पाकिस्तानी वाली गली: दादरी के इस मोहल्ले में रहने वाले लोग परेशान क्यों?

ग्राउंड रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर ज़िले के दादरी स्थित गौतमपुरी इलाके की एक गली का नाम ‘पाकिस्तानी वाली गली’ होने वजह से यहां रह रहे लोगों को परेशानी और अपमान का सामना करना पड़ रहा है. लोगों को कहना है कि इस नाम की वजह से उन्हें जल्दी कहीं काम नहीं मिलता और स्कूल बच्चों को दाख़िला देने में भी आनाकानी करते हैं.

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गौतम बुद्धनगर जिला का दादरी (फोटो: संतोषी मरकाम)

ग्राउंड रिपोर्ट: उत्तर प्रदेश में गौतम बुद्ध नगर ज़िले के दादरी स्थित गौतमपुरी इलाके की एक गली का नाम ‘पाकिस्तानी वाली गली’ होने वजह से यहां रह रहे लोगों को परेशानी और अपमान का सामना करना पड़ रहा है. लोगों को कहना है कि इस नाम की वजह से उन्हें जल्दी कहीं काम नहीं मिलता और स्कूल बच्चों को दाख़िला देने में भी आनाकानी करते हैं.

जयसिंह, जिनके पूर्वज कभी पाकिस्तान से आए थे. (फोटो: संतोषी मरकाम)
जयसिंह, जिनके पूर्वज कभी पाकिस्तानी से आए थे. (फोटो: संतोषी मरकाम)

नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच इस समय तनाव का जो माहौल है, उससे हम सभी वाकिफ हैं. ऐसे माहौल में अगर भारत के ही अंदर एक बस्ती को ‘पाकिस्तानी वाली गली’ के नाम से बुलाया जाए तो वहां रहने वाले लोगों के लिए किस तरह की मुश्किलें आ रही होंगी, इसकी कल्पना की जा सकती है.

हम बात कर रहे हैं दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के दादरी कस्बे की गौतमपुरी बस्ती की. दादरी गौतम बुद्ध नगर जिले में आता है. गौतमपुरी के अंदर एक मोहल्ले को ‘पाकिस्तानी वाली गली’ के नाम से बुलाया जा रहा है. लोगों का कहना है कि इस वजह से उन्हें तरह-तरह की दिक्कतें आ रही हैं.

इसका जायजा लेने के लिए द वायर  की टीम ने यहां का दौरा किया. हालांकि दिल्ली से दादरी का रास्ता मात्र लगभग 50 किलोमीटर का है लेकिन बस में करीब ढाई घंटा सफर पूरा करने के बाद ही हम दादरी पहुंच पाए.

दादरी रेलवे स्टेशन के पास बस से उतरने के बाद वहां से गौतमपुरी तक पहुंचने का रास्ता भी आसान नहीं था. ज़रा-सी बारिश से सड़कें पूरी तरह से तालाब का शक्ल ले चुकी थीं. पानी से भरी सड़क पर गाड़ी चलाना भी दूभर था. जगह-जगह कीचड़ था. बारिश का पानी और सीवर का पानी सड़कों पर बह रहा था.

जब हम ‘पाकिस्तानी वाली गली’ को खोजते हुए कई तंग गलियों से गुज़र रहे थे, तब तक पानी का बहाव कम हो रहा था. गलियां इतनी संकरी थीं कि कोई भी अपने दोनों हाथ फैलाकर दोनों तरफ की दीवारें छू सकता है. कहीं-कहीं तो गली की चौड़ाई इससे भी कम है.

साइकिल या मोटरसाइकिल के अलावा किसी चार पहिया वाहन का इन गलियों में घुसना मुश्किल है. गलियों के दोनों बगल से खुली नालियां बह रही थीं. कुछ मकान तो इतने नीचे थे कि बारिश का पानी और नालियों का पानी घरों में घुसा हुआ था.

कई गलियों का चक्कर काटने के बाद जब हम ‘पाकिस्तानी वाली गली’ में पहुंचे तो वहां खड़े लोगों ने एक बिजली के खंभे की ओर इशारा करते हुए हंसते हुए कहा कि वही ‘वाघा बॉर्डर’ है. खंभे से दाएं तरफ मुड़ने पर एक छोटी-सी बंद गली थी.

पाकिस्तान वाली गली (फोटो: संतोषी मरकाम)
पाकिस्तानी वाली गली (फोटो: संतोषी मरकाम)

वहां सबसे पहले हमारी मुलाकात जयसिंह (55) से होती है जिनको ‘पाकिस्तानी वाली गली’ का प्रवक्ता कहना गलत नहीं होगा. उन्होंने कहा कि किसी जमाने में उनके पिता दौजीराम, मां कौशल्या, ताऊ किशनलाल और ताई सागमंती- राजस्थान से सटे पाकिस्तानी की किसी जगह से यहां आए थे.

जयसिंह का ताल्लुक दलित समुदाय की जाटव जाति से है और उनकी गली के चारों ओर रहने वाले दूसरे लोगों में भी अधिकांश दलित (जाटव) समुदाय के ही हैं. जयसिंह के दो परिवारों का विस्तार अब आठ परिवारों में हो गया.

इस गली के ठीक बगल में रहने वाले वकील और बहुजन समाज पार्टी के नगर अध्यक्ष राजकुमार गौतम ने हमें थोड़ा विस्तार से बताया. उन्होंने बताया, ‘इनके पूर्वज देश-विभाजन के समय सबसे पहले दादरी से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित जारचा गांव में आकर बस गए थे. वहां रोजी-मजदूरी करते हुए कुछ पैसा इकट्ठा करने के बाद उन्होंने दादरी की गौतमपुरी में प्लॉट लेकर घर बनाए और यहीं रहने लग गए.’

जयसिंह और उनके बेटे और भाई-भतीजे जिस गली में रहते हैं, उसे काफी पहले से ‘पाकिस्तानी वाली गली’ के नाम बुलाया जाता रहा. लेकिन इससे उन्हें कभी कोई परेशानी नहीं हुई, ऐसा जयसिंह का कहना है.

लेकिन जबसे आधार कार्ड में उनकी बस्ती का नाम ‘पाकिस्तानी वाली गली’ के रूप में दर्ज होना शुरू हुआ, तभी से परेशानियों का सिलसिला शुरू हुआ.

जयसिंह कहते हैं, ‘कहीं काम के लिए जाने से आधार कार्ड में पता देखने के बाद कहते हैं कि तुम तो पाकिस्तानी हो. तुम्हें काम पर नहीं रखेंगे. स्कूल में बच्चों के एडमिशन के दौरान भी परेशानियां आ रही हैं.’

इस बस्ती में गरीबी और पिछड़ेपन को साफ देखा जा सकता है. लगभग सभी लोग मजदूरी करने वाले ही हैं. शिक्षा का स्तर भी बहुत कम है. बस्ती के एक नौजवान जितेंद्र कुमार ने बताया, ‘सभी मजदूरी करके ही पेट पालते हैं. इक्का-दुक्का महिलाएं बाहर चौका-बर्तन करने जाती हैं.’

पाकिस्तानी मोहल्ला दर्ज आधार कार्ड (फोटो: संतोषी मरकाम)
पाकिस्तानी मोहल्ला दर्ज आधार कार्ड. (फोटो: संतोषी मरकाम)

जबसे आधार कार्ड बनना शुरू हुआ, तभी से उस पर ‘पाकिस्तानी वाली गली’ लिखा जाना शुरू हुआ. लेकिन कभी किसी ने उसे उतनी गंभीरता से नहीं लिया था. वहां खड़े कई लोगों का कहना है कि ‘पाकिस्तानी वाली गली’ को लेकर शोर-शराबा पिछले एक-दो हफ्तों से ही ज़्यादा हो रहा है.

ऐसा क्यों हो रहा है पूछने पर नाम न छापने की शर्त पर एक व्यक्ति ने बताया कि यह सब बजरंग दल वालों के प्रचार का नतीजा है. उन्होंने बताया, ‘8-10 दिन पहले मोहल्ले का एक लड़का काम पर गया था. तब बजरंग दल के कुछ सदस्यों ने उसके आधार कार्ड में ‘पाकिस्तानी वाली गली’ लिखा हुआ देख लिया था. इस बात को सोशल मीडिया में फैला दिया गया.’

हालांकि उस व्यक्ति ने उस लड़के का नाम बताने से भी इनकार कर दिया.

आखिर आधार कार्ड में ‘पाकिस्तानी वाली गली’ दर्ज कैसे हुई? आधार केंद्र चलाने वाले कर्मचारियों की गलती की वजह से ऐसा हुआ या फिर लोगों ने खुद ही अपना पता ‘पाकिस्तानी वाली गली’ के रूप में दर्जा कराया होगा? इसके जवाब में जयसिंह कहते हैं कि बस्ती के लोगों ने ही ऐसा बताया होगा.

इस बात पर बाद में दादरी नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी समीर कुमार कश्यप ने बताया कि आधार कार्ड में नाम दर्ज करने का ठेका निजी संस्थाओं को दिया जाता है.

कश्यप ने कहा, ‘लोग अपना पता जो भी बताएंगे वही दर्ज किया जाता है. लैंडमार्क के रूप में बस्ती के लोगों ने खुद ही ऐसा बताया होगा तभी तो इस तरह दर्ज हुआ होगा. हालांकि हमारी नगरपालिका के दस्तावेजों में तो कहीं भी इस नाम की गली का जिक्र नहीं है. हमने गौतमपुरी बस्ती के अंदर अलग-अलग गलियों को नंबर दे रखा है.’

हमने कथित ‘पाकिस्तानी वाली गली’ के घरों के चौकट पर टंगे नगरपालिका के प्लेटों को भी देखा. उन पर मकान संख्या, वार्ड संख्या, पांच अंकों वाली यूआईडी संख्या दर्ज है और गौतमपुरी मोहल्ला लिखा हुआ है. लेकिन ‘पाकिस्तानी वाली गली’ का जिक्र उसमें नहीं है.

पाकिस्तान वाली गली के घर में नगरपालिका द्वारा लगाया गया प्लेट (फोटो: संतोषी मरकाम)
पाकिस्तानी वाली गली के घर में नगरपालिका द्वारा लगाया गया प्लेट (फोटो: संतोषी मरकाम)

जयसिंह समेत कई अन्य लोगों ने भी पुष्टि की कि अनौपचारिक तरीके से उनके मोहल्ले को ‘पाकिस्तानी वाली गली’ के नाम से बुलाने पर उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती थी. लेकिन अब आधार कार्ड पर दर्ज होने पर उन्हें कई दिक्कतें हो रही हैं और अब लोग उसे बदलवाना चाहते हैं.’

उसी गली में रहने वाली हरवीर देवी (55), बताती हैं, ‘हमें तो इसे लेकर कोई परेशानी नहीं हो रही थी. लेकिन जब बच्चों का एडमिशन कराने स्कूल में जाते हैं तो आधार कार्ड में ‘पाकिस्तानी वाली गली’ देखकर लोग चौंक जाते हैं और कहते हैं ये तो आतंकवादी होंगे.’

द वायर से बात करने वाली दो स्कूली छात्राएं डॉली (10वीं कक्षा) और सोनम (8वीं कक्षा) ने भी यही बात कही. उन्हें इस गली के नाम से स्कूल में चिढ़ाया जाता है. उनका साफ कहना है कि उनकी गली को इस नाम से न बुलाया जाए.

वहीं पर रहने वाली 58 वर्षीय जयपाली देवी ने कहा है, ‘अगर कहीं रिश्ता जोड़ने जाते हैं तब भी पाकिस्तानी वाली गली का नाम सुनते ही मना कर देते हैं.’

उस मोहल्ले में हमें आधार कार्ड में दर्ज पतों में कई और विसंगतियां भी दिखीं. जैसा कि एक परिवार में सबके आधार कार्ड में अलग-अलग पता दर्ज है. उदाहरण के तौर पर दीपक कुमार (35) के आधार कार्ड में ‘चमारान’ लिखा है, पत्नी के कार्ड में ‘पाकिस्तानी मोहल्ला’ लिखा है और उनके दो बेटों के कार्ड में सिर्फ गौतमपुरी लिखा हुआ है.

स्कूली छात्रा जिसके आधार में पाकिस्तान वाली गली दर्ज है. (फोटो: संतोषी मरकाम)
स्कूली छात्रा जिसके आधार में पाकिस्तानी वाली गली दर्ज है. (फोटो: संतोषी मरकाम)

अपनी बस्ती को ‘चमारान’ के रूप में लिखे जाने पर राजकुमार गौतम ने भी ख़ासी नाराज़गी जताई. उनका कहना है कि यह सरासर जातिवाद है. उन्होंने कहा, ‘गौतमपुरी का जो मुख्य हिस्सा है उसमें दलित ही ज़्यादा हैं. इससे सटे हुए चार और मोहल्ले हैं. एक ब्रह्मपुरी है जिसमें ज़्यादातर ब्राह्मण हैं. एक मुसलमानों का मोहल्ला और राजपूतों का मोहल्ला भी है. मोहल्लों को जाति सूचक नाम देना बिल्कुल गलत है.’

‘पाकिस्तानी वाली गली’ कहे जाने पर उन्हें कितनी परेशानी हो रही है, यह पूछे जाने पर राजकुमार गौतम ने कहा, ‘दिक्कत 10 प्रतिशत होगा तो इस पर प्रचार 90 प्रतिशत है. मैं 20 सालों से इस बस्ती में रह रहा हूं. यहीं से पढ़ा हूं. मुझे कभी कोई दिक्कत नहीं हुई. बस बस्ती का यह नाम सुनने में थोड़ा अजीब लगता है.’

इस पर नगरपालिका के अधिशासी अधिकारी समीर कुमार कश्यप का कहना है कि ये कोई बड़ा मुद्दा नहीं है.

कश्यप ने कहा, ‘मीडिया ने ही इसे उछाला है. ये तो बोलचाल की भाषा में सालों से चला आ रहा है, अब तक कोई समस्या नहीं आई. लोग किसी को सही लोकेशन बताने के लिए पाकिस्तानी वाली गली के नाम से ही उस मोहल्ले को जानते हैं.’

उन्होंने बताया, ‘यह मामला उनके संज्ञान में आया है और उन्होंने आधार कार्ड बनाने वाले केंद्र से भी बात की है. नाम बदलने के लिए उन्हें (कार्ड धारकों को) खुद आधार केंद्र में जाकर आवेदन देना होगा. ये कोई बड़ी बात नहीं है.’

वहीं राजकुमार गौतम का इस पर कहना है कि आधार के अधिकारियों को एक विशेष कैंप चलाना चाहिए. सभी के कार्डों में से ‘पाकिस्तानी वाली गली’ को हटा देना चाहिए. यही इस समस्या का सही समाधान होगा.