साल 2018-19 में नकदी 17 फीसदी बढ़कर 21.1 लाख करोड़ रुपये पर पहुंची: आरबीआई

नोटबंदी से पहले 4 नवंबर, 2016 तक 17.74 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा चलन में थी. इस तरह नोटबंदी से पहले की तुलना में नकद राशि यानि चलन में मुद्रा में करीब 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

(फोटो: रॉयटर्स)

नोटबंदी से पहले 4 नवंबर, 2016 तक 17.74 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा चलन में थी. इस तरह नोटबंदी से पहले की तुलना में नकद राशि यानि चलन में मुद्रा में करीब 19 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

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(फोटो: रॉयटर्स)

मुंबई: देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के सरकार के तमाम प्रयासों के बावजूद अर्थव्यवस्था में चलन में आई मुद्रा मार्च, 2019 में 17 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 21.10 लाख करोड़ रुपये हो गई. रिजर्व बैंक की वित्त वर्ष 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट में यह कहा गया है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि 500 रुपये का नोट सबसे अधिक मांग में है और वर्तमान मुद्रा व्यवस्था में प्रचलित नोटों में 500 रुपये के नोट की हिस्सेदारी 51 फीसदी है.

केंद्रीय बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘वित्त वर्ष 2018-19 में मूल्य और संख्या के हिसाब से प्रचलित नोट में क्रमशः 17 प्रतिशत और 6.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई और यह 21.10 लाख करोड़ रुपये और 10875.9 करोड़ इकाई रही.’

उल्लेखनीय है कि आठ नवंबर, 2016 को किए गए नोटबंदी का बड़ा उद्देश्य डिजिटल भुगतानों को बढ़ावा देना और नकदी के इस्तेमाल में कमी लाना था. हालांकि, वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है कि खुदरा इलेक्ट्रॉनिक भुगतान लेनदेन 59 प्रतिशत की वृद्धि के साथ 23.3 अरब रहा.

नोटबंदी से पहले 4 नवंबर, 2016 तक 17.74 लाख करोड़ रुपये की मुद्रा कैश में थी. इस तरह नोटबंदी से पहले की तुलना में नकद राशि यानि चलन में मुद्रा में करीब 22 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

आरबीआई ने कहा है कि नकली नोटों का पता लगाए जाने में वित्त वर्ष 2018-19 में काफी गिरावट देखने को मिली. इस अवधि में 3.17 लाख नकली नोट पकड़े गए. यह आंकड़ा वित्त वर्ष 2017-18 में 5.22 लाख नोट और उससे पहले के वित्त वर्ष में 7.62 लाख नोट था.

केंद्रीय बैंक के मुताबिक नोटों के मुद्रण यानी कि छपाई पर लागत में वित्त वर्ष 2018-19 में मामूली कमी देखने को मिली और यह 4,811 करोड़ रुपये पर रह गया. वित्त वर्ष 2017-18 में यह आंकड़ा 4,912 करोड़ रुपये रहा था.

इसके अलावा आरबीआई ने बताया कि वित्त वर्ष 2018-19 में बैंकिंग क्षेत्र ने 71,542.93 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के 6,801 मामलों को रिपोर्ट किया. इससे पहले वित्त वर्ष 2017-18 में यह आंकड़ा 5,916 मामलों का था और इसमें धोखाधड़ी की राशि 41,167.04 करोड़ रुपये थी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि धोखाधड़ी होने और बैंकों में उसका पता लगने के बीच की औसत अवधि 22 महीने रही है. वहीं बड़ी धोखाधड़ी के मामलों, यानी 100 करोड़ रुपये या उससे अधिक की धोखाधड़ी के मामलों के होने और उनका पता लगने का समय औसतन 55 महीने रहा है.

इस दौरान 100 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की राशि 52,200 करोड़ रुपये रही है.

बता दें कि आरबीआई के आंकड़ों के मुताबिक पिछले 11 वित्तीय वर्षों में 2.05 लाख करोड़ रुपये की भारी धनराशि की बैंकिंग धोखाधड़ी के कुल 53,334 मामले दर्ज किए गए.

इससे पहले 2008- 09 में 1,860.09 करोड़ रुपये के 4,372 मामले सामने आए. इसके बाद 2009- 10 में 1,998.94 करोड़ रुपये के 4,669 मामले दर्ज किए गए. 2015- 16 में 18,698.82 करोड़ रुपये के 4,693 मामले और 2016- 17 में 23,933.85 करोड़ रुपये मूल्य के 5,076 मामले सामने आए.

ये आंकड़े इसलिए उल्लेखनीय हैं क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में बैंक धोखाधड़ी के कई बड़े मामले सामने आए हैं. इनमें भगोड़ा आभूषण कारोबारी नीरव मोदी और शराब कारोबारी विजय माल्या से जुड़े मामले भी शामिल हैं.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)

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