क्या योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सीट से ‘योग्य उम्मीदवार’ नहीं ढूंढ पा रही है भाजपा?

विशेष रिपोर्ट: पिछले उपचुनाव में गोरखपुर से मिली हार के चलते पूरे देश में भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली सीट अब पार्टी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे अधिक चिंता की सीट बन गई है.

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उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)

विशेष रिपोर्ट: पिछले उपचुनाव में गोरखपुर से मिली हार के चलते पूरे देश में भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली सीट अब पार्टी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए सबसे अधिक चिंता की सीट बन गई है.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. (फोटो: पीटीआई)

गोरखपुर: भाजपा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर सीट पर एक ‘योग्य उम्मीदवार’ नहीं ढूंढ पा रही है. दूसरे दलों के कई नेताओं को अपने पाले में ले आने, लोकसभा उपचुनाव में जीते सपा उम्मीदवार को पार्टी में शामिल कर लेने और निषाद पार्टी से गठबंधन कर लेने के बावजूद भाजपा की ‘योग्य उम्मीदवार’ की खोज पूरी नहीं हुई है.

गोरखपुर में पार्टी उम्मीदवार की खोज पूरी नहीं होने की वजह से गोरखपुर मंडल की दो और सीटों- संतकबीरनगर और देवरिया में भी प्रत्याशी की घोषणा नहीं पा रही है.

शुक्रवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री एवं उत्तर प्रदेश के प्रभारी जेपी नड्ढ़ा गोरखपुर आए और 13 लोकसभा सीटों पर चुनाव की तैयारियों की समीक्षा की. उन्होंने प्रत्याशी घोषित किए जाने के सवाल पर गोल-मोल जवाब दिया. उन्होंने इतना ही कहा कि जल्द ही प्रत्याशी घोषित कर दिया जाएगा.

प्रत्याशी घोषित करने में देरी की वजह वर्ष 2018 में लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की हार है. उपचुनाव में मिली हार ने भाजपा के अंदर डर पैदा कर दिया है.

गोरखपुर की सीट पर 1989 से लगातार भाजपा जीत रही थी. वर्ष 1989 से 1996 तक महंत अवैद्यनाथ इस सीट पर लगातार चार बार जीते तो उसके बाद 1998 से 2014 तक योगी आदित्यनाथ पांच बार जीते.

वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बन गए तो उन्हें यह सीट ख़ाली करनी पड़ी. एक वर्ष बाद मार्च 2018 में हुए उपचुनाव में सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद ने 29 वर्ष से अजेय बने भाजपा के इस क़िले को दरका दिया.

गोरखपुर उपचुनाव में भाजपा ने अपनी हार के लिए कम मतदान प्रतिशत और कार्यकर्ताओं के अति आत्मविश्वास को ज़िम्मेदार माना. आज तक सार्वजनिक मंचों से यह बात कही जा रही है लेकिन सही बात तो यह थी कि उपचुनाव में तीन दशक से भाजपा के पक्ष में सधा जातीय संतुलन गड़बड़ा गया था और भाजपा की जगह विपक्ष ने इसे साध लिया था.

तीन क्षेत्रों में बिखरने वाला विपक्षी वोट एक जगह ध्रुवीकृत हो गया जिसे भाजपा और योगी आदित्यनाथ ने एकजुट होने से रोक रखा था.

उपचुनाव में हार से पूरे देश में भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली सीट अब पार्टी और योगी के लिए सबसे अधिक चिंता की सीट बन गई है.

2018 के पहले सपा, बसपा, कांग्रेस से कोई नेता गोरखपुर से लड़ना नहीं चाहता था क्योंकि उसे पता था कि हारना ही है. कोई लड़ता भी था तो बहस इस बात को लेकर होती थी कि वह कितने वोट के अंतर से हारेगा.

देश-प्रदेश में तमाम राजनीतिक उथल-पुथल से गोरखपुर संसदीय क्षेत्र हमेशा अछूता रहा लेकिन अब हालात दूसरे हैं.

सपा, बसपा, कांग्रेस के बजाय अब भाजपा को इस सीट से प्रत्याशी ढूंढना पड़ रहा है. भाजपा के लिए प्रत्याशी संकट की कई वजहें हैं. सबसे पहले यह कि योगी आदित्यनाथ ने अपनी इस सीट के लिए कोई राजनीतिक उत्तराधिकारी तैयार नहीं किया जबकि उनके पास तमाम नेताओं की दूसरी पंक्ति मौजूद थी.

मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी यह स्थिति बनी रही. इसीलिए जब लोकसभा उपचुनाव की नौबत आई तो प्रत्याशी को लेकर बहुत दिन तक असमंजस बनी रही. एक दर्जन से अधिक नाम ऊपर-नीचे होते रहे.

Meerut: BJP President Amit Shah is welcomed by UP Chief Minister Yogi Adityanath at the BJP's State Working Committee Meeting, in Meerut on Sunday, August 12, 2018. (Twitter Photo via PTI)(PTI8_12_2018_000150B)
भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ. (फाइल फोटो: पीटीआई)

आख़िरकार उपेंद्र दत्त शुक्ल को उम्मीदवार बनाया गया जो उस समय भाजपा के क्षेत्रीय अध्यक्ष थे. हालांकि एक खांटी कार्यकर्ता को उम्मीदवर बनाया गया था लेकिन गोरखपुर में यह चर्चा बन गई कि उपेंद्र, योगी आदित्यनाथ की पसंद नहीं हैं.

योगी की कई जनसभाएं और उनके यह कहने के बावजूद कि चुनाव उपेंद्र नहीं वह ख़ुद लड़ रहे हैं, भाजपा कार्यकर्ताओं, समर्थकों में उत्साह पैदा नहीं कर सकी. मतदान प्रतिशत कम हुआ.

भाजपा पांच विधानसभा वाले गोरखपुर संसदीय क्षेत्र के तीन विधानसभा क्षेत्रों में हारी. गोरखपुर सदर और पिपराइच से ही उसे बढ़त मिल पाई. हमेशा निर्णायक बढ़त देने वाले गोरखपुर शहर विधानसभा क्षेत्र से भी बढ़त कम हुई.

भाजपा की ओर से हार के कारणों में मतदान प्रतिशत का कम होना, जीत के प्रति अति आत्मविश्वास के कारण गिनाए गए लेकिन आंतरिक विश्लेषण में पाया गया कि योगी की सीट पर ब्राह्मण उम्मीदवार उतारे जाने से क्षत्रिय उदासीन हो गए और वोट देने नहीं गए.

हालांकि अनुमान के विपरीत उपेंद्र के चुनाव लड़ने की वजह से ब्राह्मणों ने भाजपा को वोट दिया जबकि अब तक के चुनाव में वे इस सीट पर भाजपा से दूर रहते थे. इसका कारण गोरखपुर में ठाकुरों और ब्राह्मणों के बीच पुरानी राजनीतिक अदावत है.

योगी आदित्यनाथ द्वारा खुलकर ठाकुर लॉबी का नेतृत्व करने से ब्राह्मण उन्हें वोट नहीं करते थे. यही कारण है कि बसपा ने 2009 के चुनाव में इस सीट पर ब्राह्मण और मुसलमान का समीकरण बिठाने के लिए पूर्वांचल के दिग्गज ब्राह्मण नेता हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी को यहां से चुनाव लड़ाया लेकिन सपा ने भोजपुरी अभिनेता व गायक मनोज तिवारी को चुनाव लड़ाकर इस समीकरण को बिगाड़ दिया.

उस समय चर्चा थी कि योगी आदित्यनाथ को राहत देने के लिए अमर सिंह ने सपा से मनोज तिवारी को चुनाव लड़वाया है.

उपचुनाव में हार का दूसरा सबसे बड़ा कारण था निषादों का भाजपा से दूर हो जाना. वर्ष 2016 में निषाद पार्टी बन गई थी और वह धीरे-धीरे अपना आधार बढ़ा रही थी. तब उसकी बढ़ती ताक़त को भाजपा ने नज़रअंदाज़ किया.

यही नहीं भाजपा ने इस इलाके के सभी बड़े निषाद नेताओं की भी अनदेखी की जबकि इस सीट पर निषाद मतदाताओं की संख्या 3 लाख से अधिक मानी जाती है.

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में गोरखपुर ग्रामीण सीट से दिग्गज निषाद नेता रामभुआल निषाद को भाजपा से टिकट काट देना योगी आदित्यनाथ की एक ऐसी गलती थी जो 2018 के लोकसभा उपचुनाव में भाजपा की हार की पृष्ठिभूमि बनी.

उनका टिकट कटने से निषादों में यह संदेश गया कि योगी आदित्यनाथ निषाद नेताओं की उपेक्षा कर रहे हैं. सपा ने तुरंत मौका लपक लिया और रामभुआल निषाद को पार्टी में शामिल कर उन्हें चिल्लूपार से टिकट दे दिया.

सपा ने दूसरा दांव तब मारा जब उपचुनाव में निषाद पार्टी से गठबंधन कर निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद को उम्मीदवार बना दिया. बसपा द्वारा प्रत्याशी घोषित नहीं किए जाने और सपा प्रत्याशी को समर्थन देने से दलित मतदाता भी प्रवीण निषाद के पक्ष में आ गए.

Lucknow: Union Science and Technology Minister Harsh Vardhan (R) and Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath address a joint press conference, in Lucknow, Thursday, Oct 4, 2018. (PTI Photo/Nand Kumar) (PTI10_4_2018_000147B)
योगी आदित्यनाथ और केंद्रीय मंत्री व उत्तर प्रदेश भाजपा प्रभारी जेपी नड्डा. (फाइल फोटो: पीटीआई)

भाजपा को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और उसने पूर्व विधायक जय प्रकाश निषाद व कुछ अन्य नेताओं को भाजपा में शामिल किया लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.

भाजपा के विरोध में पहली बार सपा-बसपा एक साथ आए और परिणामस्वरूप दलित, मुसलमान, निषाद, यादव मतदाता भी एकजुट हुए. नतीजा अपराजेय माने जाने वाली गोरखपुर सीट पर भाजपा की पराजय हुई.

एक वर्ष बाद ही उपचुनाव में बने समीकरण अब बदल गए हैं. भाजपा को हराने वाले प्रवीण निषाद अब ख़ुद भाजपा में शामिल हो गए हैं. उनके पिता डॉ. संजय निषाद ने निषाद पार्टी का भाजपा से गठबंधन कर लिया है.

इस राजनीतिक घटनाक्रम के पहले सपा की पूर्व विधायक राजमती निषाद अपने बेटे अमरेंद्र निषाद के साथ भाजपा में शामिल हो गई थीं.

इस तरह भाजपा निषाद नेताओं को अपने पक्ष में लाने में क़ामयाब हुई है लेकिन वह किसे प्रत्याशी बनाए यह बड़ी गुत्थी बनी हुई है. यदि वह प्रवीण निषाद को प्रत्याशी बनाती है तो अमरेंद्र निषाद नाराज़ हो जाएंगे क्योंकि उन्हें प्रत्याशी बनाने का वादा किया गया है.

यदि अमरेंद्र को प्रत्याशी बनाया जाता है तो निषाद पार्टी के असंतुष्ट होने का ख़तरा है. यदि अमरेंद्र और प्रवीण दोनों को प्रत्याशी नहीं बनाया जाता है तो निषादों में यह संदेश जाएगा कि भाजपा ने एक बार फिर उनके साथ धोखा किया है. तब निषाद पार्टी के भाजपा के साथ रहने के बावजूद अधिकतर निषाद मतदाता सपा प्रत्याशी रामभुआल निषाद के पक्ष में जा सकते हैं.

यदि उपेंद्र दत्त शुक्ल की जगह दूसरे को टिकट दिया जाता है तो ब्राह्मण मतों की नाराज़गी का ख़तरा है. यदि उपेंद्र को फिर प्रत्याशी बनाया जाता है तो क्षत्रियों में नाराज़गी होगी क्योंकि वे गोरखपुर की सीट को अपनी सीट मानते हैं और चाहते हैं कि यहां से कोई क्षत्रिय नेता ही लड़े.

वैसे भी गोरखपुर के ठाकुर इस बात से दुखी हैं कि योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री होने के बावजूद उनका बोलबाला नहीं है. पिछले लोकसभा चुनाव में गोरखपुर मंडल की नौ सीटों में से सिर्फ़ दो गोरखपुर व डुमरियांगज पर क्षत्रिय उम्मीदवारों को टिकट मिला था जबकि चार ब्राह्मण उम्मीदवार को चुनाव लड़ाया गया.

अब तक घोषित छह सीटों में से दो स्थानों पर ब्राह्मण उम्मीदवार दिए गए हैं. संतकबीरनगर और देवरिया से भी ब्राह्मण उम्मीदवार ही उतारे जाने की संभावना है.

संतकबीरनगर के जूता कांड ने उनके दुख को और बढ़ाया है. योगी के कभी क़रीबी रहे हिंदू युवा वाहिनी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह का चुनाव लड़ना भाजपा का सिरदर्द और बढ़ा रहा है.

इस तरह भाजपा को एक साथ क्षत्रिय, ब्राह्मण, निषाद, सैंथवार जातियों के संतुलन को साधना है. गोरखपुर संसदीय क्षेत्र में सैंथवारों की संख्या भी अच्छी-ख़ासी है. वे भाजपा समर्थक माने जाते हैं लेकिन भाजपा में पर्याप्त महत्व नहीं मिलने से दुखी हैं.

वर्ष 2017 के चुनाव में कई सैंथवार नेता भाजपा से बगावत कर चुनाव में खड़े हो गए थे जिन्हें मनाने में अच्छी-ख़ासी मुश्किल हुई थी.

भाजपा की ओर से टिकट के जितने दावेदार हैं, उनमें एक भी ऐसा नहीं है जो जातिगत संतुलन साध सके. यदि ख़ुद योगी आदित्यनाथ उम्मीदवार बनते हैं तभी इस संतुलन को बनाया जा सकता है.

योगी आदित्यनाथ को ख़ुद चुनाव लड़ने में दिक्कत यह है कि उन्हें पूरे देश में प्रचार करने के लिए वक़्त कम हो जाएगा. उन्हें गोरखपुर में बहुत ज़्यादा समय देना पड़ेगा. गोरखपुर से चुनाव लड़ने पर प्रदेश की राजनीति से दूर होने का भी ख़तरा है जो उन्हें शायद ही मंज़ूर हो.

ये सब हालात गोरखपुर में भाजपा के लिए एक योग्य उम्मीदवार की तलाश में बाधा हैं. देखना है कि इन बाधाओं से भाजपा कैसे पार पाती है.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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