भाजपा को कठिनाई से उबारने वाले शख्स थे अरुण जेटली

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली भाजपा के एक शिष्ट एवं उदार चेहरा थे, जिन्होंने पार्टी को कई नए सहयोगी दिए और पार्टी को किसी भी संकट से निकालने वाले सबसे अहम व्यक्ति थे.

New Delhi: Finance Minister Arun Jaitley attends the 61st foundation day of Directorate of Revenue Intelligence (DRI) at Ambedkar International Centre, in New Delhi, Tuesday, Dec. 4, 2018. (PTI Photo/Manvender Vashist)(PTI12_4_2018_000027B)
New Delhi: Finance Minister Arun Jaitley attends the 61st foundation day of Directorate of Revenue Intelligence (DRI) at Ambedkar International Centre, in New Delhi, Tuesday, Dec. 4, 2018. (PTI Photo/Manvender Vashist)(PTI12_4_2018_000027B)

पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली भाजपा के एक शिष्ट एवं उदार चेहरा थे, जिन्होंने पार्टी को कई नए सहयोगी दिए और पार्टी को किसी भी संकट से निकालने वाले सबसे अहम व्यक्ति थे.

New Delhi: Finance Minister Arun Jaitley attends the 61st foundation day of Directorate of Revenue Intelligence (DRI) at Ambedkar International Centre, in New Delhi, Tuesday, Dec. 4, 2018. (PTI Photo/Manvender Vashist)(PTI12_4_2018_000027B)
पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली. (फाइल फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी के लिए अरुण जेटली किसी भी आकस्मिकता से निपटने में सक्षम शख्सियत थे और उनका व्यवहार स्थिति के अनुरूप होता था. वह एक ऐसे रणनीतिकार थे जिसने कई राज्यों में पार्टी के उद्भव की गाथा लिखी.

एक शिष्ट एवं उदार चेहरा जिसने पार्टी को कई नए सहयोगी दिए और अपनी बात पर अडिग रहने वाले ऐसे शख्स थे जिनकी समझाने-बुझाने वाली कला उनके नेतृत्व के लिए बहुमूल्य धरोहर थी.

करीब डेढ़ दशक तक खासकर 2006 में प्रमोद महाजन के निधन के बाद वह पार्टी को किसी भी संकट से निकालने वाले सबसे अहम व्यक्ति थे.

उनकी कुशलता नरेंद्र मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में पूरी तरह नजर आई जब उन्होंने भ्रष्टाचार खासकर राफेल सौदे और घोर पूंजीवादी होने के विपक्ष के आरोपों को लेकर भाजपा का जवाब तैयार किया था तथा हाल में संपन्न हुए आम चुनाव के लिए प्रचार के दौरान सोशल मीडिया के अपने नियमित पोस्ट के जरिए कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए पर निशाना साधा.

कई माह तक बीमारी से लड़ने के बाद जेटली का दिल्ली के एम्स में बीते शनिवार को निधन हो गया. उन्हें दो सप्ताह पहले सांस लेने में दिक्कत के बाद एम्स में भर्ती कराया गया था. वह 66 वर्ष के थे.

कई सालों तक भाजपा की कोर टीम के सदस्य रहे, वरिष्ठ वकील संभवत: पार्टी के लिए एकमात्र बड़े नेता थे जिन्होंने 2013 में प्रधानमंत्री पद को लेकर मोदी की दावेदारी का मार्ग प्रशस्त करने में समर्थन किया था.

अपातकाल के दिन

देश में आपातकाल घोषित होने के बाद 26 जून, 1975 की सुबह अरुण जेटली ने लोगों के एक समूह को इकट्ठा किया और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का पुतला जलाया. उनके शब्दों में आपातकाल के खिलाफ वह ‘पहले सत्याग्रही’ थे.

इसके बाद उन्हें एहतियाती तौर पर हिरासत में लिया गया और वह 1975 से 1977 तक 19 महीने की अवधि के लिए जेल में रहे.

पत्रकार-लेखिका सोनिया सिंह की पुस्तक ‘डिफाइनिंग इंडिया: थ्रू देयर आईज’ में जेटली के हवाले से कहा गया है, ‘जब 25 जून 1975 की आधी रात को आपातकाल घोषित किया गया, तो वे मुझे गिरफ्तार करने आए. मैं पास ही स्थित एक दोस्त के घर जाकर बच गया. अगली सुबह मैंने कई लोगों को इकट्ठा किया और इंदिरा गांधी का पुतला जलाया और मुझे गिरफ्तार कर लिया गया. मैंने गिरफ्तारी दी.’

उन्होंने कहा था, ‘मैं आपातकाल के खिलाफ तकनीकी रूप से पहला ‘सत्याग्रही’’ बना क्योंकि 26 जून को यह देश में हुआ केवल एक विरोध था. तीन महीनों के लिए, मैं अंबाला की जेल में रहा.’

वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के छात्र नेता रहे और 1970 के दशक में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (डूसू) के अध्यक्ष भी बने थे. एक जाने-माने वकील रहे जेटली ने कहा था, ‘जेल में उन्हें पढ़ने और लिखने का जुनून था.’

उन्होंने कहा, ‘दोस्त और परिवार मुझे किताबें भेजते थे या मैं उन्हें जेल के पुस्तकालय से लेता था. मैंने जेल में संविधान सभा की पूरी बहस पढ़ी. मैं बहुत कुछ पढ़ता हूं, कभी-कभार लिखता हूं, और यह एक जुनून है जो जारी है.’

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और आरएसएस के विचारक नानाजी देशमुख के साथ जेल में रहे जेटली ने कहा था, ‘वहीं दूसरी तरफ हम सुबह और शाम को बैडमिंटन और वॉलीबाल भी खेलते थे.’

मोदी और हिंदुत्व

राजनीति की गूढ़ समझ रखने वाले जेटली राजनीति के बदलते समीकरणों पर पैनी नजर रखते थे और पार्टी के भीतर मोदी के सबसे शुरुआती समर्थकों में शामिल थे.

उन्होंने 2002 के दंगों और फर्जी मुठभेड़ के आरोपों से गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी और उनके घनिष्ठ मित्र अमित शाह को बेदाग बाहर निकालने में अपनी राजनीतिक कुशाग्रता का प्रयोग किया था.

उदारवादी नेता के उत्कृष्ट उदाहरण जो हिंदुत्व राजनीति के कट्टरवादी विचारधारा से कभी नहीं जुड़े, जेटली मोदी के विश्वासपात्र मित्र बन गए थे जब उन्होंने भाजपा में गुजरात के नेता के उदय की राह आसान बनाई.

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साल 2007 में गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह से पहले मोदी को गले लगाते भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी. उस समय मंच पर अरुण जेटली भी मौजूद थे. (फोटो: पीटीआई)

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष उन असाधारण राजनीतिज्ञों में से थे जिन्होंने राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर विवाद और तीन तलाक विधेयक जैसे कई अहम मुद्दों पर जोर-शोर से पार्टी का पक्ष रखा. अन्य राजनीतिज्ञों के उलट वह पार्टी के पक्ष को रखने के लिए ज्यादातर समय तर्कों पर निर्भर रहते थे.

मेधावी किस्सागो जिनकी दिलचस्पी राजनीति से लेकर बॉलीवुड और खेल में थी, जेटली की अनौपचारिक सभाएं पत्रकारों, दोस्तों और राजनीतिकों से भरी रहती थी.

जेटली वह पुल थे जिनका प्रयोग भाजपा नए सहयोगियों को जीतने के लिए तथा विपक्षी पार्टियों को प्रमुख मुद्दों पर बात करने के लिए तैयार करने में करती थी.

भाजपा के सहयोगी जैसे जद (यू) अध्यक्ष एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई दशकों तक उनके करीबी दोस्त रहे. जेटली ने यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी कि कुमार को मुख्यमंत्री पद के लिए गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जाए.

यहां तक कि जब कुमार ने 2013 में भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था, फिर भी कुमार के राष्ट्रीय राजधानी आने पर जेटली उनसे मिलने पहुंचते थे. कुमार के 2017 में भाजपा से फिर से हाथ मिला लेने में भी जेटली की अहम भूमिका रही थी.

अन्य दलों के नेताओं के साथ संबंध

अरुण जेटली ने अपने व्यक्तिगत संबंधों से सभी राजनीतिक दलों में अपने मित्र बनाये थे. उन्होंने प्रतिद्वंद्वी दलों के रुख का मुखर विरोध किया लेकिन अपने सूझबूझ भरे व्यक्तिगत संबंधों से विपक्षी नेताओं के दिलों में अपनी खास जगह भी बनाई थी.

ऐसा ही एक वाक्या संसद के हंगामेदार शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन पांच जनवरी, 2018 को हुआ था, जब तीन तलाक विधेयक पर भाजपा और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के बीच काफी नोकझोंक हुई थी. लेकिन उसी शाम अरुण जेटली के चैंबर में एक केक लाया गया और यह केक राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा के जन्मदिन के लिए लाया गया था.

वह विपक्षी दलों के रुख का जोरदार विरोध करते थे लेकिन उन्होंने कभी अपनी इस भावना को नहीं छोड़ा और यहीं कारण है कि उन्होंने सभी राजनीतिक दलों में अपने मित्र बनाये.

जेटली को एक मिलनसार व्यक्ति के रूप में जाना जाता था. विपक्षी नेताओं के साथ उनका तालमेल ऐसा था कि 2016 में नोटबंदी पर राज्यसभा में चर्चा के दौरान समाजवादी पार्टी के उस समय सासंद रहे नरेश अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में कहा था कि उन्होंने तत्कालीन वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली को भी इस फैसले के बारे में विश्वास में नहीं लिया.

अग्रवाल ने सदन में कहा था, ‘यदि अरुणजी को पता होता तो वह मेरे कान में इस बारे में जरूर बता देते. वह मुझे जानते हैं.’

विपक्षी नेताओं के साथ अरुण जेटली के बेहतर संबंधों को याद करते हुए वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि पूर्व वित्त मंत्री ऐसे भाजपाई थे जो प्रत्येक गैर भाजपाइयों के पसंदीदा थे.

उन्होंने कहा कि जेटली के पास तेज कानूनी और राजनीतिक दिमाग था और गजब का हास्यबोध था. रमेश ने कहा, ‘उनकी बातों को घुमा देने की असाधारण क्षमता के कारण एक बार मैने उन्हें बेदी, प्रसन्ना, चंद्रा और वेंकट करार दिया था.’

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने जेटली के निधन पर दुख जताते हुए कहा कि वह उनके मित्र थे और दिल्ली विश्वविद्यालय में उनके वरिष्ठ थे.

जेटली के एक अन्य मित्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा कि जेटली एक पुराने मित्र और एक प्यारे सहयोगी थे, जिन्हें भारत के वित्त मंत्री के रूप में उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए याद किया जाएगा.

वहीं कांग्रेस नेता अभिषेक सिंघवी ने कहा उनके साथ 10 अगस्त को मिलने का कार्यक्रम तय हुआ था लेकिन दुर्भाग्यवश पूर्व वित्त मंत्री को नौ अगस्त को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा.

पूर्व कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने भी जेटली को एक मित्र के रूप में याद किया. उन्होंने वह बिना किसी विद्वेष के सभी के मित्र थे. उन्होंने कहा कि जब विपक्ष को घेरने की बात आती थी तो वह कभी नहीं हिचकिचाते थे.

भाजपा के महासचिव के तौर पर वह बिहार, कर्नाटक और मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में पार्टी के उदय के लिए अहम रहे. वह एक कुशल प्रशासक भी थे जो हर परिस्थिति को मौके के हिसाब से संभालते थे.

उनके मीडिया से इतने अच्छे संबंध थे कि कई बार उनके आलोचक उन्हें ‘ब्यूरो चीफ’ कहते थे जो किसी राजनीतिक मामले को आसान तरीके से समझाते थे.

जाहिर है भाजपा के लिए ऐसे किसी व्यक्ति को तलाशना मुश्किल होगा जो जेटली की तरह लंबे समय तक उसे मुश्किलों से उबारने में मदद करे.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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