गुजरात हाईकोर्ट ने पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध का आदेश ख़ारिज किया

कोर्ट ने गुजरात के टूना बंदरगाह से पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के फैसले को सत्ता का दुरुपयोग बताया.

(फोटो: पीटीआई)

कोर्ट ने गुजरात के टूना बंदरगाह से पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के राज्य सरकार के फैसले को सत्ता का दुरुपयोग बताया.

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अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य के कच्छ जिले में स्थित टूना बंदरगाह से पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए जाने की राज्य सरकार की तीन अधिसूचनाएं रद्द कर दी है. हाईकोर्ट ने पशुओं के निर्यात पर इस तरह से प्रतिबंध लगाने को सत्ता का दुरुपयोग बताया है.

जस्टिस हर्षा देवानी और जस्टिस भार्गव करिया की खंडपीठ ने पिछले हफ्ते ये फैसला सुनाया.

अदालत ने कहा कि ‘समाज का एक वर्ग, जो कि टूना पोर्ट से पशुओं के निर्यात के खिलाफ है, उसको खुश करने के लिए राज्य सरकार ने समय-समय पर ऐसे कदम उठाए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि याचिकाकर्ता और अन्य लोग टूना पोर्ट से पशुओं का निर्यात न कर पाएं.

राज्य सरकार द्वारा दिसंबर 2018 में कच्छ में टूना से जानवरों के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित विभिन्न आदेश जारी करने के बाद कई पशुपालकों ने उच्च न्यायालय में अपील की थी.

उच्च न्यायालय ने यह भी नोट किया कि मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने दिसंबर में घोषणा की थी कि उनकी सरकार बंदरगाह से जानवरों के निर्यात की अनुमति नहीं देगी.

उसी दिन, कृषि विभाग ने गुजरात आवश्यक वस्तु व पशु (नियंत्रण) अधिनियम के तहत एक अधिसूचना जारी कर किसी भी सूखा प्रभावित क्षेत्र में बाहर से मवेशियों के लाने और ले जाने पर रोक लगा दी. कच्छ को पहले ही सूखा प्रभावित क्षेत्र घोषित किया जा चुका था.

सरकार के पशुपालन विभाग के निदेशक ने कस्टम आयुक्त को सूचित किया कि राज्य सरकार ने निर्यात किए जाने वाले पशुओं की स्वास्थ्य जांच के लिए प्रदान की जाने वाली सेवाओं को वापस लेने का फैसला किया है.

हाईकोर्ट ने नोट किया, ‘इसके अलावा कस्टम आयुक्त को आदेश दिया गया कि जब तक पशुओं के संक्रामक रोग की जांच व उसके प्रमाणन की सुविधा पशुपालन विभाग की ओर से जारी नहीं की जाती है, तब तक बंदरगाह से पशुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगी रहे.’

उच्च न्यायालय ने कहा कि उसी दिन गृह विभाग ने कच्छ पुलिस को पशुओं के आयात-निर्यात पर निगरानी रखने के लिए चेक पोस्ट स्थापित करने का निर्देश दिया गया था.

कोर्ट ने आगे कहा, ‘जो राज्य सरकार प्रत्यक्ष रूप से नहीं कर सकती थी है, उसे (मवेशी संरक्षण) अधिनियम की धारा 4 (1)(बी) के तहत दी गई शक्तियों की आड़ में अप्रत्यक्ष रूप से किया गया.’

कोर्ट ने यह भी पाया, ‘यह अधिसूचना सत्ता का दुरुपयोग कर जारी किया गया. इसलिए इसे रद्द किया जाता है.’

हालांकि राज्य सरकार ने अदालत से अपने आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध किया ताकि वह सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर सके लेकिन रोक लगाने की कोई भी दलील मंजूर नहीं की गई.

(समाचार एजेंसी पीटीआई से इनपुट के साथ)

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