भोपाल गैस त्रासदी 20वीं सदी की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक: संयुक्त राष्ट्र

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी दुर्घटनाओं और काम के चलते हुईं बीमारियों से 27.8 लाख कामगारों की मौत हो जाती है. इनकी वजह तनाव, काम के लंबे घंटे और बीमारियां हैं. ये भी बताया गया है कि पुरुषों की तुलना में सबसे ज़्यादा महिलाएं प्रभावित होती हैं.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी दुर्घटनाओं और काम के चलते हुईं बीमारियों से 27.8 लाख कामगारों की मौत हो जाती है. इनकी वजह तनाव, काम के लंबे घंटे और बीमारियां हैं. ये भी बताया गया है कि पुरुषों की तुलना में सबसे ज़्यादा महिलाएं प्रभावित होती हैं.

फाइल फोटो: पीटीआई
फाइल फोटो: पीटीआई

नई दिल्ली: संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि हजारों लोगों को मौत के मुंह में धकेलने वाली 1984 की भोपाल गैस त्रासदी दुनिया की ‘सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं’ में से एक है.

रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी दुर्घटनाओं और काम के चलते हुईं बीमारियों से 27.8 लाख कामगारों की मौत हो जाती है. इसके अलावा 374 मिलियन मजदूर गैर औद्योगिक दुर्घटनाओं से प्रभावित होते हैं.

संयुक्त राष्ट्र की श्रम एजेंसी अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्य प्रदेश की राजधानी में यूनियन कार्बाइड के कीटनाशक संयंत्र से निकली कम से कम 30 टन मिथाइल आइसोसायनेट गैस से 600,000 से ज्यादा मजदूर और आसपास रहने वाले लोग प्रभावित हुए थे.

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि सरकार के आंकड़ों के अनुसार 15,000 मौतें हुई थीं. उस इलाके में अब भी जहरीले कण मौजूद हैं और हजारों पीड़ित तथा उनकी अगली पीढ़ियां सांस संबंधित बीमारियों से जूझ रही है तथा उनके अंदरुनी अंगों एवं प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुंचा है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 1919 के बाद भोपाल त्रासदी दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक थी.

साल 1919 के बाद अन्य नौ बड़ी औद्योगिक दुर्घटनाओं में चेर्नोबिल त्रासदी और जापान के फुकुशिमा परमाणु दुर्घटना के साथ ही बांग्लादेश के राणा प्लाजा इमारत ढहने की घटना शामिल हैं.

अप्रैल, 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल पॉवर स्टेशन में, जो कि चार परमाणु रिएक्टरों में से एक है, में हुए हादसे से नागासाकी और हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बमों की तुलना में लगभग 100 गुना ज्यादा विकिरण हुआ था.

विस्फोट के दौरान 31 लोग मारे गए थे लेकिन बाद में हजारों लोगों की मौत हुई.

मार्च 2011 में उत्तर-पूर्वी जापान में आए भूकंप और सुनामी की वजह से फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र में विस्फोट और आग की वजह से विकिरण फैला था, जिससे वहां काम कर रहे मजदूर और आम लोग प्रभावित हुए थे.

अप्रैल 2013 में बांग्लादेश की राजधानी ढाका में राणा प्लाजा इमारत के ढह गई थी, जिसमें पांच कपड़ा कारखाना थे. इमारत के ढहने से लगभग 1,123 लोगों की मौत हुई थी और 2,500 से ज्यादा घायल हुए थे.

आईएलओ के रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल पेशे से जुड़ी मौतों की वजह तनाव, काम के लंबे घंटे और बीमारियां हैं. ये भी बताया गया है कि पुरुषों की तुलना में सबसे ज्यादा महिलाएं प्रभावित होती हैं.

रिपोर्ट में इसका कारण आधुनिक कार्य पद्धति, विश्व जनसंख्या में वृद्धि, डिजिटल कनेक्टिविटी और जलवायु परिवर्तन जैसे कारण भी हैं.

आईएलओ की मनाल अज्जी ने यूएन न्यूज से कहा, ‘काम की दुनिया बदल गई है, हम अलग तरीके से काम कर रहे हैं. ज्यादा घंटों तक काम कर रहे हैं.’

रिपोर्ट में कहा गया है कि 36 प्रतिशत कामगार बेहद लंबे घंटों तक काम कर रहे हैं मतलब कि हर सप्ताह 48 घंटे से ज्यादा. रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिदिन व्यावसायिक बीमारियों से 6,500 लोगों की मौत होती है, वहीं दुर्घटनाओं से लगभग 1000 लोग मरते हैं.

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