मोदी पर चुनावी हलफनामे में संपत्ति की जानकारी छिपाने का आरोप, सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

याचिकाकर्ता ने इस मामले में एसआईटी जांच मांग की है. आरोप है कि नरेंद्र मोदी ने साल 2014 के चुनावी हलफनामा और साल 2015, 2016 और 2017 में संपत्ति की घोषणा में एक प्लॉट की जानकारी नहीं दी.

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Wardha: Prime Minister Narendra Modi gestures as he speaks during an election rally, ahead of the Lok Sabha polls, in Wardha, Monday, April 01, 2019. (PTI Photo)(PTI4_1_2019_000071B)
Wardha: Prime Minister Narendra Modi gestures as he speaks during an election rally, ahead of the Lok Sabha polls, in Wardha, Monday, April 01, 2019. (PTI Photo)(PTI4_1_2019_000071B)

याचिकाकर्ता ने इस मामले में एसआईटी जांच मांग की है. आरोप है कि नरेंद्र मोदी ने साल 2014 के चुनावी हलफनामा और साल 2015, 2016 और 2017 में संपत्ति की घोषणा में एक प्लॉट की जानकारी नहीं दी.

Wardha: Prime Minister Narendra Modi gestures as he speaks during an election rally, ahead of the Lok Sabha polls, in Wardha, Monday, April 01, 2019. (PTI Photo)(PTI4_1_2019_000071B)
(फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक अचल संपत्ति से जुड़ी कथित अनियमितताओं की जांच की मांग की गई है. याचिकाकर्ता ने इस मामले में एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन की मांग की है.

लाइव लॉ के मुताबिक, पूर्व पत्रकार साकेत गोखले याचिका में आरोप लगाया है कि नरेंद्र मोदी 1998 से गुजरात सरकार की एक विवादित भूमि आवंटन नीति के लाभार्थी थे, जिसके तहत सार्वजनिक जमीनों को विधायकों को कम कीमत पर आवंटित किया गया था.

याचिका के अनुसार, मोदी को 2002 में इस नीति का लाभ मिला और 25 अक्टूबर, 2002 को गांधीनगर सिटी (प्लॉट नं. 411, सेक्टर1, गांधीनगर) में सिर्फ 1.3 लाख रुपये में एक प्लॉट उन्हें दिया गया था.

जब मोदी ने 2007 में गुजरात विधानसभा का चुनाव लड़ा था तो उन्होंने अपने हलफनामे में प्लॉट नं. 411 की जानकारी दी थी.

हालांकि साल 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान मोदी द्वारा दायर किए गए हलफनामा में और 2015, 2016 तथा 2017 में प्रधानमंत्री द्वारा अपने संपत्ति की घोषणा में इस प्लाट की जानकारी कथित तौर पर नहीं दी गई है.

विधायकों को सस्ते कीमत में जमीन आवंटित करने की ये नीति उस समय विवादों में आ गई जब गुजरात हाईकोर्ट ने साल 2000 में स्वत: संज्ञान लेते हुए मामला दर्ज किया था. दो नवंबर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट को निर्देश दिया कि वे जल्द इस मामले की सुनवाई करें.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी आदेश दिया कि इस नीति के तहत और कोई भी आवंटन नहीं होना चाहिए और बिना हाईकोर्ट की सहमति के पहले से आवंटित किए गए प्लॉट के ट्रांसफर की इजाजत नहीं दी जाएगी.

ऐसा आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीके जैन और जस्टिस मदन लोकुर की पीठ ने गुजरात सरकार की ओर से पेश हुईं वकील मीनाक्षी लेखी की दलीलों को सुना था. लेखी ने उस समय कहा था कि इस नीति के तहत साल 2000 के बाद से कोई भी आवंटन नहीं हुआ है और इस नीति पर पुनर्विचार किया जा रहा है.

हालांकि याचिकाकर्ता गोखले का कहना है कि ये बयान बिल्कुल गलत है क्योंकि मोदी को इसी नीति के तहत साल 2002 में जमीन दी गई थी.

याचिकाकर्ता का आरोप है कि नरेंद्र मोदी ने हलफनामा में प्लॉट नं. 411 की जगह गांधीनगर में प्लॉट नंबर 401/ए के एक चौथाई हिस्से का मालिक बताया है, जिसका अस्तित्व ही नहीं है. गोखले ने कहा कि प्लॉट नंबर 401/ए जैसी कोई जगह है ही नहीं.

याचिकाकर्ता ने आगे कहा कि गुजरात सरकार की नीति के तहत प्लॉट नंबर 401 को वित्त मंत्री अरुण जेटली को आवंटित किया गया है.

बता दें कि गुजरात सरकार की ये विवादित नीति की सुप्रीम कोर्ट में आगे नहीं बढ़ पा रही है क्योंकि कई जजों ने इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था. इसकी वजह से ये मामला 28 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किया गया.

गोखले ने खुद के द्वारा किए गए दौरे के आधार पर दावा किया कि प्लॉट नंबर 401 अन्य भाजपा नेताओं को आवंटित किए गए प्लॉट के बगल ही है और ये सभी प्लॉट गांधीनगर के बेहद खास स्थान पर हैं.

उन्होंने आगे कहा कि सरकारी दस्तावेजों से इस बात की पुष्टि होती है कि प्ल़ॉट नंबर 411 के मालिक अभी भी नरेंद्र मोदी ही हैं.

साकेत गोखले ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला दिया है जिसमें उम्मीदवारों को जरूरी जानकारी का खुलासा करने को कहा गया है. अगर कोई उम्मीदवार जमीन, संपत्ति की जानकारी का खुलासा नहीं करता है तो जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 1951 के तहत आपराधिक मामला होगा.

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