त्रिपुरा हाईकोर्ट ने राज्य के सभी मंदिरों में पशु बलि पर रोक लगाई

हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि मंदिरों में बलि त्रिपुरा के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के सार को नहीं दर्शाता इसलिए बलिदान के लिए ऐसे जानवर की पेशकश करने में राज्य की कार्रवाई न तो भारतीय संविधान के तहत स्वीकार्य है और न ही किसी अन्य क़ानून के तहत मान्य है.

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त्रिपुरा के उदयपुर में स्थित त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, जहां पशुओं की बलि चढ़ाने की प्रथा है. (फोटो साभार: tripuratourism.co.in)

हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि मंदिरों में बलि त्रिपुरा के धर्मनिरपेक्ष चरित्र के सार को नहीं दर्शाता इसलिए बलिदान के लिए ऐसे जानवर की पेशकश करने में राज्य की कार्रवाई न तो भारतीय संविधान के तहत स्वीकार्य है और न ही किसी अन्य क़ानून के तहत मान्य है.

त्रिपुरा के उदयपुर में स्थित त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, जहां पशुओं की बलि चढ़ाने की प्रथा है. (फोटो साभार: tripuratourism.co.in)
त्रिपुरा के उदयपुर में स्थित त्रिपुरा सुंदरी मंदिर, जहां पशुओं की बलि चढ़ाने की प्रथा है. (फोटो साभार: tripuratourism.co.in)

अगरतला: त्रिपुरा हाईकोर्ट ने राज्य के सभी मंदिरों में पशुओं या पक्षियों की बलि पर शुक्रवार को रोक लगा दी. अदालत ने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जानवरों को भी जीवन का मौलिक अधिकार है.

मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और जस्टिस अरिंदम लोध की खंडपीठ ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया. आदेश में कहा गया है, ‘राज्य समेत किसी को भी राज्य के अंदर किसी भी मंदिर के प्रांगण में पशु/पक्षी की बलि देने की इजाजत नहीं होगी.’

पीठ ने सभी जिलाधिकारियों एवं पुलिस अधीक्षकों को इस आदेश का क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का आदेश दिया.

पीठ ने राज्य के मुख्य सचिव को दो प्रमुख मंदिरों- देवी त्रिपुरेश्वरी मंदिर एवं चतुरदास देवता मंदिर में तत्काल सीसीटीवी कैमरे लगवाने का आदेश दिया. इन दोनों मंदिरों में बड़ी संख्या में पशुओं की बलि दी जाती है.

लाइव लॉ के मुताबिक अदालत ने कहा कि मंदिर में किसी जानवर का बलिदान, धर्म का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं रहा है और यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का भी उल्लंघन है.

पीठ ने एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी सुभाष भट्टाचार्जी द्वारा एक अंधविश्वास के आधार पर दो मुख्य मंदिर- माता त्रिपुरेश्वरी देवी मंदिर और चतुर दास देवता मंदिर में देवी और अन्य देवी-देवताओं के समक्ष दी जाने वाली निर्दोष जानवरों की बलि के खिलाफ एक जनहित याचिका दायर की थी. याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये निर्देश जारी किए.

याचिका में कहा गया था कि माता त्रिपुरेश्वरी देवी मंदिर में जिला प्रशासन, त्रिपुरा सरकार के संरक्षण में हर दिन एक बकरे की बलि दी जा रही है और विशेष अवसरों पर बलि के रूप में पर्याप्त संख्या में आम जनता द्वारा जानवरों की बलि (देवी को भेंट) दी जा रही है.

याचिका में ये भी बताया गया कि पशु बलि की प्रथा दश महाविद्या की पूजा की तांत्रिक विधि के हिंदू अनुष्ठानों की लंबी स्वीकृत प्रक्रिया के अनुसार है.

रिपोर्ट के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा यह तर्क दिया गया कि याचिकाकर्ता ने केवल हिंदू धर्म के संबंध में पशु बलि के मुद्दे को याचिका में शामिल किया था और बकरीद के त्योहार के दौरान मुस्लिम समुदाय द्वारा किए जाने वाले पशु बलिदान को कोई चुनौती नहीं दी थी. याचिका सार्वजनिक शांति को विचलित करने के लिए हिंदू भावना को आहत करने के लिए दायर की गई है और यह राजनीति से प्रेरित है.

इस पर पीठ ने कहा कि माता त्रिपुरेश्वरी मंदिर और कुछ अवसरों पर अन्य मंदिरों में बलि के लिए प्रतिदिन एक बकरी देना राज्य के आर्थिक, वाणिज्यिक, राजनीतिक या धर्मनिरपेक्ष चरित्र के सार को नहीं दर्शाता इसलिए बलिदान के लिए ऐसे जानवर की पेशकश करने में राज्य की कार्रवाई न तो भारतीय संविधान के तहत स्वीकार्य है और न ही किसी अन्य क़ानून के तहत मान्य है.

(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)