मलाड दीवार हादसा: जिस झुग्गी पर दीवार गिरी, हाईकोर्ट ने 1997 में दिया था उसे हटाने का आदेश

2 जुलाई को पूर्वी मलाड के कुरुर वन क्षेत्र में बीएमसी के मलाड हिल जलाशय की बॉउंड्री वॉल का कुछ हिस्सा पिंपरीपाड़ा और आंबेडकर नगर इलाकों में बनी झुग्गियों पर ढह गया था, जिसमें 29 लोगों की जान चली गई और 132 लोग घायल हुए. इस बारे में सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा सौंपी गई एक रिपोर्ट में कई प्रशासनिक खामियां सामने आई हैं.

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Malad: Rescue operations in progress at the site where a portion of a compound wall collapsed on shanties adjacent to it, in Pimpripada of Malad East, Mumbai, Tuesday, July 02, 2019. (PTI Photo/Shirish Shete )(PTI7_2_2019_000086B)
Malad: Rescue operations in progress at the site where a portion of a compound wall collapsed on shanties adjacent to it, in Pimpripada of Malad East, Mumbai, Tuesday, July 02, 2019. (PTI Photo/Shirish Shete )(PTI7_2_2019_000086B)

2 जुलाई को पूर्वी मलाड के कुरुर वन क्षेत्र में बीएमसी के मलाड हिल जलाशय की बॉउंड्री वॉल का कुछ हिस्सा पिंपरीपाड़ा और आंबेडकर नगर इलाकों में बनी झुग्गियों पर ढह गया था, जिसमें 29 लोगों की जान चली गई और 132 लोग घायल हुए. इस बारे में सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा सौंपी गई एक रिपोर्ट में कई प्रशासनिक खामियां सामने आई हैं.

Malad: Rescue operations in progress at the site where a portion of a compound wall collapsed on shanties adjacent to it, in Pimpripada of Malad East, Mumbai, Tuesday, July 02, 2019. (PTI Photo/Shirish Shete )(PTI7_2_2019_000086B)
पूर्वी मलाड के पिंपरीपाड़ा में ढही हुई दीवार. (फोटो: पीटीआई)

मुंबई में भारी बारिश के बीच 2 जुलाई को पूर्वी मलाड के कुरुर गांव में दीवार ढहने से हुए हादसे के बारे में एक स्वतंत्र फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने रिपोर्ट देते हुए कहा कि अगर राज्य सरकार ने 1997 में दिए हाईकोर्ट के आदेश का पालन किया गया होता तो इस हादसे में हुई मौतों को टाला जा सकता था.

इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार 1997 में अदालत ने इस वन क्षेत्र में बनी झुग्गियों के रहवासियों का पुनर्वास करने को कहा था.

मालूम हो कि पूर्वी मलाड के कुरुर वन क्षेत्र में बने बीएमसी के मलाड हिल जलाशय की बॉउंड्री की दीवार का 2.3 किलोमीटर का हिस्सा 2 जुलाई की रात को ढह गया था, जिसमें इससे सटी पिंपरीपाड़ा और आंबेडकर नगर इलाके की झुग्गियों में 29 लोगों की मौत हो गयी थी और 132 लोग घायल हुए थे.

नवभारत टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक यह दीवार दो जगहों पर ढह गई थी जिसके चलते आई बाढ़ में पिंपरीपाड़ा और आंबेडकर नगर की 3,000 से ज्‍यादा झुग्गियां बह गई थीं. इस हादसे में हताहत हुए अधिकांश लोग या तो नाले में मिले थे या फिर झुग्गियों के मलबे में दबे हुए.

बीएमसी का कहना था कि दीवार भूस्खलन के कारण गिरी थी जबकि मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक दीवार पानी के दबाव के चलते गिरी थी, साथ ही उसके निर्माण में भी कमियां बताई गई थीं.

बुधवार को इस फैक्ट-फाइंडिंग कमेटी, जिसके सदस्यों में सामाजिक कार्यकर्ता, टिस के विद्यार्थी, एनजीओ घर बचाओ घर बनाओ और अन्य सामाजिक संगठनों के लोग शामिल थे, ने भी प्रशासनिक कमियों को इस हादसे का जिम्मेदार बताते हुए इस बात को दोहराया.

रिपोर्ट में बताया गया कि यह दीवार इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति और यहां होने वाली बारिश की मात्रा को ध्यान में रखते हुए बनाई ही नहीं गई थी.  इसमें कहा गया, ‘यह दीवार बहुत ख़राब तरीके से बनाई गई थी, इसमें ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी थी जहां से इसके पीछे इकट्ठे हुए पानी का दबाव रिलीज़ हो सके. पानी निकलने के लिए केवल डामर के नीचे एक नाली थी, जो संभावित है कि पौधे वगैरह के चलते ब्लॉक थी, जो पानी के दबाव या प्रवाह से बहे होंगे.’

कमेटी ने इस हादसे में प्रभावित लोगों को जल्द से जल्द अस्थायी आश्रय, मेडिकल और सामाजिक सुविधाएं देने की भी बात कही. उन्होंने कहा कि क्योंकि हादसे के हफ्ते भर बाद भी बीएमसी द्वारा झुग्गीवासियों को किसी भी तरह का अस्थाई आश्रय नहीं दिया गया है, जिसके चलते उन्हें अब संक्रमण होने का खतरा है.

**EDS: RPT WITH ADDED INFO** Malad: Rescue operations in progress at the site where a portion of a compound wall collapsed and many shanties were washed away due to incessant rain, in Pimpripada of Malad East, Mumbai, Tuesday, July 02, 2019. (PTI Photo/Shirish Shete)(PTI7_2_2019_000084B)
पिंपरीपाड़ा में हुए हादसे के बाद राहत और बचाव कार्य (फोटो: पीटीआई)

रिपोर्ट में बताया गया है कि हादसे से प्रभावित लोगों का काम छूट गया है और पढ़ने-लिखने वाले बच्चे कॉपी-किताब और यूनिफार्म न होने के कारण स्कूल नहीं जा पा रहे हैं.

रिपोर्ट में बताया गया कि साल 1997 में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को इस बस्ती को हटाकर यहां के लोगों का किसी और जगह पुनर्वास करने को कहा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यहां की रहने वाली मुन्नी गौड़ ने बताया कि हाईकोर्ट के आवास की वैकल्पिक व्यवस्था के लिए दिये गए आदेश के बाद उन्होंने पुनर्वास फीस के तौर पर बीएमसी को सात हज़ार रुपये भी दिए थे.

उन्होंने कहा, ‘लेकिन अब तक सरकार ने अदालत के आदेश का पालन नहीं किया है. कुछ अधिकारी कहते हैं कि हमें माहुल जाना होगा. मुझे पता भी नहीं है कि वो कहां है.’ दीवार ढहने से हुए हादसे में मुन्नी के 22 वर्षीय बेटे की जान गई है.

रिपोर्ट का दावा है कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के माहुल को ‘इंसानों के रहने के लिए माकूल जगह न होने’ के बावजूद बीएमसी यहां के रहवासियों को उनकी वर्तमान रिहाइश से 30 किलोमीटर दूर ले जाना चाहती है. टिस की प्रोफेसर ब्रिनेल डिसूज़ा का कहना है, ‘यह शहर की झुग्गियों में रहने वालों के प्रति उनकी उदासीनता दर्शाता है. सब जानते हैं कि माहुल प्रदूषित है.’

बुधवार तक इस हादसे में मारे गए 26 लोगों के परिवारों को राज्य सरकार द्वारा घोषित 5 लाख रुपये के मुआवजे में से 4 लाख रुपये दिया गया है. हालांकि बाकी तीन परिवारों को यह मदद अब तक नहीं मिली है. साथ ही बीएमसी द्वारा 29 मृतकों को के परिवार को दी जाने वाली 5 लाख रुपये की मदद भी अब तक बाकी है.

हादसे से प्रभावित हुए कम से कम 102 परिवारों को हादसे के बाद गुजारे के लिए पांच हजार रुपये दिए गए हैं. लेकिन रहवासियों का कहना है कि यह नाकाफी है.

हादसे में अपनी डेढ़ साल की बेटी खोने वाली गुड़िया कहती हैं, ‘हमें पैसे या कपड़े नहीं चाहिए, सरकार को हमारे रहने का इंतज़ाम करना चाहिए. मैं रात को एक निजी स्कूल में जाकर रहती हूं और जब दिन में वहां क्लास लगती हैं तो बस्ती में इधर-उधर घूमती हूं.’ गुड़िया का कहना है कि बिना खाना-पानी और छत के हर दिन एक संघर्ष है.

Mumbai: A rescue team member with a sniffer dog searches for people trapped under the debris of a compound wall that collapsed during heavy rain, in Pimpripada of Malad East, Mumbai, Tuesday, July 02, 2019. (PTI Photo/Shirish Shete)(PTI7_2_2019_000108B)
झुग्गियों के मलबे में डॉग स्क्वाड के साथ दबे हुए लोगों को ढूंढते एनडीआरएफ टीम के सदस्य (फोटो: पीटीआई)

सामाजिक कार्यकर्ता वैशाली जनार्थानन ने बताया कि इस रिपोर्ट की एक बड़ी सिफारिश घर और अपनों को खोने वालों को कॉउन्सिलिंग देना है. उन्होंने कहा, ‘किसी हादसे के बाद होने वाला तनाव न केवल उसके पीड़ितों को प्रभावित करता है, बल्कि उनके पड़ोसियों पर भी असर करता है, जो इस हादसे और मौत के गवाह रहे हैं. आपदा प्रबंधन के दिशानिर्देशों में काउंसलिंग देने की बात कही जाती है, यह नदारद है.’

यह रिपोर्ट बीएमसी को सौंपी जाएगी, जिससे कि वे पुनर्वास के लिए माहुल के अलावा कोई विकल्प ढूंढ सके और विभिन्न संक्रमणों से बचने के लिए झुग्गियों में मेडिकल सुविधाओं का बंदोबस्त करना चाहिए.

इस बारे जब पी-नॉर्थ वार्ड की मेडिकल अधिकारी डॉ. रुचुता बोरास्कर ने बताया कि लेप्टोस्पिरोसिस जैसे संक्रमणों से बचने के लिए झुग्गियों में दवाइयां दी जा रही हैं. पी-नॉर्थ कमेटी के अध्यक्ष विनोद मिश्रा ने कहा कि वार्ड के स्थानीय अधिकारियों और कांदिवली शताब्दी अस्पताल की ओर से मेडिकल सुविधाएं दी जा रही हैं.

उन्होंने कहा, ‘हमने बीएमसी कमिश्नर को झुग्गी के लोगों के लिए 3 किलोमीटर की परिधि में आश्रय ढूंढने की सलाह दी है. अगर उपलब्ध होगा तो इन लोगों को नजदीक ही कहीं ले जाया जायेगा। लेकिन फ़िलहाल ऐसी कोई जगह उपलब्ध नहीं है.’

वहीं भाजपा के पार्षद विनोद मिश्रा ने बीएमसी कमिश्नर प्रवीण परदेशी को पत्र लिखकर मांग की है कि दोषी लोगों पर गैर इरादतन हत्या का मामला दर्ज हो.

मिश्रा पी-नॉर्थ वार्ड प्रभात समिति के अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने कहा, ‘खराब तरीके से बनाई गई दीवार को सहारा देने के लिए कोई कॉलम नहीं बना था इसलिए यह पानी के दबाव से ढह गई. जब यही पानी नीचे बहा, उसके बाद भूस्‍खलन हुआ.’

दूसरी ओर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने मलाड हादसे की उच्चस्तरीय जांच होने की बात कही थी.

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