अनुच्छेद 370 हटाए जाने को भारतीय अख़बारों ने कैसे पेश किया

जम्मू कश्मीर में संचार व्यवस्थाएं पूरी तरह से ठप होने के कारण न कश्मीरी अख़बार छपे, न ही समाचार वेबसाइट अपडेट हुईं.

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जम्मू कश्मीर में संचार व्यवस्थाएं पूरी तरह से ठप होने के कारण न कश्मीरी अख़बार छपे, न ही समाचार वेबसाइट अपडेट हुईं.

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नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सोमवार को राष्ट्रपति के आदेश से जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया और राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बदल दिया. मंगलवार को देश और दुनिया के अखबारों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा.

हालांकि, सभी अखबारों ने इसे अलग-अलग तरीके से पेश किया लेकिन उसमें सामान्य रूप से तीन श्रेणियां- जश्न, तटस्थ और आलोचनात्मक- रहीं.

खबरों में जहां देशभर से आ रही प्रतिक्रियाओं को अच्छी-खासी जगह मिली तो वहीं कश्मीर की आवाजें गायब रहीं.

इसका कारण रहा कि मोबाइल इंटरनेट, ब्रॉडबैंड और यहां तक की लैंडलाइन जैसे संचार के साधनों को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है. वहीं, दो पूर्व मुख्यमंत्रियों महबूबा मुफ्ती और उमर अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया गया.

इसका असर कश्मीरी अखबारों पर भी पड़ा. कश्मीरी अखबार न तो खबरें छाप सके और न गृहमंत्री अमित शाह की घोषणा का विश्लेषण कर सके.

ग्रेटर कश्मीर, राइजिंग कश्मीर और कश्मीर रीडर की वेबसाइट्स रविवार से ही अपडेट नहीं हुई हैं. हालांकि, कश्मीर टाइम्स खबरों से अपनी वेबसाइट को अपडेट करने और एजेंसी के ओपिनियन पीस को लगाने में सफल रहा.

अंग्रेजी अखबार

मोदी सरकार के खिलाफ फ्रंट पेज हेडलाइन के लिए अक्सर चर्चा में बने रहने वाले द टेलीग्राफ ने धारा 370 को खत्म कर जम्मू कश्मीर को दो भागों में बांटने को बड़े और बोल्ड अक्षरों में ‘पार्टिशन’ लिखकर पेश किया.

द टेलीग्राफ ने जम्मू कश्मीर की जनता, नेताओं और विधानसभा से मंजूरी न लेने को प्रमुखता से पेश किया और कहा कि इस पूरी प्रक्रिया के दौरान राज्य की संचार सेवाएं पूरी तरह से ठप रहने पर सवाल उठाया. उसने गृहमंत्री अमित शाह और जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री को आमने-सामने रखते हुए उनके बयान छापे.

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टाइम्स समूह के मुंबई मिरर की हेडलाइन ‘क्लोक एंड डैगर दैट पियर्सड कश्मीर्स हार्ट’ रही जो उसके संपादकीय पक्ष के साथ इस पूरी प्रक्रिया को पूरा किए जाने पर उसके रुख को दिखाता है. अख़बार ने बिना सलाह-मशविरे के धारा 370 में बदलाव करने और घाटी से उठने वाली विरोध की आवाजों को दबाने को प्रमुखता से पेश किया.

टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने पहले पन्ने पर बहुत ही तटस्थ रुख रखते हुए इस घटनाक्रम को केवल खबर के रूप में पेश किया. इसी तरह द हिंदू, हिंदुस्तान टाइम्स और बिजनेस स्टैंडर्ड ने भी इसे केवल एक खबर के रूप में पेश किया.

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अंग्रेजी के एक अन्य प्रमुख अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने ‘हिस्ट्री, इन वन स्ट्रोक हेडलाइन’ के माध्यम से इसे एक झटके में इतिहास बनाने वाला कदम बताया.

इसके साथ ही इस मुद्दे पर एक सख्त संपादकीय प्रकाशित करते हुए इंडियन एक्सप्रेस ने इस कदम को नरेंद्र मोदी सरकार के ‘न्यू इंडिया’ और इतिहास को दोबारा लिखने की रणनीति का हिस्सा बताया.

क्षेत्रीय भाषा के अखबार

हिंदी के अधिकतर अखबारों ने इस खबर को जश्न के माहौल में पेश किया. दैनिक जागरण ने अमित शाह और नरेंद्र मोदी के कार्टून को जीत का चिन्ह बनाए हुए दिखाया. इसके साथ ‘धारा 370’ लिखकर ‘370’ पर क्रास का निशान लगा दिखाया.

वहीं, दैनिक भास्कर ने भाजपा के ‘एक विधान, एक निशान’ के नारे को हेडिंग बनाया और बताया कि सरकार ने लोगों को अनुच्छेद 370 से आजादी दे दी है.

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इंडियन एक्सप्रेस समूह के हिंदी अखबार जनसत्ता ने ‘एकछत्र भारत हेडलाइन’ के साथ इसे ऐतिहासिक फैसला बताया. तमिल अखबार दिना मलार ने इस कदम को ऐतिहासिक उपलब्धि बताया.

हिंदी अखबार हिंदुस्तान ने अमित शाह के बयान को हेडलाइन बनाया जिसमें वे कह रहे हैं कि ‘घाटी में विकास के आड़े आ रहा था अनुच्छेद 370.’

मराठी भाषा में आने वाले शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ ने इसे ‘मिशन कश्मीर विक्ट्री’ बताया. एक अन्य मराठी अखबार, महाराष्ट्र टाइम्स ने भगवा रंग में छापी हेडलाइन में इसे ऐतिहासिक फैसला बताया.

मराठी अखबार लोकमत ने तटस्थता के साथ इस पहले पन्ने पर जगह दी और हेडलाइन में लिखा ‘कश्मीर का विशेष दर्जा छीना: राज्य दो केंद्र शासित प्रदेशों में बंटा, बहुमत न होने के बावजूद सरकार ने राज्यसभा में बहुमत जुटाया.’

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