समझौता विस्फोट: असीमानंद सहित चार को बरी किए जाने के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती

पाकिस्तान की एक महिला ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में दाख़िल की याचिका. फरवरी 2007 में दिल्ली-लाहौर समझौता एक्सप्रेस में हुए विस्फोट के मामले के चारों आरोपियों स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को बीते मार्च महीने में अदालत ने बरी कर दिया था.

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FILE PHOTO: A view of a burnt carriage of Samjhauta Express train in Deewana, near Panipat town, February 19, 2007. REUTERS/Desmond Boylan/File Photo

पाकिस्तान की एक महिला ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में दाख़िल की याचिका. फरवरी 2007 में दिल्ली-लाहौर समझौता एक्सप्रेस में हुए विस्फोट के मामले के चारों आरोपियों स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को बीते मार्च महीने में अदालत ने बरी कर दिया था.

FILE PHOTO: A view of a burnt carriage of Samjhauta Express train in Deewana, near Panipat town, February 19, 2007. REUTERS/Desmond Boylan/File Photo
समझौता एक्सप्रेस में साल 2007 में धमाका किया गया था. (फोटो: रॉयटर्स)

चंडीगढ़: पाकिस्तान की नागरिक राहिला वकील ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में स्वामी असीमानंद और तीन अन्य को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती दी.

राहिला ने दावा किया था कि 2007 के समझौता एक्सप्रेस विस्फोट में उसके पिता भी मारे गए थे. राहिला ने अपने वकील मोमिन मलिक के माध्यम से उच्च न्यायालय में अपील दाखिल की.

मलिक ने बीते शुक्रवार को बताया, ‘उनकी ओर से मैंने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की जिसमें हमने पंचकूला एनआईए अदालत द्वारा स्वामी असीमानंद और तीन अन्य को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती दी है.’

उन्होंने कहा कि राहिला वकील विस्फोट में मारे गए पाकिस्तानी नागरिक मुहम्मद वकील की बेटी हैं.

गौरतलब है कि हरियाणा में पानीपत के निकट 18 फरवरी, 2007 को समझौता एक्सप्रेस में उस समय विस्फोट हुआ था, जब ट्रेन अमृतसर में अटारी की ओर जा रही थी, जिसमें 68 लोग मारे गए थे और 12 अन्य घायल हुए थे.

इस घटना के 12 साल बाद इस साल 20 मार्च को पंचकूला की एक विशेष अदालत ने इस मामले में चारों आरोपियों- नबा कुमार सरकार उर्फ स्वामी असीमानंद, लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को बरी कर दिया गया था.

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) अदालत के जज जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा, ‘मुझे गहरे दर्द और पीड़ा के साथ फैसले का समापन करना पड़ रहा है क्योंकि विश्वसनीय और स्वीकार्य साक्ष्यों के अभाव की वजह से इस जघन्य अपराध में किसी को गुनहगार नहीं ठहराया जा सका. अभियोजन के साक्ष्यों में निरंतरता का अभाव था और आतंकवाद का मामला अनसुलझा रह गया.’

जज जगदीप सिंह ने 160 पेज के अपने फैसले में  कहा था कि अभियोजन पक्ष ने सबसे मजबूत सबूत अदालत में पेश नहीं किए. उन्होंने कहा था कि स्वतंत्र गवाहों की कभी जांच नहीं की गई.

फैसला देने से पहले एनआईए के विशेष जज जगदीप सिंह ने पाकिस्तानी महिला राहिला वकील की उस याचिका को खारिज कर दिया था जिसमें उनके देश के कुछ गवाहों के परीक्षण की मांग की गई थी.

अदालत ने कहा था कि महिला की याचिका का कोई आधार नहीं है. उसने अपने वकील मलिक के माध्यम से अदालत से अनुरोध किया था कि उसका बयान दर्ज किया जाए और कुछ अन्य पाकिस्तानी गवाहों का भी परीक्षण किया जाए.

बता दें कि विस्फोट के कारण ट्रेन के दो कोच अलग-अलग हो गए थे. इस मामले में हरियाणा पुलिस ने मामला दर्ज किया था लेकिन जुलाई 2010 में मामले की जांच एनआईए को सौंप दी गई थी.

एनआईए ने जुलाई 2011 में दाखिल किए गए अपने आरोप-पत्र में आठ लोगों को आरोपी बनाया था. इन आठ लोगों में से स्वामी असीमानंद, कमल चौहान, राजिंदर चौधरी और लोकेश शर्मा अदालत के सामने पेश हुए और सुनवाई का सामना किया.

हमले के कथित साजिशकर्ता सुनील जोशी की दिसंबर 2007 में मध्य प्रदेश में उनके घर के पास गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. वहीं तीन अन्य आरोपी रामचंद्र कल्सांगरा, संदीप डांगे और अमित को गिरफ्तार नहीं किया जा सका और उन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया.

एनआईए ने आरोपियों पर हत्या और आपराधिक साजिश का आरोप लगाया था. इसके साथ ही उन पर विस्फोटक सामग्री अधिनियम और रेलवे एक्ट के तहत भी मामला दर्ज किया गया था. इस मामले में 299 गवाह बनाए गए थे जिसमें से 224 गवाहों का परीक्षण किया गया था.

मालूम हो कि हाल ही में विदेशों में आतंकवादी घटनाओं में भारतीय नागरिकों के प्रभावित होने की स्थिति में एनआईए को मामला दर्ज कर अन्य देशों में जाकर जांच करने का अधिकार देने वाले एक महत्वपूर्ण विधेयक को संसद ने बुधवार को अपनी मंजूरी दे दी.

इस विधेयक पर चर्चा के दौरान गृह मंत्री अमित शाह ने समझौता विस्फोट मामले का जिक्र करते हुए कहा था पूर्व की संप्रग सरकार के शासनकाल में दाखिल किया गया आरोप-पत्र इतना कमजोर था और उसमें साक्ष्यों की इतनी कमी थी कि सारे आरोपियों को अदालत को छोड़ना पड़ गया.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि इसमें ‘राजनीतिक बदले की भावना से काम किया गया.’

गृह मंत्री ने कहा था कि समझौता ट्रेन विस्फोट मामले में अगस्त 2012 को जब आरोप-पत्र दाखिल किया गया था, उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी. सजा होना, न होना आरोप-पत्र पर निर्भर होता है. उन्होंने कहा कि इस मामले में कोई सबूत नहीं था और ‘कोरी राजनीतक बदले की भावना के साथ यह मामला दर्ज किया गया था.’

गृह मंत्री ने कहा था कि समझौता मामले में शुरू में हमारी एजेंसी ने सात लोगों को पकड़ा. इन लोगों को अमेरिका की एजेंसी की सूचना के आधार पर पकड़ा गया. किंतु बाद में आतंकवाद को एक धर्म विशेष से जोड़ने के लिए अलग से एक मामला बनाया गया.’

समझौता विस्फोट मामले में अपील नहीं करने के प्रश्न पर उन्होंने कहा था कि यह नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चलने वाली एनडीए सरकार है. एक ऐसी भी सरकार थी जिसमें सरकार, अभियोजन एजेंसी और कानून अधिकारी एक ही कमरे में बैठक कर षड्यंत्र करते थे.

उन्होंने कहा कि जब कानून अधिकारी ने अपनी राय ही नहीं दी तो सरकार समझौता विस्फोट मामले में अपील कैसे कर सकती है? यह काम अभियोजन एजेंसी या सरकार नहीं करती. यह काम कानून अधिकारी की राय पर होता है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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