मिलेनियम सिटी को साजिद के घर में घुसकर मारने का वीडियो कैसा लगता होगा

गुड़गांव लगातार निशाने पर है. अनजान लोगों से बसा यह शहर हर किसी को अजनबी समझने की फितरत पाले हैं, इसलिए वह मज़हब के आधार पर शक किए जाने या किसी को पीट दिए जाने को बुरा नहीं मानता. भारत का यह सबसे आधुनिक शहर सिस्टम से लेकर एक स्वस्थ्य समाज के फेल होने का शहर है. इस शहर में धूल भी सीमेंट की उड़ती है, मिट्टी की नहीं.

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गुड़गांव लगातार निशाने पर है. अनजान लोगों से बसा यह शहर हर किसी को अजनबी समझने की फितरत पाले हैं, इसलिए वह मज़हब के आधार पर शक किए जाने या किसी को पीट दिए जाने को बुरा नहीं मानता. भारत का यह सबसे आधुनिक शहर सिस्टम से लेकर एक स्वस्थ्य समाज के फेल होने का शहर है. इस शहर में धूल भी सीमेंट की उड़ती है, मिट्टी की नहीं.

Gurgaon Collage PTI Twitter
गुरुग्राम शहर और धमसपुर गांव में मुस्लिम परिवार से होती मारपीट (फोटो: पीटीआई/ट्विटर)

गुरुग्राम की घटना का वीडियो जब तक उभर आता है. सोशल मीडिया के किसी पेज पर जाता हूं तो दिख जाता है. छत पर लड़कियां चिल्ला रही हैं. उसकी निचली मंज़िल पर कुछ लोग डंडे से दो लोगों को मार रहे हैं. एक बूढ़ी मां भी लाठियों की चपेट में आ रही है.

गुरुग्राम के धमसपुर गांव का यह वीडियो हम सबकी संवेदना का आख़िरी इम्तिहान ले रहा है. यही कि हम सब ऐसे वीडियो से सामान्य होने के इम्तिहान में पास कर गए हैं.

वीडियो में दर्ज हिंसा की तस्वीरें उस अधिकार बोध का ऐलान कर रही हैं जो अब सड़कों पर किसी को भी हासिल है. बस वो अपनी दलीलों में गाय, पाकिस्तान, भारत माता की जय या मोदी विरोध ले आए, वह किसी को पीट सकता है, मार सकता है.

घटना के तात्कालिक कारण क्या रहे होंगे, यह महत्वपूर्ण नहीं हैं. कारणों की प्रासंगिकता समाप्त हो चुकी है. महत्वपूर्ण यह है कि बहुसंख्यक समूह के इस तबके के भीतर यह अधिकार-बोध आ चुका है कि वह कभी भी कहीं भी लाठी डंडा लेकर घुस सकता है.

यह वही तबका है जो किसी सुबह लखनऊ के फुटपाथ पर काजू बादाम बेचने वाले कश्मीरियों को उठाकर मारने लगता है. यह वही तबका है जो जुलाई 2016 में गुजरात के ऊना में अनुसूचित जाति के परिवार को निकालकर मारने लगता है. यह वही तबका है जो इंस्पेक्टर सुबोध सिंह को मार देता है.

यह वीडियो हमारे भीतर हर दिन एक नई जगह का निर्माण करते हैं जहां से किसी को बेदखल किया जा चुका होता है. इन वीडियो में लगातार बेदखल किए जाते रहे लोग सिर्फ मार खा रहे हैं. मारने वाले एक ही हैं.

अब सांप्रदायिकता लजाती नहीं है. वीडियो में सज कर आती है. हर बार टेस्ट करने कि क्या कोई चुनौती मिलेगी. हर बार विजयी होकर चली जाती है. हम अगले वीडियो के इंतज़ार में तब तक राष्ट्रवाद के अभ्यास में लगा दिए जाते हैं.

पांच साल से न्यूज़ चैनलों और व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से जो प्रोजेक्ट चला है वह सफल रहा है. उसने झूठ और प्रंपच से लैस नागरिकों के ऐसे दस्ते तैयार कर दिए हैं जो कहीं भी अचानक प्रकट होकर किसी को मार सकते हैं.

मैं इन्हें रोबो-रिपब्लिक कहता हूं. आधी-अधूरी और झूठी सूचनाओं से लैस लोगों का एक ऐसा तंत्र, जो महज़ अफवाह से हिंसक भीड़ में बदल सकता है और किसी को मार सकता है. कुछ पहचानों को चिह्नित करते ही रोबो-रिपब्लिक के हाथ सक्रिय हो जाते हैं.

न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया के ज़रिए साधारण परिवारों के लड़कों को एक मज़हब के खिलाफ पूर्वाग्रहों के बंधन में बांध कर रखा गया. उन्हें दिन रात सिखाया गया कि यही सोचने और देखने का तरीका है. इसे व्यापक समर्थन हासिल है.

मिडिल क्लास और अच्छे घरों के लड़के सोशल मीडिया पर इन्हें सपोर्ट कर अपने धंधे में लग जाते हैं मगर साधारण घरों के लड़के इनकी चपेट में आकर अपराध कर बैठते हैं. आप पिछले पांच साल के वीडियो में हिंसा करते लोगों के परिवार और आर्थिक स्तर का पता लगाइये. मेरी बात सही साबित होगी.

गुड़गांव लगातार निशाने पर है. ऊंची इमारतों में बैठे लोगों में नागरिकता का बोध होता तो उस शहर की हालत इतनी बेकार न होती. इन इमारतों में बैठे लोग उस महानगरीय मध्यमवर्ग के लोग हैं जो टीवी देखने के बाद अपने राष्ट्रवाद का परीक्षण किसी मित्र को धमकी देने या असहमत होने पर गाली देकर करते हैं.

इस समुदाय को स्थानीय स्तर पर खुराक उपलब्ध कराया जा रहा है. क्या आपने गुरुग्राम के तथाकथित लोगों के नागरिक समूहों का ऐसी हिंसा के ख़िलाफ़ कोई बड़ा मार्च देखा है? वहां रहने वाले मिडिल क्लास के बच्चे पर्यावरण पर ड्राइंग बना सकते हैं. उनके मां-बाप उस ड्राइंग की फोटो लेकर शेयर कर सकते हैं. उनकी जागरूकता यहीं पर फुलस्टाप हो जाती है.

अनजान लोगों से बसा यह शहर हर किसी को अजनबी समझने की फितरत पाले हैं, इसलिए वह मज़हब के आधार पर शक किए जाने या किसी को पीट दिए जाने को बुरा नहीं मानता.

भारत का यह सबसे आधुनिक शहर सिस्टम से लेकर एक स्वस्थ्य समाज के फेल होने का शहर है. इस शहर में धूल भी सीमेंट की उड़ती है, मिट्टी की नहीं. गुरुग्राम की-सी हालत अब हर शहर की हो गई है.

आप मीडिया रिपोर्ट को खंगालिए. 2016 में सवा घंटे की घनघोर बारिश के कारण 16 घंटे तक 25 किलोमीटर लंबा जाम लग गया था. कई घंटों के लिए शहर तबाह हो गया था. वहां के लोगों ने ट्विटर पर गुस्सा निकाला. उन्हें शर्म आई कि यह मिलेनियम सिटी है.

क्या आपने वहां के लोगों को ट्विटर पर सांप्रदायिकता को लेकर गुस्सा निकालते हुए, शर्म करते हुए देखा है कि क्या यही मिलेनियम सिटी है जहां चार लोग किसी के घर घुसकर हमला कर देते हैं. जब मिलेनियम सिटी में कानून का डर नहीं है तो फिर भारत का क्या हाल होगा.

गुड़गांव को गुरुग्राम करने की आलोचना ज़रूर हुई मगर कोई ख़ास विरोध नहीं हुआ. मगर अचानक अपनी पौराणिकता का दावा करने वाला यह आधुनिक शहर सिर्फ नाम बदलने की आकांक्षा पूरी कर संतुष्ट नहीं होने वाला था. वह धीरे-धीरे इसकी हवा में ज़हर घोल रहा है. सीमेंट के साथ सांप्रदायिकता का ज़हर इसे चाहिए.

पिछले तीन चार की मीडिया रिपोर्ट खंगालने पर दो संगठनों के नाम कई प्रसंग में आते हैं. संयुक्त हिंदू संघर्ष समिति, अखिल भारतीय हिंदू क्रांति दल. 2018 में संयुक्त हिंदू संघर्ष समिति 10 जगहों पर खुले में होने वाली नमाज़ को रोक देती है. मात्र छह सात लोगों ने सैंकड़ों लोगों को नमाज़ पढ़ने से रोक दिया और भगा दिया.

बात यहां तक पहुंच गई कि आस-पास की हिंदू आबादी नमाज़ के समय हवन करने का ऐलान करने लगी. नमाज़ को अनधिकृत जमावड़ा घोषित कर दिया गया.

अखिल भारतीय हिंदू क्रांति दल नाम के संगठन का भी ज़िक्र मीडिया रिपोर्ट में आता है. अक्तूबर 2018 में ही नवरात्री के मौके पर संयुक्त हिंदू संघर्ष समिति ने मार्च निकाला. मीट की दुकानें बंद कर दीं. तंदूर में पानी डाल दिया. दुकानदारों को धमकाया और विरोध करने पर पीटा.

9 जून 2014 को गुरुग्राम से 32 किमी दूर एक सड़क दुर्घटना को लेकर हिंदू मुस्लिम हो गया. ऐसी हिंसा भड़की कि 15 लोग घायल हो गए. हम भूल चुके हैं मगर चार घंटे तक चली उस हिंसा पर काबू करने के लिए सीआरपीएफ और बीएसएफ की टुकड़ी बुलाई गई थी.

पटौदी रोड में डंपर से एक बाइकर की मौत हो गई. डंपर का ड्राइवर मुसलमान था. दुर्घटना में मरने वाला हिंदू. लोगों ने ड्राइवर को मारकर घायल कर दिया और पुलिस को अस्पताल ले जाने से रोकने के लिए डंपर से ही रास्ता बंद कर दिया. बाद में दोनों समुदाय की तरफ से हिंसा भड़क उठी. एक सड़क दुर्घटना और उस दौरान निकलने वाला गुस्सा सांप्रदायिक हो गया.

गुरुग्राम की तरह सीमा पार से भी ऐसी ही एक खबर आई है. पाकिस्तान के सिंध प्रांत में रवीना और रीना नाम की दो बहनों को अगवा कर लिया गया है. उनका ज़बरन धर्मांतरण कराया गया है.

द हिंदू अख़बार ने लिखा है कि पाकिस्तान के हिंदू सेवा वेलफेयर ट्रस्ट का आरोप है कि पुलिस ने घटना की एफआईआर दर्ज नहीं की. विरोध प्रदर्शन के बाद एफआईआर करने के लिए मजबूर हुई है. बेटियों के पिता का वीडियो विचलित करने वाला है.

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान ने घटना की जांच के आदेश दिए हैं. पाकिस्तान भर में हिंदू संगठनों के प्रदर्शन हो रहे हैं. वे इमरान ख़ान को अल्पसंख्यकों को सुरक्षा दिलाने का वादा याद दिला रहे हैं.

सुषमा स्वराज ने कहा है कि पाकिस्तान स्थित भारतीय दूतावास से रिपोर्ट मांगी है. इस पर पाकिस्तान के मंत्री उनसे भिड़ गए हैं. कहते हैं कि भारत में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं. हमें हमारे झंडे का सफेद रंग भी उतना ही प्यारा है. सफेद रंग अल्पसंख्यकों के लिए है.

मगर सच्चाई यह है कि पाकिस्तान में हिंदू और ईसाई दोनों अल्पसंख्यकों की स्थिति बहुत ख़राब है. कम से कम हम सिंध की इन बेटियों के लिए ही आवाज़ उठाएं. उनके हक के लिए बोलें. चीखें. चिल्लाएं.

सोचें कि वहां और यहां यह वहशीपन अभी तक क्यों बचा है. क्या हम वाकई कभी किसी सभ्यता के अंश रहे हैं. कम से कम रीना और रवीना के बहाने हम साजिद की बेटियों की तकलीफ को समझने लगेंगे.

वर्ना अगला वीडियो जल्दी आने वाला है. उसमें फिर कोई किसी को पीट रहा होगा. किसी को जला रहा होगा. किसी को मार रहा होगा. बात-बात पर पाकिस्तान भेजने की सोच कहीं यहां वही पाकिस्तान तो नहीं बना रही है जिससे हम रीना और रवीना को बचाना चाहते हैं.

बस इतना सोचना है. बाकी उम्मीद है कि आप इतना भी नहीं सोचेंगे. गुरुग्राम एक मिलेनियम सिटी है. गुरुग्राम एक मिलेनियम सिटी है. इसका दिन में दस बार पाठ करें. आप गुरुग्राम पर प्राउड फील करेंगे.

(यह लेख मूल रूप से रवीश कुमार के ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ है.)

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