क्या नरेंद्र मोदी पर उनकी ‘चतुराई’ भारी पड़ रही है?

2019 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी की वशीकरण कला की परीक्षा है. उन्होंने पांच साल चतुराई से सत्ता के तंत्र-मत्रों, मार्केटिंग और झूठ से करोड़ों मतदाताओं की जो वशीभूत भीड़ बनाई है, उसका नतीजा 23 मई को दिखाई देगा.

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2019 का लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी की वशीकरण कला की परीक्षा है. उन्होंने पांच साल चतुराई से सत्ता के तंत्र-मत्रों, मार्केटिंग और झूठ से करोड़ों मतदाताओं की जो वशीभूत भीड़ बनाई है, उसका नतीजा 23 मई को दिखाई देगा.

Narendra Modi Varanasi Road Show Reuters
25 अप्रैल 2019 को वाराणसी में हुए रोड शो के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (फोटो: रॉयटर्स)

यों आगे बहुत पोस्टमार्टम होगा कि 2014 में दशकों राज करने के जनादेश को मोदी-शाह ने कैसे गंवाया? आप पूछे सकते हैं कि मैं पांच साल के जनादेश पर दशकों राज की संभावना कैसे बता रहा हूं?

दरअसल मेरा मानना है कि मतदाताओं ने 2014 में चक्रवर्ती हिंदू राज की आस में भाजपा को जिताया था लेकिन नरेंद्र मोदी छप्पर फाड़ जीत से होश गंवा बैठे. उन्होंने माना यह उनकी निजी जीत है. वे अपने आपको भगवान और जनता को अपना भक्त मानने लगे.

26 मई 2014 को शपथ से लेकर इस चुनाव में प्रचार के आखिरी 17 मई के दिन तक नरेंद्र मोदी मनसा,वाचा, कर्मणा यह एकालाप लिए हुए हैं कि सब कुछ मेरे से है! मेरे से जनादेश, मेरे से भारत, मेरे से सरकार, मेरे से दुनिया, मेरे से पार्टी, मेरे से वोट! मतलब मोदी, मोदी, हर-हर मोदी!

यही गुजरे पांच साल का सत्व-तत्व है. मोदी इज़ इंडिया एंड इंडिया इज़ मोदी या मोदी मतलब ईश्वर के अवतार की जन-जन में मार्केटिंग, जहां नरेंद्र मोदी के गुमान, अहंकार की बदौलत है तो राजनीति की चतुराई भरी रणनीति भी है.

अब जब ऐसा होता है तो विरोधी भी होते हैं. सीधे आमने-सामने लोग आ खड़े होते हैं. बुद्धि, तर्क, समझ खत्म तो भक्ति, मूर्खता के साथ तलवारें खिंचती हैं, पाले बनते हैं. तभी सवा सौ करोड़ लोगों का, देश की राजनीति का दो हिस्सों में बंटना भी पिछले पांच सालों की खास पहचान है.

इसमें परस्पर जितनी खुन्नस उतनी ही भक्तों में कट्टरता प्रबल. जाहिर है मोदी की चतुराईपूर्ण योजना में सवा सौ करोड़ की भीड़ आज या तो भक्त रूप लिए हुए है या दुश्मन रूप में. 2014 का जनादेश क्योंकि छप्पर फाड़ था इसलिए मोदी ने भक्तों की बहुलता के विश्वास में स्थायी राज की योजना बनाई.

याद कीजिए नरेंद्र मोदी के भाषणों की उस पंक्ति को कि आपका डाला वोट मोदी के खाते में जाएगा. मतलब भगवान सीधे भक्त को आश्वस्त कर रहे हैं कि प्रसाद का चढ़ावा सीधे मुझको. भक्तजन उर्फ वोटर उम्मीदवार, पार्टी के पंडे-पुजारी सभी को आउट मानें.

अकेले एक भगवान नरेंद्र मोदी की आंखों में देखें, उन्हें अपना वोट समर्पित करें. यह हिप्नोटिज्म, सम्मोहन या वशीकरण का चतुराई भरा वह मामला है, जिसमें जादूगर सामने बैठे व्यक्ति को पूरा वशीभूत किए होता है.

सो, चुनाव 2019 नरेंद्र मोदी की वशीकरण कला की परीक्षा है. उन्होंने पांच साल चतुराई से सत्ता के तंत्र-मत्रों से, मार्केटिंग और झूठ से करोड़ों-करोड़ मतदाताओं की जो वशीभूत भीड़ बनाई है उसके वोटों का 23 मई को फैसला भी है.

लेकिन यहां, इस बिंदु पर बात गड़बड़ाती है. इसलिए क्योंकि भक्तों को वशीभूत करते-करते खुद नरेंद्र मोदी इतने बेसुध और वशीभूत हो गए कि उन्हें सुध ही नहीं हुई कि सभाओं में भीड़ जनता से नहीं, बल्कि कार्यकर्ताओं की आ रही है.

हल्ला गुलाम मीडिया से है न कि आजाद मीडिया से. हल्ला अपने ही सोशल मीडिया से बनवाया हुआ है न कि प्रजा द्वारा बताई जा रही बातों से. हल्ला है तो उस हल्ले के बाहर मौन मतदाता भी हैं और वे नेता भी हैं, जिनका भाव दो टके का नहीं माना जा रहा था.

ताजा खबर है कि पिछले एक महीने में टीवी चैनलों पर नरेंद्र मोदी कोई 722 घंटे दिखे. सोचें तीस दिनों में घंटे 720 होते हैं जबकि नरेंद्र मोदी का चेहरा अलग अलग चैनलों पर 722 घंटे देखा गया. उन्होंने चेहरा भक्तों को दिखाया, और दर्शन कर भक्तों ने, एंकरों ने हर-हर मोदी किया.

सब इसी में खोए रहे. नतीजतन जो संगत, पंगत से बाहर थे उनकी और ध्यान ही नहीं गया कि उनका मौन क्या सोच रहा है.

मोदी के छाए रहने, भक्तों के हर-हर मोदी करने का सिलसिला पांच सालों से है. नरेंद्र मोदी ने पांच वर्षों में हर तरह की लीला कर कण-कण में हर-हर मोदी बनवाया. उस सघनता, व्यापकता का हिसाब ध्यान करें तो 23 मई 2019 को लोकसभा की सभी 543 सीटें नरेंद्र मोदी को जीतनी चाहिए.

आखिर भगवान एक और बाकी सब पप्पू, चोर, लुटेरे, भ्रष्ट, वंशवादी, पाकिस्तानी, गद्दार, देशद्रोही हैं तो 23 मई को निश्चित ही 2014 से बड़ी मोदी महासुनामी आनी चाहिए! लेकिन मेरा विश्वास (मैं गलत हो सकता हूं.) है कि उल्टा होना है.

23 मई की शाम से उलटे नरेंद्र मोदी कई क्षत्रपों के दरवाजे, जातीय देवी-देवताओं की आरती उतारते हुए, साष्टांग लेट उनसे कृपा की, एलायंस की याचना कर रहे होंगे. 23 मई से नरेंद्र मोदी का असली पराभव शुरू होगा. वे याचक होंगे चंद्रशेखर राव, नवीन पटनायक, उद्धव ठाकरे, नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, मायावती आदि के आगे.

फिर आप सोचेंगे कि मैं मोदी विरोध के दुराग्रह में मोदी के हारने की गणित में भटका हुआ हूं. नहीं, कतई नहीं. मैं दीवार पर लिखी बेसिक गणित को देख आपसे पूछता हूं कि 2014 में कांग्रेस को जो 44 सीट मिली थी, क्या वो 85 हो रही हैं या नहीं?

(अभी भूलें 100-125 के आंकड़े को) यदि हां, तो कांग्रेस का 40 सीटों का फायदा क्या भाजपा को सीधे 40 सीटों का नुकसान नहीं है? ऐसे ही सामान्य सवाल कि यूपी में सपा-बसपा-कांग्रेस को यदि 50 सीट मिलीं तो भाजपा के 2014 के आंकड़े में 45 सीट का नुकसान है या नहीं? मतलब भाजपा को 45+45 यानी कि एक झटके में 90 सीट का नुकसान.

अब इसके आगे तो आपका भी यह हिसाब अपने आप बनेगा कि 90 सीट नुकसान मतलब भाजपा की 282 की बहुमत संख्या झटके में गिर 200 सीट से भी नीचे! फिर यदि आप राजद, जेएमएम, जेवीएम, एआईयूडीएफ, जनता दल (एस) जैसी छोटी पार्टियों को दो-दो, चार-चार कर 15-20 सीट दें तो मोदी, मोदी, हर-हर मोदी धड़ाम से 180 से नीचे!

ऐसा इसलिए क्योंकि हर-हर मोदी के वशीकरण की शक्तिमान आत्ममुग्धता में नरेंद्र मोदी कब खुद हर-हर हुए, इसका उन्हें ध्यान नहीं रहा. इन बातों से भी सुध नहीं बनी कि ‘पप्पू’ राहुल गांधी ने गुजरात में टक्कर बराबरी की दी है तो मध्य प्रदेश, छतीसगढ़, राजस्थान, कर्नाटक में कांग्रेस की सरकारें बन गई हैं.

उधर मायावती-अखिलेश-अजित सिंह ने एलायंस बना लिया. मौन मुसलमान, दलित, आदिवासी, यादव और तमाम जातियों के परंपरागत भाजपा विरोधी निश्चय कर गए हैं कि हर-हर को हराना है. यह सब चुपचाप इसलिए हुआ क्योंकि आत्ममुग्धता, चतुराईयों के ताने-बाने में जब जाल बनाया जाता है तो मकड़ी खुद अपने जाल में उलझती भी है.

पिछले पांच सालों में हमने अवतारी संतों की दुर्दशा देखी तो 23 मई के बाद हमारे सामने अवतारी चक्रवर्ती राजा का हश्र भी होगा. जो हुआ और जो है वह अहंकार, आत्ममुग्धता, चतुराई की एक ऐसी त्रासद स्थिति है, जिसमें 2014 के ऐतिहासिक जनादेश का दुखद अंत तय है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)

यह लेख मूल रूप से नया इंडिया वेबसाइट पर प्रकाशित हुए आलेख का संपादित अंश है. 

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