हम इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं, बल्कि इससे जुड़े नाम उजागर न करने ख़िलाफ़ हैं: चुनाव आयोग

सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने की याचिका पर हो रही सुनवाई में मोदी सरकार ने बॉन्ड देने वालों की गोपनीयता को बनाए रखने की बात कही, वहीं चुनाव आयोग ने कहा कि पारदर्शिता के लिए दानकर्ताओं के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए.

(प्रतीकात्मक फोटो: पीटीआई)

सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बॉन्ड पर रोक लगाने की याचिका पर हो रही सुनवाई में मोदी सरकार ने बॉन्ड देने वालों की गोपनीयता को बनाए रखने की बात कही, वहीं चुनाव आयोग ने कहा कि पारदर्शिता के लिए दानकर्ताओं के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार और चुनाव आयोग ने बुधवार को इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भिन्न-भिन्न मत रखा. सरकार इलेक्टोरल बॉन्ड देने वालों की गोपनीयता को बनाए रखना चाहती है वहीं चुनाव आयोग का पक्ष है कि पारदर्शिता के लिए दानकर्ताओं के नाम सार्वजनिक किए जाने चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट चुनाव सुधार के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन ऑफ डोमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही थी.

याचिका में कहा गया है कि या तो इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाई जाए या चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड देने वालों का नाम सार्वजनिक किया जाए.

केंद्र ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ से कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की शुरुआत राजनीति में काले धन को समाप्त करने के लिए की गई थी.

दानदाताओं की गोपनीयता अनेक कारणों से बनाए रखी जानी चाहिए जैसे दूसरी राजनीतिक पार्टी अथवा संगठन के जीतने की सूरत में किसी कंपनी पर प्रतिघात का भय होना.

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पीठ के समक्ष कहा, ‘चुनावों में राज्य की ओर से धन मिलने की हमारे पास कोई नीति नहीं है. समर्थकों, प्रभावशाली लोगों अैर कंपनियों से धन मिलता है. वे चाहते हैं कि उनकी राजनीतिक पार्टी जीते. अगर उनकी पार्टी नहीं जीतती तो उन्हें किसी प्रतिघात/नुकसान की आशंका होती है और इसलिए गोपनीयता अथवा गुमनामी की जरूरत है.’

चुनाव आयोग की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने केंद्र की दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना में स्वीकृत गोपनीयता ‘गोपनीयता को वैध’ बनाता है.

द्विवेदी ने कहा, ‘नाम उजागर नहीं करना ठीक नहीं है. हम सुधार चाहते हैं. हम एक कदम आगे बढ़ा कर दो कदम पीछे नहीं खींच सकते. हम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव चाहते हैं.’

उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग इस योजना के खिलाफ नहीं है बल्कि इसके तहत नाम उजागर नहीं करने की बात के खिलाफ है.

वहीं एनजीओ के वकील प्रशांत भूषण ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना में कथित खामियों का जिक्र करते हुए कहा कि यह प्रतिगामी कदम है क्योंकि यह स्वतंत्र और पारदर्शी चुनाव की अवधारणा के विपरीत है.

पीठ इस याचिका पर सुनवाई बृहस्पतिवार को शुरू करेगी.

बता दें कि लोकसभा चुनाव से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री में 62 प्रतिशत का जोरदार उछाल आया है. सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत मांगी गई जानकारी से पता चला है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पिछले साल की तुलना में करीब 62 प्रतिशत बढ़ गई है. साल 2019 में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने 1,700 करोड़ रुपये से अधिक के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे हैं.

इससे पहले साल 2018 में मार्च, अप्रैल, मई, जुलाई, अक्टूबर और नवंबर के माह में 1,056.73 करोड़ रुपये के बॉन्ड बेचे गए थे.

चुनाव आयोग ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना और कॉरपोरेट फंडिंग को असीमित करने से राजनीतिक दलों के पारदर्शिता/ राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे के पारदर्शिता पहलू पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा.

विदेशी योगदान नियमन कानून‘ में संशोधन के केंद्र के फैसले पर, चुनाव आयोग ने कहा कि इससे भारत में राजनीतिक दलों को अनियंत्रित विदेशी फंडिंग की अनुमति मिलेगी और इससे भारतीय नीतियां विदेशी कंपनियों से प्रभावित हो सकती हैं.

चुनाव आयोग और कई पूर्व चुनाव आयुक्तों ने इलेक्टोरल बॉन्ड की कड़ी आलोचना की है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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