मोदी सरकार: वादाख़िलाफ़ी के तीन साल

केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार पिछले तीन सालों में हर मोर्चे पर बुरी तरह से असफल नज़र आई है.

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केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार पिछले तीन सालों में हर मोर्चे पर बुरी तरह से असफल नज़र आई है.

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लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा का चुनावी घोषणापत्र जारी करते वरिष्ठ नेता. (फोटो साभार: नरेंद्र मोदी डॉट इन)

हमारे देश में राजनीतिक दलों के चुनावी घोषणा पत्रों को शायद ही कोई गंभीरता से लेता हो. न तो जनता और न ही राजनीतिक दलों से जुडे लोग, मीडिया का तो सवाल ही नहीं उठता.

यह बात कमोबेश सभी राजनीतिक दलों का नेतृत्व वर्ग भी अच्छी तरह जानता है लेकिन फिर भी हर दल इसे चुनावी कर्मकांड का एक अनिवार्य हिस्सा मानकर हर चुनाव में अपना घोषणा पत्र जारी करता है, जिसमें लोक-लुभावन और निहायत ही अव्यावहारिक वायदों की भरमार होती है.

इन वायदों की चर्चा मतदान होने तक तो खूब होती है, लेकिन चुनाव नतीजे आने के बाद आमतौर पर कोई इनका जिक्र नहीं करता, सत्तारूढ़ पार्टी तो कतई नहीं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में जारी अपने घोषणा पत्र को अपना संकल्प पत्र बताते हुए वादा किया था कि सत्ता में आने पर वह अपने इस संकल्प पत्र पर अमल के जरिए देश की तकदीर और तस्वीर बदल देगी.

अब जबकि केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार अपने पांच साला कार्यकाल के तीन साल पूरे कर चुकी है तो लाजिमी है कि उसके घोषणा पत्र के बरअक्स उसके कामकाज की समीक्षा होनी चाहिए.

भाजपा के घोषणापत्र का सूत्र वाक्य था- भाजपा की नीतियों और उसके क्रियान्वयन का पहला लक्ष्य होगा- ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ और रास्ता होगा- ‘सबका साथ-सबका विकास.’

इसी सूत्र वाक्य पर आधारित तमाम वायदों के जरिए देश की जनता में ‘अच्छे दिन’ आने की उम्मीद जगाई गई थी.

भाजपा के घोषणा पत्र में जो वायदे किए गए थे उनमें हर साल दो करोड़ युवाओं को रोजगार, किसानों को उनकी उपज का समर्थन मूल्य लागत से दोगुना, कर नीति में जनता को राहत देने वाले सुधार, विदेशों में जमा कालेधन की सौ दिनों के भीतर वापसी, भ्रष्टाचार के आरोपी सांसदों-विधायकों के मुकदमों का विशेष अदालतों के जरिए एक साल में निबटारा, महंगाई पर प्रभावी नियंत्रण, गंगा तथा अन्य नदियों की सफाई, देश के प्रमुख शहरों के बीच बुलेट ट्रेन का परिचालन, जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 का खात्मा, कश्मीरी पंडितों की घाटी में वापसी, आतंकवाद के खिलाफ जीरो टालरेंस की नीति, सुरक्षा बलों को आतंकवादी और माओवादी हिंसा से निबटने के लिए पूरी तरह छूट, सेना की कार्य स्थितियों में सुधार, समान नागरिक संहिता, गुलाबी क्रांति यानी गोकशी और मांस निर्यात पर प्रतिबंध, देश में सौ शहरों को स्मार्ट सिटी के रूप में तैयार करना आदि प्रमुख वायदे थे.

कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के दस साल में खासकर आखिरी के दो-ढाई सालों में छाए घोटालों और भ्रष्टाचार के घटाटोप और महंगाई की मार से त्रस्त हर वर्ग के लोगों के मन में भाजपा के उपरोक्त वायदों ने एक उम्मीद जगाई थी.

प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतरे नरेंद्र मोदी आजाद भारत के सबसे खर्चीले चुनाव अभियान के दौरान अपनी वाक्पटुता और मीडिया के अभूतपूर्व प्रायोजित समर्थन से लोगों के मन में यह बात बैठाने में कामयाब हो गए थे कि उन्होंने मुख्यमंत्री तौर पर अपने बारह वर्षीय कार्यकाल में गुजरात को नंदनवन में तब्दील कर दिया है.

उनका दावा था कि गुजरात मॉडल के जरिए ही वे देश की भी तस्वीर और तकदीर बदल देंगे. लोगों ने उनके दावों और वायदों पर यकीन करते हुए भाजपा को स्पष्ट बहुमत दिया. लगभग तीन दशक बाद केंद्र में नरेंद्र मोदी की अगुवाई में पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी.

मोदी सरकार की शुरुआत काफी अच्छी रही, जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आई जिसका सकारात्मक असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता दिखा, लेकिन राजनीतिक रूप से मोदी सरकार और भाजपा के लिए अच्छा समय ज्यादा लंबा नहीं रहा.

दिल्ली और बिहार के विधानसभा चुनावों में भाजपा को करारी हार का सामना करना पडा. यह हार एक तरह से प्रधानमंत्री मोदी की निजी हार भी मानी गई, क्योंकि दोनों ही जगह मुकाबले में उन्होंने धुआंधार प्रचार अभियान के जरिए एक तरह से खुद को दांव पर लगा दिया था.

हालांकि महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में भाजपा ने उनके नाम पर जबर्दस्त जीत हासिल की. उसकी जीत का यह सिलसिला 2017 में भी जारी रहा. उसने न सिर्फ उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में जोरदार जीत दर्ज कराई, बल्कि मणिपुर और गोवा में भी जोड़-तोड़ के जरिए सरकार बना ली.

New Delhi: BJP workers play holi with a giant cut-out of Prime Minister Narendra Modi as they celebrate the party’s victory in the UP and Uttarakhand Assembly elections, at the party headquarters in New Delhi on Saturday. PTI Photo by Manvender Vashist(PTI3_11_2017_000219B)
(फाइल फोटो: पीटीआई)

अगर इन चुनावी सफलताओं को पैमाना माना जाए तो कहा जा सकता है कि मोदी सरकार का तीन साल का कार्यकाल बेहतर नतीजों वाला रहा है लेकिन ऐसा मानना सतही आकलन होगा.

हकीकत यह है कि इन तीन वर्षों के दौरान मोदी सरकार ने जो भी काम किए वे या तो अपने घोषणा पत्र से परे हैं या फिर ठीक उसके उलट.

उसने कई ऐसे कामों को भी जोर-शोर से आगे बढ़ाया है जो यूपीए सरकार ने शुरू किए थे और विपक्ष में रहते हुए भाजपा ने उसका तीव्र विरोध किया था.

मनरेगा के बजट में बढ़ोतरी, आधार कार्ड की हर जगह अनिवार्यता, जीएसटी के रूप में नई कर व्यवस्था पर अमल, विभिन्न क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी आदि ऐसे ही कामों में शुमार हैं.

भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र की चर्चा के क्रम में सबसे पहले बात करें अर्थव्यवस्था की. रुपये की गिरती कीमत पिछले लोकसभा चुनाव में एक बड़ा मुद्दा था.

नरेंद्र मोदी हर चुनावी सभा में रुपये की गिरती कीमत की तुलना सरकार की साख और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उम्र से करते हुए मजाक उड़ाया करते थे. लेकिन मोदी के सत्ता में आने के बाद से अब तक रुपया संभला नहीं है और इस समय तो वह डॉलर के मुकाबले अपने सबसे निम्न स्तर पर है.

पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस और खाद्यान्न समेत रोजमर्रा के उपयोग की सभी आवश्यक चीजों के दाम आसमान छू रहे हैं.

विमुद्रीकरण यानी बड़े नोटों का चलन बंद कर नए नोट जारी करने को सरकार अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर अपनी सबसे बड़ी कामयाबी के तौर पर प्रचारित कर रही है लेकिन वास्तविकता यह है कि विमुद्रीकरण से न तो काला धन बाहर आ पाया है, न जाली मुद्रा चलन से बाहर हुई है और न ही आतंकवादी-नक्सलवादी हिंसा की घटनाओं में कमी आई है, जैसा कि विमुद्रीकरण का औचित्य प्रतिपादित करते हुए सरकार की ओर से दावा किया गया था.

विमुद्रीकरण के बाद न सिर्फ औद्योगिक उत्पादन के बल्कि कृषि क्षेत्र में उत्पादन के आंकड़े भी निराश करने वाले हैं.

निर्यात के क्षेत्र में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है. प्रधानमंत्री दुनियाभर में घूम-घूम कर विदेशी निवेशकों को लुभावने वायदों के साथ भारत आने का न्योता दे चुके हैं लेकिन विदेशी निवेश की स्थिति कहीं से भी उत्साह पैदा करने वाली नहीं है.

कृषि क्षेत्र की स्थिति पहले से बदतर हुई है. किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने के लिए कोई ठोस नीति बनाने में सरकार अभी तक नाकाम रही है। किसानों के आत्महत्या करने का सिलसिला न सिर्फ जारी है बल्कि उसमें पहले से तेजी आई है।.

विदेश नीति के मोर्चे पर भी सरकार के खाते में प्रधानमंत्री की चमक-दमक भरी विदेश यात्राओं के अलावा कुछ खास दिखाने को नहीं है.

कश्मीर और पाकिस्तान को लेकर भी सरकार बुरी तरह दिशाहीनता की शिकार रही है. बिना निमंत्रण के प्रधानमंत्री की औचक पाकिस्तान यात्रा और जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के साथ सरकार बनाने के भी नकारात्मक नतीजे ही सामने आ रहे हैं.

नियंत्रण रेखा पर पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम के उल्लंघन की घटनाओं में पिछले तीन सालों में रिकार्ड बढ़ोतरी हुई है. यूपीए सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2011 से 2014 के दौरान 36 महीनों में संघर्ष विराम के उल्लंघन के चलते जहां भारतीय सुरक्षा बलों के 103 जवानों और 50 नागरिकों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी, वहीं मोदी सरकार के पिछले 36 महीनों के दौरान सीमा पर 198 भारतीय सैनिकों और 91 नागरिकों की जान गई हैं.

नक्सली हिंसा में मरने वाले सुरक्षा बलों के जवानों और आम नागरिकों की संख्या में भी मोदी सरकार के पिछले 36 महीनों में बढ़ोतरी हुई है.

भाजपा के घोषणा पत्र में वादा किया गया था कि सत्ता में आने पर वह हर साल दो करोड़ लोगों के रोजगार का सृजन करेगी, लेकिन वास्तविकता यह है कि इस मोर्चे पर मोदी सरकार बुरी तरह नाकाम रही है.

रोजगार के नए अवसर पैदा करने की दर पिछले आठ सालों के न्यूनतम स्तर पर है, यानी पूर्ववर्ती यूपीए सरकार से भी वह बहुत पीछे है.

केंद्रीय श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक पिछले आठ सालों में सबसे कम वर्ष 2015 और 2016 में क्रमश: 1.55 लाख और 2.31 लाख नई नौकरियां तैयार हुईं.

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(फाइल फोटो: पीटीआई)

मनमोहन सिह सरकार के कार्यकाल में वर्ष 2009 में 10 लाख नई नौकरियां तैयार हुई थी. वर्ष 2011 में 3.8 फीसद की बेरोजगारी दर 2017 में बढ़कर पांच फीसद हो चुकी है. जहां एक तरफ केंद्र सरकार नई नौकरियां तैयार नहीं कर पा रही है वहीं देश में बहुत बड़े वर्ग को रोजगार देने वाले आईटी सेक्टर में हजारों युवाओं की छंटनी हो रही है.

आईटी सेक्टर पर नजर रखने वाली संस्थाओं के अनुसार भारत के आईटी सेक्टर मे सुधार की निकट भविष्य मे कोई संभावना नही दिख रही है.

जहां तक बुनियादी सुविधाओं और नागरिक सेवाओं का सवाल है, उनमें हालात यूपीए सरकार की तुलना बदतर ही हुए हैं.

भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में वादा किया था कि वह सत्ता में आने पर स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्र की योजनाओं पर बजट प्रावधान में वृध्दि करेगी लेकिन व्यवहार में उसने अपने वायदे के विपरीत दोनों क्षेत्रों में पहले से जारी बजट प्रावधान में कटौती की है.

भाजपा के घोषणा पत्र में वायदा किया गया था कि वह बगैर निजी हाथों में सौंपे रेल सुविधाओं को आधुनिक बनाएगी लेकिन तीन साल में सरकार ने न सिर्फ निजी क्षेत्र के लिए रेलवे के दरवाजे खोले बल्कि घाटे की दुहाई देकर विभिन्न श्रेणी के यात्री किराए की दरों में तरह-तरह से बढ़ोतरी कर आम आदमी का रेल सफर बेहद महंगा कर दिया है.

रेल दुर्घटनाओं का सिलसिला भी पहले की तरह जारी है. बुलेट ट्रेन चलाने का भाजपा का वादा अब लोगों के लिए मजाक का विषय बन गया है.

भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में यूपीए सरकार के समय हुए घोटालों का हवाला देते हुए वायदा किया था कि वह सत्ता में आने के बाद भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देगी. हालांकि केंद्र सरकार के स्तर पर अभी कोई बड़ा घोटाला सामने नहीं आया है लेकिन भाजपा की कई राज्य सरकारें भ्रष्टाचार में बुरी तरह सनी हुई दिखाई देती हैं.

इस सिलसिले में मध्य प्रदेश का व्यापमं घोटाला और छत्तीसगढ़ का खाद्यान्न घोटाला तो रोंगटे खडे कर देने वाला है.

देश के विभिन्न इलाकों में सांप्रदायिक और जातीय तनाव तथा हिंसा की एकतरफा घटनाएं न सिर्फ देश के सामाजिक सद्भाव को नष्ट कर रही है बल्कि दुनिया भर में भारत की छवि को भी दागदार बना रही है.

अफसोस की बात यह है कि सरकार का अपने वाचाल दलीय कॉडर पर कोई नियंत्रण नहीं है. कई जगह तो सरकारी संरक्षण में अल्पसंख्यकों, दलितों और समाज के अन्य कमजोर तबकों पर हिंसक हमलों की वारदातों को अंजाम दिया गया है. इस तरह की घटनाएं देश में गृहयुध्द जैसा वातावरण बनने का आभास दे रही हैं.

भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई थी लेकिन पिछले तीन सालों के दौरान देखने में यह आया है कि जो कोई व्यक्ति सरकार या सत्तारूढ़ पार्टी की रीति-नीति से असहमति जताता है उसे फौरन देशद्रोही या विदेशी एजेंट करार देकर देश छोड़कर चले जाने की सलाह दे दी जाती है.

बड़े मीडिया घराने एक-एक करके बड़े उद्योग घरानों के नियंत्रण में जा रहे हैं जिसके चलते मीडिया निष्पक्षता और जन सरोकारों से लगातार दूर होते हुए सरकार की जय-जयकार करने में मग्न है.

कुल मिलाकर मोदी सरकार का तीन साल का कार्यकाल अपने घोषणा पत्र से विमुख होकर काम करने का यानी वादाखिलाफी का रहा है, जिसके चलते हर मोर्चे पर उसके खाते में नाकामी दर्ज हुई है तो आम आदमी के हिस्से में दुख, निराशा और दुश्वारियां आई हैं. यह स्थिति इस सरकार के बचे दो सालों के प्रति कोई उम्मीद नहीं जगाती है.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)