‘जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहां हैं…’

'आंदोलन के सारे गांधीवादी-सत्याग्रही तरीक़े चूक जाने के बाद अगर तमिलनाडु के किसान हथियार उठा लें तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा?'

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‘आंदोलन के सारे गांधीवादी-सत्याग्रही तरीक़े चूक जाने के बाद अगर तमिलनाडु के किसान हथियार उठा लें तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा?’

जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन के दौरान पेशाब पीते किसान. (फोटो एएनआई)
जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन के दौरान पेशाब पीते किसान. (फोटो एएनआई)

पिता किसान थे
पिता और बैल पानी पीते थे
खेत से लौटकर
अन्न उगाकर पिता पानी पीते थे
हर फसल पकने पर
पिता मन भर पानी पीते थे
पिता दिल्ली में मूत्र पी रहे हैं
दिल्ली में प्रधानमन्त्री का घर है.

  • रमाशंकर सिंह, फेसबुक पर

यह 2017 की 22 अप्रैल है. देश के प्रधानमंत्री धरती दिवस यानी अर्थ-डे मनाते हुए ट्वीट कर रहे हैं कि ‘आज का दिन धरती माता को समर्पित करने का दिन है.’ उसी समय कुछ धरती के लाल दिल्ली के जंतर-मंतर पर मानव मूत्र पीकर विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं.

उसी समय केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद मुसलमान वोट बटोरने के लिए बड़े मनोयोग से बयानबाज़ी कर रहे हैं. उसी दिन कांग्रसी नेताओं समेत विपक्ष उन्हें मुसलमान विरोधी साबित करने पर तुला है, उसी समय मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता राहुल गांधी ग़ायब हैं, उसी समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, वामपंथी नेता सीताराम येचुरी, लालू यादव और नीतीश कुमार भाजपा को हराने के लिए मोर्चा बनाने का विचार कर रहे हैं.

उसी समय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्रियों की बैठक प्लान कर रहे हैं, उसी समय केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह यूपी के सीएम की तारीफ़ में क़सीदे पढ़ रहे हैं, उसी समय जंतर-मंतर एक शर्मनाक घटना का गवाह बना. 40 दिन से धरना दे रहे किसानों ने मूत्र पीकर विरोध-प्रदर्शन किया, जिसके बारे में किसी नेता-मंत्री को बात करने की फ़ुर्सत नहीं मिली.

इस घटना से किसी को भी क्षोभ और दुख हो सकता है. इसी तरह की कुछ प्रतिक्रियाएं सोशल मीडिया पर देखने को मिलीं. सुशील ने ट्विटर पर लिखा, ‘कृषि प्रधान देश में किसान मल मूत्र खाने को तैयार धरना दे रहा है और प्रधानसेवक व्यापारियों के डिजिटल इंडिया के कार्यक्रम में व्यस्त हैं.’

पेशे से पत्रकार आशुतोष मिश्रा ने किसानों के मूत्रपान करने की ख़बर शेयर करते हुए पूछा है, ‘हिंदुओं के साथ इतना अन्याय! कहां गए धर्म के रक्षक जो गरीब हिंदू किसानों के लिए आगे नहीं आ रहे?’

जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने किसानों के मूत्र पीने की ख़बर को शेयर करते हुए ट्वीट किया, ‘जिन्हें नाज़ है हिंद पर वे कहां हैं…’

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ट्विटर हैंडल @kamaaaa6 से चलने वाले एक अकाउंट ने लिखा, ‘मुझे अजान से कोई ख़लल नहीं पड़ता, मुझे आरती से कोई ख़लल नहीं पड़ता, मेरे देश के नंगे, मरते किसान और पिटते जवान मुझे सोने नहीं देते.’

हशमत आलम ने ट्विटर पर पूछा, ‘घरों में बुर्क़े में बैठी तीन तलाक़ वाली औरतें दिख रही है, जंतर-मंतर पर पेशाब पीते, नंगे बैठे किसान नहीं दिख रहे. कौन-सा चश्मा पहने हो भाई?’

डॉ. आनंद राय ने ट्वीट किया, ‘लोन हड़पकर माल्या चिल्ड बियर पीता है. क़र्ज़ चुकाकर किसान मूत्र पी रहा है. ये मोदीराज है.’ रजत कश्यप ने ट्विटर पर लिखा है, ‘पहले जय जवान-जय किसान. अब भूखा जवान-नंगा किसान. वाकई देश बदल रहा है.’

फेसबुक पर तमाम लोगों ने किसानों की इस अनदेखी कई लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. जेएनयू के छात्र ताराशंकर ने छात्र संगठनों का आह्वान करते हुए लिखा है, ‘मुझे लगता है कि देशभर के तमाम छात्र संगठनों को अविलंब जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों के साथ खड़े हो जाना चाहिए! राजधानी में सरकार द्वारा इन किसानों की अनदेखी हद पार कर चुकी है!’

कुछ लोगों ने एक तस्वीर शेयर की है, जिसमें कागज़ पर हाथ से लिखा है, ‘मैं किसान का बेटा हूं, मेरे पिता में दिल्ली में मूत्र पी रहे हैं.’

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एक अन्य पोस्ट में ताराशंकर ने लिखा, ‘किसान देशवासियों का पेट भरते हैं. जिस दिन ये सिर्फ़ अपने लिए पैदा करना शुरू कर देंगे उस दिन देश की 70 करोड़ आबादी भूखों मरने लगेगी! एहसान मानिए किसानों का. आपका विकास, पैसा, कुलांचे भरती जीडीपी, डिजिटल इंडिया किसी काम न आएंगे. अन्न है तो हर चीज़ की क़ीमत है. अन्न नहीं तो एक हफ़्ते भी नहीं बचोगे. किसानों का क़र्ज़ माफ़ करके, उनको सब्सिडी देकर एहसान नहीं करती सरकार! अंबानी-अडानी-बिड़ला-टाटा को हर साल खरबों रूपयों टैक्स छूट, इंसेंटिव, बेल आउट पैकेज, क़र्ज़ माफ़ी! लेकिन किसानों का छोटा सा क़र्ज़ माफ़ करने में इतनी अनदेखी कि उनको मरे हुए चूहे खाने से लेकर सड़क पर परोसकर कर खाना खाने, अपना पेशाब पीने, नंगा होकर प्रदर्शन करने, आत्महत्या करने जैसे विरोध के तरीक़े अपनाने पर विवश होना पड़ रहा है! हे सरकार अगर शर्म और कृतज्ञता कुछ बची हो तो समय रहते कर्ज़ माफ़ी दे दो! उनके अहिंसात्मक धैर्य की इससे कड़ी परीक्षा मत लो प्रधानमंत्री!’

पत्रकार और फ़िल्म लेखक उमाशंकर ने पोस्ट किया, ‘लोग कहते हैं नक्सलवाद देश के लिए बहुत बड़ा ख़तरा है. होगा! पर सवाल ये है कि ये ख़तरा बनने कौन देता है? नक्सलवाद किसकी असफलता है? आंदोलन के सारे गांधीवादी-सत्याग्रही तरीक़े चूक जाने के बाद अगर तमिलनाडु के किसान हथियार उठा लें तो उसके लिए कौन ज़िम्मेदार होगा? वे किसान एक महीने से जंतर मंतर पर डटे हैं और न तो सरकार ने, न ही उसके किसी नुमाइंदे ने उनकी बात सुनी. जिस ‘120 करोड़ लोगों का नेता हूं’ का हुंकारा प्रधानमंत्री भरते हैं, क्या उन 120 करोड़ लोगों में ये किसान नहीं आते? और मांगे क्या हैं उनकी? ऐसा कौना सा चांद-तारा मांग रहे हैं वे सरकार से? सूखे से नष्ट हुए फसल के लिए क़र्ज़ माफ़ी और राहत पैकेज. उन किसानों की ज़मीनें सूख गई हैं पर लुटियन जोन के तो आंख का पानी ही सूख गया है वरना उन्हें मूत्र पीने की नौबत तो नहीं आती. मैं दिल्ली में होता तो उन किसानों के बीच जाता और उनसे कहता कि ये सब करने से बेहतर है कि आप सरकार को टैक्स देना बंद कर दें और हथियार उठा लें.’

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उपासना झा ने लिखा है, ‘एक समय तय करके दिल्ली के सारे दोस्त जंतर-मंतर पहुंच जाएं. अब भी कुछ न किया तो कब कभी नहीं आएगा.’ अनुज अग्रवाल ने फेसबुक पर लिखा, ‘तमिलनाडु के किसान पेशाब पी रहे हैं, लोकतंत्र के मंदिर के सामने! अब तो बस जो हो रहा है, सब सही है. वैसे तमिलनाडु में चुनाव कब है?’

पत्रकार दिलीप ख़ान ने लिखा है, ‘मोदी जी, आप चैन से हैं न? किसान नंगे हो रहे हैं, किसान पेशाब पी रहे हैं. किसान रोड पर भात खा रहे हैं. किसान सांप-चूहा चबा रहे हैं. किसान सूखी घास खा रहे हैं. लेकिन चर्चा इस बात की हो रही है कि इन लोगों को ऐसी ट्रेनिंग दे कौन रहा है! चर्चा इस बात की नहीं हो रही कि किसानों की मांग क्या है और किसान क्यों आत्महत्या कर चुके अपने परिजनों की खोपड़ियां टांगे दिल्ली आए! जंतर-मंतर की संसद से दूरी इतनी है कि कोई पैदल चला जाए.’

प्रो. रमेश यादव ने पोस्ट लिखी, ‘एक तरह से लोकतंत्र के पावर हाउस के छाती पर चढ़कर तमिलनाडु के किसान धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं अौर अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए नित नये-नये प्रयोग कर रहे हैं. दूसरे अर्थ में सरकार की छाती पर चढ़कर किसान हक़ मांग रहे हैं अौर सरकार एकदम अचेत अौर निष्क्रिय है. एेसी सरकार ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा दे रही है. इसी से अंदाजा लगाइए कि यह सरकार जनता के सवालों पर कितनी संवेदनशील अौर संजीदा है.’

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पत्रकार अरविंद शेष ने पोस्ट किया, ‘अगर आपको लगता है गो-मूत्र के धंधेबाज़ों के चेहरे पर किसानों के पेशाब पीने के बाद कोई शिकन उभरेगी, तो आप भ्रम में हैं..!’

पत्रकार फ़ज़ल ईमाम मलिक ने लिखा, ‘जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे तमिलनाडु के किसानों ने आज पेशाब पीकर हमारी सरकार पर, व्यवस्था पर सवाल खड़ा किया है. किसी चैनल के लिए यह ख़बर नहीं. किसानों की ख़बर दिखाना देशभक्ति नहीं है. सब मस्त हैं सब हैं गदगद. आइए मिल कर गाएं… जन गण मन… और बोलें…मेरा भारत महान.’

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निरंजन मिश्रा ने सरकार को सुझाव देते हुए लिखा है, ‘प्रधानमंत्री चाहें तो हमें मुर्दा और हमारे तमिलनाडु को मुर्दाघाटी बनने से बचा सकते हैं.’ 22 मार्च को जंतर-मंतर पर किसानों के नेता पी अयाकन्नू ने यही कहा था. किसानों को आंदोलन करते 40 दिन होने को हैं. लेकिन प्रधानमंत्री जी ने अब तक उनकी बात नहीं सुनी. अपनी प्रशंसा के कसीदे गढ़ने वाले हर ट्वीट को रीट्वीट करते हैं मोदी जी, लेकिन पानी और क़र्ज़ माफ़ी के लिए त्राहिमाम कर रहे किसानों ने अपनी उपेक्षा से आजिज़ आकर आज ख़ुद का मूत्र पिया. इसके बाद भी कोई फ़ैसला लेना तो दूर, प्रधानमंत्री जी ने एक ट्वीट तक नहीं किया. किसान अभी शांतिपूर्वक आंदोलन कर रहे हैं लेकिन आगामी दिनों में सरकार के लिए अशांति का कारण बन सकते हैं.

ऋतुरात वसंत ने एक कविता लिखी है, ‘मैं किसान हूं/ सूखी दरारें चेहरा मेरा/ तेज़ आंधी से पसरा हुआ/ ओलों से हूं लहूलुहान मैं/ खलिहान में मैं सड़ता हुआ/ मैं किसान हूं हिन्द का/ अन्नदाता के नाम से ठगा गया/ सियासी चेकों में/ सिफ़रें तलाशता हुआ/ मैं किसान हूं/ मरता हुआ.’

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