बीफ वीडियो पर काजोल का सफाई देना इस डरावने दौर का सबूत है

हिंदुस्तान में जो व्यक्ति जितना ज़्यादा ताकतवर और प्रसिद्ध है, उसके सत्ता के पक्ष में बयान देने की संभावना उतनी ज़्यादा रहती है. चाहे वे फिल्म स्टार हों या बिज़नेसमैन, सभी ने सत्तारूढ़ दल के साथ खड़े होने की अपनी वजहें तलाश ली हैं.

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हिंदुस्तान में जो व्यक्ति जितना ज़्यादा ताकतवर और प्रसिद्ध है, उसके सत्ता के पक्ष में बयान देने की संभावना उतनी ज़्यादा रहती है. फिर चाहे वे क्रिकेटर हों, फिल्म स्टार हों या बिज़नेसमैन, सभी ने सत्तारूढ़ दल और उसकी विचारधारा के साथ खड़े होने की अपनी वजहें तलाश ली हैं.

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काजोल. (फोटो: यूट्यूब)

अभिनेत्री काजोल की ट्विटर टाइमलाइन पर एक फोटो ट्वीट है, ‘देयर इज़ ब्यूटीफुल एंड देयर इज़… (स्पीचलेस)!’ जीन्स कम लाइक दैट, मिस यू.’ (कुछ लोग सुंदर होते हैं और कुछ लोग… (मेरे पास शब्द नहीं हैं) जीन (ख़ानदानी गुण) इसी तरह से आते हैं…

ट्विटर पीढ़ी शायद न जानती हो कि इस फोटो में काजोल की मां तनुजा और नानी शोभना समर्थ हैं. ये दोनों अपने ज़माने की लोकप्रिय अभिनेत्रियां थीं. शोभना ने अपना करिअर 1930 के दशक में शुरू किया था और उनकी पहचान बड़े परदे की सीता के तौर पर बनी थी.

तनुजा 1960 और 70 के दशक की मशहूर अदाकारा थीं, जिन्होंने ज़्यादातर हल्के-फुल्के किरदारों को भरपूर ग्लैमर और अदाओं के साथ निभाया.

अपनी फिल्मी पहचान के अलावा समर्थ और तनुजा अपनी आज़ाद ख़्याल जीवनशैली के लिए भी जानी जाती थीं और यह तारीफ़ की बात है. बहरहाल यह उनकी निजी ज़िंदगी या उनके व्यक्तिगत फैसलों पर बहस करने का मौका नहीं है.

इस बात का ज़िक्र बस यह बताने के लिए किया गया है कि वे बोल्ड, उन्मुक्त और अपने आप में अनूठी थीं. आज भी बॉलीवुड में उन जैसी महिलाओं को खोज पाना मुश्किल है. उन्होंने अपना जीवन साहस के साथ अपनी मर्ज़ी से जिया.

काजोल भी बॉलीवुड अदाकारा की बनी-बनाई छवि में फिट नहीं होतीं.  कहा जाता है कि वे बेहद पढ़ाकू किस्म की हैं. फिल्मी दुनिया के कृत्रिम सितारा व्यक्तित्वों के समंदर में वे मौलिक होने के नाते अलग ही दिखाई देती हैं. वे किसी और की तरह नहीं, बस अपनी जैसी हैं.

इस तथ्य की रोशनी में यह और ज़्यादा निराश करती है कि हमेशा खुलकर बोलने वाली, किसी की राय के बारे में परवाह न करने वाली काजोल को अपने एक ट्वीट पर एक बयान जारी करके स्पष्टीकरण देना पड़ा.

कुछ दिनों पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर हुआ था. इस वीडियो में वे अपने दोस्त- शेफ रयान से मेज पर रखे पकवान के बारे में बताने के लिए कह रही हैं. रयान जवाब देते हैं, ‘बीफ पेपर वॉटर- ड्राय लेंटिल्स एंड ड्राय बीफ’.  काजोल कहती हैं, ‘ओके, वी आर गोइंग टू कट हिज हैंड्स ऑफ आफ्टर दिस’. (अच्छा, इसके बाद हम इसका हाथ काटने जा रहे हैं)

बीफ खाने को लेकर इस देश में अब तक जो हुआ है उसे देखते हुए यह एक ख़राब मज़ाक था, ख़ासतौर पर तब जब कुछ लोगों को बीफ (गो-मांस) खाने या रखने के शक मात्र के कारण कितना कुछ भुगतना पड़ा है. लेकिन उनकी टाइमलाइन पर वीडियो आने के कुछ देर बाद ही, उन्होंने इसे हटा लिया और इसकी जगह सफाई के तौर पर अपना बयान अपलोड कर दिया.

इसमें उन्होंने कहा है,

‘एक दोस्त के घर लंच के मेरे एक वीडियो के बारे में कहा गया कि मेज पर एक बीफ का बना एक व्यंजन था. यह एक मिस-कम्युनिकेशन (गलत प्रचार) है. वीडियो में दिखाया गया मीट भैंस का था जो भारत में क़ानूनी रूप से उपलब्ध है. मैं यह स्पष्टीकरण इसलिए दे रही हूं क्योंकि यह एक संवेदनशील मसला है, जिससे धार्मिक भावनाएं आहत हो सकती हैं, जो मेरा इरादा नहीं है.’

यहां यह जानना भी दिलचस्प है कि काजोल की उस स्तर की ट्रॉलिंग नहीं हुई जिसका सामना आमतौर पर किसी व्यक्ति, ख़ासतौर पर किसी सेलेब्रिटी को नैतिकता के स्वयंभू ठेकेदारों द्वारा खींची गई लक्ष्मण-रेखा लांघने पर करना पड़ता है.

नैतिकता के इन मुजाहिदों के लिए पार्टी, राष्ट्र, सेना आदि सभी सवालों के परे और पवित्र हैं. इनको लेकर वे किसी भी तरह का मत-विभेद बर्दाश्त नहीं करते और इसके पहले संकेत पर ही वे सामने वाले पर पूरी ताकत से टूट पड़ते हैं. यह मुमकिन है कि यह वीडियो भी उन्हें पार्टी लाइन का विरोधी नज़र आया हो, लेकिन उन्होंने उस तरह कि ट्रॉलिंग जैसा कुछ नहीं किया.

पर इस मामले में फिल्मी दुनिया के उनके दूसरे साथी- आमिर ख़ान, शाहरुख ख़ान और किसी ज़माने में उनके सबसे अच्छे दोस्त रहे करन जौहर- उनकी तरह ख़ुशकिस्मत नहीं साबित हुए. विभिन्न मुद्दों पर इन सभी को अपने मन की बात कहने की सज़ा के तौर पर बेहद क्रूर तरीके से सार्वजनिक मलामत झेलनी पड़ी और उन पर तमाम हमले किए गए.

बातों-बातों में आमिर जब यह कहते दिखे कि कि देश में बढ़ रही असहिष्णुता से वे चिंतित हैं, तब न सिर्फ उनकी आक्रामक ट्रॉलिंग हुई, बल्कि ई-कॉमर्स कंपनी स्नैपडील के साथ लंबे समय से चले आ रहा उनका विज्ञापन क़रार भी इस विवाद की भेंट चढ़ गया. इसके बाद रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर ने सबको यह बताया इस तरह की बात करने का ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़ता है. तब से तो बॉलीवुड के सारे बाशिंदों ने चुप्पी साध ली है.

इसमें कोई दोराय नहीं कि बीफ को लेकर बनाए गए नियमों को तोड़ने का थोड़ा-सा भी शक होने पर आम लोगों को इसकी कहीं बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. वैसे सत्तारूढ़ दल से काजोल और उनके पति की नज़दीकी देखते हुए इस बात की संभावना भी बेहद कम है कि बीफ (गोमांस) खाने के शक की वजह से किसी भीड़ ने पीट-पीटकर काजोल की जान ले ली होती.

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इस नज़दीकी के चलते यह भी संभव था अगर वे यह सफाई नहीं भी देतीं कि मेज पर भैंस का मीट था, जो कि क़ानूनी तौर पर उपलब्ध है, तब भी वे ट्रोल्स के बड़े हमले से बच गई होतीं. पर फिर ऐसा क्या था जिसने उन्हें इस बारे में आगे बढ़कर बयान जारी करने के लिए प्रेरित किया?

साफतौर पर समझ में आनेवाला एक कारण तो यह हो सकता है कि उनके करीबी लोगों ने उन्हें सलाह दी हो कि वे किसी संवेदनशील मसले में न पड़ें और बात का बतंगड़ बनने से पहले ही मामले को रफा-दफा कर दें.

उनका यह कहना कि ‘मैं यह स्पष्टीकरण इसलिए जारी कर रही हूं, क्योंकि यह एक संवेदनशील मसला है, जो धार्मिक भावनाओं को आहत कर सकता है’, अपने आप में यह संकेत देता है कि किसी ने उन्हें यह बताया कि बोलते वक्त उन्हें सतर्क रहना चाहिए.

काजोल और उनके पति दोनों ही फिल्म उद्योग में हैं. यहां किसी राजनीतिक बयान का उल्टा अर्थ निकाले जाने के परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं. हो सकता है उनकी फिल्मों को उत्तर प्रदेश, हरियाणा या यहां तक कि महाराष्ट्र में प्रदर्शित होने से रोक दिया गया, जहां सरकार ने बीफ (गो-मांस) को एक बड़ा भावनात्मक मुद्दा बना दिया है?

ऐसा पहले एक बार हो चुका है. 2006 में गुजरात के फिल्म प्रदर्शकों ने यह घोषणा की थी कि वे आमिर अभिनीत फिल्म फ़ना (जिसमें उनके साथ काजोल थीं) का प्रदर्शन नहीं होने देंगे, क्योंकि उन्होंने उस वक़्त नर्मदा बांध परियोजना के ख़िलाफ़ कोई बयान दिया था. उस वक़्त गुजरात में भाजपा सत्ता में थी. आज भाजपा केंद्र सहित कई राज्यों में सत्ता में है जहां बीफ शब्द का ज़िक्र भर ही जनभावनाओं के उबार के लिए काफ़ी है.

काजोल प्रसार भारती बोर्ड की सदस्य भी हैं. हालांकि वे शायद ही इसकी ज़्यादा परवाह करती हों, लेकिन अगर उन्हें इस पद से हटा दिया जाता है तो यह अपमानजक होगा. इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि पिछले साल जनवरी में उन्होंने कहा था कि आजकल लोग ‘अतिसंवेदनशील’ हो गए हैं, लेकिन वे अपने मन की बात करने में यक़ीन करती हैं. पर अब शायद उन्हें यह एहसास हो ही गया होगा कि कहीं न कहीं वे ख़ुद इस अतिसंवेदनशीलता का शिकार बन गई हैं.

हालांकि यह भी हो सकता है कि उनकी प्रतिक्रिया में अपमान से कहीं ज़्यादा डर का हाथ हो सकता है. साधारण परिस्थितियों में मशहूर हस्तियां उन ख़तरों से तो महफूज़ रहती हैं, जिनका सामना आम लोगों को करना पड़ता है.

प्रसिद्धि और प्रतिष्ठा उन्हें एक सीमा से ज़्यादा परेशान होने से बचाती है. यह आज़ादी उन्हें किसी सार्वजनिक मसले पर अपना पक्ष रखने या कम से कम जनता या अधिकारियों के दबाव के सामने न झुकने की इजाज़त देती है.

पिछले दिनों हमने यह भी देखा है कि हॉलीवुड सितारे हर तरह के सार्वजनिक मंचों पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की आलोचना करते नज़र आए हैं. उन्होंने हर तरह के मुद्दों पर ट्रम्प से हिसाब मांगा है. उन्होंने प्रसिद्धि का इस्तेमाल किसी बात पर एक स्टैंड लेने के लिए करते हैं.

लेकिन, हिंदुस्तान में जो व्यक्ति जितना ज़्यादा ताकतवर और प्रसिद्ध है, उसके सत्ता के पक्ष में बयान देने की संभावना उतनी ज़्यादा रहती है. फिर चाहे वे क्रिकेटर हों, फिल्म स्टार हों या बिज़नेसमैन, सभी ने सत्तारूढ़ दल और उसकी विचारधारा के साथ खड़े होने की अपनी वजहें तलाश ली हैं.

उनके बयान और कार्य सत्ताधारी नेताओं, विशेषकर प्रधानमंत्री की हां में हां मिलाने वाले हैं. वे सरकार की हर नीति के बचाव में खड़े नज़र आते हैं, उन जगहों पर भी जहां चुप्पी एक ज़्यादा बेहतर विकल्प हो सकती थी, वहां भी ये उनका पक्ष लेते हुए अपनी वफ़ादारी साबित करने से नहीं चूकते.

इस मामले में काजोल के सामने यह घोषणा करने की कोई मजबूरी नहीं कि टेबल पर परोसा गया खाना बीफ (गोमांस) नहीं था. उनसे पुलिस किसी तरह की पूछताछ नहीं कर रही थी, न ही उन्होंने यह कहा है कि उन्होंने किसी क़ानूनी पचड़े से बचने के लिए यह स्पष्टीकरण दिया है. फिर आख़िर उन्हें ख़ुद से ‘भावनाओं के आहत होने’ का कयास लगाने की क्या ज़रूरत आ पड़ी?

वैसे भी आज के समय में भावनाओं का आहत होना बड़ा नाज़ुक मामला है (और भले ही काजोल इससे बच गई हों, लेकिन क्या हम इस बारे में पूरी तरह से निश्चिंत हो सकते हैं कि जिस बेचारे शेफ ने जिस गर्व के साथ अपने व्यंजन के बारे में बताया था, वह ट्रोल्स गुस्से से और क़ानून से बच पाएगा?).

अगर उनमें घबराहट थी, तो वे चुपचाप बिना किसी को बताए वह वीडियो हटा सकती थीं. लेकिन यह हमारे पागलपन भरे डरावने समय का ही कारनामा है कि अपनी आज़ादख्याल, स्पष्टवादी ख़ानदानी परंपरा पर गर्व करने वाली एक अभिनेत्री को ख़ुद को बचाने लिए यूं सफाई देने सामने आना पड़ा.

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