शासकों द्वारा दिए गए सम्मान से कोई बड़ा नहीं हो जाता: कृष्णा सोबती

साक्षात्कार: बीते दिनों ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मानित साहित्यकार कृष्णा सोबती का निधन हो गया. उनके चर्चित उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’ के पचास साल पूरे होने पर साल 2016 में उनसे हुई बातचीत.

//
कृष्णा सोबती (जन्म- 18 फरवरी 1925, अवसान- 25 जनवरी 2019)

साक्षात्कार: बीते दिनों ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मानित साहित्यकार कृष्णा सोबती का निधन हो गया. उनके चर्चित उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’ के पचास साल पूरे होने पर साल 2016 में उनसे हुई बातचीत.

कृष्णा सोबती (जन्म- 18 फरवरी 1925, अवसान- 25 जनवरी 2019)
कृष्णा सोबती (जन्म- 18 फरवरी 1925, अवसान- 25 जनवरी 2019) (फोटो साभार: Wikipedia/Payasam (Mukul Dube), CC BY-SA 4.0 Image edit: The Wire)

(यह साक्षात्कार मूल रूप से अप्रैल 2016 में तहलका पत्रिका में प्रकाशित हुआ था.)

हिंदी साहित्य में मित्रो मरजानी का नाम नया नहीं है. 1966 में आए इस उपन्यास ने अपने बोल्ड कथानक के कारण काफी चर्चा बटोरी थी. स्त्री अधिकारों की वर्तमान बहस ने मित्रो की आवाज़ को ही आगे बढ़ाया है. मित्रो के किरदार को गढ़ने वाली कृष्णा सोबती अब 92 साल की हैं और मित्रो की उम्र 50 साल हो चुकी है. विभाजन और देश की कई पीढ़ियां देख चुकी कृष्णा की कलम अब भी सक्रिय है. देश में चल रहे विभिन्न मुद्दों पर वे मुखर होकर बोलती रही हैं. पद्म सम्मान लेने से इनकार और हाल ही में साहित्य अकादेमी फेलोशिप लौटा चुकीं कृष्णा देश के वर्तमान हालात से परेशान हैं पर उन्हें युवा नेतृत्व पर भरोसा है. विभिन्न मुद्दों पर उनसे मीनाक्षी तिवारी की बातचीत.

‘मित्रो मरजानी’ के 50 साल पूरे हुए हैं, आज मित्रो को कहां पाती हैं?

अब मित्रो सिर्फ एक किताब नहीं रही, समय के साथ-साथ वह एक व्यक्तित्व में बदल गई है. वह अब एक संयुक्त परिवार की स्त्री नहीं है जो हर बात में पीछे रखी जाती है. उसे अपनी सेक्सुअल डिजायर व्यक्त करने का भी अधिकार है और ये अधिकार उसने अर्जित किया है. और यह एक विस्मयकारी बात भी है कि एक इतना चुलबुलाहट पैदा करने वाला नाम अब इतनी गंभीरता से लिया जा रहा है.

पिछली सदी की जो दस बड़ी किताबें हैं उनमें मित्रो मरजानी आती है और ये मैं जानती हूं कि ये लेखक का काम नहीं है. ये उसका अपना व्यक्तित्व था, जिसे उसने खुद तैयार किया.

मित्रो को आए आधी सदी बीत चुकी है. इस काल खंड में स्त्री स्वतंत्रता और समानता के अधिकार पर ढेरों बहसें हुईं. इन बहस-मुबाहिसों के बीच क्या मित्रो अब भी कहीं खड़ी है?

देखिए, मित्रो इसी दुनिया का हिस्सा है और अब दुनिया बदल रही है. अब हमारे एक छोटे-से गांव की लड़की को भी जागृति है कि मैं वह नहीं जो मैं हुआ करती थी. और वह इस बात को खुद में ही नहीं टटोलती बल्कि दुनिया में भी देखती है. तब उसे वो शब्द याद आते हैं जो उसने तब कहे थे जब वो शिक्षित भी नहीं थी.

अगर ऐसा न होता कि उसकी उलझनों के पीछे वह गंभीरता न होती जिसका संबंध सिर्फ आजादी से नहीं था, शिक्षा से भी नहीं था पर उसका संबंध सेक्स से भी है, जिसे ये मान लिया गया है कि उस पर महिलाओं का कोई अधिकार नहीं है. उस पर सिर्फ पुरुषों का अधिकार है.

ये भी अजीब बात है कि इस वक्त पूरी दुनिया में इस बात का एहसास तीखा होकर उभर रहा है कि स्त्री, जिसे इस पूरे लोक को कायम रखने की ताकत दी गई, उसे हम नीचे कुचल रहे हैं. इसके पीछे कई कारण भी हैं. हमारे यहां संयुक्त परिवार ने कई बातों का अपने रूप में अनुवाद करके स्त्री पर थोपा हुआ है. पर अब शिक्षा के साथ, आर्थिक स्वतंत्रता के साथ ये बदलेंगी.

50 साल पहले की मित्रो अपनी सेक्सुअल डिजायर को लेकर जिस आजादी की बात करती है वह वर्तमान में भी नहीं दिखती. शिक्षा, समानता और आर्थिक अधिकारों की बात होती है पर स्त्री अपनी यौन इच्छाओं को जाहिर नहीं कर सकती. इसे ‘नैतिकता’ के परदे में डाल दिया गया है.

ये दुनिया बहुत बड़ी है. इसमें कई तरह के आवरण हैं. आज जो लड़कियां शिक्षित हैं, पढ़ रही हैं उन्हें इस बात का एहसास है. हमारे समाज में इन बातों को लेकर नैतिकता का जो कोड है वो बहुत सख्त रहा है. पर अब ये बदलेगा क्योंकि अब वह सिर्फ घर में नहीं है, परिवार में नहीं बाहर भी है. वह अपनी जीविका कमा रही है. मेरा तो यह कहना है कि जब तक कोई व्यक्ति अपनी जीविका नहीं कमाता वह पूरा नागरिक ही नहीं है. वो भी इस समाज में, जहां संयुक्त परिवार हैं. संयुक्त परिवार में जितनी भी खूबियां हों, यह आपको और स्त्रियों को कितनी भी सुरक्षा देता हो, पर उनके आत्मबल, आत्मविश्वास को कम कर देता है.

तो ये कह सकते हैं कि कहीं न कहीं संयुक्त परिवार स्त्रियों को पीछे खींचता रहा है?

जी, बिल्कुल खींचता रहा है और अब जो परिवर्तन हो रहा है वो सिर्फ इसलिए कि बेटियां बाहर निकल रही हैं, बेटे देश से बाहर जा रहे हैं. परिवार का जो पहला स्वरूप था वो छिन्न-भिन्न हो रहा है. ये तो समाजशास्त्री भी मानेंगे.

पर समाजशास्त्रियों का ये भी कहना है कि एक समाज के बतौर इन संयुक्त परिवारों का टूटना नकारात्मक है. पर अगर स्त्रियों की बात करें तो संयुक्त परिवार से निकल कर ही वे कुछ कर पाती हैं.

बिल्कुल. मैं खुद संयुक्त परिवार से हूं पर मेरी अपनी आजादी का एक हिस्सा है जो सभी संयुक्त परिवारों में नहीं मिलता. वहां आपको सुरक्षा मिलती है यानी अगर आप नहीं भी कमा रहे हैं तब भी आराम से रह सकते हैं. लोग इन्हीं बातों पर समझौते करते हैं. इसके अलावा एक व्यक्ति के रूप में अकेले रहकर अर्जित की हुई खूबियां नहीं आ सकतीं. संयुक्त परिवार में अपना अलग अस्तित्व बना पाना बहुत मुश्किल है.

आज जब स्त्री मुद्दों पर बात होती है तब उसे स्त्री विमर्श का नाम दिया जाता है. इस स्त्री विमर्श पर क्या कहेंगी?

ये जो शब्द है ये भी एक खास किस्म की इंटेलेक्चुअल धोखाधड़ी है. इस तरह की बातों से आप एक तरह से उन्हें गलत रास्ते पर जाने के लिए लगातार प्रोत्साहित कर रहे हैं कि तुम्हारी सुरक्षा का प्रश्न है तो इतना तो चलेगा. और इसके साथ हमारी नैतिकता भी चलेगी. आप किसे कह रहे हैं नैतिकता!

आज की तारीख में चीजें बदल गई हैं. अब पुरानी चीजें नहीं चलेंगी. अब ये एक स्वतंत्र लोकतंत्र है. लोकतंत्र होने की कुछ शर्तें होती हैं, उसकी एक जलवायु होती है. अगर आप अपने समाज के एक हिस्से को लगातार दबाए रहेंगे तो ये मानकर चलिए कि आपकी अगली पीढ़ियां वैसी नहीं होंगी जैसा उन्हें होना चाहिए.

सालों पहले मित्रो जिस तरह अपनी शारीरिक इच्छाओं को लेकर आजादी की बात करती है, अब तक कहीं चर्चा का हिस्सा नहीं है.

हमें ये कहने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए कि हम कुछ चीजों पर अटक जाते हैं. उनसे जुड़े रहना चाहते हैं. हम दिखाना चाहते हैं कि हम बदल रहे हैं पर हम इतना ही बदल रहे हैं जितनी हमारी सहूलियत है.

साहित्य में महिलाएं कहां हैं? कुछ अपवादों को छोड़ दें तो स्त्री प्रेम और त्याग में ही अटकी हुई है.

साहित्य की बात कुछ बदलकर करनी होगी. हमारे यहां समाज के बदलने की रफ्तार जरा धीमी है. पर चीजें बदलती हैं. तो ये बातें अपने आप आती हैं. आप किसी पर थोप नहीं सकते कि तुम्हें क्या करना चाहिए. पहले तो स्त्रियां लिखती भी नहीं थीं, न साहित्य का हिस्सा ही होती थीं, अब वे बहुत संघर्ष के बाद वहां पहुंची हैं. तो अभी इस नई मिली आजादी को महसूस कर रही हैं. वे बदलाव की तरफ अग्रसर तो हैं.

पर जिस तरह समाज बदला है उस बदलाव को साहित्य में उतनी जगह नहीं मिली है.

ये वो देश है जहां नागार्जुन ने कहीं लिखा है कि घर में भी मेरी और मेरी पत्नी की बात नहीं होती थी तो हमने सोचा कहीं भाग चलते हैं. तो जिस तरह का दबाव समाज में है वो साहित्य में भी है. वैसे कुछ लेखिकाओं के लेखन में आपको नयापन मिलेगा.

2010 में आपने पद्म सम्मान लेने से मना किया. तब आपने कहा था कि लेखक को शासक वर्ग से दूर होना चाहिए. वजह?

मैं अब भी ऐसा ही सोचती हूं. अगर शासक और राजनीतिक दलों द्वारा अपने फायदे के लिए ऐसे सम्मान मिलते हैं तो उससे आप बड़े नहीं हो जाते. इसके बिना आपके पास ये अधिकार रहता है कि अगर आपको कोई बात गलत लग रही है तो आप उस पर बोल सकते हैं.

तो क्या ये समझें कि ये पुरस्कार इसलिए दिए जाते हैं ताकि आप शासन का पक्ष लें?

प्रबुद्ध वर्ग का विरोध का अपना तरीका होता है. जैसे कुछ समय पहले पुरस्कार वापस किए गए. मेरे हिसाब से ये विरोध जताने का सबसे विनम्र तरीका था पर जब आप इसे भी गालियां दे रहे हैं तो ये गलत है. ये समझना चाहिए कि ये एक ऐसा मुल्क है जहां कोई साधारण लेखक हो या बड़ा, उसके पास ये अधिकार तो है कि वो जो सही समझता है उसे कह सके.

इस बार पुरस्कार वापसी पर भी लेखकों का विरोध हुआ. कहा गया कि ये मोदी विरोधी लेखक हैं जो ऐसा कर रहे हैं.

इस तरह की भाषा और अभिव्यक्ति का ये रूप सही नहीं है. एक लोकतंत्र को ऐसे तरीकों की जरूरत नहीं है. कितने संघर्ष के बाद हमें आजादी मिली, संविधान मिला है, हमें इसे कीमती समझते हुए इसकी सुरक्षा करनी चाहिए. पर इन सबके बीच मैं इन बातों के लिए खुश हूं कि इतनी गलत बातों के बीच भी हमारे राष्ट्रपति ऐसी बातें कह देते हैं जिन पर नागरिकों और राजनीतिक दलों को भी गौर करना बहुत जरूरी है.

वर्तमान सरकार पर आरोप लग रहे हैं कि वह असहमति के अधिकार को छीन रही है.

हां पर ये बिल्कुल गलत है. ये अच्छी बात नहीं है. हम इस देश के नागरिक हैं, हमारे भी कुछ अधिकार हैं. आप उन्हें नहीं छीन सकते.

बुद्धिजीवियों का एक तबका बार-बार कह रहा है कि ये फासीवाद के लक्षण हैं. क्या ये हिंदू पाकिस्तान बनाने की राह पर हैं?

हमारे पास पॉलिटिकल आइडेंटिटी बनने का एक पूरा इतिहास है. हमने पाकिस्तान बनते देखा है. मैं कह सकती हूं कि जिस रास्ते पर ये चल रहे हैं, और टुकड़े हो जाएंगे. जब आप लोगों में इतनी नफरत पैदा करेंगे तो इसका नतीजा क्या होगा! आप जो कर रहे हैं वो गलत है, आप इसमें कामयाब नहीं होंगे. और अगर हो भी गए तो इससे आपका ही नुकसान होगा.

विश्वविद्यालयों में भी प्रतिरोध के स्वर लगातार उठ रहे हैं. देश के कई नामी विश्वविद्यालय चाहे हैदराबाद हो, जेएनयू या इलाहाबाद विश्वविद्यालय विवादों में हैं. राजनीति के इस तरह से विश्वविद्यालयों में पहुंच जाने पर क्या कहेंगी?

आप हर चीज को अपनी विचारधारा के अनुरूप नहीं बना सकते जबकि असल में वो कोई विचारधारा भी नहीं है. आपकी विचारधारा कुछ नहीं है. देश के लोग प्रबुद्ध हैं. वे सब समझते हैं. एक किसान चाहे पढ़ा-लिखा न हो पर वो भी अपना अच्छा-बुरा सब समझता है. हमारी पीढ़ी के लिए ये देखना बेहद तनाव भरा है.

आप उर्दू लेखकों से लिखवाते हैं कि आप सरकार के खिलाफ नहीं लिखेंगे! आप बिना क्रिटिकल हुए तो खुद को बेहतर नहीं बना सकते तो क्या सरकार बिना आलोचना के खुद को बेहतर बना सकती है!

नई पीढ़ी क्या करना चाहती है, वो हमसे कितनी आगे है ये पता होना चाहिए, तभी आप आगे बढ़ पाएंगे. पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कन्हैया कुमार और उनके साथियों से मिलना हुआ. वे लोग कितने स्पष्ट हैं कि उन्हें क्या चाहिए, उन्हें क्या करना है. मुझे उन्हें देखकर बहुत अच्छा लगा. और ऐसा इसलिए है कि वे बहुत कुछ पढ़ने-लिखने वाले लोग हैं, वे हिंदी पढ़ते हैं.

वे लोग हमारी तरह नहीं हैं जो ब्रिटिश समय में पढ़े हैं. सरकार को सोचना चाहिए कि वो इस पीढ़ी के साथ क्या कर रही है! नयी पीढ़ी के पास ऊर्जा है, ख्याल हैं, ज्यादा सुविधाएं नहीं हैं फिर भी वे आगे बढ़ रहे हैं. आपका मुल्क उनसे आगे बढ़ेगा.

समाज में धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव बढ़ रहा है. किसी भी तरह का विवाद हो उसे हिंदू-मुस्लिम रंग दे दिया जाता है.

इसके पीछे बस एक रणनीति है हिंदू राष्ट्र, जिसमें ये कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे. और ऐसा कभी देखा नहीं होगा कि हिंदुओं की मेजॉरिटी के बावजूद आप मुस्लिमों से डर रहे हैं! क्यों? और आप देश, समाज में उनका योगदान भूल रहे हैं. हर क्षेत्र में चाहे कला हो, संगीत या साहित्य. पर अब जो बच्चे बड़े हो रहे हैं वो बिल्कुल अलग हैं.

कुछ समय पहले एक टीचर कुछ बच्चों को मुझसे मिलवाने लाई थीं. उनमें से कुछ थोड़े कमजोर तबके के भी थे. एक बच्चे ने बताया कि उसके पिता कबाड़ का काम करते हैं. ये बात कई बच्चों को हतोत्साहित कर सकती है पर उस बच्चे में वो आत्मविश्वास था. कोई भेदभाव नहीं, कोई गिला नहीं. ये आजाद मुल्क है. तो जब ये बच्चे बड़े होंगे तो मैं नहीं समझती ये किसी भेदभाव में विश्वास करेंगे.

हिंदू राष्ट्र बनने के सपने का कोई भविष्य है?

नहीं. यह कभी सफल ही नहीं हो सकता. विश्व में कितने मुस्लिम राष्ट्र हैं तो क्या इस समय उनकी भाग-दौड़, वहां हो रही हलचल हम नहीं देख पा रहे हैं! आप क्या सोचते हैं कि आप क्या नया करेंगे किसी एक धर्म विशेष के आधार पर राष्ट्र बनाकर!

लेखक, बुद्धिजीवी और विद्यार्थी अपनी राय जाहिर करने पर विरोध का सामना कर रहे हैं. क्या असहमति को दबाना इस तरह लोकतंत्र के खिलाफ है?

बिल्कुल है. इतनी सदियों बाद देश में लोकतंत्र आया है और जिस तरह से ये शासन कर रहे हैं, ये सबूत है कि इतनी बुरी तरह से तो बाहर के लोगों ने भी हम पर शासन नहीं किया. विरोध करना कोई बुरी बात नहीं है, इससे आप विकास करते हैं.

आपने विभाजन से पहले का संघर्ष भी देखा है. उस वक्त भी शासक वर्ग के प्रति असंतोष था. क्या आज के हालात वैसे ही हैं?

आज माहौल उससे बहुत ज्यादा खस्ता है. उस समय बात राजनीतिक पहचान की थी जो अब नहीं है. उनकी बस एक रणनीति है हिंदू राष्ट्र, जिसमें ये कभी कामयाब नहीं हो पाएंगे. और ऐसा कभी देखा नहीं होगा कि हिंदुओं की मेजॉरिटी के बावजूद आप मुस्लिमों से डर रहे हैं! क्यों?

यदि मित्रो 2016 में लिखी जा रही होती तो…

इस पर मुझे एक बात याद आती है. मित्रो मरजानी में एक जगह मित्रो की सास वंश बढ़ाने के बारे में कहती है, तो मित्रो जवाब देती है कि ये तुरत-फुरत का खेल नहीं है कि एक ही मिनट में जिंद बोलने लगे. जब इसका मंचन हो रहा था तो ख्याल ये था कि लोग हंसेंगे पर हम सब चकित रह गए जब कोई हंसा नहीं. तो इस तरह की कंडीशनिंग है. लोग खुद भी जानते हैं कि कैसे उन्होंने स्त्री को दबाकर रखा है.

मित्रो मरजानी में एक जगह मित्रो कहती है ‘जिंद जान का यह कैसा व्यापार? अपने लड़के बीज डालें तो पुण्य, दूजे डालें तो कुकर्म!’ जिस तरह की सेक्सुअल लिबर्टी की बात मित्रो कर रही है, हिंदुस्तान के मुख्यधारा के साहित्य में ऐसा कभी नहीं देखा गया था. एक पितृसत्तात्मक समाज में लिख पाने की प्रेरणा कैसे मिली?

देखिए, साफ कहूं तो लेखक बहुत कुछ नहीं कर सकता, ये उनकी गलतफहमी होती है. हड्डी पात्र की मजबूत होती है और उसी की जरूरत होती है. मैं उस वक्त राजस्थान में थी.

वहां कुछ मजदूर काम कर रहे थे. वहां एक ठेकेदार और औरत थे. औरत ने लहंगा पहना हुआ था और छोटा-सा घूंघट भी निकाल रखा था. ठेकेदार ने उसे अपने पास बुलाने के लिए एकदम तपी हुई आवाज में पुकारा, ‘आजा री’ और वो औरत जोर से हंसी और बोली, ‘इस लहंगे की मांद में आ गए तो गए काम से!’ मैंने बस ये सुना.

मैंने यही सोचा कि ये इन शब्दों से ज्यादा कुछ है. राजस्थानी मुझे ज्यादा नहीं आती पर उसमें बहुत ज्यादा टीस है. और फिर पात्रों को रचने का तरीका होता है. अगर आपने एक कोरे कागज पर कोई एक लाइन खिंची देखी है तो लिखते समय आप तीन जगह अपनी ताकत बांटते हैं…पहली उस लाइन की जो आपने देखी है, दूसरी लेखक की अपनी ताकत और फिर पात्र की.

अगर पात्र में जान न हो तो आप क्या करेंगे? और अगर आप पात्र को पहचानते नहीं हैं फिर क्या! और एक बात, लेखक को न तो पात्र को अपने से नजदीक रखना है न बहुत दूर रखना है. तब आप किरदारों को नियंत्रित कर सकते है. मैं ये कह सकती हूं कि भाषा के तारतम्य से ही ये किरदार निकला.

आपके स्त्री किरदार बहुत स्वतंत्र हैं, जो जिस दौर में वे लिखे गए, उस समय की सच्चाई से बिल्कुल उलट हैं. ये कैसे हुआ?

मेरी परवरिश संयुक्त परिवार में हुई है पर हमें बहुत आजादी मिली साथ ही अनुशासन भी था. तो शायद इसी का प्रतिबिंब इन किरदारों पर है.

आपकी अधिकतर किताबों के अंग्रेजी अनुवाद हुए हैं, हिंदी के कम ही लेखकों के काम को ऐसी सराहना मिली.

(हंसते हुए) मैं तो बोर हो जाती हूं. एक बार किताब प्रकाशित हो जाती है फिर मैं उसके बारे में ज्यादा नहीं सोचती.

https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/pkv-games/ https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/bandarqq/ https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/dominoqq/ https://ojs.iai-darussalam.ac.id/platinum/slot-depo-5k/ https://ojs.iai-darussalam.ac.id/platinum/slot-depo-10k/ bonus new member slot garansi kekalahan https://ikpmkalsel.org/js/pkv-games/ http://ekip.mubakab.go.id/esakip/assets/ http://ekip.mubakab.go.id/esakip/assets/scatter-hitam/ https://speechify.com/wp-content/plugins/fix/scatter-hitam.html https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/ https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/dominoqq.html https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/ https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/dominoqq.html https://naefinancialhealth.org/wp-content/plugins/fix/ https://naefinancialhealth.org/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://onestopservice.rtaf.mi.th/web/rtaf/ https://www.rsudprambanan.com/rembulan/pkv-games/ depo 20 bonus 20 depo 10 bonus 10 poker qq pkv games bandarqq pkv games pkv games pkv games pkv games dominoqq bandarqq pkv games dominoqq bandarqq pkv games dominoqq bandarqq pkv games bandarqq dominoqq http://archive.modencode.org/ http://download.nestederror.com/index.html http://redirect.benefitter.com/ slot depo 5k