इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से शराब के प्रतीकात्मक विज्ञापनों पर रोक लगाने को कहा

इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि म्यूज़िक सीडी और शीशे के गिलास के विज्ञापनों में उत्पादों के नाम छोटे अक्षरों में लिखे होते हैं जबकि शराब कंपनियों के लोगो बड़े ही स्पष्ट तरीके से दिखाए जाते हैं. ये विज्ञापन प्रतीकात्मक तरीके से शराब के सेवन और बिक्री को बढ़ावा देते हैं.

Lucknow: UP Chief Minister Yogi Adityanath talks to the media at Central Hall of Assembly in Lucknow, Wednesday, Dec. 19, 2018. (PTI Photo/Nand Kumar) (PTI12_19_2018_000091)
योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)

इलाहाबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि म्यूज़िक सीडी और शीशे के गिलास के विज्ञापनों में उत्पादों के नाम छोटे अक्षरों में लिखे होते हैं जबकि शराब कंपनियों के लोगो बड़े ही स्पष्ट तरीके से दिखाए जाते हैं. ये विज्ञापन प्रतीकात्मक तरीके से शराब के सेवन और बिक्री को बढ़ावा देते हैं.

Lucknow: UP Chief Minister Yogi Adityanath talks to the media at Central Hall of Assembly in Lucknow, Wednesday, Dec. 19, 2018. (PTI Photo/Nand Kumar) (PTI12_19_2018_000091)
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)

इलाहाबाद: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार और उत्पाद शुल्क विभाग को टीवी, सिनेमा हॉल और किसी भी अखबार एवं पत्रिका आदि में शराब के प्रतीकात्मक विज्ञापनों पर रोक लगाने का निर्देश दिया है.

जस्टिस सुधीर अग्रवाल और जस्टिस अजीत कुमार की पीठ ने स्ट्रगल एगेंस्ट पेन नाम की सोसाइटी के अध्यक्ष मनोज मिश्रा द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए यह आदेश पारित किया.

अदालत ने उत्पाद शुल्क विभाग और पुलिस महकमे को इस तरह के किसी भी प्रतीकात्मक विज्ञापन पर रोक सुनिश्चित करने के लिए उचित कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है.

इस याचिका में पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित विभिन्न विज्ञापनों को अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया गया.

याचिकाकर्ता की दलील थी कि यद्यपि ये विज्ञापन म्यूज़िक सीडी या शीशे के गिलास के प्रचार के लिए किए गए, लेकिन इन उत्पादों के नाम बहुत छोटे अक्षरों में लिखे गए होते हैं और ये बड़ी मुश्किल से दिखाई देते हैं. हालांकि, शराब के ब्रांडों का लोगो इस तरह के विज्ञापनों में स्पष्ट दिखाई देता है.

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि शराब विनिर्माताओं द्वारा इस तरह के विज्ञापनों पर मोटी रकम ख़र्च की जाती है. वे प्रतीकात्मक तरीके से शराब के सेवन और बिक्री को बढ़ावा देते हैं.

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि ये विज्ञापन इस तरह से बनाए जाते हैं कि वास्तविक उत्पादों को होलोग्राम/मोनोग्राम के रूप में दिखाया जाता है जिसमें शराब शब्द या शराब के प्रकार का उल्लेख नहीं होता है और इस तरह से वे क़ानून के तहत दंड से बच जाते हैं.

इस याचिका में पक्षकार बनाई गई कुछ शराब कंपनियों ने इस दावे के साथ अपना बचाव किया कि शराब के अलावा, वे इस तरह के उत्पाद भी बनाती हैं और इस तरह के उत्पादों के विज्ञापन पर क़ानून में कोई रोक नहीं है.