ऑक्सीजन कांड: क्या डॉ. कफ़ील को घेरने के चक्कर में योगी सरकार ख़ुद घिरती जा रही है?

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुए ऑक्सीजन कांड में आरोपी डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ की जा रही जांच की रिपोर्ट बीते अप्रैल में मिलने के बाद सरकार अब तक कोई निर्णय नहीं ले सकी है. इसके अलावा बहराइच मामले में डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ जांच के लिए इसी महीने अधिकारी नामित किया गया है. यह दिखाता है कि डॉ. कफ़ील पर लगे आरोपों की तेज़ी से जांच कराने में ख़ुद सरकार को कोई रुचि नहीं है.

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Kolkata: Suspended doctor Kafeel Khan speaks during a press conference in Kolkata, Monday, July 8, 2019. Khan is accused in Gorakhpur's Baba Raghav Das (BRD) Medical College case involving the death of many children. (PTI Photo) (PTI7_8_2019_000154B)
डॉक्टर कफील खान. (फोटो: पीटीआई)

गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुए ऑक्सीजन कांड में आरोपी डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ की जा रही जांच की रिपोर्ट बीते अप्रैल में मिलने के बाद सरकार अब तक कोई निर्णय नहीं ले सकी है. इसके अलावा बहराइच मामले में डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ जांच के लिए इसी महीने अधिकारी नामित किया गया है. यह दिखाता है कि डॉ. कफ़ील पर लगे आरोपों की तेज़ी से जांच कराने में ख़ुद सरकार को कोई रुचि नहीं है.

Kolkata: Suspended doctor Kafeel Khan speaks during a press conference in Kolkata, Monday, July 8, 2019. Khan is accused in Gorakhpur's Baba Raghav Das (BRD) Medical College case involving the death of many children. (PTI Photo) (PTI7_8_2019_000154B)
डॉ. कफ़ील ख़ान. (फोटो: पीटीआई)

उत्तर प्रदेश में गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज के ऑक्सीजन कांड में डॉ. कफ़ील अहमद ख़ान को घेरने के चक्कर में राज्य सरकार खुद उलझती नजर आ रही है. एक सप्ताह के अंदर विभागीय जांच को लेकर सरकार द्वारा बयान जारी करना और फिर प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से कई और सवाल खड़े हो गए हैं.

ऑक्सीजन कांड की विभागीय जांच में जिन नए दस्तावेजों के सामने आने की बात कर फिर से जांच कराने की बात कही गई है, वे दस्तावेज सरकार के सामने नए सवालों को जन्म दे रहे हैं, जिसका जवाब देना उसके लिए काफी मुश्किल होगा.

सरकार को यह भी जवाब देना होगा कि बहराइच मामले में डॉ. कफ़ील को दस महीने बाद जुलाई 2019 में क्यों निलंबित किया गया और इतने समय बाद क्यों विभागीय कार्यवाही शुरू की गई? इस देरी का कारण क्या है?

बीते 27 सितंबर को सरकार की ओर से जारी की गई पांच पेज की विज्ञप्ति और अब तीन अक्टूबर को प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा रजनीश दुबे की प्रेस कॉन्फ्रेंस का लब्बोलुआब यह है कि ऑक्सीजन कांड में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रवक्ता डॉ. कफ़ील अहमद ख़ान को प्रथम दृष्टया दोषी पाए जाने के कारण निलंबित किया गया था.

इसके बाद उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की गई. उनके ऊपर कुल चार आरोप लगाए गए, जिनमें से दो प्राइवेट प्रैक्टिस और दो ऑक्सीजन कांड से संबंधित थे.

जांच अधिकारी प्रमुख सचिव, स्टाम्प एवं निबंधन, भूतत्व एवं खनिकर्म हिमांशु कुमार ने अपनी जांच में प्राइवेट प्रैक्टिस के दोनों आरोप को सही पाया, लेकिन ऑक्सीजन कांड से संबंधित दोनों आरोप (आरोप संख्या 3 और 4) सही नहीं पाए गए.

अब सरकार यह कह रही है कि जो दो आरोप सही पाए गए हैं उस पर नियमानुसार डॉ. कफ़ील का फिर से पक्ष लिया जाना था, जो उसे मिल गया है. इस पर निर्णय अभी लंबित है.

जो दो आरोप जांच अधिकारी ने सही नहीं पाए, वह सरकार को स्वीकार नहीं है. इन आरोपों के संबंध में शासन ने बताया है कि उसे नए तथ्य मिले हैं, जिस पर आगे की जांच की जा रही है.

इसके अलावा बहराइच जिला अस्पताल प्रकरण में डॉ. कफ़ील के खिलाफ निलंबन की कार्यवाही की गई है और उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई है. विभागीय जांच में उन पर तीन आरोप लगाए गए हैं.

इस तरह उत्तर प्रदेश सरकार के अनुसार डॉ. कफ़ील ऑक्सीजन कांड में निलंबित रहते हुए बहराइच जिला अस्पताल प्रकरण में दोबारा निलंबित किए गए हैं और दोनों मामलों के कुल सात आरोपों में उनके खिलाफ विभागीय कार्यवाही चल रही है. सरकार के स्तर पर इसमें कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है.

अब सबसे पहले ऑक्सीजन कांड पर आते हैं. इस मामले में विभागीय कार्यवाही में चार आरोप थे जिसकी जांच हुई.

आरोप संख्या एक और दो सरकारी सेवा में सीनियर रेजिडेंट और नियमित प्रवक्ता रहते हुए प्राइवेट प्रैक्टिस करने व निजी नर्सिंग होम संचालित करने का था.

इन दोनों आरोपों को जांच अधिकारी ने सही माना है लेकिन उन्होंने अपनी रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है, ‘08 अगस्त 2016 के बाद आरोपी अधिकारी द्वारा प्राइवेट प्रैक्टिस किए जाने का कोई साक्ष्य दस्तावेजों में उपलब्ध नहीं है.’

यह टिप्पणी डॉ. कफ़ील के हक में जाती है क्योंकि ऑक्सीजन कांड 10 अगस्त 2017 को हुआ था और उस वक्त डॉ. कफ़ील का प्राइवेट प्रैक्टिस करना प्रमाणित नहीं होता है.

जिन दो आरोपों (आरोप संख्या 3 व 4) को जांच अधिकारी ने सिद्ध नहीं पाया है, वे ऑक्सीजन कांड से सीधे जुड़े हुए हैं.

इसमें डॉ. कफ़ील पर आरोप लगाया गया है कि ‘बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में बच्चों की आकस्मिक मौत की घटना के समय वह मौजूद थे और वे 100 बेड एईएस वार्ड के नोडल प्रभारी थे. उन्होंने जीवन रक्षक ऑक्सीजन की कमी जैसी महत्वपूर्ण बात को तुरंत उच्चाधिकारियों से नहीं बताई, जो उनकी मेडिकल नेग्लिजेंस का परिचायक है.’

इस आरोप में यह भी जोड़ा गया था कि ‘डॉ. कफ़ील ने तत्कालीन प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र के साथ मिलकर साजिश के तहत शासकीय नियमों का उल्लंघन किया.’

जांच अधिकारी हिमांशु कुमार ने आरोप संख्या तीन और चार को खारिज करते हुए अपनी टिप्पणी में लिखा है कि ‘आरोप संख्या 3 के संबंध में विभाग द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्य बलहीन एवं असंगत हैं. इस संबंध में आरोपी अधिकारी द्वारा दिया गया उत्तर संतोषजनक प्रतीत होता है. यह आरोप आरोपी अधिकारी पर सही नहीं पाया जाता है. आरोप संख्या चार की पुष्टि में दिए गए साक्ष्य अपर्याप्त और असंगत हैं. यह आरोप आरोपी अधिकारी पर सही नहीं पाया जाता है.’


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प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा रजनीश दुबे ने बीते तीन अक्टूबर को प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि आरोप संख्या 3 और 4 के बारे में डॉ. कफ़ील ने जांच अधिकारी को दस्तावेज उपलब्ध कराया था कि घटना के समय 100 बेड एईएस के प्रभारी वह नहीं डॉ. भूपेंद्र शर्मा थे. इस दस्तावेज के आधार पर जांच अधिकारी ने डॉ. कफ़ील पर आरोप सही नहीं पाया.

उनके अनुसार, शासन के संज्ञान में कुछ दस्तावेज आए हैं, जिससे प्रथम दृष्टया यह परिलक्षित होता है कि वर्ष 2016 एवं 2017 में डॉ. कफ़ील अहमद ख़ान 100 बेड एईएस वार्ड के नोडल ऑफिसर थे. उनके द्वारा नोडल ऑफिसर के रूप में पत्राचार किए गए हैं. उन्हें नोडल ऑफिसर के रूप में क्रय समिति का सदस्य भी बनाया गया था. इस तथ्य को देखते हुए आरोप संख्या 3 और 4 में आगे की जांच की जा रही है.’

यहां महत्वपूर्ण है कि 100 बेड एईएस (एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम) वार्ड के प्रभारी और नोडल अधिकारी के अलग-अलग पद हैं, न कि एक. 100 बेड एएसई के नोडल अधिकारी का कोई पद ही नहीं है, जैसा कि प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा रजनीश दुबे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है.

डॉ. कफ़ील ख़ान का दावा है कि वह ऑक्सीजन कांड के वक्त नोडल अधिकारी एनएचएम थे, न कि 100 बेड एईएस वार्ड के प्रभारी या 100 बेड वार्ड के नोडल अधिकारी.

डॉ. कफ़ील ख़ान ने अपने दावे के समर्थन में जांच अधिकारी हिमांशु कुमार को आरटीआई से प्राप्त साक्ष्य मुहैया कराया था. इस आरटीआई में बीआरडी मेडिकल कॉलेज द्वारा यह जानकारी दी गई है कि ‘11 मई 2016 से डॉ. भूपेंद्र शर्मा, सह आचार्य बाल रोग विभाग को एईएस एवं 100 नंबर वार्ड का प्रभारी अधिकारी बनाया गया है.’

पुलिस चार्जशीट में डॉ. कफ़ील ख़ान को एनएचएम का नोडल अधिकारी और 100 बेड एएसई वार्ड का प्रभारी बताया गया है. चार्जशीट में बीआरडी मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ. महिमा मित्तल का बयान दर्ज है.

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बयान के अनुसार, ‘प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र ने 29 दिसंबर 2016 को कार्यालय आदेश जारी कर डॉ. कफ़ील ख़ान को एनएचएम मेडिकल कॉलेज का प्रभारी बनाया. विभाग में सीनियर डाॅक्टर होने के बावजूद जूनियर डॉ. कफ़ील को नोडल अधिकारी बनाया गया. उन्हें 20 हजार रुपये तक की खरीद का अधिकार दिया गया.’

इस बयान में हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा है कि ‘वह (डॉ. कफ़ील) एनएचएम के तहत 100 बेड एईएस वार्ड के भी प्रभारी थे.’

महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा डॉ. केके गुप्ता ने अपनी जांच रिपोर्ट में एक स्थान पर डॉ. सतीश कुमार को 100 नंबर वार्ड का प्रभारी अधिकारी बताते हुए कहा है कि उनके द्वारा रखरखाव की समुचित कार्यवाही नहीं की गई.

इस रिपोर्ट पर ही डॉ. कफ़ील, डॉ. राजीव मिश्र, डॉ. सतीश कुमार, डॉ. पूर्णिमा शुक्ल सहित आठ लोगों को निलंबित किया गया और इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई थी.

डॉ. कफ़ील का कहना कि एनएचएम के नोडल अधिकारी के बतौर उनका काम एनएचएम के अन्तर्गत मानव संसाधन का प्रबंधन था.

पुलिस चार्जशीट, आरटीआई से प्राप्त जवाब और डॉ. केके गुप्ता की जांच रिपोर्ट डॉ. कफ़ील के दायित्व के बारे-बारे में अलग-अलग दावे करते हैं.

प्रमुख सचिव रजनीश दुबे ने प्रेस कॉन्फ्रेस में डॉ. कफ़ील के ऑक्सीजन कांड के समय धारित पद के बारे में जो जानकारी दी है जिसके बारे में अब तक किसी भी कागजात में उल्लेख नहीं मिलता है.

अब सरकार यदि एनएचएम के नोडल अधिकारी के बतौर डॉ. कफ़ील की ऑक्सीजन कांड में जिम्मेदारी तय करती है तो उसे इस बात का भी जवाब देना होगा कि 100 बेड एईएस वार्ड के प्रभारी कैसे अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो सकते हैं?

क्या ऑक्सीजन की कमी और दायित्व पालन में लापरवाही अकेले डॉ. कफ़ील ख़ान ने ही की? ऑक्सीजन की कमी के लिए बीआरडी मेडिकल कॉलेज के कार्यवाहक प्राचार्य, बाल रोग विभागाध्यक्ष जिसके तहत 100 बेड एईएस वार्ड आता है, नेहरू अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक, 100 बेड के प्रभारी सहित अन्य को क्यों नहीं जिम्मेदार ठहाया गया? क्या इनकी कोई भूमिका नहीं बनती है?

डॉ. कफ़ील ने जांच अधिकारी को जो दस्तावेज उपलब्ध कराए हैं, उनमें से अधिकतर आरटीआई द्वारा प्राप्त दस्तावेज हैं. ये दस्तावेज बीआरडी मेडिकल कॉलेज और सरकारी विभागों द्वारा उपलब्ध कराए गए हैं. इन दस्तावेजों की प्रमाणिकता को चुनौती देना सरकार के लिए हास्यास्पद स्थिति ही उत्पन्न करेगा.

बहराइच जिला अस्पताल का प्रकरण 22 सितंबर 2018 का है. पिछले साल सितंबर में यह खबर आई थी कि बहराइच जिला अस्पताल में 45 दिन में 71 बच्चों की मौत हुई है. अस्पताल की ओर से कहा गया कि बच्चों की मौत रहस्यमय बुखार से हुई है.

वहीं, डॉ. कफ़ील ख़ान का कहना था कि बच्चों की मौत इंसफेलाइटिस से हुई है. वह 22 सितंबर 2018 को बहराइच जिला अस्पताल पहुंचे और वहां भर्ती बच्चों के परिजनों से बातचीत करने लगे.

इसी वक्त पुलिस ने उन्हें शांति भंग करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. उनके खिलाफ जिला अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) की तहरीर पर सरकारी कामकाज में बाधा डालने के आरोप में केस भी दर्ज किया गया.

इस मामले में 10 महीने बाद इस साल जुलाई में सरकार फिर सक्रिय हुई है. चिकित्सा शिक्षा विभाग ने न केवल इस मामले में डॉ. कफ़ील ख़ान को निलंबित किया है बल्कि उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई है.

प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा रजनीश दुबे ने कहा है कि डॉ. कफ़ील द्वारा 22 सितंबर 2018 को 3-4 लोगों के साथ जिला अस्पताल बहराइच जाकर बाल रोग विभाग में जबरन मरीजों का इलाज करने का प्रयास किया गया.

इस घटना के बारे में जिला अस्पताल बहराइच के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक ने 17 जुलाई 2019 को शासन को अवगत कराया, जिसमें कहा गया है कि डॉ. कफ़ील के इस कृत्य से चिकित्सालय में अफरा-तफरी का माहौल उत्पन्न हुआ तथा पीआईसीयू में भर्ती गंभीर बाल रोगियों के जीवन पर संकट उत्पन्न हुआ.

इस घटना के संबंध में डॉ. कफ़ील के खिलाफ बहराइच के कोतवाली नगर में एफआईआर भी दर्ज कराई गई थी.

प्रमुख सचिव रजनीश दुबे ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा है कि निलंबन अवधि के दौरान डॉ. कफ़ील द्वारा संबद्धता स्थल (महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा एवं प्रशिक्षण) में योगदान न देकर सोशल मीडिया पर सरकारी विरोधी राजनीतिक टिप्पणियां की गईं. सरकारी सेवक के रूप में उनका यह कार्य गंभीर कदाचार की श्रेणी में आता है.

उनके अनुसार, इस बारे में 31 जुलाई 2019 को उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक अनुशासन एवं अपील नियमावली 1999 के अनुसार डॉ. कफ़ील को निलंबित किया गया है. इस मामले में डॉ. कफ़ील के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की गई है जिसमें कुल तीन आरोप लगाए गए हैं. इन आरोपों की जांच 18 सितंबर 2019 को प्रमुख सचिव चिकित्सा और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण को सौंपी गई है.

बहराइच मामले में 10 महीने बाद डॉ. कफ़ील ख़ान पर निलंबन की कार्यवाही और आरोपों की जांच शुरू करना भी सरकार और चिकित्सा शिक्षा विभाग को कटघरे में खड़ा करता है.

नियम है कि विभागीय कार्यवाही के उपरांत विभागीय जांच तुरंत शुरू कर देनी चाहिए और तीन महीने में जांच पूरी कर रिपोर्ट के अनुरूप निर्णय लिया जाना चाहिए.

ऑक्सीजन कांड में विभागीय जांच पूरी करने में देरी के खिलाफ डॉ. कफ़ील ख़ान हाईकोर्ट में गए थे, जहां से सरकार को तीन महीने में जांच पूरी कर आवश्यक कार्यवाही करने को कहा गया था.

अप्रैल 2019 में जांच रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार अभी तक इस मामले में कोई निर्णय नहीं ले सकी है. बहराइच मामले में तो इसी महीने जांच अधिकारी नामित किया गया है. यह दर्शाता है कि डॉ. कफ़ील पर लगाए गए आरोपों की तेजी से जांच कराने में खुद सरकार को कोई रुचि नहीं है.

कुल मिलाकर विभागीय जांच रिपोर्ट ने ऑक्सीजन कांड को लेकर सरकार के दावों पर ही सवाल खड़ा कर दिया है. जांच रिपोर्ट से ऑक्सीजन कांड की सरकारी कहानी की बुनाई पूरी तरह से उधड़ गई है. यही कारण है कि इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने के बाद सरकार को बार-बार सफाई देने मीडिया के सामने आना पड़ रहा है.

(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)

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