अयोध्या विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता की संभावना पर विचार करने को कहा

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि क्या आप गंभीरता से यह समझते हैं कि इतने सालों से चल रहा यह पूरा विवाद संपत्ति के लिए है? हम सिर्फ संपत्ति के अधिकारों के बारे में निर्णय कर सकते हैं परंतु हम रिश्तों को सुधारने की संभावना पर विचार कर रहे हैं.

New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
(फोटो: पीटीआई)

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि क्या आप गंभीरता से यह समझते हैं कि इतने सालों से चल रहा यह पूरा विवाद संपत्ति के लिए है? हम सिर्फ संपत्ति के अधिकारों के बारे में निर्णय कर सकते हैं परंतु हम रिश्तों को सुधारने की संभावना पर विचार कर रहे हैं.

New Delhi: A view of Supreme Court of India in New Delhi, Thursday, Nov. 1, 2018. (PTI Photo/Ravi Choudhary) (PTI11_1_2018_000197B)
(सुप्रीम कोर्ट: पीटीआई)

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद सुलझाने के लिए मध्यस्थता का सुझाव देते हुए मंगलवार को कहा कि वह रिश्तों को सुधारने की संभावना पर विचार कर रहा है.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि इस मामले को न्यायालय द्वारा नियुक्त मध्यस्थता को सौंपने या नहीं सौंपने के बारे में पांच मार्च को आदेश दिया जाएगा.

पीठ ने कहा कि अगर मध्यस्थता की एक फीसदी भी संभावना हो तो राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील इस भूमि विवाद के समाधान के लिए इसे एक अवसर दिया जाना चाहिए. संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में जस्टिस एसके बोबडे, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस अब्दुल नजीर शामिल हैं.

पीठ ने न्यायालय की रजिस्ट्री से कहा कि सभी पक्षकारों को छह सप्ताह के भीतर सारे दस्तावेजों की अनुवादित प्रतियां उपलब्ध कराएं. पीठ ने कहा कि इस मामले पर अब आठ सप्ताह बाद सुनवाई की जाएगी.

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस आठ सप्ताह की अवधि का इस्तेमाल मध्यस्थता की संभावना तलाशने के लिए करना चाहता है. इसके बाद ही इस मामले में सुनवाई की जाएगी.

इस मामले में सुनवाई के दौरान जहां कुछ मुस्लिम पक्षकारों ने कहा कि वे इस भूमि विवाद का हल खोजने के लिए न्यायालय द्वारा मध्यस्थता की नियुक्ति के सुझाव से सहमत हैं, वहीं राम लला विराजमान सहित कुछ हिन्दू पक्षकारों ने इस पर आपत्ति करते हुए कहा कि मध्यस्थता की प्रक्रिया पहले भी कई बार असफल हो चुकी है.

पीठ ने पक्षकारों से पूछा कि क्या वे इस भूमि विवाद का हल खोजने के लिये मध्यस्थता की संभावना तलाश सकते हैं?

पीठ ने कहा, ‘यदि एक प्रतिशत भी उम्मीद हो तो मध्यस्थता की जानी चाहिए. क्या आप गंभीरता से यह समझते हैं कि इतने सालों से चल रहा यह पूरा विवाद संपत्ति के लिए है? हम सिर्फ संपत्ति के अधिकारों के बारे में निर्णय कर सकते हैं परंतु हम रिश्तों को सुधारने की संभावना पर विचार कर रहे हैं.’

इस पर, एक मुस्लिम पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले का जिक्र किया और कहा कि पहले भी मध्यस्थता का प्रयास किया गया लेकिन वह असफल रहा.

राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने कहा कि वह किसी भी तरह की मध्यस्थता के खिलाफ हैं. उन्होंने कहा, ‘हम मध्यस्थता का दूसरा दौर नहीं चाहते.’

इससे पहले, सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने कहा कि अगर दस्तावेजों के अनुवाद के बारे में आम सहमति है तो वह आगे कार्यवाही शुरू कर सकती है. पीठ ने कहा, ‘यदि अनूवादित दस्तावेज सभी को स्वीकार्य हैं, कोई भी पक्षकार सुनवाई शुरू होने के बाद अनुवाद पर सवाल नहीं उठा सकता है.’

पीठ ने इस मामले में दस्तावेजों की स्थिति और सीलबंद रिकार्ड के बारे में शीर्ष अदालत के सेक्रेटरी जनरल की रिपोर्ट की प्रतियों का जिक्र किया और प्रधान न्यायाधीश ने दोनों पक्षों के वकीलों से कहा कि वे इनका अवलोकन कर लें. इस पर धवन ने कहा कि उन्हें अनूदित दस्तावेजों को अभी देखना है और उन्हें दस्तावेजों के अनुवाद की सत्यता को भी परखना है.

वैद्यनाथन ने कहा कि अनुवाद का सत्यपान किया गया था और सभी पक्षकारों ने दिसंबर, 2017 में इसे स्वीकार किया था. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार के अनुवाद की जांच के बारे में आदेश दिया गया था और अब दो साल बाद इन पर आपत्ति की जा रही है. इस पर, शीर्ष अदालत ने पक्षकारों को वह आदेश दिखाने के लिए कहा जिसमें वे उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दाखिल अनूवादित दस्तावेजों पर सहमत हुए थे.

प्रधान न्यायाधीश ने जब मुस्लिम पक्षकारों से पूछा कि अनुवाद की जांच के लिए उन्हें कितना वक्त चाहिए तो धवन ने कहा कि उन्हें 8-12 सप्ताह का समय चाहिए.

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कुल 14 अपील दायर की गई हैं. उच्च न्यायालय ने 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीन हिस्सों में सुन्नी वक्फ बोर्ड, राम लला और निर्मोही अखाड़े के बीच बांटने का आदेश दिया था.

https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/pkv-games/ https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/bandarqq/ https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/dominoqq/ https://ojs.iai-darussalam.ac.id/platinum/slot-depo-5k/ https://ojs.iai-darussalam.ac.id/platinum/slot-depo-10k/ https://ikpmkalsel.org/js/pkv-games/ http://ekip.mubakab.go.id/esakip/assets/ http://ekip.mubakab.go.id/esakip/assets/scatter-hitam/ https://speechify.com/wp-content/plugins/fix/scatter-hitam.html https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/ https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/dominoqq.html https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/ https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/dominoqq.html https://naefinancialhealth.org/wp-content/plugins/fix/ https://naefinancialhealth.org/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://onestopservice.rtaf.mi.th/web/rtaf/ https://www.rsudprambanan.com/rembulan/pkv-games/ depo 20 bonus 20 depo 10 bonus 10 poker qq pkv games bandarqq pkv games pkv games pkv games pkv games dominoqq bandarqq pkv games dominoqq bandarqq pkv games dominoqq bandarqq pkv games bandarqq dominoqq