क्या भूपेंद्र सिंह हुड्डा का बगावती तेवर कांग्रेस नेतृत्व पर दबाव बनाने का पैंतरा है?

हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीते 18 अगस्त को कांग्रेस के दिग्गज नेता और प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एक रैली में बागी तेवर दिखाते हुए खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया. इसके बाद अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या चौधरी बीरेंद्र सिंह और राव इंद्रजीत सिंह की तरह प्रदेश कांग्रेस का एक और बड़ा नेता पार्टी छोड़कर जाने वाला है?

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New Delhi: In this file photo dated Aug 2, 2016, is seen former Haryana chief minister Bhupinder Singh Hooda, in New Delhi. Hooda and Congress leader Sonia Gandhi's son-in-law Robert Vadra were booked on Saturday by Haryana Police for alleged irregularities in land deals in Gurgaon. An FIR against Vadra, Hooda and two companies - DLF and Onkareshwar Properties - has been registered at Kherki Daula police station in Gurgaon, Manesar Deputy Commissioner of Police Rajesh Kumar told PTI. (PTI Photo/Kamal Kishore)
कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा. (फोटो: पीटीआई)

हरियाणा विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बीते 18 अगस्त को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने एक रैली में बागी तेवर दिखाते हुए खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया. इसके बाद अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या चौधरी बीरेंद्र सिंह और राव इंद्रजीत सिंह की तरह प्रदेश कांग्रेस का एक और बड़ा नेता पार्टी छोड़कर जाने वाला है?

New Delhi: In this file photo dated Aug 2, 2016, is seen former Haryana chief minister Bhupinder Singh Hooda, in New Delhi. Hooda and Congress leader Sonia Gandhi's son-in-law Robert Vadra were booked on Saturday by Haryana Police for alleged irregularities in land deals in Gurgaon. An FIR against Vadra, Hooda and two companies - DLF and Onkareshwar Properties - has been registered at Kherki Daula police station in Gurgaon, Manesar Deputy Commissioner of Police Rajesh Kumar told PTI. (PTI Photo/Kamal Kishore)
कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा. (फोटो: पीटीआई)

नई दिल्ली: संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस पार्टी के लिए बीते हफ्ते एक बार फिर से असहजता की स्थिति तब पैदा हो गई जब उसके दो बार के मुख्यमंत्री रह चुके हरियाणा के कद्दावर नेता भूपेंद्र हुड्डा ने बगावती तेवर दिखाते हुए खुद को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दिया.

रोहतक में 18 अगस्त को अपनी परिवर्तन रैली के मंच से खुद को सभी पाबंदियों से मुक्त बताते हुए उन्होंने कह दिया कि वे हरियाणा में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, कांग्रेस के साथ या कांग्रेस के बिना.

इसी दौरान जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को हटाने के मोदी सरकार के फैसले का समर्थन करके हुड्डा कांग्रेस के उन नेताओं की सूची में भी शामिल हो गए जो पार्टी की आधिकारिक लाइन से उलट है.

इस दौरान उन्होंने कहा, ‘मेरी पार्टी भी कुछ भटक गई है, वो पहले वाली कांग्रेस नहीं रही, लेकिन जहां तक सवाल है देशभक्ति और स्वाभिमान का, मैं किसी से समझौता नहीं करूंगा. इसी के वास्ते मैंने अनुच्छेद 370 हटाने का समर्थन किया है.’

बीते पांच अगस्त को ही जिस दिन अनुच्छेद 370 हटाया गया था, उसी दिन हरियाणा विधानसभा में हु़ड्डा ने कहा था कि यह अच्छा है कि भाजपा ने घोषणा-पत्र में किए गए अपने एक वादे को पूरा किया.

अपने संबोधन में हुड्डा ने आगे के कदम के लिए एक 25 सदस्यीय समिति भी बनाने का ऐलान किया. उन्होंने कहा कि वे एक हफ्ते के अंदर चंडीगढ़ में समिति के फैसले की घोषणा करेंगे.

इस कदम पर आगे बढ़ते हुए हुड्डा ने शुक्रवार को अपने राजनीतिक भविष्य का फैसला करने के लिए एक 38 सदस्यीय समिति की घोषणा कर दी. पूर्व मंत्री हर मोहिंदर सिंह चड्ढा समिति के अध्यक्ष और विधायक उदय भान संयोजक बनाए गए हैं.

इतना ही नहीं हुड्डा ने स्थानीय नौकरियों में हरियाणा के लोगों के लिए 75 फीसदी आरक्षण, बुजुर्गों का पेंशन बढ़ाकर पांच हजार रुपये करने, हरियाणा रोडवेज में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा, गरीबों के लिए चार लाख घर बनाने और दलित बच्चों को आठवीं तक 500, 12वीं तक 1000 और उससे ऊपर 1500 रुपये देने जैसे लोकलुभावन वादों की भी घोषणा कर दी.

बता दें कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा हरियाणा में केवल कांग्रेस के ही नहीं बल्कि राज्य की राजनीति के कद्दावर नेताओं में से एक हैं. पिछले चार दशकों से कांग्रेस से जुड़े हुड्डा दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

हुड्डा हरियाणा के बड़े जाट नेताओं में शामिल हैं. परिवर्तन रैली में जुटी अप्रत्याशित भीड़ और मंच पर एकत्र राज्य के कई विधायक व पूर्व विधायकों के इकट्ठे होने से इसका साफ संदेश भी मिल जाता है.

क्या बागी हो गए हैं हुड्डा

हरियाणा की राजनीति को समझने वाले वरिष्ठ पत्रकार हितेंद्र राव कहते हैं, ‘भूपेंद्र हुड्डा ने केवल बागी होने के तेवर दिखाए हैं. लोकसभा चुनाव हारने के बाद पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व चुपचाप बैठ गया क्योंकि उन्हें तो अब पांच साल बाद चुनाव लड़ना है लेकिन इनको विधानसभा चुनाव लड़ना है.’

हरियाणा के रोहतक में बीते 18 अगस्त को भूपेंद्र सिंह हुड्डा की रैली में जुटी भीड़. (फोटो साभार: फेसबुक)
हरियाणा के रोहतक में बीते 18 अगस्त को भूपेंद्र सिंह हुड्डा की रैली में जुटी भीड़. (फोटो साभार: फेसबुक)

उन्होंने कहा, ‘आज की तारीख में हरियाणा में कोई जिला या ब्लॉक कांग्रेस समिति नहीं है. राज्य में कोई संगठनात्मक ढांचा नहीं है. लेकिन हाईकमान से कोई पूछने वाला नहीं है कि आप क्या कर रहे हैं. बिना किसी संगठनात्मक ढांचे के आप कोई चुनाव कैसे लड़ेंगे. लोकसभा चुनाव में कई ऐसे क्षेत्र थे जहां पर कांग्रेस के पोलिंग एजेंट थे ही नहीं. नेता से थोड़ी न वोट पड़ता है, आखिर में तो कार्यकर्ता ही वोट गिरवाता है.’

दरअसल हुड्डा के इस बागी रुख के पीछे पार्टी के मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर हैं. राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले तंवर को 2014 में प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. इसके बाद से ही दोनों नेताओं के बीच छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है.

बता दें कि हरियाणा में कांग्रेस पार्टी में नेतृत्व को लेकर लंबे समय से लड़ाई चल रही है. साल 2014 में अशोक तंवर को अध्यक्ष बनाए जाने से पहले फूलचंद मुलाना करीब सात सालों (2007-14) तक प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष ही बने हुए थे. इस दौरान पार्टी के कई गुटों में यह पद हासिल करने की होड़ लगी रही.

वहीं, अध्यक्ष बनाए जाने के बाद तंवर के नेतृत्व में पार्टी को राज्य में लगातार हार का सामना करना पड़ा है. यही कारण है कि पिछले तीन सालों से हुड्डा गुट पार्टी हाईकमान पर हरियाणा कांग्रेस प्रमुख अशोक तंवर को हटाकर उन्हें (हुड्डा) पार्टी अध्यक्ष बनाने का दबाव बना रहा है.

इसके अलावा भी प्रदेश कांग्रेस में कई गुट सक्रिय हैं. इनमें राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला, किरण चौधरी, कुमारी शैलजा जैसे नाम शामिल हैं. प्रदेश में चल रही इस खींचतान का ही नतीजा है कि लंबे समय से हरियाणा में ‌कांग्रेस जिलाध्यक्षों की नियुक्तियां या चुनाव भी नहीं हो सके हैं.

वरिष्ठ पत्रकार बलवंत तक्षक कहते हैं, ‘आज की परिस्थितियां ऐसी हैं कि हुड्डा कांग्रेस तो छोड़ेंगे नहीं. कांग्रेस हाईकमान को जो थोड़ी बहुत नाराजगी या अलग होने के संकेत वो दिखा रहे हैं उसके पीछे अशोक तंवर को कई हार के बाद भी अध्यक्ष बनाए रखना है.’

वे कहते हैं, ‘2014 के लोकसभा चुनावों में राज्य में कांग्रेस ने 10 में से एक सीट जीती थी वो भी हुड्डा के बेटे दीपेंद्र हुड्डा ने. उसके बाद विधानसभा चुनाव में कांग्रेस हार गई. नगर निगम और जिंद उपचुनाव में भी कांग्रेस हार गई. अब एक बार फिर से 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस राज्य में सभी सीटें हार गई. तंवर साहब पार्टी के एकमात्र ऐसे अध्यक्ष हैं जिनके साथ न तो कोई विधायक है और न ही कोई बड़ा नेता. पिछले पांच साल से अधिक के उनके कार्यकाल में कोई उपलब्धि दर्ज नहीं है.’

बता दें कि हुड्डा को हरियाणा के 15 में से 12 कांग्रेस विधायकों का समर्थन हासिल है. बड़ी संख्या में पार्टी के नेताओं ने हुड्डा के साथ मंच साझा किया जिसमें मौजूदा विधायकों के साथ कई पूर्व सांसद और पूर्व मंत्री शामिल रहे.

वहीं, हुड्डा के अन्य सहयोगी पलवल के विधायक करन दलाल, हरियाणा प्रदेश कांग्रेस समिति के पूर्व अध्यक्ष फूल चंद मुलाना, विधानसभा के पूर्व स्पीकर रघुबीर सिंह कादियान और झज्जर विधायक गीता भुक्कल ने भी मंच से पार्टी हाईकमान को चुनौती देते हुए कहा कि या तो वे हुड्डा को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित करें या नतीजे भुगतें.

वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं, ‘कांग्रेस के जो क्षेत्रीय नेता केंद्रीय नेतृत्व को आंखें दिखा रहे हैं, तरह-तरह के बहाने ढूंढकर अलग होने की बात कर रहे हैं, कोई धारा 370 की बात करता है, कोई राष्ट्रवाद की बात करता है तो ऐसी परिस्थिति में सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बनने के बाद उस पर थोड़ा सा विराम लग गया है.’

उन्होंने कहा, ‘बीते 18 अगस्त को हुड्डा को फैसला करना था कि वे पार्टी से अलग हो रहे हैं लेकिन वे पार्टी से अलग नहीं हुए. लेकिन उन्होंने कह दिया कि वे एक कमेटी बनाएंगे और कमेटी तय करेगी कि आगे क्या करना है तो इसका मतलब है कि उन्होंने पार्टी को समय दे दिया है कि वह विधानसभा चुनाव से पहले उनकी और उनके बेटे की भूमिका को लेकर जल्दी फैसला ले. अब यह तो कांग्रेस के विवेक पर है कि वह हुड्डा को कांग्रेस के बाहर देखना चाहती है या कांग्रेस के अंदर.’

वहीं, रोहतक में हुई रैली में अनुच्छेद 370 का समर्थन करते हुए हुड्डा के बेटे और रोहतक से पूर्व सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने कहा, ‘मैंने हमेशा राजनीतिक हित से ऊपर राष्ट्रीय हित रखा है. अनुच्छेद 370 की बात की जाए तो जिस तरह से इसे खत्म किया गया था, मैंने इसका विरोध किया, लेकिन मैं इसके हटाने का हमेशा समर्थन करूंगा. जो लोग राजनीतिक लाभ के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं मैं उनके साथ नहीं हूं.’

इससे पहले जनार्दन द्विवेदी, मिलिंद देवड़ा, कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया, सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली से विधायक अदिति सिंह सहित कई दूसरे पार्टी नेताओं ने अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन किया था.

वरिष्ठ पत्रकार हितेंद्र राव कहते हैं, ‘भूपेंद्र हुड्डा बहुत ही रूढ़िवादी विचार के हैं तो वे क्रांतिकारी कदम उठाने जैसा कुछ नहीं करेंगे. अनुच्छेद 370 को लेकर जो रुख अपनाया है वह उन्होंने पहले ही दिन ले लिया था. इसका कारण है कि हरियाणा में आम जनता की भावनाएं इसके साथ हैं.’

हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर. (फोटो साभार: फेसबुक)
हरियाणा कांग्रेस के अध्यक्ष अशोक तंवर. (फोटो साभार: फेसबुक)

राव कहते हैं, ‘कांग्रेस कार्य समिति के सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अनुच्छेद 370 को हटाने का समर्थन किया था. उसके बाद पार्टी ने बयान जारी किया. लेकिन आप देखिए तो उन्होंने कभी अपना बयान वापस नहीं लिया. इसलिए इस पर पार्टी में विभाजन तो है. वहीं, पार्टी अगर अनुच्छेद 370 के विरोध के कारण किसी के खिलाफ कार्रवाई करेगी तो उसे लोगों की सहानुभूति मिलेगी.’

वरिष्ठ पत्रकार बलवंत तक्षक कहते हैं, ‘धारा 370 को हटाने का समर्थन इसलिए किया जा रहा है क्योंकि ये फौजियों का इलाका है. एक हिसाब से हर 10वां सैनिक हरियाणा से है. हरियाणा में फौजियों को अपना साथ जोड़े रखने या उन्हें नाराज न करने के लिए हुड्डा ने धारा 370 का समर्थन किया.’

अनुच्छेद 370 पर हुड्डा या अन्य नेताओं के रुख पर राशिद किदवई कहते हैं, ‘कांग्रेस एक ऐसी पार्टी है जिसमें कोई भी संवेदनशील मुद्दा हो तो उस पर एक राय नहीं होती है. अगर आप राम मंदिर के मामले में कांग्रेस नेताओं के बीच कोई रायशुमारी कराएं तो मत विभाजित हो जाएंगे.’

वे कहते हैं, ‘एक राष्ट्रीय दल का यह स्वरूप होता है कि उसमें अलग-अलग विचारों के लोग रहते हैं. कश्मीर के मसले को देखें तो कांग्रेस का प्रतिनिधित्व जम्मू, कश्मीर और लद्दाख तीनों क्षेत्रों में है. ऐसे में उनकी अलग-अलग मांगें भी हो सकती हैं. अगर क्षेत्रीय दल कोई मांग कर रहे हैं तो इसमें कुछ गलत नहीं है.’

क्या हुड्डा कांग्रेस छोड़कर नई पार्टी बना सकते हैं

परिवर्तन रैली में शक्ति प्रदर्शन करने वाले भूपेंद्र सिंह हुड्डा को लेकर पिछले काफी समय से अटकलों का दौर चल रहा है. ऐसा माना जा रहा था कि वे इस रैली में पार्टी छोड़ने का ऐलान कर देंगे.

राज्य में उनके करीबी नेता रैली से पहले लगातार किसी बड़े परिवर्तन का दावा करते रहे थे. रैली से ठीक पहले उनके एक नेता ने दावा किया था कि हुड्डा कांग्रेस का साथ छोड़ देंगे.

राव कहते हैं, ‘मेरी समझ से हुड्डा पार्टी छोड़ेंगे नहीं. उनमें इतनी समझ तो है कि यहां पर जिसने भी पार्टी बनाई वो चली नहीं. चुनाव को केवल दो महीने रह गए हैं तो पार्टी बनाने में बहुत देर हो चुकी है. ऐसी भी चर्चाएं हैं कि पार्टी न बनाकर हुड्डा शरद पवार की एनसीपी में शामिल हो सकते हैं. हालांकि, मुझे लगता नहीं है ये कांग्रेस छोड़कर जाएंगे क्योंकि इनको राजनीतिक रूप से कोई फायदा होगा नहीं.’

हुड्डा के कांग्रेस न छोड़ने की राव की बात से सहमति जताते हुए तक्षक ने कहा, ‘पहली बात तो यह है कि हुड्डा परिवार लंबे समय से कांग्रेस पार्टी के साथ हैं. 1996 में पूर्व मुख्यमंत्री बंशीलाल ने हरियाणा विकास पार्टी बनाई थी तो उस समय चौधरी बीरेंद्र सिंह और भूपेंद्र हुड्डा उनके साथ जाने के बजाय कांग्रेस में ही रहे. इसके बाद चौधरी बीरेंद्र सिंह भाजपा में चले गए लेकिन तब भी हुड्डा साहब कांग्रेस में ही रहे.’

राव कहते हैं, ‘भूपेंद्र हुड्डा हरियाणा कांग्रेस में सबसे बड़े नेता हैं. उनके पास कांग्रेस का वोटबैंक तो है ही, साथ ही 10 साल मुख्यमंत्री रहने के दौरान उन्होंने अपना वोटबैंक भी बना लिया है.’

राहुल गांधी के साथ भूपेंद्र सिंह हुड्डा. (फोटो साभार: फेसबुक)
राहुल गांधी के साथ भूपेंद्र सिंह हुड्डा. (फोटो साभार: फेसबुक)

वे कहते हैं, ‘इसका कारण हरियाणा की राजनीति के इतिहास में भी मिल जाएगा कि क्यों हुड्डा कांग्रेस छोड़कर नहीं जाएंगे और नई पार्टी नहीं बनाएंगे. चौधरी बंशीलाल ने अपनी पार्टी बनाई थी. उनको काफी संघर्ष करना पड़ा और दूसरे चुनाव में वे बहुत मुश्किल से भाजपा के साथ गठबंधन सरकार बना पाए थे. इसके बाद भजनलाल ने भी पार्टी बनाई लेकिन दोनों नेताओं की पार्टियां सफल नहीं पाईं.’

भाजपा के समर्थन से हुड्डा के नई पार्टी बनाने के आसार पर राव कहते हैं, ‘आज से दो साल पहले ऐसी परिस्थिति बनी थी कि भाजपा ने हुड्डा पर दबाव डाला था कि आप कांग्रेस छोड़कर अपनी पार्टी बना लीजिए, हालांकि वह बात बन नहीं पाई. आज की तारीख में भाजपा को किसी की जरूरत नहीं है. भाजपा ऐसे नेता को क्यों लेगी जिसके खिलाफ उन्होंने 5-6 सीबीआई केस दर्ज करा रखे हैं.’

तक्षक कहते हैं, ‘हुड्डा ने पूर्व उप प्रधानमंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री देवीलाल को तीन बार हराया था. 2005 में उन्होंने पार्टी के अंदर चौधरी बीरेंद्र सिंह से मुख्यमंत्री की लड़ाई जीत ली थी. 10 साल मुख्यमंत्री रहने वाला और चार-पांच बार सांसद रहने वाला व्यक्ति खट्टर के नीचे काम करने भाजपा में नहीं जाएगा. पिछले कुछ समय में चौटाला की ही पार्टी के विधायक गए हैं, कांग्रेस का कोई बड़ा नाम भाजपा में नहीं गया.’

तक्षक की बात से सहमति जताते हुए राव कहते हैं, ‘कांग्रेस के जितने भी बड़े नेता भाजपा में गए वे सब 2014 में गए थे. हाल में कोई बड़ा नेता नहीं गया है. अभी ज्यादातर लोग लोकदल से भाजपा में गए हैं.’

वे कहते हैं, ‘भाजपा में न जाने का यह भी कारण है कि उन्हें पता है कि अचानक से वहां सब कुछ नहीं मिल जाएगा और तुरंत आसन पर बैठा लिया जाएगा. वहां भी आपको समय लगता है और बाहरी माना जाता है.’

विधानसभा चुनाव से पहले क्या है कांग्रेस का हाल

राज्य में कांग्रेस की स्थिति पर वरिष्ठ पत्रकार हितेंद्र राव कहते हैं, ‘कांग्रेस इस समय काफी बुरी स्थिति में है. अगर लोकसभा चुनाव के बाद भी ये कुछ मेहनत करते तो कुछ सीटें जीत सकते थे लेकिन आज की तारीख में यह तय करना मुश्किल है कि इनकी कितनी सीटें आएंगी. हो सकता है कि 5-10 सीटें आएं और हो सकता है कि इतनी भी न आएं.’

वरिष्ठ पत्रकार बलवंत तक्षक कहते हैं, ‘हुड्डा ने जो कमेटी बनाने की बात की उससे कुछ नहीं होने वाला है. अब अगर कांग्रेस हुड्डा को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित भी कर दे तो दो महीने के समय में कुछ होने वाला नहीं है. हां, हुड्डा को कमान मिलने से स्थिति थोड़ी बेहतर हो सकती है. इस समय भाजपा को रोकना संभव नहीं लगता है.’

एक रैली के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा. (फोटो साभार: फेसबुक)
एक रैली के दौरान भूपेंद्र सिंह हुड्डा. (फोटो साभार: फेसबुक)

उन्होंने कहा, ‘अपनी पिछली रैली में हुड्डा ने एक और रैली करने का ऐलान किया था. लोगों को लग रहा है कि वो पार्टी छोड़ने वाले हैं लेकिन ऐसा है नहीं. 8 अगस्त को समाप्त हो रही मनोहर लाल खट्टर की रथयात्रा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रोहतक में रैली करेंगे. भाजपा का पूरा जोर रोहतक में हुड्डा को कमजोर करने पर है ताकि कांग्रेस चारों खाने चित्त हो जाए.’

तक्षक कहते हैं, ‘मैं जहां तक समझ रहा हूं कि प्रधानमंत्री की रैली के बाद उसके असर को खत्म करने के लिए ही हुड्डा एक रैली करेंगे. हुड्डा की पिछली रैली के जवाब में ही प्रधानमंत्री ये रैली करने आ रहे हैं. इससे पहले हुड्डा ने एक कार्यकर्ता सम्मेलन किया था जिसके जवाब में खट्टर ने अगले ही दिन लोकदल के दो-तीन नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल करवा लिया था.’

स्वराज इंडिया के सवाल पर वे कहते हैं, ‘हरियाणा में स्वराज इंडिया का कोई आधार नहीं है. योगेंद्र यादव अच्छे आदमी हैं और अच्छे आदमी का राजनीति में पांव जमा पाना मुश्किल होता है. दुष्यंत चौटाला से हाथ मिलाने के बाद भी आम आदमी पार्टी को इतने वोट नहीं मिले हैं कि वो दोबारा चुनाव लड़ने के बारे में सोच सके.’

उन्होंने कहा, ‘चौटाला की पार्टी में फूट हो गई है. दुष्यंत चौटाला ने जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) बना ली है जबकि अभय चौटाला विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद खो चुके हैं, विधायक दल के नेता भी नहीं रहे है और इनकी पार्टी को अब उम्मीदवार भी नहीं मिलेंगे. जेजेपी अभी शिशु अवस्था में है. उसने दो चुनाव लड़े और दोनों में उसे हार मिली है.’

तक्षक कहते हैं, ‘राजकुमार सैनी ने लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी बनाकर बसपा से गठबंधन करके चुनाव लड़ा तो उनकी सभी जगह जमानत जब्त हो गई. बसपा ने पहले चौटाला की पार्टी से गठबंधन किया, फिर राजकुमार सैनी की पार्टी से किया और अब एक साल के भीतर दुष्यंत चौटाला से कर लिया है. बसपा का इतिहास रहा है कि उत्तर प्रदेश से लगे जिलों से उसके हमेशा एक विधायक जीत जाते हैं और वे सत्ताधारी पार्टी को समर्थन दे देते हैं. इसके बाद दोबारा वे बसपा से चुनाव भी नहीं लड़ते. कुल मिलाकर पूरा मुकाबला भाजपा और हुड्डा के बीच होगा. चाहे हुड्डा कांग्रेस में रहें या न रहें.’

वरिष्ठ पत्रकार  राशिद किदवई कहते हैं, ‘सोनिया गांधी को हरियाणा का राजनीतिक आकलन करना होगा. राहुल गांंधी ने जब प्रताप सिंह बाजपा और अन्य को दरकिनार करते हुए अमरिंदर सिंह का दांव खेला तो यह कामयाब रहा. मध्य प्रदेश में भी कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच लड़ाई थी लेकिन कमलनाथ पर खेला गया दांव कामयाब हो गया.’

वे कहते हैं, ‘कांग्रेस को यह आकलन करना होगा कि क्या वह हुड्डा पर दांव लगाने को तैयार है और क्या हुड्डा उसे वहां जीता पाएंगे. अगर वह 35-40 सीटें लाने में सक्षम हैं तो कांग्रेस कर सकती है और अगर उनकी पकड़ केवल जाट वोटों पर है और केवल 10-12 सीटों को प्रभावित कर सकते हैं तो कांग्रेस उन्हें जाने भी दे सकती है.’

किदवई कहते हैं, ‘इससे पहले कांग्रेस के जो नेता छोड़कर गए उसमें ऐसा नहीं है कि बात नहीं हुई बल्कि बातचीत होने के बाद छोड़कर जाने का फैसला होता है. प्रियंका गांधी इस मामले में बेबाक हैं. प्रियंका चतुर्वेदी की बातचीत हुई थी और उसके बाद उन्हें जाने दिया गया था.’