जब मुक़दमा चलानेवाले एनआईए जैसे हों, तो बचाव में वकील रखने की क्या ज़रूरत है

समझौता एक्सप्रेस मामले की सुनवाई कर रहे जज ने कहा कि अभियोजन कई गवाहों से पूछताछ और उपयुक्त सबूत पेश करने में नाकाम रहा इसलिए मजबूरन आरोपियों को बरी करना पड़ा. जब एनआईए जैसी शीर्ष जांच एजेंसी एक भयानक आतंकी हमले के हाई-प्रोफाइल मामले में इस तरह बर्ताव करती है, तो देश की जांच और अभियोजन व्यवस्था की क्या साख रह जाती है?

//

समझौता एक्सप्रेस मामले की सुनवाई कर रहे जज ने कहा कि अभियोजन कई गवाहों से पूछताछ और उपयुक्त सबूत पेश करने में नाकाम रहा इसलिए मजबूरन आरोपियों को बरी करना पड़ा. जब एनआईए जैसी शीर्ष जांच एजेंसी एक भयानक आतंकी हमले के हाई-प्रोफाइल मामले में इस तरह बर्ताव करती है, तो देश की जांच और अभियोजन व्यवस्था की क्या साख रह जाती है?

Samjhautha Blast Rajnath Aseemanand PTI Reuters
गृह मंत्री राजनाथ सिंह, विस्फोट के बाद समझौता एक्सप्रेस और स्वामी असीमानंद. (फोटो: पीटीआई/रॉयटर्स)

अगर एक बड़े आतंकी हमले के मुकदमे का समापन एक न्यायाधीश इस बात का दुख प्रकट करते हुए करे कि अभियोजन ने ‘सबसे अच्छे सबूत’ ‘छिपा लिए’ और उन्हें सामने नहीं रखा गया, जिसके कारण सभी आरोपियों को बरी करना पड़ा, तो इससे निश्चित ही किसी राष्ट्र के विवेक को ठेस लगनी चाहिए.

समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट मामले, जिसमें 10 भारतीय और 43 पाकिस्तानी नागरिकों समेत 68 लोग मारे गए थे, की सुनवाई कर रहे विशेष न्यायाधीश जगदीप सिंह ने आतंकवादी घटनाओं की जांच करनेवाली भारत की शीर्ष जांच एजेंसी राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को फटकार लगाते हुए कहा कि वे मजबूरी में सभी आरोपियों को बरी कर रहे हैं, क्योंकि अभियोजन कई गवाहों से पूछताछ करने और उपयुक्त सबूत पेश करने में नाकाम रहा है.

इस फैसले से उभरनेवाला ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि जब एनआईए जैसी शीर्ष जांच एजेंसी एक भयानक आतंकी हमले के हाई-प्रोफाइल मामले में इस तरह से बर्ताव करती है, तो भारत की जांच और अभियोजन व्यवस्था की क्या साख रह जाती है?

और सभी तरह के आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए एक वैश्विक जनमत तैयार करने की मुहिम में जुटा भारत दुनिया को इस तरह से क्या संदेश दे रहा है?

इस मामले से जुड़ी समस्या अनोखी है क्योंकि फरवरी, 2007 में समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मक्का मस्जिद, हैदराबाद और अजमेर शरीफ और मालेगांव में हुए ऐसे ही विस्फोटों से जुड़ा हुआ है. इन मामलों के तार आपस में जुड़े हुए थे, क्योंकि आरोपपत्रों के मुताबिक स्वामी असीमानंद (नाबा कुमार सरकार) इन विस्फोटों का साझा मास्टरमाइंड था.

दुर्भाग्य से इन विस्फोटों का राजनीतिकरण ‘हिंदुत्व आतंकवाद’ के मामलों के तौर पर कर दिया गया और केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद इन मामलों में अभियोजन को कमजोर करने के व्यवस्थित प्रयास किए गए.

इसके बाद हमने एनआईए के ऐसे प्रमुखों को भी देखा, जो ‘हिंदू आतंकवाद’ जैसी कोई चीज नहीं होने’ के विचार के प्रति सहानुभूति रखते थे.

समझौता विस्फोट मामले में न्यायाधीश ने पीड़ा के भाव के साथ कहा, ‘अभियोजन के सबूत बहुत लचर हैं और इस तरह से आतंकवाद का एक मामला अनसुलझा रह गया है. आतंकवाद का कोई धर्म नहीं है क्योंकि दुनिया का कोई भी धर्म हिंसा की शिक्षा नहीं देता. अदालत प्रचलित या प्रबल जनधारणाओं या अपने समय की सार्वजनिक बहस के आधार पर काम नहीं कर सकती है और आखिकार उसे मौजूदा सबूतों को ही तवज्जो देनी होती है…’

यह भी पढ़ें: समझौता एक्सप्रेस मामले में क्यों एनआईए ने एक राजनीतिक विचारधारा के लिए अपनी साख दांव पर लगाई

न्यायाधीश का यह बयान कि कानून की अदालत से मौजूदा सार्वजनिक बहस के आधार पर आगे बढ़ने की अपेक्षा नहीं की जाती है, अपने आप में मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करने वाला है, जिसने पहले दिन से बम विस्फोट के इन मामलों को बहुसंख्यवादी चश्मे से देखना शुरू कर दिया था.

न्यायाधीश को जरूर इस बात का एहसास पहले ही हो गया होगा कि एनआईए की दिलचस्पी अदालत के सामने पुख्ता सबूत पेश करने में नहीं है. ऐसे में कोई हैरत की बात नहीं है कि न्यायाधीश ने अपने 160 पन्ने के फैसले में यह भी कहा कि अदालत के सामने सबूत के तौर पर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के सीसीटीवी कैमरा की रिकॉर्डिंग्स तक को सही तरीके से पेश नहीं किया गया.

एनआईए ने इसी तरह से हैदराबाद में हुए मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में भी अभियोजन को कमजोर करने का काम किया. उसमें भी असीमानंद प्रमुख आरोपी था और सबूत का एक अहम हिस्सा जेल के एक अन्य कैदी के साथ उसकी मुलाकात से सामने आया, जिसके सामने असीमानंद ने विस्फोट में अपनी भूमिका कबूल की थी.

उस मामले में न्यायाधीश द्वारा असीमानंद को आरोपमुक्त करने का एक आधार यह था कि अभियोजन पक्ष यह सबूत पेश नहीं कर पाया कि दूसरा कैदी उस समय जेल में मौजूद था. इसके लिए और कुछ नहीं बस जेल रजिस्टर की जरूरत थी, जिससे यह साबित हो जाता कि दूसरा कैदी भी उस समय जेल में ही था. लेकिन यह साधारण सा सबूत भी एनआईए ने पेश नहीं किया.

इसके पीछे मंशा इन मामलों को कमजोर करने की थी और अब जबकि जज ने खुद इसके बारे में स्पष्ट शब्दों में कह दिया है, इस बात को लेकर किसी तरह के शक की गुंजाइश नहीं रह जाती कि किस तरह से अभियोजन तंत्र की धज्जियां उड़ाई गईं हैं.

यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि मोदी-शाह के शासन में अभियोजन प्रणाली पर सबसे भीषण हमला हुआ है. याद कीजिए कि 2जी मुकदमे जैसे भ्रष्टाचार के मामलों में भी विशेष न्यायाधीश ने इसी तरह की बातें कही थीं, जिसका इशारा अभियोजन द्वारा विभिन्न आरोपियों के खिलाफ, जिनमें कुछ प्रभावशाली कॉरपोरेट घराने भी शामिल थे, मामलों को कमजोर करने की कोशिशों की तरफ था.

अंत में, समझौता विस्फोट मामले में सरकार के पूर्वाग्रह का सबसे प्रकट सबूत केंद्रीय गृहमंत्री के पूरे फैसले के सार्वजनिक किए जाने से पहले दिया गया बयान है कि ‘अभियोजन इस फैसले के खिलाफ बड़ी अदालत में अपील नहीं करेगा. कम से कम कहा जाए तो उनका ऐसा कहना हैरान कर देनेवाला है.

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

pkv games bandarqq dominoqq pkv games parlay judi bola bandarqq pkv games slot77 poker qq dominoqq slot depo 5k slot depo 10k bonus new member judi bola euro ayahqq bandarqq poker qq pkv games poker qq dominoqq bandarqq bandarqq dominoqq pkv games poker qq slot77 sakong pkv games bandarqq gaple dominoqq slot77 slot depo 5k pkv games bandarqq dominoqq depo 25 bonus 25 bandarqq dominoqq pkv games slot depo 10k depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq slot77 pkv games bandarqq dominoqq slot bonus 100 slot depo 5k pkv games poker qq bandarqq dominoqq depo 50 bonus 50 pkv games bandarqq dominoqq