऐसा करने से ऐसी स्थिति भी आ सकती है जहां किसी विश्वविद्यालय के कई विभागों में केवल एक ही रिक्ति हो. ऐसी स्थिति आरक्षण कानून के खिलाफ होगी. हालांकि अदालत ने इसे नहीं माना और यह दलील ख़ारिज कर दी.

इस बीच विशेषज्ञों का मानना है कि यह नियम लागू होने से उच्च शिक्षा में एससी-एसटी और ओबीसी शिक्षकों की संख्या में भारी गिरावट आएगी. उनके अनुसार अगर किसी विभाग में प्रोफेसर का एक ही पद है, तो यह आरक्षण के दायरे में नहीं आएगा और इस पर अनारक्षित वर्ग से नियुक्ति की जाएगी. ऐसे में आरक्षित वर्ग से आने वाले शिक्षकों के लिए संभावनाएं और कम हो जाएंगी.