जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष भारत में लोकपाल के पहले अध्यक्ष नियुक्त

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पीसी घोष को देश के पहले लोकपाल के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति को मंजूरी दी. इसके अलावा लोकपाल में आठ सदस्यों की नियुक्ति भी की गई.

//

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पीसी घोष को देश के पहले लोकपाल के अध्यक्ष के तौर पर नियुक्ति को मंजूरी दी. इसके अलावा लोकपाल में आठ सदस्यों की नियुक्ति भी की गई.

PC Ghosh-Youtube
जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष (फोटोः यूट्यूब)

नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष को मंगलवार को लोकपाल का पहला अध्यक्ष नियुक्त किया गया. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उनकी नियुक्ति को मंजूरी दी.

आधिकारिक आदेश के मुताबिक, सशस्त्र सीमाबल (एसएसबी) की पूर्व प्रमुख अर्चना रामसुंदरम, महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य सचिव दिनेश कुमार जैन, महेंद्र सिंह और इंद्रजीत प्रसाद गौतम को लोकपाल के गैर न्यायिक सदस्य नियुक्त किया गया है.

जस्टिस दिलीप बी भोंसले, प्रदीप कुमार मोहंती, अभिलाषा कुमारी और अजय कुमार त्रिपाठी को लोकपाल के न्यायिक सदस्य के तौर पर नियुक्त किया गया है.

ये नियुक्तियां उस तारीख से प्रभावित होंगी, जिस दिन वे अपने-अपने पद का कार्यभार संभालेंगे.

जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष (66) मई 2017 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के पद से सेवानिवृत्त हुए थे, जिसके बाद वह 29 जून 2017 से राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) से जुड़ गए थे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली चुनाव समिति ने इनकी नियुक्ति के सुझाव दिए थे, जिन्हें राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंजूरी दे दी. विपक्षी दल लोकपाल की नियुक्ति में देरी के लिए मोदी सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं.

लोकपाल और लोकायुक्त कानून के तहत कुछ श्रेणियों के सरकारी सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति का प्रावधान है. यह कानून 2013 में पारित किया गया था.

ये नियुक्तियां सात मार्च को सुप्रीम कोर्ट के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से 10 दिन के भीतर लोकपाल चयन समिति की बैठक की संभावित तारीख के बारे में सूचित करने को कहने के एक पखवाड़े बाद हुई हैं.

अदालत के इस आदेश के बाद 15 मार्च को चयन समिति की बैठक हुई थी.

नियमों के अनुसार, लोकपाल समिति में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य हो सकते हैं. इनमें से चार न्यायिक सदस्य होने चाहिए. इनमें से कम से कम 50 फीसदी सदस्य अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और महिलाएं होनी चाहिए.

 (समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)