किस हाल में है सोनभद्र का वो गांव, जहां के आदिवासी किसानों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी

ग्राउंड रिपोर्ट: बीते 17 जुलाई को सोनभद्र के उम्भा गांव में जमीन पर कब्जे को लेकर हुए खूनी संघर्ष में 10 आदिवासी किसानों की हत्या कर दी गई थी, जबकि 28 अन्य घायल हो गए थे. इस मामले में ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त मुख्य आरोपी हैं.

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(फोटो: द वायर)

ग्राउंड रिपोर्ट: बीते 17 जुलाई को सोनभद्र के उम्भा गांव में जमीन पर कब्जे को लेकर हुए खूनी संघर्ष में 10 आदिवासी किसानों की हत्या कर दी गई थी, जबकि 28 अन्य घायल हो गए थे. इस मामले में ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त मुख्य आरोपी हैं.

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सोनभद्र गोलीकांड के बाद उम्भा गांव में बनाई गई पुलिस चौकी. (सभी फोटो: धीरज मिश्रा/द वायर)

सोनभद्र: ‘पहले हम इनके खेतों में मजदूर के रूप में काम करते थे. इन्हें लगा कि जब हम लोगों की खुद की जमीन हो जाएगी तो इनके घर मजदूरी कौन करेगा. इन लोगों की दादागिरी ऐसी है कि इन्होंने पिछले कई सालों से बालिग लोगों को नाबालिग साबित करके जमीन उनके नाम पर नहीं होने दिया.’

उत्तर प्रदेश में सोनभद्र जिले के उम्भा गांव के राजेंद्र सिंह गोंड ने ये बात कही. खुद की जमीन हथियाने का विरोध करने पर राजेंद्र के चाचा रामचंदर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

सिर्फ रामचंद्र ही नहीं बल्कि बीते 17 जुलाई को उम्भा में जमीन पर कब्जे को लेकर हुए खूनी संघर्ष में 10 आदिवासी किसानों की हत्या कर दी गई थी, जबकि 28 अन्य घायल हो गए थे. इस मामले में ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त मुख्य आरोपी हैं.

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राजेंद्र गोंड, जिनके चाचा रामचंदर की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

घटना के बाद राज्य की योगी सरकार की चौतरफा आलोचना हुई और सरकार से त्वरित कार्रवाई करने की मांग की गई. सरकार ने इस पूरे मामले की जांच के लिए एक समिति बनाई और सभी को मुआवजा देने का ऐलान किया.

अन्य विपक्षी दल के नेताओं समेत कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने भी कई बार गांव का दौरा किया और सभी मृतकों को दस लाख रुपये व गंभीर रूप से घायल लोगों को एक लाख रुपये देने का ऐलान किया. सरकार ने वादे के मुताबिक लोगों को मुआवजा तो दे दिया है लेकिन उस नरसंहार के घाव अभी भी बहुत हरे हैं.

गांव के रामपति सिंह गोंड उस घटना के दिन घर पर नहीं थे. ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त द्वारा आदिवासियों की जमीन कब्जा करने की कोशिश की खबर सुनकर उनकी पत्नी उस दिन खेत पर गई थीं. विवाद ने हिंसक रूप ले लिया और प्रधान के समर्थकों ने गोली चलाना शुरू कर दिया. उन्हें गोली तो नहीं लगी लेकिन लोगों ने लाठी-डंडों से बहुत पीटा जिसके चलते उनके पैर और कंधे पर गहरी चोटें आईं.

रामपति गोंड कहते हैं, ‘भइया अब क्या लोगों को परेशानी बताएं, हमारे दस जवान हमारी आंखों के सामने दम तोड़ दिए, पता नहीं कब तक ये दुख रहेगा. इस नरसंहार के बाद अब जाकर प्रशासन ने यहां थोड़ी सुरक्षा दी है लेकिन अभी भी हम डर के साये में हैं क्योंकि अभी सभी आरोपी पकड़े नहीं गए हैं.’

उन्होंने बताया कि मुआवजा के रूप में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीड़ितों को 50 हजार रुपये नकद उसी समय दिया था, उसके बाद जिला प्रशासन की ओर से सभी पीड़ित को डेढ़ लाख रुपये के चेक भी दिए गए थे.

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लाठी डंडे से पिटाई की वजह से रामपति सिंह गोंड की पत्नी को गहरी चोटें आई थीं.

इसके अलावा इस मामले में सभी मृतकों के परिजनों को कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने 10-10 लाख रुपये दिए थे. वहीं योगी आदित्यनाथ ने पांच लाख रुपये का चेक दिया था. साथ ही राज्य के समाज कल्याण बोर्ड की ओर से भी 8.5 लाख रुपये भेजे गए हैं.

गांव की एक अन्य महिला देवी केरवा देवी उस दिन हुए हमले में घायल हो गई थीं और कोमा में चली गई थीं. कई दिनों तक उनका इलाज चला लेकिन डॉक्टर उन्हें बचा नहीं पाए और हाल ही में उनकी मौत हो गई. इस तरह मामले में मृतकों की संख्या बढ़कर 11 हो गई है.

रामपति ने बताया कि करीब 300 लोगों ने आदिवासियों पर हमला किया था, लेकिन अभी तक 54 लोग ही पकड़े गए हैं. उन्होंने बताया कि ये लोग 32 ट्रैक्टर और बोलेरो में सवार होकर आए थे.

बुनियादी सुविधाओं से अछूता है उम्भा गांव

उम्भा गांव की जनसंख्या करीब 800 लोगों की है, जिसमें से 95 फीसदी लोग आदिवासी समुदाय की गोंड जाति के हैं. गांव के सचिव अजय कुमार ने बताया कि यहां पर करीब 400 वोटर हैं. गांव के ज्यादातर लोग खेती और मजदूरी पर निर्भर हैं. अधिकतर लोगों के कच्चे मकान हैं और कुछ दिन पहले ही यहां बिजली आई है.

यह गांव केंद्र एवं राज्य की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं से  अछूता है. स्वच्छता अभियान, उज्जवला योजना, आवास योजना के बेहद कम लाभार्थी इस गांव में हैं. इस घटना के बाद सरकार ने इन सभी योजनाओं का लाभ गांव के लोगों को देने का वादा किया है.

अभी तक गांव में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सिर्फ एक मकान बनाया गया है. सचिव अजय कुमार ने बताया कि इस घटना के बाद प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत करीब 90 मकान  बनाने की मंजूरी मिल गई है.

उन्होंने यह भी बताया कि अब तक गांव में 21 लोगों को वृद्धावस्था और तीन लोगों को विधवा पेंशन दी जाती थी, हालांकि अब गांव में जितने भी पात्र लोग होंगे उन्हें पेंशन दी जाएगी.

गांव में अभी तक करीब 30 फीसदी घरों में ही शौचालय का निर्माण हुआ है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गांव में एक इंटर कॉलेज बनाने का भी वादा किया है.

इसके अलावा गांव में ही पुलिस चौकी बनाने का ऐलान किया गया है. अभी चौकी का निर्माण नहीं हुआ है लेकिन दो एसआई और चार सिपाहियों की तैनाती कर अल्पकालिक व्यवस्था की गई है. सुरक्षा के लिए गांव में पीएससी बल के करीब 30 लोग तैनात किए गए हैं.

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उम्भा गांव में कुछ दिन पहले ही बिजली आई है.

क्या है विवाद की वजह

ग्रामीणों के मुताबिक 1920-30 दशक के समय इनके पूर्वज इस गांव में आए थे. उस समय यह क्षेत्र राजपुर के राजा आनंद ब्रह्म शाह के अधिकारक्षेत्र में था. राजा ने उन्हें रहने के लिए उम्भा गांव की जमीन दे दी थी.

उस समय आदिवासी किसान जो भी उत्पादन करते थे उसका एक तिहाई हिस्सा राजा को देना पड़ता था. इसके बाद जब देश आजाद हुआ और जमींदारी प्रथा खत्म हुई तो कुछ लोग कोर्ट गए और इस जमीन को उनके नाम पर करने की मांग की.

जमीन विवाद को लेकर लड़ाई लड़ रहे गांव के रामराज ने बताया कि चूंकि उनके पूर्वज पढ़े-लिखे नहीं थे, तो उन्हें किसी तहसीलदार या किसी वकील ने सलाह दी कि अगर वे कोर्ट के पास अपनी बात लेकर जाते हैं तो जमीन उनके नाम हो जाएगी. मुकदमे के बाद करीब 500 बीघे से ज्यादा की जमीन इनके हिस्से में आ गई. ये फैसला 1955 के आस-पास में आया था.

रामराज ने बताया कि उसी समय उम्भा के बगल में ही सपही गांव में बिहार के महेश्वरप्रसाद नारायण सिन्हा नामक व्यक्ति ने कोऑपरेटिव सोसायटी बनाई थी. रामराज ने बताया, ‘उस समय ये लोग हमारे पूर्वजों के पास आए और कहने लगे कि आप जरा अपना कागज दिखाइए, आप तो 500 बीघा जमीन जीते हैं.’

वो कागज ले गए और पांच-छह महीने में फर्जी तरीके से पूरी जमीन आदर्श सहकारी सोसायटी के नाम करा लिया. फिर सोसायटी वालों ने कहा कि ये पूरी जमीन सोसायटी की हो गई है और अब आप इस जमीन पर जो भी उत्पादन करेंगे उसका एक हिस्सा हमें देंगे.

उन्होंने बताया कि चूंकि पूर्वज इतने पढ़े-लिखे नहीं थे और गरीबी बहुत थी इसलिए कोर्ट जाने की उनकी हिम्मत नहीं थी. उस समय इस सोसयटी के 12 हिस्सेदार थे.

साल 1989 में इसमें से 144 बीघा जमीन आशा मिश्रा और विनीता शर्मा के नाम करा दिया गया. ये दोनों 12 साझीदारों में से दो प्रभात कुमार मिश्रा और भानु प्रताप शर्मा की पत्नी और बेटी हैं. लेकिन इस बात की जानकारी गांव वालों को नहीं थी, क्योंकि कोई उन्हें कब्जा से बेदखल करने नहीं आया लेकिन कागजों में ही जमीन बेच दी गई.

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गांव में सुरक्षा के लिए तैनात पुलिसकर्मी.

रामराज ने बताया, ‘इसके बाद 17.10.2017 के जब इन दोनों ने ये 144 बीघा जमीन ग्राम प्रधान यज्ञ दत्त और उनके परिवारवालों को बेच दिया, तब जाकर हमें पता चला की सोसाइटी की जमीन बेची जा रही है. इसके बाद हमने शिकायत दर्ज कराई. लेकिन कहीं कोई सुनवाई नहीं हुई.’

उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन की सांठगांठ से ये सब संभव हुआ है. अभी भी ये मामला सिविल कोर्ट में विचाराधीन है. गांववालों का आरोप है कि जमीन को फर्जी तरीके से बेचे जाने का विरोध करने और अपने हक की लड़ाई लड़ने की वजह से उन पर गुंडा एक्ट समेत कई फर्जी मुकदमे किए गए हैं.

रामराज का दावा है कि उनके पास तहसीलदार और लेखपाल की रिपोर्ट है जो ये बताती है कि सोसायटी की जमीन किसी के भी नाम नहीं हो सकती है. पिछले चार पीढ़ियों से हमारा इस पर कब्जा है और और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक अगर किसी जमीन पर 12 साल या इससे ज्यादा का कब्जा होता है तो वो व्यक्ति उस जमीन या संपत्ति का अधिकार लेने का दावा कर सकता है.

अगर ये जमीन आदिवासियों के नाम करनी है तो पहले उस सहकारी समिति का रजिस्ट्रेशन खारिज कर उसे गैरकानूनी घोषित करना होगा. इसके बाद लोगों को पट्टा मिल पाएगा. इसे लेकर गांववालों ने कई याचिकाएं दायर की हैं और अभी सुनवाई चल रही है.

क्या हुआ था उस दिन

गांव वालों ने बताया कि उस दिन सुबह करीब 11 बजे यज्ञ दत्त के लोग आए और उनकी पुश्तैनी जमीन जोतने लगे. साल 2000 में आदिवासी समुदाय से ग्राम प्रधान बने बहादुर सिंह ने बताया, ‘ये लोग हमारी पुश्तैनी जमीन, जिसके आधिकारिक दस्तावेज हमारे पास है, उसे जोतने लगे थे.’

उन्होंने कहा, ‘अगर वो विवादित जमीन यानी कि कब्जे वाली जमीन को भी जोतते तो ये विवाद इतना आगे न बढ़ता. जब व्यक्ति सीधे आपके घर में घुसेगा तो लोग प्रतिक्रिया देंगे ही. लोग वहां जुटे हुए थे, प्रशासन का इंतजार कर रहे थे कि वे लोग आएंगे तो बताएंगे कि किसकी जमीन कहां पर है. हमारी तरफ से 40-50 लोग वहां पहुंचे थे.

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आदिवासी समुदाय के पहले ग्राम प्रधान बहादुर सिंह.

बहादुर सिंह ने कहा, ‘तब तक वहां दोनों तरफ से बहस होनी लगी. पहले उन्होंने पेड़ पर फायरिंग की और फिर लोगों पर गोलियां बरसाना शुरू कर दिया. जिस जमीन को वे जबरदस्ती जोतने में लगे थे, वो हमारी पुश्तैनी खतौनी वाली जमीन है. खेत में बुवाई के लिए बीज रखा था, उसे भी उन लोगों ने इधर-उधर फैला दिया था.’

उन्होंने कहा कि प्रधान ने जिस जमीन को फर्जी तरीके से खरीदा था वो हमारी पुश्तैनी जमीन के नजदीक ही थी. यज्ञ दत्त के लोग हमारे गांव के कैलाश, रामपति, रामप्रसाद और टिक्कम की जमीन को जोतने लगे थे. गांव वालों ने कहा भी कि अगर वो सोसायटी वाली जमीन जोतते तो लोग उतना विरोध न जताते.

गांव के एक अन्य शख्स राम प्यारे गोंड का एक 26 साल का बेटा है और इस विवाद में उसे दस छर्रे लगे हैं. कई दिनों अस्पताल में रहने के बाद उनका बेटा वापस घर आ पाया है. उन्होंने कहा, ‘पुश्तैनी वाली जमीन किसी का 10 बीघा, किसी का 5 बीघा, किसी का 2 बीघा ऐसे ही है. यहां की जमीन भी ऐसी है कि यहां उत्पादन सही से नहीं होता है.’

इस घटना में पीड़ित 35 वर्षीय महेंद्र गोंड सदमे से उबर नहीं पाए हैं. अधिकतर समय वो घर के एक कोने में लेटे रहते हैं. उन्हें कुल 12 छर्रे लगे थे. खाट पर लेटे-लेटे उन्होंने कहा, ‘शरीर हमेशा सुस्त पड़ा रहता है जैसे शरीर में कोई जान ही नहीं है. कोई काम भी नहीं कर पाता हूं.’

महेंद्र की पत्नी चंद्रशीला ने बताया कि दिन भर वो सोये रहते हैं. हाथ से खाना खिलाना पड़ता है, बहुत सारी चीजें उन्हें याद भी नहीं हैं. उन्होंने कहा कि गोली लगने की वजह से उनका बायां हाथ काम नहीं करता है.

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महेंद्र गोंड के शरीर पर गोलियों के निशान.

महेंद्र को प्रियंका गांधी ने एक लाख रुपये का चेक दिया था. योगी आदित्यनाथ ने 50,000 रुपये नकद दिए और डेढ़ लाख रुपये का चेक दिया था. चंद्रशीला ने आंखों में आंसू लिए बेहद उदास और तकलीफ भरे लहजे में कहा, ‘भइया ये सारा कुछ भूल गए हैं. शुरू में जब अस्पताल से आए थे तो किसी को भी पहचान नहीं पा रहे थे. वे मुझे भी नहीं पहचान पाते थे.’

उन्होंने बताया कि उनके चार छोटे बच्चे हैं और घर में कमाने वाले महेंद्र कुमार ही थे. महेंद्र के पिता काफी बुजुर्ग हैं, इसलिए कोई खास काम नहीं कर पाते हैं.

उम्भा जैसे कई और मामले भी हैं

सोनभद्र के जिले के इस क्षेत्र में सिर्फ उम्भा ही नहीं बल्कि कई और गांव भी हैं जहां पर जमीन विवाद चल रहा है. यहां पर एक पैटर्न देखने को मिलता है जहां आदिवासियों की जमीन को बाहुबली, भूमाफियाओं और ऊंची जाति के लोगों ने फर्जी तरीके से अपने नाम करा लिया है.

अधिकतर मामलों में ये देखने को मिलता है कि कुछ साल पहले तक खतौनी आदिवासियों के नाम पर होती है और कुछ साल बाद अचानक से वही खतौनी किसी अन्य के नाम हो जाती है. जब आदिवासी इसकी शिकायत करते हैं तो उन पर उलटे फर्जी मुकदमे दायर कर दिए जाते हैं.

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पीड़ित महेंद्र गोंड के पिता.

इसी तरह के एक मामले में सोनभद्र के बॉर्डर पर स्थित रैकरा गांव के बिदेसी नारायण ने बताया कि उनके पूर्वजों की करीब 150 बीघा जमीन को ग्राम प्रधान लल्लू प्रसाद ने फर्जी तरीके से अपने नाम करा लिया है. ये पूरी जमीन कुल 25 परिवारों की है. रैकरा गांव उम्भा के बगल में ही है.

उन्होंने कहा, ‘हम लोग कम पढ़े-लिखे हैं. हमें इसकी इतनी जानकारी नहीं थी. 1980 से पहले की खतौनी में ये जमीन हमारे नाम पर है और उसके बाद की खतौनी पर उन्होंने अपना नाम चढ़वा लिया और हम पर मुकदमा भी कर दिया है. हमारी जिंदगी केस लड़ने के ही चक्कर में खत्म हो रही है.’

नारायण ने बताया कि उनके गांव में जमीन कब्जा करने वाले लोगों का प्रधान यज्ञ दत्त से काफी अच्छे संबंध हैं. उस दिन जो घटना हुई थी उसमें रैकरा गांव से भी कई लोग गए थे.

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