उत्तर प्रदेश: पूर्वांचल के गन्ना किसानों की सुध क्यों नहीं ले रही है सरकार?

उत्तर प्रदेश में अब भी गन्ना किसानों का 10,626 करोड़ रुपये बकाया है और जून के महीने में भी गन्ने की फसल खेतों में खड़ी है. उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में गन्ना किसानों की समस्याओं को भाजपा ने प्रमुखता से उठाया था, लेकिन केंद्र और प्रदेश में सरकार बनने के बाद भी उनकी समस्याएं हल नहीं हो सकी हैं.

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(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

उत्तर प्रदेश में अब भी गन्ना किसानों का 10,626 करोड़ रुपये बकाया है और जून के महीने में भी गन्ने की फसल खेतों में खड़ी है. उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में गन्ना किसानों की समस्याओं को भाजपा ने प्रमुखता से उठाया था, लेकिन केंद्र और प्रदेश में सरकार बनने के बाद भी उनकी समस्याएं हल नहीं हो सकी हैं.

Karad: Bullock carts loaded with sugarcane move towards a sugar mill, in Karad, Maharashtra, Monday, Nov 05, 2018. (PTI Photo)(PTI11_5_2018_000061B)
(फोटो: पीटीआई)

वर्ष 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में गन्ना किसानों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाने वाली भाजपा की केंद्र और प्रदेश सरकार अपने शासन में उनकी समस्याओं को हल करने में असमर्थ नजर आ रही है.

उत्तर प्रदेश में अब भी गन्ना किसानों का 10,626 करोड़ रुपये बकाया है और जून के महीने में भी गन्ना अभी खेत में है. इस कारण कई जिलों में कुछ चीनी मिलें ख़राब रिकवरी का खतरा लेकर भी चलायी जा रही है. कुशीनगर जिले में अब भी तकरीबन एक लाख क्विंटल गन्ना खेत में खड़ा है.

इस स्थिति को लेकर गन्ना किसानों का गुस्सा जब तब फूट रहा है. गोरखपुर मंडल की नौ लोकसभा सीटों पर 19 मई को मतदान था.

उस दिन कुशीनगर में चीनी मिल बंद होने और गन्ना न लिए जाने से नाराज गन्ना किसान गन्ना लदी गाड़ियां लेकर नौका छपरा और जुडवनिया मतदान केंद्र पर पहुंच गए और मतदान बहिष्कार करने लगे.

अफसरों के लाख मनाने पर भी वे नहीं माने और आखिरकार आठ किसानों को गिरफ्तार करना पड़ा. ऐसा वाकया शायद ही किसी चुनाव में दिखाई दिया हो.

ये गन्ना किसान कुशीनगर संसदीय क्षेत्र के कसया विधानसभा क्षेत्र के नौकछपरा गांव के थे. इन गन्ना किसानों का गन्ना रामकोला पंजाब चीनी मिल के रिजर्व क्षेत्र में आता है लेकिन यह चीनी मिल किसानों का गन्ना नहीं पेर पाई.

अप्रैल के आखिर में अफसरों ने रामकोला पंजाब चीनी मिल परिक्षेत्र का दो लाख क्विंटल गन्ना न्यू इंडिया सुगर मिल ढाढा को आवंटित कर दिया. नौका छपरा के किसान जब अपना गन्ना लेकर 16 और 17 मई को चीनी मिल पर पहुंचे तो चीनी मिल को ‘नो केन’ में बंद पाया.

किसानों से कहा गया कि जब 20 हजार क्विंटल गन्ना हो जाएगा तब चीनी मिल को चलाया जाएगा. मई की तपती दोपहरी तक अपना गन्ना चीनी मिल को नहीं दे पाने से दुखी किसान आक्रोशित हो गए और गन्ना लदी 100 गाड़िया लेकर 18 मई की रात में ही मतदान केंद्र पर पहुंच गए और डेरा डाल दिया.

किसानों के गुस्से की वजह से करीब दो घंटे तक मतदान बंद रहा. आखिरकार आठ किसानों को पकड़ कर थाने भेजने के बाद ही मतदान शुरू हो पाया.

किसान जगदीश सिंह, परशुराम सिंह, रुद्र प्रताप सिंह, रविंद्र यादव, राम विनोद सिंह ने कहा कि वे तीन दिन से गन्ना लेकर चीनी मिल पर जा रहे थे, लेकिन उनका गन्ना नहीं लिया गया.

कहा गया कि चीनी मिल बंद हो गई है. जब किसानों ने चीनी मिल चलाने की मांग की तो उनसे दुर्व्यवहार किया गया. तब उन्होंने लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध दर्ज कराया.

इस घटना के एक दिन बाद ही गन्ना आपूर्ति पर्ची वितरण में धांधली से नाराज किसानों ने महराजगंज के सिसवा केन यूनियन कार्यालय में तोड़फोड़ करते हुए पत्थर बरसाए व एक कर्मचारी को पीट दिया.

किसान लाल बहादुर, इंद्रासन, जलालुद्दीन, शंकर, कमलावती, निक्कम, संतोष मल्ल का कहना था कि उनका गन्ना खेतों में सूख रहा है और उन्हें पर्ची नहीं मिल रही है.

इन दोनों घटनाओं के एक पखवारे बाद महराजगंज की सिसवा चीनी मिल बंद हो गई. कुशीनगर में रामकोला पंजाब चीनी मिल को छोड़कर बाकी चीनी मिलें भी बंद हो गई हैं जबकि किसानों की शिकायत है कि अभी भी उनका गन्ना खेत में है.

कुशीनगर के जिला गन्ना अधिकारी वेद प्रकाश सिंह ने बताया कि कुशीनगर में अभी भी एक लाख क्विंटल गन्ना बचा हुआ है. सरकार का आदेश है कि जब तक सभी गन्ना ले नहीं लिया जाता तब तक चीनी मिल चलेगी. वह स्वीकार करते हैं कि जून के महीने में गन्ने की पेराई से रिकवरी काफी कम यानी 7 से 8 फीसदी तक आ रही है.

ढाढा चीनी मिल के गन्ना प्रबंधक डीडी सिंह ने बताया कि गन्ने के अभाव के कारण चीनी मिल 17 मई को को बंद हो गई थी लेकिन अप्रैल के आखिर में रामकोला क्षेत्र का दो लाख क्विंटल गन्ना हमें आवंटित कर दिया गया. इस कारण चीनी मिल को मई महीने तक चलाना पड़ा है.

गोरखपुर-बस्ती मंडल की 28 चीनी मिलों में से 17 बंद हैं

कुशीनगर जिले में 10 में से पांच- छितौनी, कठकुइंया, पडरौना, रामकोला और लक्ष्मीगंज चीनी मिल बंद हैं. देवरिया जिले की पांच चीनी मिलों में से चार- देवरिया, गौरीबाजार, बैतालपुर और भटनी बंद हैं.

गोरखपुर जिले में धुरियापार व सरदारनगर की चीनी मिल बंद हैं. योगी सरकार ने गोरखपुर जिले की बंद पिपराइच चीनी मिल के स्थान पर नया चीनी मिल बनवाया है जिसने इस सत्र की आखिर में पेराई शुरू की.

महराजगंज में दो चीनी मिलें- फरेंदा और घुघली पहले से बंद थीं. इस वर्ष प्राइवेट सेक्टर की जेएचवी गड़ौरा चीनी मिल भी बंद हो गई. बस्ती मंडल के सिद्धार्थनगर जिले में एक भी चीनी मिल नहीं है. यहां पर 2003 में इटवा विधानसभा क्षेत्र के भिलौरी में चीनी मिल का शिलान्यास हुआ था जो आज तक नहीं बन सकी है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

संतकबीरनगर जिले में सिर्फ एक चीनी मिल खलीलाबाद चीनी मिल प्राइवेट सेक्टर की थी जो अब बंद है. बस्ती जिले में पांच चीनी मिलें हैं, जिनमें से बस्ती और वाल्टरगंज बंद हैं. मुंडेरवा में बंद पुरानी चीनी मिल के स्थान पर एक नई चीनी मिल शुरू हुई है.

प्राइवेट सेक्टर की बभनान, रूधौली चीनी मिल चल रही हैं. इस तरह गोरखपुर-बस्ती मंडल की 28 चीनी मिलों में से 17 बंद हैं.

वर्ष 2008 में मायावती सरकार ने उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम की 27 चीनी मिलों को बेच दिया था. इसमें गोरखपुर-बस्ती मंडल के छह जिलों की 11 चीनी मिलें थीं. बेची गईं चीनी मिलों में से इस इलाके में सिर्फ दो चीनी मिलें- सिसवा व खड्डा की चलीं. शेष अभी भी बंद हैं. गोरखुर जिले की द किसान सहकारी चीनी मिल्स लिमिटेड धुरियापार 2007 से बंद है.

एक वर्ष से कुशीनगर और देवरिया में बंद चीनी मिलों को चलाने की मांग को लेकर आंदोलन भी चला. कुशीनगर की लक्ष्मीगंज चीनी मिल को चलाने को लेकर भारतीय किसान यूनियन भानु ने 63 दिन तक लगातार धरना-प्रदर्शन किया.

देवरिया में बैतालपुर चीनी मिल को चलाने की मांग को लेकर पूर्व प्रधान ब्रजेंद्र मणि त्रिपाठी ने एक वर्ष तक आंदोलन चलाया. इस मुद्दे को उठाने के लिए वह देवरिया से निर्दलीय चुनाव भी लड़ गए.

भाजपा का वादा और हकीकत

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पडरौना में सभा करने आए थे तो उन्होंने बंद चीनी मिलों का मुद्दा उठाया और कहा कि उनकी सरकार बनी तो 100 दिन में पडरौना चीनी मिल को चलाएंगे.

भाजपा 2014 का लोकसभा चुनाव जीत गई और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए. फिर आया 2017 का विधानसभा चुनाव. इस चुनाव में फिर बंद चीनी मिलें मुद्दा बनीं और भाजपा ने ही इसे प्रमुख मुद्दा बनाया.

भाजपा ने प्रदेश में गन्ना मूल्य बकाये को भी प्रमुख मुद्दा बनाया और प्रदेश में सरकार बनने पर चीनी मिल पर गन्ना गिरने के 14 दिन के अंदर गन्ना मूल्य भुगतान का वादा किया.

भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह ने चौरीचौरा की जनसभा में सरदारनगर की बंद चीनी मिल को चलाने और मिल कर्मचारियों व गन्ना किसानों के बकाया भुगतान का वादा किया था.

लेकिन दिल्ली और लखनऊ की सत्ता में काबिज होने के बाद बीजेपी को अपना वादा याद नहीं रहा. योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने के बाद जरूर अपने संसदीय क्षेत्र गोरखपुर में पिपराइच और बस्ती जिले में मुंडेरवा में नई चीनी मिल की स्थापना के लिए धन दिया और दोनों चीनी मिलें बनकर तैयार हो गई हैं लेकिन इन चीनी मिलों के बनने का फायदा इस सत्र में गन्ना किसानों को नहीं मिला क्योंकि ये गन्ना सीजन के आखिर में चलने के लिए तैयार हो पाईं.

चुनावी लाभ के दोनों चीनी मिलों को कुछ दिन के लिए जरूर चलाया गया और फिर ‘नो केन’ की सूचना देकर बंद कर दिया गया.

वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने गन्ना किसानों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया था और कई वादे किए थे. इसमें एक वादा यह भी था कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने पर गन्ना मूल्य का भुगतान 14 दिन के अंदर किया जाएगा. गन्ना की खरीदारी समय से होगी और गन्ने का उचित दाम मिलेगा.

दो वर्ष में इन तीनों वादों पर मोदी-योगी सरकार बुरी तरफ फेल रही है. इसी कारण पीएम नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चुनावी सभाओं में गन्ना किसानों के मुद्दे पर बचते रहे.

योगी आदित्यनाथ ने पिपराइच और मुंडेरवा में नई चीनी मिल की स्थापना को अपनी सरकार की उपलब्धि के बतौर जरूर उठाया लेकिन बकाया गन्ना मूल्य और समय से गन्ने की खरीददारी पर वे मौन रहे.

प्रधानमंत्री बीते 12 मई को कुशीनगर के कप्तानगंज और देवरिया के रूद्रपुर में जनसभा की लेकिन दोनों स्थानों पर उन्होंने 2014 के वादे का कोई जिक्र नहीं किया. जब वह नोटबंदी के बाद 2016 में कसया में सभा करने आए थे तब भी उन्होंने पडरौना चीनी मिल चलाने के वादे पर कुछ नहीं बोला.

2017 के विधानसभा चुनाव में अमित शाह और योगी आदित्यनाथ ने तब की अखिलेश सरकार को गन्ना मूल्य भुगतान पर खूब घेरा था. तब यूपी के गन्ना किसानों का पांच हजार करोड़ गन्ना मूल्य बकाया था. अब प्रदेश की चीनी मिलों पर 10,626 करोड़ (6 जून तक) का गन्ना मूल्य बकाया है और भाजपा सरकार के मंत्री इस पर बोलने से मुंह चुरा रहे हैं.

(फाइल फोटो: रॉयटर्स)
(फाइल फोटो: रॉयटर्स)

जिस कुशीनगर जिले के गन्ना किसानों ने अपने आक्रोश का प्रदर्शन किया था वहां की पांच चीनी मिलों पर अब भी 25 फीसदी गन्ना मूल्य बकाया है. कुशीनगर जिले के जिला गन्ना अधिकारी वेद प्रकाश सिंह ने बताया कि इस सीजन में जिल की पांच चीनी मिलों ने 390 लाख क्विंटल गन्ने की पेराई की है.

कुशीनगर जिले में अभी भी एक लाख क्विंटल गन्ना खेत में सूख रहा है

कुशीनगर जिले में अभी भी एक लाख क्विंटल गन्ना खेत में पड़ा हुआ है. इसमें सर्वाधिक रामकोला क्षेत्र का गन्ना है. एक पखवारे पहले इस जिले में 8 लाख क्विंटल गन्ना खेत में था.

गन्ना पेराई सत्र मध्य अप्रैल तक ही होता है, लेकिन प्रदेश सरकार की गलत नीतियों के कारण चीनी मिलों को जबरन अभी तक चलाया गया है ताकि चुनाव में किसानों का आक्रोश सरकार के खिलाफ न चला जाए.

दरअसल पूर्वी उत्तर प्रदेश में गन्ना सर्वे ठीक से नहीं हुआ जिसके कारण गन्ना क्षेत्रफल का ठीक से पता ही नहीं चला. इस वर्ष गन्ने का रकबा बढ़ा है और पैदावार भी अच्छी है. केवल कुशीनगर जिले में ही 20 हजार हेक्टयेर गन्ना रकबा बढ़ा है.

इस जिले में 94 हजार हेक्टेयर में गन्ने की बुवाई की गई थी. अधिक रकबे में गन्ने की खेती और अच्छी पैदावार होने की जानकारी होने के बावजूद सरकार ने गन्ना खरीदने और समय से पेराई का इंतजाम नहीं किया. उल्टा महराजगंज की प्राइवेट सेक्टर की जेएचवी सुगर मिल को बंद करा दिया.

इस चीनी मिल पर गन्ना किसानों का दो सत्रों का 46 करोड़ और कर्मचारियों का 16 करोड़ रुपये का बकाया है. किसान और कर्मचारी इसको लेकर आंदोलन कर रहे थे. आंदोलन के बाद किसानों-कर्मचारियों, प्रशासन और चीनी मिल प्रबंधन के बीच समझौता हुआ जिसमें चीनी मिल प्रबंधन 27 दिसंबर से चीनी मिल का चलाने और पुराना बकाया धीरे-धीरे देने पर राजी हो गया.

किसान भी चाहते थे कि चीनी मिल चले ताकि उनका गन्ना समय से खरीद लिया जाए. इस समझौते के अनुसार जेएचवी चीनी मिल ने पेराई की तैयारी शुरू कर दी लेकिन अचानक लखनऊ से हुक्म आया कि चीनी मिल नहीं चलेगी और उसका 60 लाख क्विंटल गन्ना दूसरी छह चीनी मिलों को आवंटित किया जाएगा. किसानों में चर्चा है कि चीनी मिल को बंद कराने में मुख्यमंत्री की चीनी मिल प्रबंधन से निजी नाराजगी प्रमुख कारण बनीं.

महराजगंज परिक्षेत्र के गन्ने की वजह से पहले से गन्ने की भारी पैदावार का बोझ ढो रही चीनी मिलों पर और अतिरिक्त बोझ पड़ गया और वे कराहने लगीं. यही कारण है कि निर्धारित सत्र से डेढ़ महीना अधिक समय तक चीनी मिलों के चलने के बावजूद किसानों का पूरा गन्ने की पेराई नहीं हो सकी.

मई-जून महीने में गन्ने की खरीदारी और चीनी मिलों द्वारा गन्ने की पेराई से चीनी मिलों को भी घाटा हो रहा है. गर्मी के कारण गन्ने के वजन में 30 फीसदी तक गिरावट आ जाती है. इससे किसानों को कम कीमत मिलती है.

दूसरी तरफ चीनी मिल का परता गिरता जाता है. चीनी मिल से जुड़े एक कर्मचारी ने बताया कि मार्च-अप्रैल तक चीनी मिलों का परता 10 फीसदी से अधिक था, लेकिन मई महीने में चीनी परता आठ फीसदी तक आ गया.

समय से चीनी मिलों पर गन्ना खरीद नहीं होने से अधिकतर किसानों को क्रशर पर अपना गन्ना औने-पौने दाम पर बेचना पड़ा.

प्रदेश सरकार ने गन्ना मूल्य 325 रुपये निर्धारित किया है हालांकि गन्ना किसान इस मूल्य से असंतुष्ट हैं. उनका कहना है कि लागत को देखते हुए गन्ना मूल्य 450 रुपये से कम नहीं होना चाहिए.

जिन किसानों को अपना गन्ना क्रशर पर बेचना पड़ा, उन्हें 150-250 रुपये क्विंटल ही दाम मिला. किसानों की मजबूरी का फायदा गन्ना तस्करों ने भी उठाया. गन्ने की खूब तस्करी हुई. गन्ना तस्कर खेतों पर जाकर किसानों ने औने-पौने दाम पर गन्ना खरीद लेते और उन्हें चीनी मिलों पर बेचकर सरकारी मूल्य हासिल कर लेते.

महराजगंज जिले का गन्ना बिहार गया तो बिहार का गन्ना कुशीनगर की चीनी मिलों पर बेचा गया. जेएचवी चीनी मिल परिक्षेत्र के किसानों की हालत तो इतनी खराब थी कि उन्होंने खेत खाली करने के लिए बिचैलियों को 70-100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से गन्ना बेच दिया.

बिचौलियों ने उन्हें कुशीनगर के क्रशर पर 150 से 180 क्विंटल में गन्ना बेचा. यदि क्रशर गन्ना नहीं खरीदते तो गन्ना किसानों की हालत और बुरी होती और उन्हें अपना गन्ना खेतों में जलाना पड़ता.

महान कथाकार प्रेमचंद ने वर्ष 1933 में अपने एक लेख में लिखा था, ‘मिल वाले गिनती में थोड़े हैं. वह जब चाहें आपस में संगठन करके ऊख (गन्ना) की दर मद्दी कर सकते हैं और वास्तव में ऐसा हो भी रहा है. किसान आपस में संगठित नहीं हो सकते. इसलिए वे मिलवालों की दया पर पड़ने को मजबूर हैं.’

प्रेमचंद ने एक अन्य लेख में गोरखपुर और बस्ती में गन्ना किसानों का संघ बनने पर प्रसन्नता जाहिर करते हुए लिखा था, ‘किसानों को गन्ना बेचने की जितनी जरूरत होती है, उससे कहीं ज्यादा जरूरत मिल वालों को गन्ना खरीदने की होती है. यदि वे संगठित हो जाएं तो चीनी मिलों को अपनी शर्तों पर अपने खेत पर ही गन्ना खरीदने के लिए मजबूर कर सकते हैं क्योंकि गन्ना तो दस-पांच दिन खेतों में खड़ा रह सकता है लेकिन मिल एक घंटा भी बंद नहीं रह सकती.’

प्रेमचंद के इस लेख के लिखे 86 वर्ष हो गए हैं. आज गन्ना किसानों की हालत उनके समय से भी बुरी हो गई है. किसानों का गन्ना भी खेत भी खड़ा है और चीनी मिलें भी बंद हो रही हैं. जब किसान इसका विरोध कर रहा है तो पुलिस उसे पकड़ कर थाने भी ले जा रही है.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)