यूपी: महराजगंज में बंद पड़ी चीनी मिल से प्रभावित 48,000 किसानों की सुध लेने वाला कोई नहीं

भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में वादा किया था कि फसल बेचने के 14 दिन के भीतर गन्ना किसानों का भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा और सरकार बनने के 120 दिनों के भीतर गन्ना किसानों का बकाया भुगतान कर दिया जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश में पार्टी की सरकार बनने के बाद भी ये वादे काग़ज़ों से बाहर नहीं निकल सके हैं.

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(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

भाजपा ने अपने संकल्प पत्र में वादा किया था कि फसल बेचने के 14 दिन के भीतर गन्ना किसानों का भुगतान सुनिश्चित किया जाएगा और सरकार बनने के 120 दिनों के भीतर गन्ना किसानों का बकाया भुगतान कर दिया जाएगा, लेकिन उत्तर प्रदेश में पार्टी की सरकार बनने के बाद भी ये वादे काग़ज़ों से बाहर नहीं निकल सके हैं.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

‘18 अप्रैल के बिटिया के गवना के दिन धइले बाटीं, हर साल एक से डेढ़ एकड़ बोअत रहलीं, अबकी तीन एकड़ गन्ना बो देहलीं. सोचलीं कि बिटिया के गवनवा के खर्चा फसलिया बेच के निपटाई देब. फसल बढ़िया भईल तब सोचलीं भगवानों दुखिया के दर्द समझत बाटें, केहू से कर्जा नाहीं लेवेके पड़ी. जनवरी बीत गईल, गन्ना अबहीं खेतवे में खड़ा बा. 2014-15 के अबहीं 22 हजार रुपिया मिलवा से नाहीं मिलल. घर में बिटिया और खेतवा में फसलिया देख के रतिया के नींद नाहीं आवत बा….’

58 वर्षीय रामबृक्ष यादव अपनी बात पूरी करते उसके पहले ही अलाव की रोशनी में उनकी आंखों में भरे आंसू चमकने लगते हैं. मेरी नज़र को भांप वह अपना चेहरा घुटनों के बीच कर जल्दी से उन्होंने आंखें पोछ लीं.

इस बीच शिवपूजन चौधरी तपाक से बोल पड़े, ‘2014-15 में 20,000 और 2017-18 में 25,000 रुपइया के दू पर्ची के हमके पइसा आज ले नाहीं मिलल. हम ट्रैक्टर चलाइला, ई सीजन में महीनन से काम नाहीं मिलल, घरे बैइठल बाटीं. मार्च में बिटिया के शादी पड़ल बा, 1.75 एकड़ खेत में गन्ना के फसल अब सूखे लागल, खेत बंधक रखले के अलावा कउनो चारा नाहीं लउकत बा.’

शिवपूजन की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि कई लोग एक साथ बोल पड़े, ‘के तोहर खेत बंधक रक्खी, जब सबकर इहे हाल बा….?’

इस सवाल ने शिवपूजन को निरुत्तर कर दिया.

तभी एक बुजुर्ग बोल पड़े, ‘बाबू पइसवा भले न मिले लेकिन खेतवा से गन्नवा के फसलिया हट जात, तब हमने, दूसरे फसल के तैयारी करतीं.’

सभी इससे सहमत दिखे और बोल पड़े, ‘हां, पइसा 4-5 साल बाद मिली त का, खेतवा खाली हो जा.’

गोरखपुर से पत्रकारों के आने सूचना जैसे लोगों को मिलती, लोग अपना नाम और फसल का विवरण दर्ज करवाने चले आते, इस उम्मीद में कि ज़िम्मेदारों तक उनकी व्यथा पहुंचे. अगले दिन सुबह हमारे गांव छोड़ने तक सिलसिला जारी रहा.

पूर्व उत्तर प्रदेश का ज़िला महराजगंज, निचलौल तहसील के किशुनपुर सहित सैकड़ों गांवों के किसानों ने गन्ने की फसल से संभावित आय की उम्मीद में कई योजनाएं तैयार कर ली थीं. किसी ने बिटिया की शादी तय कर दी तो किसी ने किराये पर खेत और क़र्ज़ लेकर गन्ना बो दिया.

अब जबकि महराजगंज ज़िले के गड़ौरा स्थित जेएचवी शुगर लिमिटेड या गड़ौरा चीनी मिल के चलने की उम्मीद ख़त्म हो रही है, उनके आंखों की नींद गायब हो गई है.

किसानों के मुताबिक केवल किशुनपुर में ही 750 एकड़ रकबे में से 500 एकड़ गन्ने की फसल है. गड़ौरा, शुक्रहर, मैरी, शितलापुर, धमौरा, मठरा, इंडहिया, रंगहिया, लक्ष्मीपुर, कड़जा, छितौना, शरकलिया, परागपुर, हरगांवा, करमहियां सहित 99 गांवों के गन्ने की फसल सीधे मिल पहुंचती है. 33 जगहों पर हर साल मिल की ओर से सेंटर लगाया जाता है, प्रत्येक सेंटर 10 गांव के बीच लगाया जाता है.

आंकड़ों के अनुसार, जेएचवी मिल से 48,000 कास्तकार मिल से जुड़े हैं, ज़्यादातर सीमांत व लघु किसान हैं. किसानों का मिल पर 2014-15 का 22.92 करोड़ और 2017-18 23 करोड़ सहित कुल 45.92 करोड़ रुपये बकाया है.

फिर भी किसानों की प्राथमिकता में खेत में खड़े गन्ने को मिल तक पहुंचाना है, बकाया पैसों में लिए व सालों इंतज़ार करने को तैयार हैं. फसल कटने में हुई देरी के कारण गन्ने की गुणवत्ता में 30 प्रतिशत गिरावट आ चुकी है.

दलालों का सक्रिय गिरोह 150 रुपये कुंतल तक गन्ना ख़रीद कर मुनाफ़ा कूट रहा है, जबकि गन्ने का न्यूनतम समर्थन मूल्य 310 से 325 रुपये प्रति कुंतल है.

महराजगंज जिले में किसानों के महीनों से आंदोलित होने की सूचना पर मैं किशुनपुर गांव पहुंचा तो करीब दो दर्जन लोगों ने घेर लिया. मैंने जानना चाहा कि महीनों से चल रहा किसानों का आंदोलन क्यों ख़त्म हो गया, क्या सरकार व मिल प्रबंधन ने मांगें मान ली थीं?

पूर्वी उत्तर प्रदेश के महराजगंज ज़िले के गड़ौरा स्थित जेएचवी चीनी मिल. (फोटो: सत्येंद्र सार्थक/द वायर)
पूर्वी उत्तर प्रदेश के महराजगंज ज़िले के गड़ौरा स्थित जेएचवी चीनी मिल. (फोटो: सत्येंद्र सार्थक/द वायर)

भीड़ में शामिल युवा किसान बैजु मद्देशिया ने बताया, ‘रविवार 20 जनवरी को निचलौल तहसील पर भाजपा सांसद पंकज चौधरी, सिसवा बाज़ार के विधायक प्रेमसागर पटेल, गन्ना कमिश्नर, डीएम, एसडीएम, एसएसपी सहित सभी अधिकारियों ने मीटिंग की थी. शाम से शुरू हुई मीटिंग रात 10 बजे तक भी नहीं ख़त्म हुई तो बढ़ती ठंड के बचने के लिए हम घर लौट आए.’

मीटिंग के अगले दिन किसानों को पता चला कि इस साल 22 जनवरी को मिल में आग पड़ जाएगी और मिल चालू हो जाएगा, ऐसा हुआ नहीं.

नवंबर-दिसंबर 2017 में गन्ने की फसल लगाने के लिए गड़ौरा चीनी मिल ने किसानों को बीज दिया. एक एकड़ खेती पर एक बोरा यूरिया, एक ट्राली फास्फेट दिया था. बीज का पैसा फसल के भुगतान के समय मिल प्रबंधन काट लेता बाकि सबकुछ फ्री था.

अक्टूबर 2018 से मिल में रिपेयरिंग का काम भी शुरू कर दिया गया था. सारी तैयारियां पूरी हो गई तो दो दिसंबर, 2018 को ज़िला गन्ना अधिकारी की मौजूदगी में मशीनों का पेराई से पहले पारंपरिक पूजन किया गया.

बीते साल 7 दिसंबर से मिल में नियमित पेराई शुरू होनी थी, नहीं होने पर प्रदर्शन की योजना बनाई और 17 दिसंबर को पहला प्रदर्शन किया. हज़ारों किसान व मिल मज़दूरों ने मिल गेट पर इकट्ठा होकर सरकार व मिल प्रबंधन के ख़िलाफ़ नारे लगाए.

मिल के जनरल मैनेजर रणबीर सिंह ने प्रशासन से वार्ता के आधार पर 28 दिसंबर से मिल चलाने और 60 प्रतिशत वर्तमान व 40 प्रतिशत पिछले भुगतान का आश्वासन दिया.

कोई सुगबुगाहट नहीं देख 29 दिसंबर को किसानों ने गड़ौरा चीनी मिल से निचलौल तहसील तक पैदल मार्च किया. करीब पांच हज़ार किसानों ने मार्च के दौरान स्थानीय विधायक, सांसद, मिल प्रबंधन, मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ भी किसानों ने नारे लगाए.

एडीएम ने एक सप्ताह का समय मांगा. भूतपूर्व सैनिक और किसान मनोज कुमार राना ने मांगें पूरी नहीं होने पर भूख हड़ताल की चेतावनी दी. समयावधि बीतने के बाद 8 जनवरी से राना दो समर्थकों सहित भूख हड़ताल पर बैठ गए.

नौवें दिन बीते साल 17 दिसंबर को एडीएम ने जूस पिलाकर उनका भूख हड़ताल समाप्त करवाया और आश्वासन दिया कि 22 जनवरी को ट्रायल कर 26 जनवरी से पेराई शुरू करवा दी जाएगी, यह वादा भी खोखला साबित हुआ.

17 दिसंबर को किसानों के पहले संगठित प्रदर्शन के बाद अलग-अलग गांवों में दर्जन बार स्वतंत्र रूप से किसानों के समूहों ने प्रदर्शन कर गन्ना और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पुतले का भी दहन किया.

लाखों लोगों के प्रभावित होने के बाद भी किसानों के पास किसी पार्टी, संगठन का नेतृत्व नहीं था. प्रदर्शन और मीटिंगों में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी व भाजपा सभी के नेता आते और राजनीतिक बयानबाज़ी कर चले जाते. नतीजा, एक महीने से अधिक तक चले आंदोलन में किसानों के हाथ अब भी खाली हैं.

27 वर्षीय रामविजय यादव हैदराबाद में बढ़ई का काम करते हैं, यह सोचकर घर आए थे कि गन्ना मिल में पहुंचाने के बाद वापस लौट जाएंगे.

वे कहते हैं, ‘किशुनपुर ही आसपास के सैकड़ों गांवों के युवा बाहर रहकर रोज़गार करते हैं और खेती के समय घर आ जाते हैं, मेरी तरह उन सभी को दोहरा नुकसान हो रहा है. फसल खेत में खड़ी है और वहां मज़दूरी का नुकसान हो रहा है.’

स्थानीय मीडिया के प्रति भी किसानों में नाराज़गी दिखी, हज़ारों किसानों, मज़दूरों के प्रदर्शनों को भी पर्याप्त जगह नहीं दी गई. जो ख़बरें अख़बारों में जगह पा सकीं उनमें भी मिल प्रबंधन और सरकार का पक्ष प्रमुखता से छपता था.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

यूं तो किसी भी पार्टी ने किसानों के हित की लड़ाई नहीं लड़ी, किसानों की सर्वाधिक नाराज़गी भाजपा से है. कारण सिर्फ यह नहीं कि स्थानीय विधायक, सांसद सहित राज्य और केंद्र में भी भाजपा की सरकार है.

किसानों के मुताबिक सदर तहसील के चौक छावनी में गोरक्षनाथ मठ के स्वामीत्व का 200 एकड़ व नेपाल के गोपालपुर में 50 एकड़ गन्ने की फसल थी जिसे सिसवा चीनी मिल में पहुंचाया जा चुका है.

2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने लोक कल्याण संकल्प पत्र में वादा किया था, ‘गन्ना किसानों को फसल बेचने के 14 दिनों के भीतर पूरा भुगतान सुनिश्चित करने की व्यवस्था सरकार द्वारा लागू की जाएगी’ और ‘सरकार बनने के 120 दिनों के भीतर बैंकों और चीनी मिलों के समन्वय से गन्ना किसानों की बकाया राशि का पूर्ण भुगतान कराया जाएगा’.

सरकार बनें दो साल पूरे होने को हैं. सरकार के वादे अभी भी कागजों से बाहर नहीं निकल सके हैं.

मिल मज़दूर भी बर्बादी के कगार पर

गड़ौरा चीनी मिल 1998-99 से नियमित प्रत्येक सत्र में पेराई करती है. मिल के लिए 200 किसानों की ज़मीनों का अधिग्रहण किया गया था. 40,000 रुपये प्रति एकड़ की दर से किसानों को भुगतान करने के अलावा उन्हें मिल में स्थायी नौकरी का आश्वासन दिया गया था.

जिन किसानों से ज़मीन अधिग्रहीत की गई थी उनमें से केवल एक चौथाई को नौकरी दी गई. मिल बंद होने से अब उन पर भी संकट के बादल छाने लगे हैं. मिल में 45 स्थायी और 565 अस्थायी मज़दूर काम करते हैं. प्रदर्शन की शुरुआत मज़दूरों ने की थी बाद में किसान भी शामिल हो गए.

पूर्वांचल चीनी मिल मज़दूर यूनियन गोरखपुर, शाखा गड़ौरा चीनी मिल के अध्यक्ष नवल किशोर मिश्रा बताते हैं, ‘मिल मज़दूरों को भुगतान नहीं मिलने की कारण मज़दूरों का 17.80 करोड़ रुपये प्रबंधन पर बकाया है.’

वे बताते हैं, ‘मिल प्रबंधन ने हमेशा श्रम क़ानूनों का उल्लंघन किया है. मज़दूरों को पीने के पानी, शौचालय, सुरक्षा उपकरण व आवश्यक भत्ते नहीं दिए जाते थे. ओवर टाइम का भी सिंगल रेट से भुगतान किया जाता था. इतना ही नहीं प्रबंधनक की मनमानी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वाले 11 मज़दूरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है.’

किसानों का कोई संगठन नहीं होने के कारण आंदोलन का नेतृत्व पूर्वांचल चीनी मिल मज़दूर यूनियन ने ही किया था.

किसानों की स्थिति पर नवल किशोर कहते हैं, ‘गड़ौरा चीनी मिल को प्रशासन ने 59.25 लाख कुंतल गन्ना आवंटित किया था. जिसे रद्द कर आसपास की छह चीनी मिलों को आवंटित कर दिया गया है. जिन मिलों को आवंटित किया गया है, उन पर पहले से ही क्षमता से दो गुना अधिक भार है. दूसरे एरिया का गन्ना वह पेर नहीं पाएंगी, किसानों के पास खेत में गन्ना फूंकने के अलावा कोई और चारा नहीं.’

मिल का अधिग्रहण करेगी योगी सरकार

उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार गड़ौरा चीनी मिल को अधिग्रहीत करने की तैयारी कर रही है. मिल को नीलाम करने की कागजी प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जा रहा है जल्द ही तारीख़ की घोषणा कर नीलामी की कार्रवाई की जाएगी.

किसान जब मिल चलाने की मांग को लेकर सड़क पर प्रदर्शन कर रहे थे. उसी समय 21 दिसंबर 2018 को गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा, महराजगंज से सांसद पंकज चौधरी, सिसवा बाज़ार, फरेंदा, पनियरा के विधायक और गन्ना समितियों के सचिव व जिला गन्ना अधिकारियों के साथ मीटिंग ले रहे थे.

इसमें तय किया गया कि एक महीने के अंदर इस चीनी मिल में रिसीवर नियुक्त कर दिया जाएगा. ज़रूरत पड़ने पर ज़ब्ती व अधिग्रहण करने पर भी सहमति बन गई थी. इसी बैठक में मिल को आवंटित 59.25 लाख कुंतल गन्ना को निरस्त कर उसे 6 मिलों को आवंटित कर दिया गया था. दूसरी तरफ अधिकारियों द्वारा किसानों को गुमराह कर मिल चलाने का आश्वासन दिया जा रहा था.

किसानों ने 45.92 करोड़ रुपये भुगतान नहीं करने और सरकार को गुमराह करने के आरोप में मिल मालिक व पूर्व सपा सांसद जवाहर जायसवाल के ख़िलाफ़ गन्ना सचिव प्रेमचंद की तहरीर पर पुलिस धारा 408, 409, 417, 418, 420, 427, 465, 468 व 120बी के तहत केस दर्ज कर लिया है. साथ में यूपी गन्ना पूर्ति ख़रीद एक्ट और 3/7 ईसीए जैसी गंभीर धाराएं भी लगाई गई हैं.

बंद पड़ी गड़ौरा चीनी मिल. (फोटो: सत्येंद्र सार्थक/द वायर)
बंद पड़ी गड़ौरा चीनी मिल. (फोटो: सत्येंद्र सार्थक/द वायर)

सिसवा बाज़ार से विधायक प्रेमसागर पटेल ने बताया, ‘मिल पर किसानों का 46 करोड़ रुपये बकाया था, सरकार ने प्रबंधन से कहा था कि बकाया का भुगतान कराओ दो और मिल चलाओ. 7 मिलों को गन्ने आवंटन कर दिए गए हैं, सेंटर लग गए हैं और गन्ना उठ रहा है किसानों को कोई समस्या नहीं है. कुछ दिनों में किसानों को भुगतान किया जाएगा. सरकार मिल के अधिग्रहण की कार्रवाई कर रही है, मिल को बेचकर किसानों के बकाये का भुगतान किया जाएगा.’

विधायक प्रेम सागर पटेल का यह दावा संदिग्ध हैं क्योंकि जिन छह मिलों को जेएचवी चीनी मिल का गन्ना आवंटित किया गया है, उन्हें क्षमता से दो गुना आवंटन हो चुका है.

केन यूनियन संघ सिसवा बाज़ार के अध्यक्ष राजेश्वर तिवारी के अनुसार, ‘आईपीएल चीनी मिल सिसवा बाज़ार की पेराई क्षमता सत्र में अधिकतम 33.90 लाख कुंतल है, मिल को 70.22 लाख, आईपीएल चीनी मिल खड्डा बाज़ार की क्षमता 27.89 लाख कुंतल के सापेक्ष 63.35 लाख कुंतल, 66.69 लाख कुंतल की क्षमता वाले द कनोड़िया कप्तानगंज, कुशीनगर मिल को 106.69 लाख कुंतल, बिरला शुगर मिल ढाढ़ा को 105.60 के सापेक्ष 216.18 लाख कुंतल और 58.17 लाख कुंतल की क्षमता वाले त्रिवेणी इंजीनियरिंग रामकोला, कुशीनगर मिल को 205.65 लाख कुंतल गन्ना आवंटित किया गया है.’

उक्त चीनी मिलों को ही गड़ौरा चीनी मिल का 59.25 लाख कुंतल गन्ना आवंटित कर दिया गया है. इनमें से घोसी मिल ने गन्ना लेने से मना कर दिया है. अन्य मिलों ने शासन के दबाव में गन्ना लेना तो स्वीकार कर लिया लेकिन गड़ौरा चीनी मिल के क्षेत्र में कोई सेंटर नहीं लगाया है, जबकि गड़ौरा मिल का गन्ना पेरने के लिए 54,000 कुंतल गन्ना प्रतिदिन चीनी मिलों को उठाना पड़ेगा. 27 जनवरी से मिल में एक सेंटर बना दिया गया है, जो 300 कुंतल गन्ना प्रतिदिन ले रहा है.

मिलों के लिए पहले से आवंटित गन्ना पेरना मुश्किल है तो गड़ौरा चीनी मिल के हिस्से की पेराई कैसे करेंगी? दूसरा, यदि सरकार गन्ना मिल का अधिग्रहण की करना चाहती थी, पेराई सत्र में करने की बजाय अब क्यों किया जा रहा है?

राजेश्वर तिवारी कहते हैं, ‘मिल को बंद करने के चाहे जो कारण हों 46 करोड़ रुपये बकाये का तर्क हज़म नहीं हो रहा, क्षेत्र की अधिकतम मिलों पर लगभग इतना ही बकाया है. फिर भी योगी सरकार यदि मिल का अधिग्रहण करना चाहती तो करे, पर मिल चलाया जाए. मिल बंद हुआ तो किसान व मज़दूर संकट में आ जाएंगे.’

गड़ौरा चीनी मिल के मुख्य प्रबंधक राकेश शर्मा सरकार की कार्रवाई पर असंतोष ज़ाहिर करते हुए कहते हैं, ‘48,000 कास्तकार, 600 मज़दूर और अप्रत्यक्ष रूप से 50,000 लोगों की आजीविका मिल से जुड़ी हुई है. पिछला व वर्तमान भुगतान में हम करेंगे. मिल चलाने को हम पूरी तरह से तैयार हैं सरकार से अनुमति मिलते ही आठवें दिन मिल चालू हो जाएगी. मिल अगर चालू नहीं हुआ तो लाखों लोगों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.’

प्रदेश की चीनी मिलों पर किसानों का 11007.98 करोड़ रुपये बकाया

फसल ख़राब होने पर तो किसान बर्बाद होते ही हैं. अच्छी फसल किसानों को लाभ ही पहुंचाएगी, दावा करना गलत होगा. गन्ने की फसल का मिलों पर बकाया साल दर साल चलता रहता है भुगतान नहीं होता.

गन्ना किसानों का मिलों पर करोड़ों रुपये बकाया है और अच्छी फसल होने के बाद भी किसानों का बदहाली के दलदल में धंसे रहना केवल महराजगंज तक ही सीमित नहीं, पूरे प्रदेश का यही हाल है.

उत्तर प्रदेश में 2017-18 में गन्ने की फसल 22.99 लाख हेक्टेयर थी 2018 में यह बढ़कर 27.94 लाख हेक्टेयर हो गई है. पिछले साल की तुलना में पौधा 19.57 प्रतिशत, पेडी 23.93 सहित गन्ने की फसल में 21.53 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. फसल की मात्रा बढ़ने से चीनी का उत्पादन तो बढ़ेगा पर इसका लाभ किसानों व चीनी उपभोक्ताओं को मिले, संभावना कम है.

उत्तर प्रदेश चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास विभाग की ओर से 1 फरवरी तक जारी आंकड़ों के अनुसार, गन्ना किसानों का मिलों पर बकाया 11,007.98 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है. इसमें वर्तमान पेराई सत्र 2018-19 का 6621.42 करोड़, 2017-18 का 3939.62 और 2016-17 का 446.94 करोड़ रुपये शामिल है.

वर्तमान पेराई सत्र का 1 फरवरी 2019 तक सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य के तहत गन्ना किसानों का मिलों पर 12,8873.51 करोड़ रुपये बकाया है लेकिन अभी तक मात्र 6,266.09 करोड़ रुपये का ही भुगतान हो सका है.

6621.42 रुपये करोड़ का भुगतान होगा या पुराने बकायों के साथ वह साल दर साल बढ़ता चला जाएगा, यह तो समय बताएगा. यह स्पष्ट दिख रहा है कि बेहतर फसल लाभ किसानों से अधिक बिचैलियों को होने वाला है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)