मेजर गोगोई को पुरस्कृत करना मानवाधिकारों का अपमान है: एमनेस्टी

अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी इंडिया के अनुसार, अधिकारी को पुरस्कृत करने का मतलब है कि सेना निर्दयी, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार के उस कृत्य को सही ठहराना चाहती है.

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अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्था एमनेस्टी के अनुसार, अधिकारी को पुरस्कृत करने का मतलब है कि सेना निर्दयी, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार के उस कृत्य को सही ठहराना चाहती है.

Leetul Farook
फ़ारूक़ अहमद डार को जीप से बांधकर घुमाने वाले मेजर लीतुल गोगोई.

नई दिल्ली: एमनेस्टी इंटरनेशनल ने कहा है कि कश्मीर में पथराव करने वालों के ख़िलाफ़ मानव ढाल के तौर पर एक व्यक्ति को जीप के आगे बांधने वाले मेजर लीतुल गोगोई को सम्मानित करने का भारतीय सेना का फैसला मानधिकारों के अपमान को दर्शाता है.

एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के कार्यकारी निदेशक आकार पटेल ने बीते मंगलवार को कहा, ‘मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर जांच का सामना कर रहे अधिकारी को पुरस्कृत करने का मतलब है कि सेना निर्दयी, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार के उस कृत्य को सही ठहराना चाहती है जो उत्पीड़न के समान है.’

सेना का कहना है कि अधिकारी को आतंकवाद के ख़िलाफ़ अभियानों में उनके सतत प्रयासों के लिए सम्मानित किया गया है, जबकि नौ अप्रैल को श्रीनगर लोकसभा उपचुनाव में मतदान के दौरान हुई घटना के मामले में कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी अभी पूरी भी नहीं हुई है.

पटेल ने आगे कहा, ‘यह फैसला जम्मू कश्मीर के लोगों और सुरक्षा बलों को चिंतित करने वाला संदेश देता है कि कश्मीरियों के मानवाधिकारों को दंड के भय के बिना लापरवाही से नज़रअंदाज़ किया जा सकता है. मानव ढाल बनाए गए फ़ारूक़ अहमद डार के अधिकारों का अपमान उन प्रतिबद्धताओं के ख़िलाफ़ है जो भारत ने हाल में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में की थीं.’

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22 मई को थलसेना अध्यक्ष की ओर से सम्मानित जाने के बाद विवादों में घिरे मेजर गोगोई ने मंगलवार को मीडिया के सामने फ़ारूक़ अहमद डार को जीप से बांधने के मामले में अपना पक्ष रखा.

बडगाम जिले के बीरवाह कैंप में मेजर गोगोई ने बताया, ‘मैंने सिर्फ स्थानीय लोगों को बचाने की ख़ातिर ऐसा किया. अगर मैंने गोली चलाई होती तो 12 से ज़्यादा जानें जाती. इस विचार के साथ मैंने कई लोगों की जिंदगी बचाई.’

गोगोई ने बताया कि बीते नौ अप्रैल को भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के कुछ जवानों और कुछ मतदानकर्मियों को जब तकरीबन 1200 पत्थरबाज़ों ने घेर लिया और संकट में होने की सूचना दी तो वह और पांच अन्य थल सैनिक उस मतदान केंद्र पर गए थे.

उन्होंने कहा कि भीड़ में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे और वे मतदान केंद्र को आग के हवाले करने की धमकी दे रहे थे.

गोगोई ने कहा कि भीड़ के बीच उन्होंने एक ऐसे शख़्स को देखा जो अगुवा जैसा लग रहा था, क्योंकि वह उटलीगाम में पत्थरबाजों को उकसा रहा था.

उमर अब्दुल्ला ने कोर्ट आॅफ इन्क्वायरी को बताया स्वांग

जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कश्मीर में पथराव करने वालों के ख़िलाफ़ मानव ढाल के रूप में एक व्यक्ति को जीप के बोनट से बांधने वाले मेजर लीतुल गोगोई के विरुद्ध सेना की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी (सीओई) को स्वांग बताया है.

सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने मेजर को आतंकवाद रोधी अभियानों में उनके सतत प्रयासों के लिए हाल ही में प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया, जिसके बाद अब्दुल्ला की यह टिप्पणी आई है.

अब्दुल्ला ने ट्विटर पर लिखा, ‘भविष्य में, कृपया सेना की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी का तमाशा करने का कष्ट ना उठाए. साफ तौर पर जो अदालत मायने रखती है वह है जनमत की अदालत.’ उन्होंने कहा कि सरकार मानवाधिकार उल्लंघनों के मुद्दों पर दोहरे मापदंड अपना रही है.

मेजर गोगोई के सम्मान का कुछ ने किया समर्थन कुछ ने की आलोचना

मेजर लीतुल गोगोई को दिए गए प्रशस्ति पत्र का दो पूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने समर्थन किया जबकि एक सेवानिवृत्त जनरल ने कहा है कि यह क़दम सेना की परंपरा के लिहाज़ से अनुपयुक्त है. 53 राष्ट्रीय राइफल्स में मेजर गोगोई को सेना प्रमुख की ओर से आतंकवाद विरोधी अभियानों में उनके सतत प्रयासों के लिए प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया था.

मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) रमेश चोपड़ा गोगोई की कार्रवाई के समर्थन में सामने आए हैं. उन्होंने कहा, ‘इस नई तरह की सोच के साथ उन्होंने कई लोगों की जान बचाई जो काबिल-ए-तारीफ है. मैं इस सूझ-बूझ के लिए उन्हें पूरे अंक देता हूं.’

हालांकि उत्तरी कमान में पूर्व जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ, लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) एचएस पनाग ने आलोचना करते हुए कहा कि गोगोई का यह क़दम भारतीय सेना की परंपराओं के लिहाज़ से अनुपयुक्त है.

पनाग ने ट्वीट कर कहा, ‘भारतीय सेना की परंपराओं, लोकाचार, नियम और क़ायदों पर देश का मूड हावी हो गया. अगर मैं इसका विरोध करने वाला आख़िरी व्यक्ति भी हूं तो भी मैं अपने रुख़ पर कायम हूं.’

वहीं श्रीलंका में भारतीय शांति दूत सेना में सेवाएं देने वाले कर्नल अनिल कौल (सेवानिवृत्त) ने कहा कि गोगोई कुछ हटकर सोचने के लिए प्रशस्ति पत्र से ज़्यादा के हक़दार हैं.

कौल ने कहा, ‘उन्होंने पथराव करने वालों के हमले के बावजूद बिना एक भी गोली चलाए कई लोगों की जान बचाई. उनके क़दम की प्रशंसा होनी चाहिए और उन्हें शौर्य चक्र देना चाहिए.’

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)