नेताओं और कार्यकर्ताओं के विरोध के बावजूद भाजपा ने गोरखपुर से रवि किशन को टिकट क्यों दिया?

विशेष रिपोर्ट: गोरखपुर में भाजपा आत्मविश्वास की कमी से जूझ रही है. प्रत्याशी चयन में एक महीना लगना और इस दौरान दर्जन भर नेताओं का नाम आना व ख़ारिज होना इसका उदाहरण है. आखिर में ऐसे प्रत्याशी को ‘आयात’ करना पड़ा, जिसे लेकर पार्टी और समर्थकों में उत्साह नहीं दिख रहा है.

//

विशेष रिपोर्ट: गोरखपुर में भाजपा आत्मविश्वास की कमी से जूझ रही है. प्रत्याशी चयन में एक महीना लगना और इस दौरान दर्जन भर नेताओं का नाम आना व ख़ारिज होना इसका उदाहरण है. आखिर में ऐसे प्रत्याशी को ‘आयात’ करना पड़ा, जिसे लेकर पार्टी और समर्थकों में उत्साह नहीं दिख रहा है.

Gorakhpur: BJP candidate from Gorakhpur constituency Ravi Kishan raises slogans at his roadshow for Lok Sabha polls, in Gorakhpur, Thursday, April 18, 2019. (PTI Photo) (PTI4_18_2019_000264B)
गोरखपुर में एक रोड शो के दौरान रवि किशन (फोटो: पीटीआई)

गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव के ठीक दो महीने पहले 13 जनवरी 2018 की बात है. गोरखपुर महोत्सव का के आखिरी दिन फिल्म अभिनेता रवि किशन आए थे. तब तक उपचुनाव के लिए भाजपा प्रत्याशी के नाम पर चर्चा चल रही थी. रवि किशन भी दावेदारी की चर्चा में शामिल थे.

गोरखपुर महोत्सव में करीब एक घंटे के अपने कार्यक्रम में रवि किशन ने अपनी दो फिल्मों, ‘मुक्काबाज’ और ‘लक’ के डायलॉग सुनाए. इसके अलावा एक गाना दो बार गाया. इस भोजपुरी गाने के बोल थे- ‘लिट्टी चोखवा बनल बा बड़ा मजेदार, जे खाई नाहीं उ पछताई मोरे यार, तनी खा के देख, देह बनी दमदार.’

रवि किशन को पूरी उम्मीद थी कि उपचुनाव में उन्हें गोरखपुर से उतारा जाएगा और उन्हें चुनावी लिट्टी-चोखा खाने को मिल जाएगा. इस कार्यक्रम में उन्होंने मोदी-योगी की तारीफ की झड़ी लगा दी.

अपने को खांटी हिंदुत्व का झंडाबरदार साबित करने के लिए वह भगवा कुर्ता पहन कर मंच पर आए थे और कहा भी कि ‘भगवा में जौन दम बा उ और कौनों में नाहीं बा.’ रवि किशन ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी की कविता- ‘हां, मैं हिंदू हूं, गर्व है मुझे कि मैं हिंदू हूं’ भी सुनााई थी.

रवि किशन ने यह भी बताया कि उन्होंने भ्रूण हत्या, दहेज हत्या पर फिल्म बनाई है और अब अयोध्या पर फिल्म बनाने जा रहे हैं. उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के कसीदे गढ़ते हुए कहा कि- ‘मोदी जी के धन्यवाद कि इतना बढ़िया समय लेकर अइलन.’

योगी आदित्यनाथ को कई बार नाम लिया और उनके लिए दर्शकों से ‘कड़कड़ा’ कर ताली बजाने का अनुरोध किया. उन्होंने अपने को महादेव और गुरु गोरखनाथ का भक्त बताया. लेकिन जब उपचुनाव के लिए भाजपा प्रत्याशी की घोषणा हुई तो उनका नाम नदारद था.

टिकट भाजपा के वरिष्ठ नेता उपेंद्र दत्त शुक्ल को मिल गया. रवि किशन पछताकर रह गए. हालांकि जब चुनाव का परिणाम आया तो भाजपा को भी पछताना पड़ा और ‘मजेदार बना लिट्टी चोखा’ निषाद पार्टी-सपा के उम्मीदवार प्रवीण निषाद को मिल गया.

लेकिन एक वर्ष बाद ही रवि किशन को गोरखपुर के अखाड़े में उतरने का मौका मिल गया है. उन्हें भाजपा ने प्रत्याशी बना दिया है और उनका चुनाव प्रचार शुरू हो चुका है.

पिछले एक महीने गोरखपुर में भाजपा प्रत्याशी के नाम को लेकर चर्चा होती रही और अब जब रवि किशन प्रत्याशी हो गए हैं तो चर्चा चल पड़ी है कि वह उपचुनाव की हार का बदला ले पाएंगे या हार का एक और जख्म दे जाएंगे.

उनकी उम्मीदवारी की घोषणा का गोरखपुर में उत्साह के साथ स्वागत नहीं हुआ है. भाजपा और उसके समर्थक वर्ग की तरफ से ही तीखी प्रतिक्रियाएं आई हैं.

एक भाजपा पार्षद ने लिखा कि अच्छा होता कि उपेंद्र दत्त शुक्ल या डॉ. धर्मेंद्र सिंह को टिकट मिलता. लोग इस पर भी सवाल कर रहे हैं कि जिस सीट का प्रतिनिधित्व गोरक्ष पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ करते रहे हैं, उसका अब एक फिल्मी अभिनेता कैसे कर सकता हैं. रवि किशन के फिल्मों की तस्वीरें फेसबुक पर पोस्ट कर मजाक उड़ाया जा रहा है.

फिल्म अभिनेता रवि किशन को पता है कि उनके सामने बाहरी और जाति को लेकर सबसे पहले सवाल होंगे. इसलिए उन्होंने फौरन बताया कि वह गोरखपुर जिले के ही कछार क्षेत्र के मशहूर गांव मामखोर के रहने वाले है. यहां से उनके पूर्वज जौनपुर चले गए थे.

उनकी जाति बताने का काम खुद भाजपा ने किया. बताया गया कि उनका पूरा नाम रवि किशन शुक्ल है. भाजपा की आधिकारिक विज्ञप्तियों में रवि किशन शुक्ल ही लिखा जा रहा है जबकि सब जानते हैं कि फिल्म अभिनेता अपना नाम रवि किशन ही लिखते रहे हैं.

राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण होता है कि लोग प्रत्याशी की जाति के बारे स्पष्ट रहें और उसकी जाति को लेकर कोई संदेह नहीं रहे. इस मामले में रवि किशन के साथ थोड़ी मुश्किलें आएंगी क्योंकि वह रवि किशन के नाम से ही मशहूर हैं. उन्हें बार-बार अपनी जाति बतानी पड़ेगी.

रवि किशन इसको लेकर पहले से सचेत हैं. गोरखपुर महोत्सव में उन्होंने खुद बिना संदर्भ के बताया कि वह एक ‘गरीब ब्राह्मण’ हैं जिसने जौनपुर के केराकत गांव के बराई विसोईं गांव से मुंबई जाकर संघर्ष कर अपना मुकाम बनाया. गोरखपुर महोत्सव में रवि किशन ने गाना गाने या नृत्य करने के बजाय ज्यादा समय अपने बारे में बताने में लगाया था.

वह आते ही बोले, ‘गा के सुनाई, डायलॉग सुनब या हमार कहानी सुनोगे.’ दर्शकों की ओर से गाने और नाचने की मांग आई तो उन्होंने ‘आंख में लगा के गोरी लेंस नीला, तबाह कइलू जिला’ और ‘नजर न केकरो लग जाए कहीं हुस्न के कोठी में, ऐगो नेबुआ दो चार गो मिर्ची लगा ल चोटी में’ गाना गाया लेकिन अधिकतर समय रवि किशन अपने बारे में बताते रहे.

मनोरंजन के उद्देश्य से आए दर्शकों को इससे निराशा हुई थी लेकिन अब उन्हें समझ में आ रहा है कि रवि किशन ने इस स्टेज का इस्तेमाल अपने को लॉन्चिंग करने के लिए किया था.

उन्होंने बताया था कि वह ‘रामलीला में सीता का रोल करते थे. इस कारण पिता ने उनकी पिटाई की. मां ने 500 रुपये देकर घर से भागने में मदद की. वह मुंबई चले गए. ग्रेजुएशन तक पढ़ाई की. अखबार बांटा, सीडी बेची. भोजपुरी के साथ-साथ तेलुगू, कन्नड़ आदि भाषाओं में भी फिल्में की. भोजपुरी में 400 फिल्मों सहित कुल 500 फिल्मों में काम किया. सलमान खान के साथ काम किया. टेलीविजन में काम किया. बेस्ट पॉपुलर एक्टर का अवॉर्ड मिला. गांव का लड़का भोजपुरी की लड़ाई लड़ा और बिना किसी गॉडफादर के सुपर स्टार बन गया.’

इस कार्यक्रम में उन्होंने अपने पूर्वजों के मामखोर गांव का होने के बारे में नहीं बताया था. गोरखपुर से जुड़ाव के बारे में यह बताया कि उन्होंने 2002 में अपनी पहली भोजपुरी फिल्म गोरखपुर-कुशीनगर में शूट की थी और शूटिंग के सिलसिले में उनका बराबर आना-जाना हुआ.

रवि किशन गोरखपुर में चुनाव लड़ने आ तो गए हैं लेकिन उन्हें कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा क्योंकि भोजपुरिया इलाके की जमीन भोजपुरी फिल्मों के लिए तो मुफीद है लेकिन राजनीति के लिए कठोर है.

खुद भोजपुरी गायक-अभिनेता मनोज तिवारी में सपा के टिकट पर लड़कर 2009 का लोकसभा चुनाव हार चुके हैं. वह चुनाव ही नहीं हारे बल्कि तीसरे स्थान पर चले गए. उन्हें सिर्फ 11 फीसदी वोट मिले.

इसी जिले की रहने वाली अभिनेत्री काजल निषाद 2012 में गोरखपुर ग्रामीण विधानसभा से चुनाव लड़कर हार चुकी हैं. उन्हें सिर्फ 17,558 मत मिले. खुद रवि किशन 2014 का लोकसभा चुनाव अपने गृह जनपद जौनपुर से बुरी तरह से हार गए थे. उन्हें सिर्फ 42,759 वोट मिले. वह कांग्रेस से लड़े थे. तब तो वह बीच चुनाव में ही भाग खड़े हुए थे.

2009 के लोकसभा चुनाव में मनोज तिवारी के लिए अमर सिंह, संजय दत्त, जयाप्रदा को भी लेकर आए थे. आजमगढ़ से पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ भाजपा से चुनाव लड़ रहे दिनेश यादव निरहुआ भी प्रचार में आए थे.

मनोज तिवारी की सभाओं में खूब भीड़ होती थी. भीड़ में सामान्य लोग बड़ी संख्या में होते थे. मनोज तिवारी सभाओं में बोलते कम थे, गाने ज्यादा गाते थे.

अगर वह भाषण देते तो लोग उनसे गाने की फरमाइश करने लगते. इस तरह से पूरे चुनाव में लोगों ने खूब लुत्फ लिया लेकिन जब वोट देने की बारी आई, तो योगी आदित्यनाथ और उनके निकटतम प्रतिद्वंदी विनय शंकर तिवारी को दे दिया. मनोज तिवारी को न तो ब्राह्मणों का वोट मिला न उन लोगों का जो उनकी फिल्मों व गानों के सबसे अधिक दीवाने हैं.

भाजपा के लोग ही सवाल पूछ रहे हैं कि आखिर पार्टी ने रवि किशन और दिनेश यादव निरहुआ को किस मकसद से गोरखपुर और आजमगढ़ से चुनाव लड़ाने का निर्णय लिया है?

आखिर किन कारणों से आजमगढ़ में रमाकांत यादव और गोरखपुर में तमाम दिग्गज नेताओं की अनदेखी कर निरहुआ और रवि किशन को टिकट दिया गया?

इसका कोई जवाब नहीं है सिवाय इसके कि भोजपुरी के ये लोकप्रिय गायक-अभिनेता अपने दीवाने, जिसमें बड़ी संख्या दलित-पिछड़े वर्ग के मेहनतकश लोगों की है, को अपने पक्ष में मतदान करा ले जाएंगे जो  सिर्फ भाजपा के कमल चुनाव निशान से होता नहीं दिख रहा है.

यह तर्क पहले के चुनावों में मनोज तिवारी, काजल निषाद और खुद रवि किशन के हश्र को देखते हुए मुगालता ही लगता है. गोरखपुर की राजनीतिक जमीन वैसे भी लोकसभा उपचुनाव के बाद से भाजपा के लिए पथरीली होती जा रही है.

विरोधी दलों को अब अपनी लगातार हार और भाजपा की लगातार जीत के कारणों की एकदम सटीक पहचान हो गई है. यह कारण था ब्राह्मण और निषाद वोटों में विभाजन. इनमें से कोई एक वोट बैंक बंटे नहीं और एकमुश्त भाजपा के खिलाफ जाए तो भाजपा को जीत नसीब नहीं होगी.

पिछले तीन दशक में हुए सभी चुनावों में विरोधी दलों -सपा, बसपा, कांग्रेस इस समीकरण की अनदेखी करते हुए आपस में ही लड़ जाते थे. सिर्फ 1999 का चुनाव इसका अपवाद था जिसमें विपक्षी एकता और समीकरण से ठीक से बना और योगी आदित्यनाथ बड़ी मुश्किल से जीत पाए.

लोकसभा उपचुनाव में सपा-बसपा-निषाद पार्टी के एक साथ आने से मजबूत हुए विपक्ष ने भाजपा उम्मीदवार को 21,881 मतों से पराजित कर दिया. उपचुनाव के बाद भाजपा के पक्ष में कई बातें हुईं हैं. सपा के बड़े निषाद नेता अमरेंद्र निषाद और उनकी मां राजमती निषाद भाजपा में आ गए.

निषाद पार्टी नाटकीय ढंग से महागठबंधन से अलग हो गई और भाजपा के साथ आ गई. उपचुनाव में भाजपा को हराने वाले प्रवीण निषाद खुद भाजपा में शामिल हो गए.

इस हिसाब से देखें तो भाजपा चुनाव में मजबूत दिखती है लेकिन भाजपा ने गोरखपुर सीट पर जीतने के चक्कर में ऐसी रणनीति बना ली है कि उसे न सिर्फ गोरखपुर बल्कि आस-पास की दो और सीटों- देवरिया व संतकबीरनगर को फिर से जीत पाना मुश्किल लग रहा है.

प्रवीण निषाद को गोरखपुर के बजाय संतकबीरनगर से लड़ने को भेज दिया गया है. वहां उन्हें कठिन लड़ाई से जूझना पड़ रहा है. ऐसे में वह और उनके पिता निषाद पार्टी के अध्यक्ष डा. संजय निषाद गोरखपुर में भाजपा की ज्यादा मदद नहीं कर पाएंगे.

टिकट न मिलने से अमरेंद्र निषाद-राजमति निषाद अनमने हो गए हैं. गोरखपुर में निषाद मतदाताओं के लिए सपा प्रत्याशी रामभुआल निषाद के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचता है. इस तरह से भाजपा को निषाद वोटों का यहां कोई फायदा होता नहीं दिखता है.

अब पूरा दारोमदार रवि किशन के साथ ब्राह्मण मतों के जुड़ाव पर बनता है. गोरखपुर में कांग्रेस ने अभी प्रत्याशी घोषित नहीं किया है. वह गोरखपुर से मजबूत ब्राह्मण प्रत्याशी की खोज में है. यदि उसने मजबूत ब्राह्मण नेता को चुनाव मैदान में उतार दिया तो ब्राह्मण मतों में बिखराव होगा और यह लाभ भी पाने से भाजपा वंचित हो जाएगी.

वैसे भी ब्राह्मणों के बड़े हिस्से में उपेंद्र दत्त शुक्ल का टिकट काटकर रवि किशन को दिए जाने से नाराजगी है. भाजपा के मीडिया विभाग से जुड़े एक नेता ने रवि किशन को टिकट मिलने पर उपेंद्र की फोटो लगाकर फेसबुक पर एक कविता लिखी-

‘क्या हार में क्या जीत में/किंचित नहीं भयभीत मैं/संघर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही/ वरदान मांगूंगा नहीं/ लघुता न अब मेरी छुओ/ तुम हो महान बने रहो/ अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूंगा नहीं/ वरदान मांगूंगा नहीं.’

कविता की इन पंक्तियों में भाजपा कार्यकर्ताओं खासकर ब्राह्मणों का दर्द अभिव्यक्त हो रहा है. इन लोगों का मानना है कि उपेंद्र शुक्ल सिर्फ 21,881 वोट से हारे थे. इस बार उन्हें दोबारा टिकट दिया जाता तो निश्चित जीत जाते.

उपेंद्र पुराने भाजपा कार्यकर्ता हैं. उनके साथ यह सलूक दोबारा हुआ है. गोरखपुर जिले के कौड़ीराम विधानसभा क्षेत्र से वह चुनाव लड़ते थे. जब उनके जीत की संभावना सबसे प्रबल थी तब उनका टिकट काट दिया गया. वह विद्रोह कर चुनाव लड़े और हार गए. इस बार फिर उनके साथ पुरानी कहानी दोहरा दी गई है.

गोरखपुर उपचुनाव में भाजपा ने अपनी हार का कारण ‘अति आत्मविश्वास’ माना था. विश्लेषण के बाद यह निष्कर्ष दिया गया कि जीत के प्रति अति आत्मविश्वास के कारण कार्यकर्ता जमकर चुनाव प्रचार में नहीं लगे. दूसरा बड़ा कारण यह बताया गया कि उपचुनाव के प्रति उदासीनता और भाजपा की जीत के प्रति आश्वस्त भाजपा समर्थक मतदान करने के प्रति गंभीर नहीं रहे. मतदान प्रतिशत गिर गया और वे हार गए.

लेकिन भाजपा की गोरखपुर में चुनाव तैयारी व रणनीति को देखें तो लगता है कि पार्टी अति आत्मविश्वास के बजाय आत्मविश्वास में कमी की शिकार हो गई है. प्रत्याशी चयन में एक महीने का समय लगना और इस दौरान एक दर्जन नेताओं का नाम आना व खारिज होना इसका उदाहरण है.

आखिर में प्रत्याशी को ‘आयात’ करना पड़ा जिसको लेकर पार्टी और समर्थक मतदाताओं में उत्साह दिख नहीं रहा है. इसलिए प्रत्याशी के नाम की घोषणा के दो दिन बाद ही प्रत्याशी के बजाय नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा गोरखपुर में किए गए विकास कार्यों के बल पर वोट देने की अपील होने लगी है.

यह अपने आप में हताशा का परिचायक है कि प्रत्याशी के बजाय मोदी-योगी के नाम पर वोट मांगा जाए. इसके अलावा चुनाव प्रचार में जब रवि किशन उतरेंगे तो उनको देखने-सुनने के लिए भीड़ तो आएगी लेकिन गोरखपुर महोत्सव में उनके परफार्मेंस की तरफ जल्दी निराश हो जाएगी क्योंकि वह मनोज तिवारी, दिनेश यादव, खेसारी लाल, पवन सिंह की तरह न अच्छे गायक हैं, न डांसर.

अभिनेता बेशक इनमें वह अच्छे हैं. इसलिए वह उस तरह समां नहीं बांध पाएंगे जैसा मनोज तिवारी व निरहुआ बांधते हैं. हर बात में ‘शंभो शंभो’, ‘हर हर महादेव’, ‘जय हो’, ‘भइया हो’ के टेर लगाके लोगों को सभा में सुनने तक के लिए जोड़ पाना ही मुश्किल होगा, अपने पक्ष में वोट डलवा पाना तो और भी कठिन.

रवि किशन अपने कार्यक्रमों में फिल्म ‘लक’ का अपना डायलॉग जरूरत सुनाते हैं- न 20 रुपये की रस्सी राघव की जान ले सकती है न 20 हजार की गड्डी राघव को खरीद सकती है…. राघव ब्लांइड खेलता है, सामने वाले को डबल आना पड़ता है… रेस में टट्टू दौड़ते हैं, राघव तो शेर है… पहले सही व्यक्तित्व के सामने दांत निपोरना सीखो …..इसको कहते हैं पैंतरा.

रवि किशन ने गोरखपुर में भाजपा से उम्मीदवारी प्राप्त कर ब्लांइड गेम तो खेल दिया है लेकिन उनका प्रतिद्वंदी समीकरणों के हिसाब से पहले से ‘डबल’ है. देखना है कि उनके फिल्मी पैंतरे लोगों को कितना लुभा पाते हैं और पिछले एक वर्ष से गोरखपुर का ‘लिट्टी-चोखा ’ खाकर अपने को दमदार बनाने की उनकी हसरत पूरी हो पाती है कि नहीं.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/pkv-games/ https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/bandarqq/ https://arch.bru.ac.th/wp-includes/js/dominoqq/ https://ojs.iai-darussalam.ac.id/platinum/slot-depo-5k/ https://ojs.iai-darussalam.ac.id/platinum/slot-depo-10k/ https://ikpmkalsel.org/js/pkv-games/ http://ekip.mubakab.go.id/esakip/assets/ http://ekip.mubakab.go.id/esakip/assets/scatter-hitam/ https://speechify.com/wp-content/plugins/fix/scatter-hitam.html https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/ https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://www.midweek.com/wp-content/plugins/fix/dominoqq.html https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/ https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://betterbasketball.com/wp-content/plugins/fix/dominoqq.html https://naefinancialhealth.org/wp-content/plugins/fix/ https://naefinancialhealth.org/wp-content/plugins/fix/bandarqq.html https://onestopservice.rtaf.mi.th/web/rtaf/ https://www.rsudprambanan.com/rembulan/pkv-games/ depo 20 bonus 20 depo 10 bonus 10 poker qq pkv games bandarqq pkv games pkv games pkv games pkv games dominoqq bandarqq pkv games dominoqq bandarqq pkv games dominoqq bandarqq