राष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्ष के एकजुट होने की नाकाम कोशिश

समाजवादी नेता मधु लिमये के जयंती समारोह में मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और मायावती में से कोई भी नज़र नहीं आया.

समाजवादी नेता मधु लिमये के जयंती समारोह में मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और मायावती में से कोई भी नज़र नहीं आया.

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राजधानी दिल्ली में बीते सोमवार को समाजवादी नेता मधु लिमये का जयंती समारोह मनाया गया.

समाजवादी नेता मधु लिमये की जयंती समारोह के बहाने विपक्षी एकजुटता दिखाने की कोशिश नाकाम दिखती नजर आई. वैसे तो हर साल समाजवादी मधु लिमये की जयंती मनाते हैं लेकिन इस बार इसके बहाने राष्ट्रपति चुनाव से पहले विपक्षी एकता को प्रदर्शित करने की कोशिश की गई थी. इसीलिए कांग्रेस, सपा, राजद, जदयू समेत करीब दर्जन भर दलों को इस समारोह में न्यौता दिया गया था.

लेकिन समारोह में मौजूद भीड़ और उपस्थिति नेताओं को देखकर ये साफ समझ आ रहा था कि शाह व मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा के सामने इस जज्बे से टिक पाना मुश्किल होगा. इस समारोह में वामदल के नेता सीताराम येचुरी, जदयू नेता शरद यादव और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह को छोड़कर कोई बड़ा नेता शामिल नहीं हुआ.

गौरतलब है कि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह के पर दो दिन पहले ही कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व द्वारा कतरे गए हैं. पार्टी ने उनसे दो महत्वपूर्ण राज्यों को प्रभाव वापस ले लिया है.

ऐसे में इसी साल जुलाई में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी दल कितनी एकजुटता दिखा दिखा पाएंगे, इस पर सवाल खड़ा हो गया है.

समारोह में विपक्षी नेता मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और मायावती जैसा कोई चेहरा नहीं था. ऐसे में विपक्षी एकता की यह कोशिश बहुत फीकी नजर आई.

कार्यक्रम में उपस्थित नेताओं पर नजर डालें तो भाकपा नेता अतुल कुमार अनजान, राकांपा के वरिष्ठ नेता डीपी त्रिपाठी, भाकपा केडी राजा और बसपा के सुधींद्र भदौरिया मौजूद थे.

इस मौके पर सीताराम येचुरी ने कहा कि देश में इस वक्त सांप्रदायिक ताकतों का बोलबाला हो गया है और माहौल ऐसा बन गया है जिससे लगता है कि विकास का मतलब सांप्रदायिक होना ही है. येचुरी ने कहा कि ऐसे वक्त में यह बेहद जरूरी है कि कम से कम राष्ट्रपति भवन में एक ऐसा राष्ट्रपति हो जिसकी सोच सेकुलर हो.

उन्होंने हालात को देखते हुए मौजूदा वक्त में वामपंथियों और समाजवादियों के एक होने की जोरदार वकालत की. येचुरी का कहना था कि धर्मनिरपेक्ष समाजवादी गणराज्य विपक्षी एकता की जमीन हो सकती है.

हालांकि कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने मोदी और भाजपा विरोध के नाम पर विपक्षी एकता बनाने की कोशिशों के प्रति चेतावनी भी दी.

उन्होंने कहा कि 1971 में जब सभी विपक्षी दलों ने एकजुट होकर ‘इंदिरा हटाओ’ का नारा दिया था, तब इंदिरा गांधी ने इसकी काट में कहा था कि विपक्षी दल इंदिरा हटाओ का नारा दे रहे हैं, जबकि वह ‘गरीबी हटाओ’ की बात कह रही है. उस चुनाव में इंदिरा गांधी को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई थी. दिग्विजय सिंह ने कहा कि विपक्षी एकता कहीं पूरी लड़ाई को ‘मोदी बनाम सभी दल’ के रूप में तब्दील न कर दे.

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मधु लिमये के जन्म दिवस के मौके पर शरद यादव ने यह कहा कि इस वक्त संविधान को बदल देने की बात हो रही है, इसीलिए विपक्ष को आपसी भेदभाव भूलकर साथ आना बेहद जरूरी है ताकि ऐसा राष्ट्रपति चुना जा सके जो संविधान की रक्षा कर सके.

हालांकि इस कार्यक्रम के दौरान भी वामपंथियों और समाजवादियों के बीच की पुरानी लड़ाई छिप न सकी.

समाजवादी नेता रघु ठाकुर ने वामपंथी नेताओं को आपातकाल की याद दिला दी. उन्होंने कहा कि किस तरह आपातकाल के दौरान जब मधु लिमये समेत सभी समाजवादी जेलों में बंद थे, तब वामपंथी इंदिरा गांधी का समर्थन कर रहे थे.

वहीं, मधु लिमये के बेटे अनिरूद्ध लिमये ने कहा कि विपक्षी दलों से युवा दूर हो गए हैं. उन्होंने कहा कि सभागार में 30 साल से कम युवाओं की नगण्य संख्या इसका प्रमाण है. इस पर विचार करना होगा.

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